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Best Horror Stories in Hindi

Last updated on: December 24th, 2020

डरावनी कहानियाँ | Best Ghost/Horror Stories in Hindi

दोस्तो आप सभी ने बचपन में किसी बड़े बुजुर्ग से हॉरर स्टोरीज जरूर सुनी होगी। यह कहानियां हम सब में एक अलग ही रोमांच पैदा करती है। तो चलिए कुछ अच्छी नयी हॉरर स्टोरीज पढ़ते है और अपने बचपन को दोबारा जीने की कोशिश करते हैं।

चांदी की पायजेब

रात के करीब बारह बजे का टाइम रहा होगा जब रामसखा के कानों में किसी औरत के पायजेब की छन-छन की आवाज़ सुनाई पड़ी। रामसखा ने चदर से बाहर  मुंह निकाल कर इधर-उधर देखा  मगर कोई  दिखाई  नहीं  दिया। इसीलिए रामसखा ने फिर से चादर में मुंह छिपा लिया और सोने की कोशिश करने लगा। मगर  जैसे ही उसे नींद आने को हुई फिर किसी औरत की पायजेब की छन-छनन-छन की आवाज़ सुनाई देने लगी। उसे लगा कि कोई औरत उसकी चारपाई के आसपास  पायजेब  छनकाती फिर रही है। उसने चादर हटा कर कर देखा तो छत पर सचमुच एक औरत दिखाई दी। वह इधर-उधर पायजेब छनकाती फिर रही थी।

रामसखा औरत से

अरे , कौन हो तुम ? हमारे घर में तो मेरे सिवा  कोई  और है नहीं। और है भी तो बस एक बेटा है जो शहर गया हुआ है। उस पर भी तुम  एक औरत हो , जो हमारे घर में कई बरस से नहीं है। फिर तुम कहां से आई ? गोविंद की अम्मा  का भूत हो क्या?

कहकर बूढ़ा रामसखा चादर को एक ओर फेंक कर चारपाई से उठा और उस औरत की तरफ बढ़ा। मगर इससे पहले कि वह उस रहस्यमयी औरत तक पहुंच  पाता वह अपने पैरों के पायजेब छनकाती हुई छत की मुंडेर पर पैर रखकर आगे कहीं गायब हो गई। रामसखा ने इधर-उधर सब जगह देखा मगर वह कहीं भी  नज़र नहीं आई। इसी कारण वह सोचने लगा  कि जरूर वह औरत कोई भूतनी ही थी।

रामसखा के पसीना छूटना

 छत पर भूतनी देखकर रामसखा बहुत डर गया और उसका दिल जोर-जोर  से धड़ने लगा। शरीर से पसीना छूट रहा था और मुंह से आवाज़ तक नहीं निकल पा रही थी। वह छत से सीधे  सीढ़ियों की तरफ़ दौड़ा और उसने जितना जल्दी हो सका नीचे के कमरे में आकर शरण ली। घंटा-डेढ़ घंटा देवी-देवताओं के नाम को रटा तब जाकर  किसी तरह खुद को काबू कर पाया। मन का डर थोड़ा कम हुआ तो उसने सोचा कि क्यों  न यहां  नीचे ही सो जाऊं। पर जैसे ही वह पलंग पर लेटा वहां दीवार में बनी सलैब पर रखे लोहे के ट्रंक के अंदर से एकाएक वही पायजेब की झंकार सुनाई देने लगी।

पहले-पहले तो आवाज़ कुछ धीमी थी मगर  फिर  धीरे-धीरे  तेज होती चली गई। छन-छन,छनन-छनन,छना-छन…रुकने का नाम  ही नहीं  लिया।यह अद्भुत मंजर रामसखा के लिए इतना  डरावना था कि  अब उससे अब घर में  न टिका गया।वह तुरंत घर से बाहर निकल भागा । घर से निकलने के बाद वह सीधे पुलिस स्टेशन की तरफ चल दिया।

रामसखा पुलिस इंस्पेक्टर से

बाबूजी जल्दी से चलिए। हमारे घर में किसी  महिला का भूत घुस आया है। घर में  रखे लोहे के ट्रंक के  अंदर से किसी औरत के पायजेब के छनकने की जोरदार आवाज़ें आ रही हैं। शायद ट्रंक के भीतर कोई भूतनी है?

पुलिस  इंस्पेक्टर रामसखा की बात सुनकर  जोर-जोर  से हंसने लगा मगर जब रामसखा ज्यादा ही खुशामद करने लगा तो उसका मन रखने के लिए या फिर यूं कहिये कि इस अटपटे मामले की सच्चाई जानने की उत्सुकता के कारण  वह न चाहते हुए भी रामसखा के घर चला आया।

रामसखा के घर में 

पुलिस इंस्पेक्टर और दो हवलदार रामसखा के घर पहुंचे और सबने घंटा भर बैठकर इंतजार किया कि उस ट्रंक के भीतर से किसी औरत के पायजेब के बजने की आवाज़ सुनाई देगी मगर ट्रंक के अंदर से कोई आवाज़ न सुनाई दी।इंस्पेक्टर से और इंतजार न हुआ तो उसने अपने एक हवलदार को ट्रंक खोलकर तलाशी लेने का आदेश दिया। हवलदार ने ट्रंक  खोला तो उसमें से  सचमुच एक चांदी की पायजेब निकली।  इसे देखकर पुलिस वाले चौंक गए और उन्हें रामसखा की बात में कुछ सच्चाई  नज़र आई।

हवलदार ने पायजेब ट्रंक से निकाल कर जब इंस्पेक्टर को दी तो वह और अधिक  चौंक गया। न जाने उसे पायजेब में क्या  दिखा कि कुछ भी बोलने के बजाय   उसने पायजेब को रुमाल में  बांध कर  अपनी  पैंट की जेब में ठूंस लिया  और अपने  हवलदारों सहित वहां से चलता बना। यह सब देख रामसखा को लगा कि जरूर उस पायजेब में कोई गहरा  राज़  छिपा है  वर्ना  पुलिस इंस्पेक्टर उसे लेकर इस तरह खामोशी से न जाता।

पायजेब में छिपा कत्ल का राज़ 

 उस पायजेब में  सच में ही  एक औरत के कत्ल का राज़ छिपा था। रामसखा के घर से जैसे ही वह चांदी की पायजेब मिली पुलिस तुरंत हरकत में आ गयी। पुलिस ने रामसखा के बेटे  गोंविद को शहर के एक मकान से गिरफ्तार कर उससे गहन पूछताछ की और जो सच सामने आया उसे जानकर सब दंग रह गए। दरअसल दो दिन पहले ही गोविंद ने अपने एक साथी के साथ मिलकर एक नवविवाहिता का बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी थी।  उसके पांव की एक पायजेब तो गोविंद अपने साथ  ले आया था मगर उसकी दूसरी पायजेब घटना स्थल पर ही कहीं  खो  गयी थी और  इसी कारण गोविंद के हाथ न लग पायी थी। गोविंद ने उसे  ढूंढा भी था पर वह उसे मिल न पाई थी।  वही पायजेब अब पुलिस इंस्पेक्टर के पास थी और उस पर आफत बनके टूट पड़ी थी।

 इंस्पेक्टर ने रामसखा के घर से मिली पायजेब को  देखते  ही पहचान लिया था कि यही उस मृत औरत  के पांव की दूसरी पायजेब है।  इसीलिए उसने चुप्पी  साध ली थी और फिर तुरंत कार्रवाही करना ही उचित समझा था।उसने तुरंत क़दम उठाते  हुए गोविंद और उसके साथी को पकड़ा और उनसे पूछताछ की। सारी सच्चाई जानने के बाद उन दोनों पर उस नवविवाहिता के रेप एवं मर्डर का केस दर्ज कर उन्हें जेल में  बंद कर दिया। 

इस प्रकार एक औरत जिसका मर्डर हुआ उसी की आत्मा अथवा रुह ने मर्डर मिस्ट्री को सुलझाने में  पुलिस की मदद की और अपने कातिलों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा कर दम लिया।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

भाग्य का दाना-पानी

किसान और उसका परिवार 

जीवन नाम का एक किसान था। वह अपने परिवार के साथ रेगिस्तान के एक छोट-से गांव में रहता था। उसका घर शहर की तरफ जाने वाले मुख्य मार्ग के किनारे पर स्थित था और वहीं आसपास ही उसके छोटे-छोटे खेत थे। उन्हीं खेतों में वह अनाज और सब्जियां उगाता था। जीवन बहुत ही नेक दिल, उदार और मिलनसार व्यक्ति था। साथ ही उसकी पत्नी, बेटा और बेटे की बहू सभी में ही उसके जैसे महान गुण मौजूद थे। 

भूखों को भोजन, प्यासों को पानी

उनका घर शहर के मार्ग पर होने के कारण आए दिन भूखे-प्यासे लोग आते-जाते वहां रुक जाया करते थे। कोई भूखा होता था तो कोई प्यासा। जीवन का परिवार सबकी मन से सेवा करता था। भूखे को भोजन और प्यासे को पानी दिए बिना कभी जाने नहीं देते थे। जीवन का मानना था कि सब भाग्य का दाना पानी है जिसके भाग्य का है उसी को मिलता है। ईश्वर  जब तक मुझे देगा तब तक मैं सबमें  बांटता रहूंगा।जीवन का परिवार भी उसके इस धर्म के काम में पूरा सहयोग  देता था। भले ही इस कारण उन्हें अपने खेतों  में हिम्मत से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी मगर फिर भी सब बहुत खुश थे।

अकाल और भुखमरी 

एक बार उस गांव में अकाल के कारण सब खेत तबाह हो गए। जिन खेतों में अनाज व सब्जियां उगती थीं उनमें धूल उड़ने लगी। गांव में फैली भुखमरी की वज़ह से अधिकांश लोग अपने परिवार व पशुओं सहित गांव से पलायन कर गए। जीवन के परिवार पर भी मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। घर में दाने-पानी का संकट गहरा गया। न खुद के खाने के लिए कुछ बचा और न ही किसी और के खाने के लिए। भूखे मरने की नौबत आ गई तो जीवन भी अपने परिवार सहित गांव को छोड़कर शहर के लिए चल पड़ा।

भिखारी जीवन से

रास्ते में जीवन अपने भूखे परिवार के लिए कहीं से कुछ रोटियां और थोड़ा पानी मांगकर लाया। सब बहुत भूखे थे इसीलिए भोजन-पानी देखते ही उस पर टूट पड़े। जीवन ने दो दिन से कुछ नहीं खाया था।

इसी कारण वह भी रोटियां खाने को बेचैन हो उठा। पर जैसे ही उसने रोटी तोड़ कर पहला कौर मुंह में  डालना चाहा तो किसी की आवाज़ सुनाई दी -“भाई, चार दिनों से कुछ नहीं खाया ये रोटियां मुझे दे दो।”

जीवन ने नज़र ऊपर उठाकर देखा तो सामने एक भिखारी हाथ फैलाए खड़ा था।

जीवन भिखारी से

भाई,  मैं तो अभी कुछ और दिनों तक भी भूखा रह सकता हूं ,पर तुम भूखे मत रहो।  ये रोटियां लो और आराम से बैठकर खाओ। मैं तुम्हारे लिए पानी लेकर आता हूं। कहकर जीवन ने रोटियां भिखारी को देने के लिए हाथ बढ़ाया। मगर तभी भिखारी अपने असली रूप में आ गया। वह कोई भिखारी नहीं था बल्कि उस देश का राजा था जो जीवन की उदारता और धैर्य को परखना चाहता था।

राजा जीवन से

जीवन तुम महान हो। तुम खुद भूखा रहकर दूसरों को अपना  भोजन खिलाने की हिम्मत रखते हो तो भला ईश्वर तुम्हें भूखा रखने की हिम्मत कैसे कर सकता है।

मैं  तुम्हारे बारे में सब जानता हूं और चाहता हूं कि तुम अभी इसी घड़ी अपने घर लौट जाओ। घर जाकर पहले की तरह उस मार्ग पर से आने-जाने वाले भूखे-प्यासे राहगीरों  के  दाने-पानी का सहारा बनो। मैंने  तुम्हारे घर भरपूर मात्रा में दाना-पानी पहले ही पहुंचवा दिया है और आगे भी पहुंचता रहेगा।

राजा की बात सुनकर जीवन बहुत खुश हुआ और उसने मन-ही-मन भगवान का शुक्रिया अदा किया। फिर सपरिवार घर वापस लौट गया।

शिक्षा: जो दूसरों की भूख का ख्याल रखता है ईश्वर उसे कभी भूखा नहीं रखता।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

वनीता कहां हो तुम ?

“आयुष, तुम मुझसे कितना प्यार करते हो ?”

“पर तुम आज यह सब क्यों पूछ रही हो? क्या मेरे प्यार पर संदेह है ?”

“नहीं…नहीं…बिलकुल भी नहीं, आयुष। तुम्हारे प्यार पर तो मैं कभी संदेह कर ही नहीं सकती। तुमसे मिलने के बाद ही तो मेरी आत्मा तृप्त हो पाई है। इससे पहले तो मैं एक भटकती आत्मा थी और मुझे पता भी नहीं था  कि इस दुनिया में प्यार नाम की भी कोई चीज होती है।” कहकर वनीता आयुष की बांहों में सिमटती चली गई।

“तो अब मेरा प्यार पाकर तुम्हारी आत्मा शांत हो गई…भूतनी कहीं की!”

 कहकर आयुष ने उसे कसकर अपनी बांहों में भींच लिया और उसके कंधे पर सिर रखकर आंखें बंद कर लीं। फिर तो काफी देर तक दोनों एक-दूसरे के कंधे पर सिर रखकर अपने में ही खोए रहे।  

जब दोनों नींद से जागे 

कुछ देर बाद जब दोनों नींद से जागे तो खूब  बातें की, मगर आयुष के दिल को और दिनों की तरह चैन    आज भी न मिला, क्योंकि उन दोनों के बीच छह महीने से प्रेम चल रहा था और इन छह महीनों में आयुष ने कितनी ही बार उससे कहा था कि अपने घर-परिवार के बारे में कुछ  बताए और उनसे मिलवाए ताकि वह उनसे मिलकर शादी की बात कर सके।

पर जब भी आयुष ऐसी कोई  बात कहता तो वह तुरंत नाराज हो जाती और कहती कि जब समय आएगा तो अपने घर-परिवार के बारे में भी बताऊंगी और सबसे मिलवाऊंगी भी। मैं कहीं दूर थोड़ी न रहती हूं। सामने शमशान घाट के पास वाले गांव में ही तो रहती हूं। तुम बस थोड़ा और इंतज़ार कर लो मैं तुम्हें सबकुछ बता दूंगी। अगर इंतजार नहीं कर सकते तो छोड़ दो मुझे। यह कहकर वह रोने लग जातीऔर उसकी ये बातें सुनकर आयुष को चुप ही हो जाना पड़ता था।

वनीता आयुष से 

 दोनों को बातें करते काफी देर हो गई तो वनीता ने आयुष से कहा कि बहुत देर हो चुकी है और अब घर लौट जाना चाहिए। यह कहकर वह  जाने के लिए उठने लगी। आयुष ने उसे कुछ देर और रोकना चाहा पर वह नहीं मानी।उसने कहा कि शाम ढल गई है और  अंधेरा होने को है। अब तुम यहां मत रुको। मैं भी जा रही हूं और  तुम भी घर लौट जाओ। 

कुछ दिन बाद 

 रोज़ की ही तरह आयुष व वनीता वहीं खेतों में शमशान घाट के पास बने पुराने कोठरे पर  मिले। दोनों ने एक-दूसरे में  घुस-घुसकर खूब प्यार किया और जी भरकर प्यार की बातें कीं। आज वनीता को आयुष पर हद से ज्यादा प्यारा आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि मानो उसके पास आयुष से प्यार करने का आज आखिरी दिन है और  यह दिन फिर कभी  न लौटेगा। प्यार में उतावली हुई  जा रही थी मगर फिर  भी न जाने क्यों उतावलेपन में भी  गंभीर होकर आयुष से कहने लगी।

वनीता आयुष से 

सुनो, मैं तुम्हारी हूं और  सदा तुम्हारी ही रहूंगी लेकिन अगर कभी मैं इस दुनिया में न रहूं तो तुम  मुझे  ढूंढते मत फिरना। मेरी छोटी बहन वंदना से शादी कर लेना।

वो मुझसे भी  खूबसूरत है मगर फिर भी कोई  उससे शादी करने को तैयार नहीं। पर तुम मना मत करना।तुम  उससे प्यार करोगे तो समझो मुझसे प्यार करोगे।

मेरी आत्मा शांत हो जाएगी।

आयुष वनीता से

वनीता क्या हो गया है तुम्हें ? आज तुम ऐसी अटपटी बातें क्यों कर रही हो? कभी कुछ नहीं होगा तुम्हें। तुम हमेशा मेरे साथ ही रहोगी, समझी… और मैं तुमसे ही प्यार करूंगा।

वनीता ने आयुष की बात सुनी जरूर मगर फिर कुछ  बोली नहीं। मुलाकात के बाद जाने लगी तो बस यही कहा कि कल तुम मेरे गांव  आ जाना और प्रताप नारायण का घर पूछ लेना। वही मेरे पापा हैं, मैं तुम्हें उनसे मिलवाऊंगी। आयुष उसकी यह बात सुनकर फूला न समाया।

अगले दिन 

अगले दिन आयुष सज-धजकर वनीता के गांव गया तो वह उसे रास्ते में ही मिल गई और उसे अपने घर तक लेकर गई। मगर फिर एकाएक जाने कहां गायब हो गई।आयुष अकेले ही अंदर जाकर उसके माता-पिता और उसकी छोटी बहन वंदना से मिला। वनीता के माता-पिता बहुत अच्छे थे और उसकी बहन वंदना  तो वनीता से भी ज्यादा सुंदर और जवान थी।पर जो सच उसके  सामने आया उसे जानकर तो वह सन्न ही रह गया और  उसके मुंह से एक बोल तक न निकला।

 वह सच यह था कि वनीता छह महीने पहले मर चुकी थी और वह जिससे रोज़ मिलता था वह वनीता नहीं, बल्कि उसकी आत्मा थी। साथ ही वह अपने मरने के बाद आयुष से अपनी जिस बहन वंदना से शादी करने को कहा करती थी उसकी वह बहन आंखों से अंधी थी और इसीलिए उसके सुंदर होते हुए भी कोई उससे शादी करने को तैयार न था।

आयुष शमशान घाट में 

यह सच जानने के बाद आयुष एक पल भी वहां नहीं रुका।सीधे शमशान घाट की ओर दौड़ा।वहां जा पहुंचा और चीख-चीखकर पागलों की तरह  वनीता को पुकारने लगा-” वनीता कहां हो तुम? प्लीज, एक बार पहले की तरह लौट आओ…लौट आओ…व्…व्…व्… वनीता!”

आयुष ने  खूब आवाजें दीं और खूब रोया-चिल्लाया मगर आज वनीता ने उसकी नहीं सुनी। अंततः दुखी मन से वह अपने घर की ओर चल दिया, पर जाते-जाते फिर चिल्लाया -” तुम यही चाहती थी न कि मैं तुम्हारी बहन वंदना से शादी कर लूं ,तो लो खुश  हो जाओ मैं जा रहा हूं उससे शादी करने। अब तो तुम्हारी आत्मा शांत हो गई होगी!”

अभी आयुष कुछ ही क़दम दूर गया था कि पीछे से वनीता की आवाज़ सुनाई पड़ी। उसने तुरंत मुड़कर देखा। शमशान में वनीता खड़ी थी। वह हंस भी रही थी और रोए भी जा रही थी। धूप में उसके सुंदर चेहरे  आंसुओं की बूंदें मोतियों-सी चमक रही थीं । आयुष ने दौडकर उसे बांहों में भरना चाहा,  मगर जैसे ही उसने दौड़ना शुरू किया एकाएक वनीता कहीं गायब हो गई।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

होटल था या खंडहर

दोस्तों मेरा नाम मोनू है.और आज में तुम्हे एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हुँ. जिसे सुनकर आप सोचने पर मजबूर हो जाओगे. यह कहानी उस समय कि है. जब में एक इलेक्टॉनिक कम्पनी में इंजीनियर के पद पर था. वहीँ मेरी दोस्ती एक लड़के से हुई. जिसका नाम राजू था.

राजू और मैं अच्छे दोस्त बन गए थे और हम दोनों एक ही कंपनी में काम किया करते थे. इसलिए हम दोनों एक दूसरे से अच्छे से घुल मिल गए थे. और अच्छे से परिचित हो चुके थे. कुछ साल बाद हम दोनों का तबादला दूसरे शहर भागलपुर में हो गया. भागलपुर का नाम तो पहले हमने सुना था की वहाँ एक और इलेक्ट्रॉनिक कंपनी बन रहीं है लेकिन भागलपुर गए कभी नहीं थे.

हम पूंछते – पूंछते दूसरे नए शहर राजू की कार से जा रहे थे.उस शहर कि दूरी डेढ़ सौ किलोमीटर के आसपास होगी. कुछ दूरी पर निकलने के बाद हमने एक पेट्रोल पम्प पर डीजल डलवाया. और वहाँ खड़े एक व्यक्ति से भागलपुर जाने का रास्ता पूँछा

राहगीर बोला

भागलपुर जाने के दो रास्ते है.पहला रास्ता सामने से दाँयी तरफ है. जो ठीक है, और उस रास्ते पर बहुत लोग आते जाते है. दूसरा रास्ता जंगल से होता हुआ जाता है. जो थोड़ा सुनसान है. लेकिन भागलपुर की दूरी आधी रह जाती है.

मैंने जंगल बाले रास्ते से जाना उचित समझा. लेकिन राजू ने मना कर दिया. मेरे कई बार कहने पर वह तैयार हो गया. और हम जंगल बाले रास्ते चल दिए.

किन्तु जैसे ही शहर आने वाला था. उस शहर के पहले ही सुनसान रास्ते पर हमारी कार अचानक खराब हो गई.

मैंने राजू से कहा

राजू तेरी कार को भी अभी खराब होना था. इसमें क्या दिक्कत आ गयी है? अपने आप ही चलते-चलते रुक गई.

जैसे ही हमने उतर के कार को देखा इंजन मे धुंआ ही धुंआ भरा था.शायद इंजन की पानी की टंकी में पानी बिल्कुल नहीं था. अब उस सुनसान रास्ते पर हम दोनों खड़े होकर और वाहनों का इंतजार करने लगे. लेकिन बहुत देर तक इंतजार करने पर वहाँ से कोई भी नहीं निकला.

राजू मुझसे बोला

मोनू इस रास्ते से तो कोई भी नहीं निकल रहा है.अब इस सुनसान जगह पर पानी कहाँ मिलेगा? और यहाँ चारों तरफ जंगल ही जंगल है दूर-दूर तक कोई बस्ती या गाँव भी नजर नहीं आ रहा क्या इस जंगल मे पानी मिलेगा? पानी की व्यवस्था तो करनी होगी.वरना कार आगे नहीं जा सकती. इंजन का क्या हाल हुआ जा रहा? कितना गर्म हो गया है? ऐसे धधक रहा जैसे आग लगने वाली हो.

मैंने कहा ठीक है, मैं पानी की तलाश में निकलता हूं.जब तक तुम यही गाड़ी के पास रुको.

मैं पानी की तलाश में एक बोतल लेकर जंगल की तरफ निकल गया. और पानी की तलाश में भटकता रहा. लेकिन जंगल में पानी का कहीं भी नामोनिशान नहीं दिखाई दिया.पानी की खोज में चलते-चलते में जंगल के पार निकल गया.तभी मुझे सामने एक सडक दिखाई दी और सडक के उस पार एक होटल दिखाई दिया.

अब मुझे बिश्वास हो गया था. कि मुझे यहां पर पानी मिल जाएगा.और मैं सड़क पार करने लगा.अचानक बादल छा गए तेज हवाएं चलने लगी.और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.और मैं भीगने लगा. बारिश से बचने के लिए मैं एक बड़े पेड़ के नीचे छुप गया. लेकिन बारिश इतनी तेज थी कि मैंने होटल मे ही आश्रय लेना उचित समझा फिर भी मैं काफ़ी भीग चुका था.

मैं दौड़ कर होटल कि तरफ भागा. और अन्दर घुसने के चक्कर मे गेटमैन से टकरा गया.और गेटमैन मुझे घूरके देखने लगाों और बोला

गेटमैन-मुझसे

अरे, अरे कहां चले जा रहे हो? कहां घुसे चले जा रहे हो? कहां से आए हो? भाई और क्या काम है? मुझे बताओ

मैंने कहा

मैं जंगल के उस पार जो सडक है, वहीं से आया हूं.अभी कुछ देर पहले हमारी कार मे कुछ खराबी आ गई इंजन में पानी भी खत्म हो गया.इसलिए गाड़ी चलते-चलते रूक गयी.और इंजन धुआँ दे रहा है. मैं पानी लेने के लिए पूरे जंगल में भटकता रहा.लेकिन मुझे जंगल में कहीं पर पानी नहीं मिला जंगल के इस पार सड़क पर आया. और मैंने देखा सामने एक होटल है. तभी अचानक बारिश होने लगी तो बारिश से बचने के लिए मे यहाँ चला आया. फिर भी बहुत भीग चुका हुँ.और मेरी छींक निकाल जाती है. आछहु

गेटमैन-मुझसे

तुम ठीक स्थान पर आए हो.अंदर चले जाओ.और स्टोर रूम में पहुंचना, जो कोई भी मिले उनसे कहना कि, गेटमैन रतन सिंह ने तुम्हें भेजा है. कुछ कपड़े निकाल कर दे दो जाओ, जल्दी जाओ जाके कपड़े चेंज कर लो वरना तुम्हें सर्दी लग जाएगी.

मैं होटल के अंदर प्रवेश कर गया. होटल में बहुत से लोग खाना खा रहे थे. कुछ चाय और कॉफी पी रहे थे. तो कुछ बैठकर आपस में बातें कर रहे थे.मै स्टोर रूम की तरफ चल दिया. तभी एक बेटर ने आवाज लगाई भाई किस से मिलना है? स्टोर रूम में कोई नहीं है.

तब मैंने कहा मुझे गेटमैंन ने भेजा है. मुझे कुछ कपड़े मिलेंगे मै बारिश में भीग चुका हूं.

वेटर – मुझसे

अच्छा तो तुम गेटमैन से भी मिल चुके हो.ठीक है आओ मेरे साथ चलो तुम्हे कपडे देता हूं.

मैंने कहा गेटमैन से मिल चुके हो क्या मतलब

बेटर ने कहा कुछ नहीं कुछ नहीं चलो मेरे साथ चलो और कपड़े चेंज कर लो वरना तुम्हें सर्दी लग जाएगी. और तुम बीमार भी पड सकते हो.

हम दोनों स्टोर रूम की तरफ चल दिए. तभी पीछे से किसी ने आवाज दी. जरा रुको, कहां जा रहे हो? बेटर मेहमानों को सर्व करो इनको मैं संभालता हूं.

सूट बूट में एक आदमी आया, और बोला मेरा नाम कर्मवीर है.

और मैं यहां का मैनेजर हूं.मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें स्टोर रूम में जाकर अच्छे से कपड़े देता हूं.और फिर चेंज कर लो कुछ खाना भी खा लो लगता है. तुम्हें भूख भी लगी होगी. और थक भी चुके हो. जब तक बारिश भी कम हो जाएगी इसके बाद चले जाना.

इतना कहने पर मैंने हाँ में सिर हिला दिया. मैनेजर साहब मुझे स्टोर रूम में ले गए.और वहां से एक खाकी का कुर्ता और पजामा निकाल कर दिया.और कहा कि बगल से ही बाथरूम मे जाओ और पहन लो कपड़े.

मैं बाथरूम में कपड़े पहनने लगा.मैंने जैसे ही बाथरूम मे लगे शीशे में देखा, तो हक्का-बक्का रह गया.शीशे में केवल मेरे कपड़े ही दिख रहे थे. मेरे हाथ पैर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा थे. और में नीचे गिर गया.अचानक मेरी नजर बाथरूम कि छत पर पड़ी. और दंग रह गया छत पर खून के छींटे थे.में तुरंत बाथरूम से बाहर निकला और जाने लगा मुझे हड़बड़ाकर बाहर निकलते देख मैनेजर हँस के बोला

मैनेजर – मुझसे

क्या हुआ? कहाँ जा रहे हो? अरे में तो तुम्हारा नाम ही पूंछना भूल गया. बाहर कहाँ जा रहे हो? अभी तेज बारिश हो रही है अचानक क्या हो गया? तुम्हे

मैंने कहा

आप के बाथरूम का शीशा बड़ा अजीब है.शीशे में मेरे हाथ पैर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहे है. केवल कपड़े दिखाई दे रहे थे.और बाथरूम की छत पर खून के छींटे पड़े हुए हैं.

मैनेजर मुझे लेकर फिर बाथरूम में गए.किन्तु ना अब वहाँ खून के छींटे थे.और शीशे में भी में पूरी तरह नजर आ रहा था.

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. कि ऐसे नहीं हो सकता.

मैनेजर -मुझसे

शायद तुम्हे कोई भ्रम हो गया होगा. चलो आओ मेरे साथ कुछ खा पी लो लगता है. तुम भूखे हो.

मैनेजर ने बेटर को बुलाया.और मुझे टेबल पर कुछ खाना पहुंचाया. जिसमें चावल, दाल, हरी सब्जियां,रायता तथा सलाद भी रखा हुआ था. किन्तु जैसे ही मैंने पानी का गिलास उठाया पानी खून में बदल गया. और मेरी खाने कि थाली में राख और हड्डियाँ आ गयी. मेरे रोंगटे खड़े हो गए.और डर के मारे कांपने लगा.और चिल्लाया तभी पलक झपकते ही होटल के सभी लोग कंकालों में बदल गए. फिर मुझे कुछ याद नहीं क्या हुआ?

जब मुझे मेरे चेहरे पर गीलापन महसूस हुआ. तब में नींद से जागा. और मैंने पाया में जिस होटल में था. वह तो खंडहर है.और में अपने दोस्त कि गोद में था. तथा एक आदमी मेरे सामने खड़ा था.फिर मेरे दोस्त ने बताया की जब मैं लौटकर नहीं आया तो मेरे दोस्त ने एक राहगीर को रोका और मुझे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यहाँ आये और मैं इस खंडहर मे बेहोश पड़े था.

में बोला

इस जगह तो होटल था.और अब खंडहर ये नहीं हो सकता.

आदमी

ये क्या कह रहे हो? बाबू जी यहाँ होटल तीस साल पहले था. जो एक बम ब्लास्ट के कारण खंडहर में तब्दील हो गया है.

उस आदमी कि बात सुनकर में हैरान रह गया. कि में जिन लोगों से मिला. वो तीस साल पहले मर चुके थे

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लेखक: M. K. Arya

मसान

उस समय की बात है. जब मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके गर्मी की छुट्टियां बिताने के लिए अपने मामा जी के घर गया था. मामा जी भोपाल में रहते थे.और उनकी एक लड़की और एक लड़का थे.मैं मामा जी के घर पहुँच गया.और दोनों भाई-बहनों के साथ बहुत ही आनंद से रह रहा था.

लेकिन एक दिन रात के आठ बजे थे. की मेरी मम्मी का फोन आया.उन्होंने कहा कि तुम्हारे छोटे भाई की तबीयत बहुत खराब है. जल्दी से घर आ जाओ ( पहले मै यहाँ बता दूँ की मेरा नाम रंजन और मेरे छोटे भाई का नाम करन है ) मैंने तुरंत रात के दस बजे की ट्रैन पकड़ ली. हमारा गाँव भोपाल से चार सौ किलोमीटर दूर है. ट्रैन सुपरफास्ट थी. इसलिए मैं सुबह आठ बजे अपने घर पहुंच गया. जैसे ही मैं घर पहुंचा. और देखा मेरे भाई को चाचा जी और मेरे पिताजी पकड़े हुये हैं. मेरा भाई छूटने के लिए बहुत प्रयास कर रहा है, ” चिल्ला रहा है”पर मैं जान नहीं पा रहा था. कि मेरे छोटे भाई को क्या हो गया? इतना चिल्ला क्यों रहा है?और पिताजी चाचा जी उसे पकडे क्यों है? मुझे बहुत डर लगने लगा. और मैं खड़े – खड़े रोने लगा तब मेरी मम्मी ने मुझे बताया डरने की कोई बात नहीं है. दादा-दादी आते ही होंगे, अभी ठीक हो जाएगा. इतने मे मेरे दादा दादी आ गए दादाजी ने आते ही छोटे भाई की बाएं हाथ की छोटी उंगली पकड़कर कहा

दादा जी -छोटे भाई से

बता कौन है तू? और कहां से आया है? क्यों परेशान कर रहा है? क्या चाहता है तू? बता

इतना सुनते ही मेरा छोटा भाई आग बबूला हो गया. और छूटने का प्रयास करने लगा. गुस्से मे अपने दाँत ऐसे पीस रहा था. की कभी – कभी ओंठ भी कट जाते थे. और खून आ जाता था. उसकी लाल-लाल आँखे और और चेहरा गुस्से से काला पड़ गया था. आंखें तो मानो फटी जा रही थी. दादाजी ने फिर पूछा

दादा जी – छोटे भाई से

कौन है तू? जो कोई भी हो, जहां से भी आया हो, वहीं पर चला जा. और जो कुछ मागेंगा, हम तुम्हें वही देंगे. लेकिन इस बच्चे को छोड़ दे.

लेकिन फिर भी मेरे छोटे भाई ने कुछ नहीं कहा बस चिल्लाने लगा.और हां हां हां हुं हुं हुं की आबाजों के साथ सिसकारियां लेने लगा

मेरे दादाजी ने कहा इसे मंदिर वाले स्थान में ले चलो मंदिर वाले स्थान का नाम सुनते ही मेरे छोटे भाई ने खौफनाक रूप धारण कर लिया. चिल्लाने लगा नहीं-नहीं वहां मत ले जा, मुझे वहां मत ले जा , और भागने की कोशिश करने लगा.

लेकिन मेरे चाचा और पापा उसे घसीटते हुए पूजा घर मे ले गए. पूजा घर मे पहुँचते ही मेरा भाई हाँथ पैर पटकने लगा. और मछली की भांति तड़पने लगा.

दादा जी ने फिर पूँछा

बोल कौन है तू? और यहाँ क्यों आया है? क्या चाहता है? इस बच्चे ने क्या बिगाड़ा तेरा और क्यों इसे परेशान कर रहा है?

और एक मोर पंख का झोंका मारते ही छोटा भाई बोल पड़ा

छोटा भाई

मैं मसान हुं (मसान जब छोटा बच्चा मर जाता है तो जो भूत बनता है वो मसान कहलाता है )और इस लड़के ने मेरा घर तो बर्बाद किया तो किया और मै तीन साल से सो रहा था. तो मुझे जगा भी दिया. इसलिए मे इस लड़के को नहीं छोडूंगा. इसे साथ लेकर जाऊँगा.

दादा जी – छोटे भाई (मसान)से

तुम इस बच्चे को छोड़ दो. इससे अनजाने मे गलती हो गयी है. इसे माफ करो. इसके बदले मे जो तुम कहोगे वो मे करूँगा.

छोटा भाई (मसान)

ठीक है. तो सबसे पहले तुम मेरा स्थान बनवा दो. और लाल कपडे मे सिन्दूर और अंडा और पेड़ा मेरे स्थान पर रख दो.

दादा जी ने कहा

ठीक है.आज ही ये सब काम करवा दिया जायेगा.तुम इसे छोड़ दो.और अब यहाँ से जाओ.

इतना कहने पर ही मेरे छोटे भाई को झटका सा लगा. और वह ज़मीन पर गिर पड़ा. और बेहोश हो गया. चाचा जी ने उसे उठाया. और पलंग पर लिटा दिया. अब पूरा परिवार इकठ्ठा हो चला था. और लोग सब प्रकार की बातें कर रहे थे.थोड़ी देर बाद सभी अपनी दैनिक क्रिया मे लग गए.और खाना खा ही रहे थे. की मेरा भाई जाग गया.लेकिन अब वो सामान्य था.

छोटा भाई – मम्मी से

माँ मुझे भूख लगी है.जल्दी खाना दो.

उसकी ये आवाज सुनकर सभी हैरान हो गए. और मम्मी ने छोटे भाई को गले लगा लिया. मेरी आँखों मे आंसू आ गए.और सभी ने छोटे भाई को स्नेह और प्यार दिया. थोड़ी देर बाद मेरा भाई खेलने लगा.

इधर मेरे दादा जी ने मसान का स्थान बनवा दिया. और वहाँ पर लाल कपडे मे सिन्दूर और अंडा पेड़ा चढ़ा दिया.

दो दिन तक सब सामान्य रहा किन्तु तीसरे दिन रात को

मेरे छोटे भाई को मसान ने फिरसे दबोच लिया.

सभी लोग फिर से घबरा गए. तभी छोटा भाई मसान के स्थान की तरफ भागा. उसे भागते देख मेरे चाचा ने तुरंत दौड़कर उसे पकड़ लिया. और घर के अन्दर ले आये.

सभी लोग असमंजस मे थे. की जो कुछ भी मसान ने माँगा, वो सब कर दिया. लेकिन फिर भी वह परेशान कर रहा है.

दादा जी भी गुस्से मे आ गए

और छोटे भाई की ऊँगली पकड़कर बोले तू फिर आ गया यहाँ पर क्या तू मरना ही चाहता है? या हमेशा के लिए कैद होना चाहता है. बोल जो तूने कहा था. वह सब कुछ तुझे दिया. फिर भी तू इस बच्चे को परेशान कर रहा है.

इतना सुनकर छोटा भाई जोर से चिल्लाया. और हाँथ पैर यहाँ – वहाँ मारने लगा और दादा जी की तरफ झपटा. तब चाचा ने उसे पकड़ कर कुर्सी से ही बांध दिया. मेरी मम्मी का रो रो के बुरा हाल था.

दादा जी फिर बोले

लगता है तू ऐसे नहीं मानेगा. तुझे सबक सिखाना ही पड़ेगा. इसे पूजा बाले स्थान पर ले चलो.

चाचा छोटे भाई को उठा के पूजा बाले स्थान पर जैसे ही ले गए की वह जोर – जोर से चीखने लगा. और कुर्सी सहित गिर पड़ा.उसे फिर उठा के बिठाया. अब तो वह इतना तेज चिल्ला रहा था. की आसपास के मोहल्ला बालों की हमारे घर मे भीड़ लग गयी. और छोटे भाई को देखकर कोई कुछ कहता.तो कोई कुछ कहता. बगल मे रहने बाले रामा दद्दू आये. और मेरे दादा से बोले.

दद्दू -मेरे दादा जी से

किशना (दादा जी का नाम ) जब ये तुझसे नहीं संभल रहा तो क्यों यहाँ पर डाले बैठा है? ये मसान बड़ा ही उजड्ड है. किसी को काली के मंदिर पर भेज के योगी लीलाधर को बुलवा लो ये मसान तो क्या बड़े से बड़ा जिंद भी पानी माँग जायेगा उनके सामने

पहले योगी लीलाधर का परिचय करवा देता हुँ. योगी लीलाधर को शायद ही कोई ऐसा होगा जो जानता ना हो योगी लीलाधर कम से कम आसपास के पचास गावों मैं अपने कारनामों के कारण बिख्यात थे. यहाँ तक की गाँव का बच्चा- बच्चा जानता है.

योगी लीलाधर कभी अन्न नहीं खाते थे. केवल फलाहार करते थे. उनके बाल बड़े- बड़े जटाओं मे परिवर्तित हो गए थे. बे तांत्रिक विद्या मे भी पारंगत थे.और उन पर माँ काली की विशेष कृपा थी. योगी लीलाधर कई भूत प्रेत और जिंदो को बस मैं किये थे.

मेरे दादा ने कहा

रमेश (मेरे चाचा) जल्दी जाओ और योगी लीलाधर को ले आओ.

मेरे चाचा ने स्कूटर निकाला. और जल्दी ही चले गए. गाँव के बाहर नदी के पास ही काली माँ का मंदिर है. वहीँ योगी लीलाधर अपने दो शिष्यों के साथ रहते थे.मेरे चाचा मंदिर पहुँच गए और योगी लीलाधर को ले आये.

योगी लीलाधर

अलाख निरंजन जय – जय माँ काली

अलाख निरंजन कहते हुये घर मे प्रवेश हुये

सभी लोग योगी लीलाधर के पैर छूते है.और योगी लीलाधर सबको आशीर्वाद देते है. और उन्हें बैठाते है

दादा जी – योगी लीलाधर से

प्रणाम बाबा जी आप आ गए मानो जान मे जान आ गयी अब जो कुछ करना है, आपको ही करना है. मेरे बच्चे को ठीक कर दीजिये.

योगी लीलाधर – दादा जी से

चिंता ना करें.आप मैं अभी उस दुष्ट को यहाँ से भगा देता हुँ.

और आँख बन्द करके ध्यान मे बैठ गए कुछ देर बाद योगी लीलाधर ने आँखे खोली और कहा

योगी लीलाधर – दादा जी से

मुझे महसूस हो रहा है.की आसपास कोई दुष्ट आत्मा है.

लेकिन चिंता की कोई बात नहीं जिस बच्चे को ये दुष्ट परेशान कर रही है. उसे लेकर आओ.

मेरे छोटे भाई को चाचा जी और पिताजी लेके आते है. अभी तक मेरे भाई की हालत बहुत बिगड़ चुकी थी

बाबा जी ने मेरे भाई का हाँथ पकड़ा और पूँछा,

योगी लीलाधर

बोल कौन है तू? और यहाँ क्यों आया? इस बच्चे को क्यों परेशान कर रहे हो ?

तभी मेरा भाई चिल्लाने लगा. और भागने की कोशिश करने लगा.

तभी योगी लीलाघर

चिल्लाये जय माँ काली और थोड़ी सी भभूत (राख )निकाल के उसके सिर पर मारी और कहा, अगर अपनी भलाई चाहता है. तो बिना हिले डुले सीधा बैठा रह और जो कुछ मैं पूँछू उसका ठीक ठीक जबाब देना” वरना तुझे हमेशा के लिए दरिया मैं डुबो दूंगा.

बाबा जी की आबाज मैं ना जाने क्या था? मेरा छोटा भाई बिल्कुल शांत हो गया. और तुरंत बोल पड़ा नहीं – नहीं ऐसा मत करना मैं सब सच बताऊंगा.

योगी लीलाधर

बोल कौन है तू? इस बच्चे को क्यों परेशान कर रहा है? जब तुझे तेरा स्थान और भोग मिल गया था. तो फिर क्यों लौट कर आया?

मेरा भाई बोला (मसान)

मैं मसान हुँ. मैं अपनी मर्जी से नहीं आया मेरा स्थान और भोग मिलने पर मैं तो चला गया था. लेकिन ये सब एक पिसाच देख रहा था. जो मेरे स्थान के बगल मैं ही रहता है.

वह मुझसे ताकतवर है और उसी ने भोग के लालच मे मुझे यहाँ भेजा है.

ये बातें सुनकर सब हक्के बक्के रह गए. और दादा जी बोले इसका ऐसा निदान करो की ये किसी और को परेशान करने लायक ना रह जाये.

योगी लीलाधर – दादा जी से

तुम एक मिट्टी का कलश, नीबू” सिन्दूर “और लाल कपड़ा ले आओ. मैं इन दोनों का इंतजाम कर देता हुँ.

मेरे चाचा जाके सामान ले आये. योगी लीलाघर ने मेरे छोटे भाई को लोंग द्वारा बने एक घेरे मे बिठाया. और नीबू काटकर रख दिया. और मिट्टी के कलश मे अंडा पेड़ा रख के मन ही मन मंत्र पड़ने लगे. अचानक मेरा भाई बेहोश हो गया. और योगी लीलाधर ने कलश को लाल कपडे से बांधकर उसे सिन्दूर से रंग दिया. और कहा अब तुम्हारा बच्चा सुरक्षित है. इस मसान को मैंने इस कलश मे कैद कर दिया है. और इसे मे नदी मे डुबो दूंगा कल शाम को मैं एक ताबीज़ कर दूंगा. जो इसके गले मे बांध देना. फिर इसे कोई भी दुष्ट आत्मा परेशान नहीं करेंगी.

सभी लोग योगी लीलाधर का धन्यवाद करते है. और उन्हें चाचा जी मंदिर छोड़ आते है. दूसरे दिन योगी लीलाधर एक ताबीज़ देते है. और मेरे छोटे भाई को बांध दिया जाता है. उस दिन से मेरा भाई बिल्कुल ठीक है.

प्रेम से बोलो जय जय माँ काली

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लेखक: M. K. Arya

मचान पर छोटी बच्ची

नमस्कार दोस्तों – मैं ईश्वरन हूँ, और मैं केरल के त्रिशूर जिले के एक छोटे से गाँव से आता हूँ। एक बच्चे के रूप में, मुझे हमेशा से भूतों की कहानियों को पढ़ने और सुनने का शौक था। आज जो कहानी मैं आपको बताने जा रहा हूं, वह मेरे बचपन के दौरान हुई थी – मुझे लगता है कि मैं उस समय लगभग 7 या 8 साल का था.

मेरे पिता,अपने दो भाइयों के साथ हमारे गाँव में एक छोटी सी दुकान के मालिक थे, जो सब्जी और किराने का सामान मिलता था।हमारे पास एक जमीन का टुकड़ा भी था जहां मेरे पिता और चाचा खेती करते थे।संयुक्त परिवार का हिस्सा होने के नाते, हम अपने पैतृक घर में एक साथ रहने वाले लगभग 15 भाई-बहन थे। हमने एक साथ बहुत मज़ा किया – हम एक ही स्कूल में थे (वास्तव में, हमारे गाँव में सिर्फ एक स्कूल था), हम एक साथ खेले, और हर रात खाने के बाद, हम अपने दादा दादी से कहानियाँ सुनते थे।

सर्दियों के दौरान, हम एक कैम्प फायर करते थे और उसके चारों ओर रात का भोजन करते थे। रात के खाने के बाद, हम इन कहानियों को सुनते थे। कभी-कभी, मेरे दादाजी हमें डरावनी कहानियाँ सुनाते थे. जो उन्होंने सुनी थी, या अनुभव की थी। उस समय, हमने कभी भूत नहीं देखा था, या यह भी नहीं समझा था. कि इसका क्या मतलब है – लेकिन उन कहानियों को सुनने से हमें रोंगटे खड़े होने लगते थे।

जल्द ही, मेरे पिता और चाचाओं ने फैसला किया कि यह समय था कि हमने अपने व्यवसाय का विस्तार किया – एक गांव में होने के नाते, हमारी दुकान में बहुत कम ग्राहक थे।यद्यपि हमने पर्याप्त धन कमाया था – यह वह समय था जब हमने एक बेहतर अवसर देखा सभी ने यह तय किया गया था कि हम पास के चक्कक्कड तालुका में एक और दुकान स्थापित करें, और मेरे पिता इसकी देखभाल कर सकते हैं।

एक महीने बाद, मैं, मेरे पिता, माँ और मैं चावक्कड़ चले गए, जहाँ तीन भाइयों ने एक दुकान किराए पर ली थी, जिसमें दो कमरे थे, जिनमे हम रहते थे।यह जगह शहर के केंद्र में स्थित थी। मुख्य सड़क, जिसके कारण हमारी दुकान बहुत सफल रही, और मेरे पिता ने बहुत पैसा कमाया जब मैंने एक स्कूल पास में पढ़ाई की,तो मेरी माँ ने उन्हें दुकान चलाने में मददकी।

हमारे घर में दुकान के ऊपर दो कमरे थे, जो दुकान के पीछे एक लोहे की सीढ़ी से जुड़े थे।कमरे काफी ऊंचे थे और ढलान वाली छत थी।खिड़कियां बहुत छोटी थीं, जिसके कारण कमरे अंधेरे रहते थे, यहां तक ​​कि दिन के समय भी। हॉल (लिविंग रूम) से जुड़ी एक छोटी सी बालकनी थी, जहाँ मैं हर दिन खड़ा रहता था और सड़क पर लोगों औरवाहनों को देखता था।

एक बड़े परिवार में रहने की आदत होने के कारण, मैं इस घर में बहुत अकेला रहता था हमारे ब्लॉक में बहुत सारे बच्चे नहीं रहते थे, यही वजह है कि मैंने अपना ज्यादातर समय अकेले ही बिताया, जबकि मेरी माँ और पिता दुकान की देखभाल करते थे।

यह वाकया रविवार दोपहर को हुआ।मेरे पास बस दोपहर का भोजन था और हमेशा की तरह, मुख्य सड़क को देखते हुए, बालकनी में खड़ा था।अचानक, मैं लोहे की सीढ़ी के माध्यम से पदयात्रा सुन सकता था।मुझे लगता है कि यह मेरी माँ थी, क्योंकि पिता किसी काम के लिए बाहर गए थे।पदयात्रा रुक गई और मैंने पीछे मुड़कर देखा।मेरे आश्चर्य करने के लिए – वहाँ कोई नहीं था! हालाँकि, मैंने इसे ज्यादा सोचा नहीं था। उसी दोपहर, जब मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था – मुझे लगता है जैसे कि अगले कमरे में कोई व्यक्ति कागजफाड़ रहा हो। मैं थोड़ा डर गया, फिर भी, मैं अंदर गया – पर वहाँ कोई नहीं था!

उस शाम – मैंने यह कहानी अपनी माँ को सुनाई।वह बस मुझ पर हंसती थी और कहती थी कि मैं बहुत अकेली हो रही थी. और मेरा दिमाग यह सब बना रहा था।मैं मान गया, और सोने चला गया।

अगले दिन – मेरे एक चाचा हमारी दो बहनों और एक चचेरे भाई के साथ, हमसे मिलने आए। मैं बहुत खुश था – हमने पूरे दिन खेला, और साथ में डिनर किया।फिर हम सोने चले गए। किन्तु आधी रात में, एक आवाज जाग उठी।सीढ़ियों से किसी के चलने की भी यही आवाज थी।मैं उठा और कोने की तरफ देखने लगा (जहाँ से सीढ़ियाँ ऊपर पहुँचती थीं)। अंधेरे में, मैं कोने में खड़े ढीले बालों वाली एक छोटी लड़की का अक्स देख सकता था।मैंने मान लिया कि यह मेरी छोटी बहन थी – मैं उस पर चिल्लाया,क्यों मीना – तुम वहाँ क्या कर रही हो?

इस पर – लड़की घबरा गई और सीढ़ियों से नीचे भाग गई। तभी मैं उसके पीछे भागने के लिए उठा – और फिर मैंने अपनी तरफ देखा।मैं और मेरी दोनों चचेरी बहन कोने में सो रहे थे!

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और डरने भी लगा था.

अगले कुछ दिनों में – मैंने कई बार पदयात्रा सुनी, और एक रात इस लड़की को फिर से देखा।मैं वास्तव में डर गया था और माँ और पिता को इसके बारे में बताने की कोशिश की। हालाँकि – वे दोनों अपनी दिनचर्या से बहुत थक गए थे और मुझे बताते रहे कि यह मेरी कल्पना है.फिर एक रात, मैं सो रहा था, जब एक आवाज़ ने मुझे जगाया।यह मेरे ऊपर मचान से आया था – यह ऐसा था जैसे कोई रेंग रहा हो। डरा हुआ, मैं उठा और मचान को घूरता रहा, अंधेरे में देखने की कोशिश करता रहा –

और फिर मैंने उसे देखा! एक छोटी लड़की – शायद ४ या ५ साल की थी, वहाँ बैठी थी – सीधे मेरी तरफ देख रही थी।उसके बाल ढीले थे. और उसके चेहरे पर मुस्कान थी।जब तक मैं उसे देखता रहा, वह तब तक रेंगती रही, जब तक कि वह मचान के किनारे पर नहीं थी।

मैंने एक ज़ोर की चीख निकाली, क्योंकि लड़की ने मुझे फिर से देखा और मेरी आँखों के सामने से गायब हो गई। मेरे माता-पिता जाग गए और मुझे दिलासा दिया, क्योंकि मैं चिल्लाता रहा। फिर मैंने उन्हें पूरी घटना सुनाई।हालाँकि मेरे पिता ने मुझसे कहा कि यह एक सपना होना चाहिए, मेरी माँ आश्वस्त दिख रही थी।

मैंने अगले कुछ दिनों में इस लड़की को नहीं देखा।फिर एक दिन, हमारे मकान मालिक अपनी पत्नी के साथ दोपहर के भोजन के लिए हमसे मिलने आए।दोपहर का भोजन करने के बाद, मैं अपनी माँ के साथ बैठा, क्योंकि वह मकान मालिक की पत्नी के साथ चैट करती थी.

मकान मालिक की पत्नी ने मेरी माँ को बताया कि जब वह यहाँ रहती थी, तो उनकी एक छोटी बेटी थी जो टाइफाइड के कारण 5 वर्ष की उम्र में मर गई थी। यह सुनने के बाद – मैं और मेरी माँ घबरा गए और एक दूसरे की तरफ देखने लगे उसी दिन, मेरी माँ ने मेरे पिता को यह कहानी सुनाई।हालाँकि मेरे पिता कुछ हद तक यह मानते थे, वह इस निर्णय पर अड़े रहे कि हम इस जगह से बाहर नहीं जा सकते – मुख्यतः क्योंकि दुकान काफी सफलतापूर्वक चल रही थी।

हम काफी कुछ वर्षों तक उस स्थान पर रहे – हालाँकि, मैंने उस लड़की को फिर कभी नहीं देखा।

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लेखक: M. K. Arya

डर

एक गाँव मे एक लालाराम नाम के व्यक्ति रहते थे. लोग उन्हें प्यार से लल्लू भैया कहा करते थे. किन्तु वे बड़े ही डरपोक थे. एक बार वे अपनी ससुराल से अपनी बीबी को छोड़कर अपने गाँव लौट रहे थे.उनका गाँव उनकी ससुराल से दस कोस के आसपास था. ससुराल मे उनकी अच्छी आव भगत हुई इसलिए उन्हें अपने गाँव निकलते-निकलते दिन के तीन बज गए.और अपने गाँव की नदी तक पहुँचते – पहुँचते अंधेरा हो गया उनके गाँव से पहले एक मरघट और नदी थी. और लल्लू भैया तो थे ही डरपोक उन्हें तो यकीन था. की मरघट मे भूत प्रेत और आत्माएं रहती है.अब आगे जाने की उनकी हिम्मत ना हुई.कियोकि वो अकेले थे.और रात मे कोई और राहगीर भी उस रास्ते से नहीं जा रहा था. अब लल्लू भैया नदी के पार खड़े-खड़े मन मे सोच रहे थे.

लल्लू भैया (मन मे)

अब क्या करूँ बहुत अंधेरा हो गया है. दूर-दूर तक कोई दिखाई भी नहीं दें रहा, अगर मैं नदी पार करके गया तो सामने ही मरघट मिलेगा.और वहाँ किसी भूत चुड़ैल ने पकड़ लिया. तो” राम राम राम ” नहीं-नहीं मैं अकेला नहीं जाऊँगा. लेकिन कोई राहगीर आ भी तो नहीं रहा है. कुछ देर और इंतजार करता हुँ. शायद कोई आ जाये.

लल्लू भैया वहीँ खड़े-खड़े इंतजार करने लगे, की कोई आये और उनको मरघट पार करा दे. लेकिन काफ़ी रात हो गयी.और कोई राहगीर नहीं आया अब लल्लू भैया को और डर लगने लगा. और वो पास के गाँव के बाहर बनी धर्मशाला मे रात बिताने चल दिए.और धर्मशाला मे पहुँच के बोले.

लल्लू भैया (धर्मशाला के बाहर)

अरे कोई है क्या? क्या रात को ठहरने की जगह मिलेगी यहाँ?

अन्दर से एक बूढ़ी अम्मा निकली और बोली कौन है? भैया

लल्लू भैया-अम्मा से

मैं लालाराम हुँ. पास के गाँव मैं रहता हुँ. क्या यहाँ आज की रात बिता सकता हुँ?

अम्मा -लल्लू भैया से

ठीक है. लेकिन पांच रु लगेंगे.

लल्लू हाँ कह देता है. और पांच रु अम्मा को दें देता है.

अम्मा लल्लू को उसके कमरे मे पहुँचा के सो जाती है.

लेकिन लल्लू को नींद नहीं आ रहीं थी.और भयभीत था. कियोकि उस धर्मशाला मैं उसके और अम्मा के शिवाय कोई और नहीं था. वह अपनी शैय्या पर पड़े-पड़े भूतों के बारे मे सोचने लगा. कुछ समय बाद हवा चलने लगी ऐसा लग रहा था.की आंधी आने वाली हो धर्मशाला की खिड़किया “खड़ खड़ खड़ खड़” की आबाजें कर रहीं थी. और लल्लू भैया अपनी शैय्या पर सिकुड़ कर डरे सहमे लेटे थे. अचानक धर्मशाला मे एक आदमी बैग टांगे आया.और लल्लू की सामने वाली शैय्या पर बैठ गया. और बोला,

आदमी- लल्लू से

मेरा नाम रामजीलाल है. तुम्हारा नाम जान सकता हुँ.

लल्लू भैया – रामजीलाल से

मैं लालाराम हुँ. पास के गाँव ही रहता हुँ. चलो अच्छा हुआ जो तुम आ गए इस धर्मशाला मैं मेरे शिवाय कोई नहीं था. और अचानक आंधी भी आयी थी. इसलिए मैं थोड़ा डर रहा था. पर तुम आ गए अब जान मैं जान आयी.

रामजीलाल – लल्लू भैया

अभी तो आंधी आयी है. आगे -आगे देखो क्या होता है?

ये बात सुनकर लल्लू और सहम जाता है. किन्तु अपने डर को छुपा कर एक छोटी सी मुस्कान देकर लेट जाता है.रामजीलाल भी लेट जाते है. और कुछ ही देर मे खर्राटों के साथ सो जाते है. तभी लल्लू भी अपनी आँख बन्द करते है. किन्तु थोड़ी देर बाद उन्हें महसूस हुआ, की कोई उनके सामने खड़े होकर उनकी गर्दन दवा रहा है.और वे तुरन्त उठ बैठे. किन्तु वहाँ कोई नहीं था. और रामजीलाल खर्राटे लेकर सो रहें थे. किन्तु लल्लू भैया को तो भय सताए जा रहा था. मन मारकर वे फिर आँखे बन्द करके सोने लगे. थोड़ी देर मे उन्हें महसूस हुआ जैसे किसी ने उनके सीने पर हाँथ रखा हो. लल्लू भैया हड़बड़ाकर उठे. किन्तु वहाँ फिर भी कोई नहीं था.

और रामजीलाल भी नहीं थे. कुछ देर बाद रामजीलाल आये

रामजीलाल – लल्लू से

अरे भैया तुम अभी तक सोये नहीं. क्या पूरी रात जागने का इरादा है?

लल्लू – रामजीलाल से

नहीं कुछ तबियत ठीक नहीं है.बस

रामजीलाल फिरसे सो जाते है. और लल्लू भैया वही टहलने लगते है.और बाहर की तरफ देखते है.

बाहर जो उन्होंने देखा. उसे देख वे दंग रह गए. और पसीना से नहा गए.और सोये हुये रामजीलाल को जगाकर बोले

लल्लू भैया -रामजीलाल से

भैया रामजीलाल तुम यहाँ सो रहे हो. तो बाहर तुम्हारी शक्ल का कौन है?

रामजीलाल – लल्लू भैया से

वो मैं ही हुँ.और मैं एक भूत हुँ. तुम्हें भूत प्रेतों पर बहुत विश्वास है ना इसलिए मैं तुम्हें एहसास कराने आया हुँ तुम्हारे जैसे लोगों की वजय से ही हम भूतों का अस्तित्व है. इतनी बात सुनते ही लल्लू भैया बेहोश हो गए सुबह अम्मा ने उनके मुँह पर पानी के छींटे मारे तो लल्लू भैया उठे,

उनका हाल बहुत बुरा था. लल्लू भैया का शरीर गर्म लोहे की भांति तप रहा था. और लल्लू भैया डरे सहमे अपने घर को चल दिए

आपको हमारी यह स्टोरी कैसी लगी हमें कमेंट कर के जरूर बताएं। आपके अच्छे कमैंट्स हमारा मनोबल बढ़ाते हैं. हमारी स्टोरी को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और WhatsApp पर शेयर करना बिलकुल न भूलें 🙏। शेयर ऑप्शन पेज के अंत में दिया गया है।

लेखक: M. K. Arya

कौन था वो

एक बार की बात है. एक रिया नाम की लड़की एक इंजीनियर कॉलेज में पढ़ाई करती थी.उसके कुछ दोस्त थे जो बहुत ही खास थे.एक दिन रिया को उसकी सबसे खास दोस्त दीपा ने अपनी बर्थडे पार्टी में आमंत्रित किया इसलिए रिया ब्यूटी पार्लर गई थी. कियोकि वह सजने सवरने की बड़ी शौकीन थी. लेकिन वहां से लौटते-लौटते उसे काफी देर हो गई. और उसने कार निकाली और बर्थडे पार्टी के लिए रवाना हो गई.रिया जिस जगह रहती थी. उससे उसकी दोस्त का घर आठ किलोमीटर के आसपास था. रात के 7:00 बज चुके थे.और अंधेरा भी होने लगा था. लेकिन रिया सही समय पर अपने दोस्त के घर पहुँच गयी.

रिया को देखते ही उसकी दोस्त दीपा बोली

दीपा – रिया से

रिया तुम इतना लेट कैसे हो गयी? सभी लोग बस तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे. की कब तुम आओ? और केक कटे

रिया- दीपा से

सॉरी यार वो ब्यूटी पार्लर मे देर हो गयी. चलो कम ऑन केक काटते है.

संध्या( रिया की दोस्त ) -रिया से

वाओ रिया तुम कितना सुंदर लग रही हो? लगता है सीधे ब्यूटी पार्लर से सज सवरकर यहां आ रही हो. तुम्हें किसी की नजर ना लगे.

और रिया की सभी दोस्तों ने बहुत तारीफ की. और स्वागत किया बर्थडे पार्टी का केक काटा गया. और सभी दोस्तों ने बहुत ही मस्ती की नाच गाना किया. और एक दूसरे के साथ खूब गप्पें लड़ायी. एन्जॉय करते- करते उन्हें पता भी नहीं चला की, रात के 11:00 बज गए. कुछ देर बाद सभी दोस्त अपनी – अपनी जगह निकल गए रिया भी अपनी कार उठाकर घर को चल दी. लेकिन कुछ ही दूर पहुंची थी. की अचानक बारिश शुरू हो गई.

रिया (मन मे)

इस बारिश को भी अभी आना था.क्या करूँ वापिस लौट जाऊं या चलू ? चलती हुँ देखते है शायद रुक जाये

लेकिन वारिश और तेज हो गई. और भयंकर मूसलाधार बारिश होने लगी. बिजलियाँ कड़कने लगी. रिया धीरे – धीरे कार चलाती रहीं. और कुछ देर बाद बारिश थम गई. किन्तु आगे जाकर देखा जाम लगा हुआ है.

रिया – पास मे खड़े आदमी से

भैया यहाँ क्या हो गया है? इतना जाम क्यों लगा है?

आदमी – रिया से

भारी बारिश के कारण रास्ता खराब हो गया है.उसे ठीक करने के लिए नगरपालिका कर्मचारियों को बुलाया गया है.

गाड़ियों की संख्या और रास्ता देखकर ऐसा लग रहा था. जैसे जाम सुबह तक खुलेगा. लेकिन कुछ गाड़ियां एक कच्चे रास्ते से होकर जा रहीं थी. तो रिया भी उनके पीछे- पीछे चल दी. अचानक रिया की कार बन्द हो गयी. और कुछ देर में सभी गाड़ियों की बत्ती भी ओझल होने लगी. अब रिया अकेले रात में ना कार से उतर रही थी. और ना ही किसी को कॉल कर पा रहीं थी. कियोकि मौसम खराब होने के कारण नेटवर्क ही नहीं आ रहे थे.

रिया चाबी को बार – बार दाये बाये घुमा रहीं थी.अचानक उसे अपनी मां का ताबीज याद आ गया. और उसे पकड़कर मन ही मन ईश्वर का ध्यान करके कार चालू की.तो कार तुरन्त चालू हो गयी. रिया ने स्पीड में कार चलाई. किन्तु कुछ दूर जाके एक खंडहर के सामने कार फिर रुक गयी.

चारों तरफ भयंकर अंधेरा था. और हवाएं सांय-सांय की आवाज कर रही थी. और रिया का डर के मारे बुरा हाल था. उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी. की कार को उतरके देखें. तभी उसे सामने से कुछ सफेद वस्तु दिखाई दी.

रिया – मन मे

ये सफ़ेद वस्तु कौन है? कोई भूत तो नहीं?

और अचानक वो तीन हो जाती है. यह देख रिया के माथे से डर की बूँदे टप टप टपकने लगती है. और अपनी कार के दरवाजे और शीशे बन्द कर देती है.थोड़ी देर में तीनो आकृतियाँ कार के आसपास घूमने लगती है यह सब देख रिया जोर – जोर से चिल्लाने लगती है. बचाओ, बचाओ तभी वे कार के शीशे तोड़ देते है. और रिया को बाहर फेक देते है. रिया समझ जाती है. यह कोई लुटेरे हैं.और अपने गहने उतार कर देने लगी .

रिया – लुटेरों से

लो ये सब गहने लेलो. पैसे भी ले लो. लेकिन मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो.

तभी एक लुटेरा सारे गहने ले लेता है. लेकिन अब भी उनका मन नहीं भरता. और रिया पर हवस पूरी करने के लिए जानवर की तरह टूट पड़ते है. रिया चिल्लाती है. बचाओ, बचाओ, कोई है, कोई है,

लुटेरा – रिया से

यहाँ कोई तुम्हारी मदद करने नहीं आएगा.

तभी एक लुटेरे के सिर पर एक जोरदार झटका सा पड़ता है. और वह चिल्लाता हुआ गिर पड़ता है.

एक सफ़ेद कुर्ता पायजामा मे एक आदमी जिसके हाथ में एक बड़ा सा डंडा था खड़ा था.वह तीनों को पीट-पीटकर मार – मार के भगा देता है

रिया -आदमी से

आप कौन है? मै नहीं जानती हुँ. लेकिन आपने मुझे इन दरिंदो से बचाकर मुझपे बहुत बड़ा एहसान किया है तुम बकहि एक फरिश्ता हो मेरे लिए

आदमी (फरिश्ता) – रिया से

अब तुम सुरक्षित हो. अपनी कार चालू करो. और यहां से जल्दी निकल जाओ यह स्थान ठीक नहीं है और इतना कहके वह आदमी (फरिश्ता ) गायब हो जाता है. रिया तुरंत कार चालू करती है और उसकी कार भी चालू हो जाती है. और वहां से घर के लिए निकल जाती है. किन्तु यह बात उसके लिए एक रहस्य बन जाती है की वो आदमी (फरिश्ता )कौन था? कहाँ से आया? और कहाँ गायब हो गया?

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लेखक: M. K. Arya

आत्मा

भोपाल शहर में देवरत्न नाम का इंजीनियर रहा करता था. उसके परिवार मे वह और उसकी पत्नी ही थी. एक बार गर्मियों की छुट्टी बिताने के लिए वह हिमाचल प्रदेश के एक गांव में गया.वह गांव पहाड़ियों के बीचो बीच बसा हुआ था. इसलिए वहां तक पैदल ही जाया जा सकता था. दोनों पति-पत्नी पैदल चलते-चलते थक गए थे.इसलिए वहाँ पहुँचकर उन्होंने एक रूम किराए पर लिया और आराम करने लगे.कुछ देर बाद

देवरत्न – अपनी पत्नी से

रूपा मैं कुछ खाने पीने की चीजें लेकर आता हूं. (रूपा देवरत्न की पत्नी का नाम था )जब तक तुम आराम करो. और यहां से बिना बताए कहीं पर मत जाना.

देवरत्न की पत्नी हां बोल देती है.किन्तु वह अकेले बोर होने लगती है. कियोकि जिस घर में उन्होंने कमरा लिया था. उस घर में उनके अलावा कोई और नहीं रहता था. पहाड़ी इलाका होने के साथ-साथ उस गांव में घर भी दूर-दूर बने थे.देवरत्न की पत्नी का अकेले मन नहीं लगता है. और दरवाजा खोलती है. तथा आंगन में बैठ जाती है. तभी उसकी नजर एक पेड़ पर पड़ती है. जिस पेड़ के नीचे एक औरत खड़ी थी.और देवरत्न की पत्नी को लगातार घूरे जा रही थी.

देवरत्न की पत्नी बोली

कौन हो तुम? और वहां से मुझे लगातार क्यों घूरे जा रही हो? यहाँ आओ

लेकिन इतना सुनते ही वह तुरंत पहाड़ियों के तरफ भाग गयी .उसका ऐसा वर्ताव देवरत्न की पत्नी को बड़ा अजीब लगा.

जब उसके पति आ गए. तो देवरत्न की पत्नी ने देवरत्न को उस औरत के बारे में बताया.

देवरत्न – पत्नी से

होगी कोई औरत शायद तुम नई – नई यहां पर आई हो इसलिए तुम्हें देखने आई होगी.

लेकिन देवरत्न को पत्नी को बड़ा ही अजीब सा लग रहा था.

देवरत्न और उनकी पत्नी ने हिमाचल प्रदेश के इस एक छोटे से पहाड़ी इलाके में बहुत ही आनंद लिया पर्वतों पर गिरती हुई बर्फ तथा पर्वतों से प्राकृतिक मनोरम दृश्यों का भरपूर आनंद लिया. इसी प्रकार उन्हें वहां पर दो-तीन दिन हो गए.

एक दिन देवरत्न किसी काम से घर से बाहर गया था. तभी उसके दरवाजे पर किसी ने जोर से खट – खट की आवाज की उनकी पत्नी तुरंत दौड़ते हुए दरवाजा खोलती है. और देखती है की उस पेड़ के नीचे वही औरत फिर खड़ी है.और उसे घूरे जा रही है.देवरत्न की पत्नी को उस औरत को देखते ही गुस्सा आ गया.और इस बार देवरत्न की पत्नी ने उस औरत को दौड़ कर पकड़ लिया. और पूँछा

देवरत्न की पत्नी – औरत से

कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रही हो? और मुझे क्यों घूरती रहती हो?

उसने कुछ नहीं कहा और बस उसे घूरे जा रहीं थी.

देवरत्न की पत्नी – औरत से

कहाँ रहती हो? और तुम्हारा नाम क्या है?

औरत ने धीमी आवाज मे कहा शीला, और छूट कर भाग गयी.औरत के इस व्यवहार से देवरत्न की पत्नी हैरान रह गयी.और सोचने लगी, ये कैसी औरत है? कुछ देर बाद देवरत्न आ गया. और देवरत्न की पत्नी ने पूरी घटना बताई देवरत्न भी हक्का बक्का रह गया. की कौन हो सकती है? वो औरत

ऐसे ही उन्हें दो तीन दिन बीत गए.एक रात ठण्ड बहुत थी.और मूसलाधार बारिश के साथ आंधी आयी थी. तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया

और दोनों पति पत्नी चौंक गए.की रात को इस समय किसने दरवाजा खटखटाया होगा.

देवरत्न ऊँची आवाज मे

कौन है दरवाजे पर?

कुछ देर तक कोई आहट नहीं हुई. तो दोनों ने सोचा शायद हवा से दरवाजा हिला होगा.किन्तु कुछ देर बाद फिरसे दरवाजे पर खट-खट की आवाज हुई और किसी के रोने की आबाज सुनाई दी.

देवरत्न की पत्नी

यह स्वर तो जाना पहचाना लग रहा है. अरे ये आबाज उस औरत की है. जो मुझे रोज घूर कर देखती है.

देवरत्न

कौन है दरबाजे पर और क्या चाहता है?

औरत

धीमे स्वर मे दरवाजा खोलो मैं शीला हुँ.अन्दर आना चाहती हुँ.बाहर मौसम खराब है. दरवाजा खोलो

और देवरत्न की पत्नी दरवाजा खोलने के लिए चल दी. किन्तु तभी उसके फोन की घंटी बजी.फोन देवरत्न की पत्नी ने उठाया जो मकान मालकिन का था.

मकान मालकिन

हेलो रूपा मैं तुम्हें एक बात बताना ही भूल गयी. अगर रात मे कोई दरवाजा खटखटाये या रोये तो दरवाजा बिल्कुल मत खोलना.

देवरत्न की पत्नी

मगर अभी तो दरवाजा खटखटाया है. किसी ने और दरवाजे पर कोई औरत रो भी रही है.

मालकिन

दरवाजा बिल्कुल मत खोलना. असल मैं वो औरत एक आत्मा है. जो इसी गाँव मे रहती है. और जब-जब तेज बारिश और आंधी आती है. तो वो आंधी का बहाना बनाकर दरवाजा खुलवाती है. और अगर कोई गलती से खोल भी दे तो वह मर जाता.

इतनी बात सुनते ही उनके पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी.और सुबह होते ही वे मकान मालकिन के घर पहुँच पूरे मामले के बारे मे पूंछने लगे.

मकान मालकिन

कुछ समय पहले ही इस औरत का पति पहाड़ से नीचे गिर कर मर गया था. और फिर ये औरत भीख माँग कर अपने दिन बिताती थी.किन्तु एक दिन सर्दियो मे भयकर बरसात हुई.और आंधी आयी उस समय इस औरत ने सबके दरवाजे खटखटाये थे. और घर मे रुकने की प्रार्थना की थी. किन्तु किसी ने उसे अपने घर मे शरण नहीं दी. और सुबह उसकी गाँव के चौराहे पर लाश मिली. तबसे उस औरत की आत्मा इसी गाँव मे रहती है. और जब भयकर बरसात और आंधी आती है. तो सभी के दरवाजे खटखटाती है. और अगर कोई दरवाजा खोल दे तो उसकी सुबह तक मौत हो जाती है.

उनके साथ दो तीन बार ऐसा हुआ. लेकिन उन्होंने दरवाजा नहीं खोला. फिर दोनों पति पत्नी भोपाल वापिस आ गए

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लेखक: M. K. Arya

थैंक्स एंजेल

सागर  किनारे  बसे कस्बे में  ज्यादातर  मछुआरे ही  रहते थे और  मछलियों के  व्यवसाय में  जुड़े थे । उन्हीं  मछुआरों के बीच  एक नौजवान  साहूकार  केशवन भी रहता था । केशवन मछलियों का व्यापार  करता  था  तथा  साथ ही  मछुआरों  को जरूरत  पड़ने पर कर्ज  भी देता था ।बहुत  भला  आदमी था ।कभी किसी  गरीब का दिल नहीं  दुखाता था। इसीलिए कस्बे के मछुआरे उसे बहुत पसंद करते थे और  उसकी  बड़ाई करते  नहीं  थकते थे ।

केशवन के पास धन-दौलत की तो कमी नहीं थी मगर परिवार की तरफ से वह थोड़ा परेशान था। उसके  परिवार  में केवल एक आठ साल की  बेटी मनवा थी ।

पत्नी सोना  दो साल  पहले ही  सागर में  आए तूफान और बाढ़ की भेंट चढ़ गई थी । काफ़ी  तलाश करने पर लाश भी न मिल पाई थी । इसलिए बेटी को पालने के लिए उसने काजल नाम की एक युवती को अपने घर  काम पर रख लिया था । काजल नाम की  यह युवती कुछ  दिनों तक तो नौकरानी बनकर रही ,उसके घर को ढंग  से  संभाला और  उसकी  बेटी  मनवा का भी खूब  ध्यान  रखा । मगर फिर उसने केशवन के दिल में कुछ ऐसी जगह बनाई कि दोनों के बीच प्यार  परवान  चढ़ता चला गया और आज हालत यह है कि दोनों जल्द ही शादी करने के बारे में सोच रहे हैं। 

काजल सौतेली मां से भी बुरी 

शादी तो अभी हुई  नहीं थी  लेकिन काजल मनवा की सौतेली मां से भी बुरी  मां पहले ही बन बैठी थी । उसे लगता था कि मनवा उसकी खुशहाल गृहस्थी के लिए अपशकुन साबित होगी ,इसीलिए लिए  उसे शादी से पहले ही किसी तरह उसकी मां के पास पहुंचा देना होगा ।इसी कारण  वह  केशवन के  सामने  तो मनवा  की चिंता उसकी सगी मां  से भी ज्यादा करती थी मगर  बाद में उसे मारने की तरकीबें  ढूंढती रहती थी । उसे बात-बात  पर डांटती थी  और  भरपेट खाना  तक नहीं  देती थी  । साथ  ही उसे इतना  डरा कर रखती थी  कि  वह पापा केशवन को अपने दुःख-तकलीफ़ के बारे में कुछ भी बताने की हिम्मत ही नहीं कर पाती  थी ।सबसे अलग अकेली  रहना पसंद करती थी और अक्सर अकेले में रो -रोकर अपनी  मां  को याद करती रहती थी  ।

केशवन  मनवा से 

एक दिन  केशवन  अपने  काम  से जल्दी घर आ गया  और उसने सोचा क्यों  न  थोड़ा  समय  अपनी प्यारी  बिटिया  मनवा  से बातें करने में  बिताए इसीलिए वह मनवा के कमरे  में  चला  गया । जब वह मनवा के कमरे की  तरफ जा रहा था  ,तब काजल रसोईघर में उसके  लिए चाय बना रही थी और  उसने  उसे जाते हुए  देख  लिया था  ।

केशवन  मनवा  के सिर पर हाथ  फेरते हुए  बोला  -कैसी  है हमारी  जान , हमारी  प्यारी-प्यारी  बिटिया  और क्या कर रही है ? हमसे  नाराज तो  नहीं है  न ?

पिता का स्नेह भरा  स्पर्श पाकर  मनवा  का कलेजा  फट पड़ा और वह बोली  -” हम तो पापा के लिए  तरसते हैं  भला  हम पापा से कैसे  नाराज हो सकते हैं  ! ” 

कहते-कहते  उसकी आंखों में आंसू  आ गए और फिर   वह  सीधे  पिता की गोद में  सिमटकर  फूट -फूटकर रोने  लगी । उसको इस तरह  रोते देखकर  केशवन का भी मन भर आया  । काफ़ी  दिनों  बाद  बेटी  को गोद में  समेट कर स्नेह लुटाने का अवसर  मिला था  इसलिए  उसकी खुद की आंखें  भी छलक आईं । पर इससे पहले कि मनवा  उसे कुछ  बताती  काजल चाय लेकर  वहीं  आ धमकी  और मनवा ने डर के कारण  चुप्पी  साध ली । साथ  ही काजल ने भी अपने चालबाज व्यवहार से केशवन को आंखों का अंधा  और दिल का बहरा बना दिया जिस कारण  वह  अपनी  बेटी  की दयनीय  हालत व मन की पीड़ा  को समझ ही न पाया ।

मनवा  का ऐंजल से मिलना 

एक दिन  मनवा  भूखी -प्यासी सागर किनारे  एक शिला  पर बैठी अपनी  मां को  याद कर -करके रोए जा रही  थी और रोते  -रोते कहे जा रही थी कि – “अम्मा  ,हमें  भी अपने पास  बुला लो अब हमें  जिंदा नहीं रहना।पापा को तो उस चुड़ैल जैसी औरत काजल ने पागल बना  रखा । उन्हें  मेरा दुख तो दिखता नहीं  ,बस हमेशा  उसी की बातों में  उलझे रहते हैं । अब तुम ही बताओ अम्मा, मैं  कहां  जाऊं और  मैं क्या करूं  ?”

जब मनवा  ये शब्द कह रही थी तभी  सागर से एक तेज  लहर  आई और उसके पैरों को भिगो कर चली गयी । जैसे ही  लहर  वापस गयी एकाएक  उसकी नज़र  एक अजीब-सी डिबिया  की ओर गयी   जो उसके  पैरों के पास  पड़ी थी ।उसने  झुककर  तुरंत  उस डिबिया  को उठा  लिया  और  फिर  खोलकर देखा ।उसने  जैसे  ही डिबिया  को खोला अचानक  तेज रोशनी के साथ उसमें से एक ऐंजल उसके  सामने प्रकट हुआ और कहने लगा ।

ऐंजल  मनवा से 

मेरी  प्यारी-सी बच्ची रोना नहीं और आंसू  बहाना  नहीं । मैं  आ गया  हूं अब तुम्हारे  पास  और तुम्हारी  हर इच्छा  पूरी करूंगा  मेरी  बच्ची ,बस थोड़ा  हंस कर दिखाओ ।

ऐंजल  को देखकर  और उसकी  बातें  सुनकर  मनवा  आश्चर्य  से भर गई और रोते-रोते  हंसने लगी । 

मनवा ऐंजल से

मैं  जानती हूं  तुम  ऐंजल  हो । मेरी  मां  कहती थीं  कि ऐंजल भगवान के दूत होते हैं और भगवान  उनको जिसकी  मदद के लिए  भेजते हैं  उन्हें  उनकी  हर इच्छा  पूरी करनी पड़ती है  । 

कहते -कहते मनवा कुछ  रुकी मगर अचानक   फिर रोने लगी और रोते -रोते  कहने लगी- “मुझे  अपनी मां से मिलना है । मुझे  प्लीज मेरी मां  से मिलवा दो ऐंजल जी ।”

 “मां से मिलना है तो लो अभी मिलवाता हूं ।” 

यह कह कर ऐंजल उसी क्षण गायब हो गया और  पीछे  से मनवा को किसी  ने आवाज़ दी । जैसे  ही मनवा  ने पीछे  मुड़कर देखा तो उसकी मां खड़ी थी। मां को देखते ही वह भागकर  उनसे लिपट गयी  और  खूब  रोई ।फिर मां  ने  किसी  तरह मनवा को चुप कराया । मनवा  से खूब  लाड-प्यार  किया  और  खाना भी खिलाया । और  फिर जाते-जाते उसे समझाया  कि  वह अब भगवान के  पास  रहती है इसलिए  उसके साथ  नहीं  रह सकेगी । पर जब वह डिबिया  वाले  ऐंजल  से कहेगी मेरी  मां  से मिला दो तो वह तुरंत  मुझे  तुम्हारे पास  ले आएगा और तुम  मुझसे  मिल सकोगी । तुम  ऐंजल  वाली  डिबिया को  बंद  करके अपने साथ  ले जाना  और इसके बारे में  किसी को  मत बताना ।

यह सब  समझाने के बाद मनवा की मां  अदृश्य  हो गयी  और  मनवा भी डिबिया का ढक्कन  बंद करके  उसे अपने  साथ  घर ले आई ।

मनवा के जीवन में बदलाव 

ऐंजल वाली  डिबिया  के मिल  जाने से मनवा का तो जीवन ही बदल गया।भले ही अब भी उसे काजल की डांट-फटकार खानी पड़ती थी मगर फिर  भी वह खुश  थी क्योंकि  ऐंजल वाली डिबिया  के  कारण  वह जब चाहे  अपनी मां  से मिल लेती थी । उसके साथ  बातें कर लेती थी , खेल लेती थी और  जो भी खाना  चाहती वह भी उसे मिल जाता था ।

 अधिकांशतः  वह अपने कमरे  में  या फिर  घर से बाहर  बगीचे  में  अकेले  रहती थी ताकि  अपनी  मां से मिल सके ।  मां  से मिलने के बाद  उसे केशवन  से भी कोई खास शिकायत  नहीं  रही  थी क्योंकि  मां के प्यार ने  उसके जीवन के अधूरेपन को पूरा  कर दिया  था  । इसी कारण  उसने  केशवन और काजल की तरफ  ध्यान  देना ही छोड़  दिया  था । वह तो हमेशा  अपनी  मस्ती में  मस्त  रहने लगी थी  और  उसे हमेशा  ऐंजल वाली डिबिया  और अपनी  मां  सोना का ही ख्याल  रहता था ।

कुछ  दिन  बाद 

कुछ  दिन  बाद केशवन को अपने व्यवसाय के लिए  कई दिनों के लिए  किसी  दूसरे  शहर  जाना  पड़ गया। इसीलिए  उसने मनवा की पूरी  जिम्मेदारी  काजल को सौंपी और उस पर भरोसा करके  अपनी यात्रा  पर चला गया । 

अब घर पर काजल और मनवा  अकेले  थे । मनवा से  छुटकारा पाने का  काजल के लिए यह सबसे  अच्छा  मौका था जिसे  वह किसी भी  हाल  में  गंवाना नहीं  चाहती थी । इसी कारण उसने मनवा  को मारने की योजना  बनानी शुरू कर दी । पर अब मनवा  उससे  जरा भी  भय नहीं  खाती थी क्योंकि  ऐंजल  और उसकी  मां की रूह ( मनवा की नज़र में)  हमेशा  उसके साथ  रहते थे । इसीलिए वह बेखौफ़  होकर  जीती थी और  काजल की तरफ ध्यान भी नहीं  देती थी । काजल  उसे कितना  भी डांटती रहे उसे कोई  परवाह  नहीं  होती थी ।

एक अंधेरी  रात में 

एक अंधेरी रात में  काजल ने एक मछुआरे की मदद से  मनवा को मारकर सागर में  फेंकने की योजना  बनाई । रात का करीब  एक बजा था जब दोनों मनवा  को मारने के लिए  उसके कमरे में  घुसे । मनवा  गहरी  नींद  सोई हुई थी  और  उसकी  ऐंजल वाली डिबिया  उसके  सिराहने तकिये  के नीचे  रखी थी ।

काजल ने  धीमें से  जाकर मनवा के पैरों  को जोर  से दबा  लिया  ताकि  वह उठने न पाए और उस मछुआरे  ने झट से मनवा के सिर के नीचे  से तकिया  खींच कर  सीधे उसके  मुंह पर  रख के जोर  से दबाने  की कोशिश की ।

मगर  जैसे ही उसने  तकिया  खींचा उसके नीचे  रखी डिबिया  सीधे फर्श पर  जा गिरी  और उसका ढक्कन  खुल गया । फिर  जो घटना घटी  उसको तो  काजल और वह मछुआरा जिंदगी  भर नहीं  भूल  पाएंगे । डिबिया के खुलते  ही उनके  सामने  मनवा की मां  सोना का  भूत प्रकट हुआ  और उसने  उन दोनों को  हवा में  उठा-उठा कर  जमीन पर ऐसे पटका जैसे कोई  धोबी कपड़ों को पटक-पटक कर धोता है । मछुआरा तो दो -चार पटके खाते ही चीखते हुए  वहां  से भाग निकला  मगर  सोना के भूत ने काजल को नहीं  छोड़ा । उसे अंदर-बाहर  खूब  घुमा -घुमाकर पटका । काजल  सोना से चीख -चीखकर माफी मांगने  लगी।

काजल सोना के भूत से

मुझे  माफ़ कर दो सोना ,मेरी  मती मारी गई थी जो मैंने तेरे घर की तरफ देखा और  तेरी  बेटी  को मारकर  तेरे  पति को हासिल करने का सपना  देखा ।

आज बख्श  दो ,भविष्य में  मरते दम तक तेरे  घर की तरफ़  नज़र करके भी नहीं  देखूंगी । बख्श  दो सोना,  भगवान के लिए  मुझे बख्श  दो !

सोना का भूत काजल से

सुन ! ध्यान से सुन… आगे से मेरे  घर …मेरे पति और मेरी  बेटी के आसपास भी दिखाई दी तो तुझे जिंदा  नहीं  छोड़ूंगी … तुझे मार डालूंगी , पापिन । तू  एक मर्द को हासिल करने के लिए  एक मासूम  बच्ची  को मारने का पाप करने चली थी । चली जा… चली जा और दोबारा  मेरे  सामने  मत आना ।

काजल  मौका  पाते  ही वहां  से जान बचाकर  भाग गई  और  फिर  कई दिनों  तक अपने घर से बाहर  भी नहीं निकली । इस घटना में  सबसे  बड़ी  चौकाने वाली  बात  यह भी रही  कि  जब सोना के भूत  ने काजल  और मछुआरे  को उठा  -उठाकर  पटका  मनवा  सोती ही रही । यहां  तक कि जब मछुआरे ने उसके सिर  के नीचे  से तकिया  खींचा  तब भी उसकी आंख नहीं  खुली ।

सोना का घर लौट आना 

अगले  दिन  घर में  पूरी  शांति  थी और  काजल  घर से गायब थी । यह देखकर  मनवा  बहुत  खुश  थी और  वह आंगन  में आकर  बैठ  गई । आज काफी दिनों  बाद  उसे अपना  घर अपना-सा लग रहा था । तभी  उसे अपनी  मां की याद आई तो उसने  डिबिया का ढक्कन  खोल कर  ऐंजल  से कहा कि -” मुझे  मेरी मां  से मिला दो प्लीज । “

मगर  इस बार  ऐंजल  बोला  कि  -“उधर  बाहर के द्वार की तरफ देखो तुम्हारी  मां  तुम्हारे  पास  ही आ रही है । अब तुम्हें  इस डिबिया  वाली  मां  की जरूरत  नहीं  क्योंकि  अब तुम्हारी  असली  मां  लौट आई है ।  मैं  तो ऐंजल हूं, मुझे  तो बस तुम्हारी  इच्छा  पूरी करने के लिए  ही तुम्हारी  मां का रूप  लेना पड़ता था । परंतु अब तुम्हें इसकी जरूरत नहीं रही   इसीलिए  मैं  चला  भगवान के  पास  वापस । ”  उ यह कहते ही ऐंजल  और डिबिया  दोनों  गायब हो गए।

लेकिन तब तक सोना मनवा  के पास  आ चुकी थी । जैसे  ही वह पास आई मनवा भागकर  उससे लिपट गयी और फिर  मां-बेटी दोनों आंसुओं में  नहाने लगीं । उसी समय केशवन  भी घर आ पहुंचा और पत्नी को जिंदा  देखकर  फूला नहीं समाया। अपने  परिवार को भरा-पूरा देखकर  उसकी आंखें  भी खुशी  से छलकने लगीं ।

 सोना ने उनको बताया कि उस तूफान व बाढ़ में   उसकी जान तो बच गई थी मगर  वह कोमा में  चले जाने के  कारण  सालों  अस्पताल में  पड़ी रही  और कई रोज  पहले  होश आया तो आज घर आ सकी। यह सुनकर  पति ने भगवान का शुक्र  मनाया। 

फिर  मनवा ने  भी उन्हें काजल की करतूत और ऐंजल के करिश्माई कारनामों के बारे  में उनको बताया । इसी बीच  आसमान में  बिजली  चमकी तो सबने  आसमान की ओर देखा। आसमान में  ऐंजल दिखा तो सबके मुंह से एक स्वर में निकला -” थैंक्स  ऐंजल ।”

आपको हमारी यह स्टोरी कैसी लगी हमें कमेंट कर के जरूर बताएं। आपके अच्छे कमैंट्स हमारा मनोबल बढ़ाते हैं. हमारी स्टोरी को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और WhatsApp पर शेयर करना बिलकुल न भूलें 🙏। शेयर ऑप्शन पेज के अंत में दिया गया है।

लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

भूतिया जंगल

यह बात नैनीताल की उस समय की है.जब एक इंजीनियरिंग कॉलेज के कुछ दोस्त फाइनल ईयर की परीक्षा में पास हो गए थे.और उनका रिजल्ट भी आ चुका था.इसलिए अब उन सभी दोस्तों की छुट्टी होने वाली थी. और सब दोस्त अपने-अपने घर जाने की तैयारी बड़े उत्साह से कर रहें थे.किन्तु उन्हें अपने दोस्तों से बिछड़ने का दुख भी था. नैनीताल उत्तराखंड राज्य में बसा हुआ एक अच्छा पर्वतीय नगर है.जहां पर कई प्रशासनिक कार्यालय और कॉलेज हैं.नैनीताल एक अद्वितीय सुंदर और रमणीय स्थान है जहां पर देश-विदेश से सैलानियों और पर्यटकों का मेला सा लगा रहता है. देश विदेश के कोने-कोने से लोग भ्रमण करने तथा गर्मियों की छुट्टियां मनाने के लिए नैनीताल आते हैं.नैनीताल की झीलें बहुत ही सुंदर प्रतीत होती हैं. जिसमे सबसे प्रमुख है.नैनी झील जिसके नाम पर शहर का नाम नैनीताल पड़ा.

इन झीलों मे पयर्टक नौकायन करते है.और मछलियों को आंटा की गोलियां खिलाते है. और जब उनमें हंस तैर रहे हो तो बड़ी मनमोहक लगती हैं.और दर्शकों को आकर्षित करती हैं.नैनीताल में कई झीलें हैं. यहां तक कि यूं कह सकते हैं.कि नैनीताल ही झीलों का शहर है.साथ में बर्फ से ढके पर्वत ऐसे लगते है. मानो की पर्वतों ने सफेद चादर ओढ़ रखी हुई है.नैनीताल में कई मंदिर भी है.जो भव्य और पौराणिक हैं. जिसमे नैना देवी मंदिर सुप्रसिध है.जिसमे मूर्ति के स्थान पर सिर्फ दो आँखे ही है.और नन्दा देवी मंदिर चंद्र राजाओं की देवी का मंदिर है. जो कई पुराने राज अपने दिल मे समाये खड़ा हुआ है.

फाइनल ईयर के छात्रो मे छै दोस्तों की मित्रता बहुत ही घनिष्ठ थी. की वो एक दूसरे की बिछड़ने की बात सुनकर रोने लगते थे.और कभी एक दूसरे से बिछड़ना नहीं चाहते थे. लेकिन पढ़ाई ख़त्म होने के बाद घर तो जाना ही था. वे दोस्त थे राज, रवि, संध्या, सोहल, दिलीप और रमेश.

उनमे से रवि बोला

दोस्तों हमें एक साथ चार साल हो गए. हम सभी दुख-सुख मे एक साथ रहे.और एक दूसरे की जितना हुआ उतनी मदद भी की.इसलिए हमारे प्रेम की डोर भी इतनी मजबूत हो गयी की, हम एक दूसरे से अलग होने की बात सोचते ही दुखी हो जाते है. खैर ये तो कुदरत का नियम मिलना-बिछड़ना लगा रहता है.लेकिन जाते-जाते एक बार फिर हम सभी नैनीताल का भ्रमण करते है.और अपनी दोस्ती की यादे बटोरकर अपने ह्रदय मे हमेशा के लिए सजोना चाहते है.

सभी दोस्त यह सुनकर बहुत खुश होते है

नैनीताल भ्रमण

सभी दोस्त नैनीताल भृमण पर निकल गए सभी ने नैनीताल में बहुत आनंद लिया, प्रकति के हर एक कलाकारी का लुत्फ उठाया.और नैनीताल के इतिहास के बारे में भी जानकारी प्राप्त की.उन्होंने झीलों मे नौकायन का आनंद लिया, और घूमते- घूमते चहल कदमी करते हुए वे नैनीताल से दो-तीन कोस आगे निकल गए.तभी उन्हें एक बोर्ड दिखाई दिया. जिस पर लिखा था. सावधान यह रास्ता बन्द है. और अंदर जाना मना है.सभी दोस्तों के मन में उत्सुकता जागने लगी कि इस बोर्ड का मतलब क्या है? अंदर जाना क्यों मना है? और इस रास्ते पर क्या है? तभी सभी दोस्तों ने अंदर जाने की ठान ली. दोपहर का चौथा पहर बीत चुका था. और भी सभी दोस्त उस बोर्ड के आगे रास्ते पर चल दिए कुछ दूरी पर सामने उन्हें एक घना जंगल दिखाई दिया.वे सब जंगल में प्रवेश कर गए.

सभी दोस्त जंगल मे

जंगल मे खरगोशों को, जंगली जानवरों, को देखकर वे अतिप्रसन्न हुये. घने बड़े-बड़े बृक्षों नए किस्म के फूल और तरह-तरह के पक्षियों की आबाजों ने उनका मन मोह लिया. कभी वे हिरनों के झुण्ड के पीछे भागते तो कभी खरगोश के पीछे पकड़ने के लिए दौड़ते, उनका मन अत्यंत आनंदित हो रहा था. किंतु उन्हें क्या पता था कि उनके साथ क्या घटना घटने जा रही है.वो जिस जंगल में थे वो श्रापित जंगल था. और एक भूतिया जंगल भी.वे जंगल में चहल कदमी करते-करते जंगल के और अंदर की तरफ निकल गए अब शाम भी होने वाली थी. तभी उनमें से संध्या बोली

संध्या – सभी दोस्तों से

हम जंगल मे बहुत दूर आ गए है. और कुछ देर मे अंधेरा भी होने वाला है.अब हमें यहां से घर चलना चाहिए जंगल बहुत ही घना और डरावना सा लगता है.

सोहल – सभी दोस्तों से

संध्या ठीक कह रही है. अब हमें घर के लिए चल देना चाहिए. मैंने कई बार सुना है. कि जंगल में भूत-प्रेत और आत्माओं का वास होता है. मैंने जंगल के कई भूत प्रेत वाले किस्से कहानी भी पड़े है. जंगल मे हिंसक प्रवृत्ति के जानवर भी हो सकते है.वे हमारे ऊपर हमला भी कर सकते हैं.और अगर कहीं किसी आत्मा से सामना हो गया तो हम बिना मौत ही मारे जाएंगे अब हमें यहां से निकलना चाहिए.

राज – सभी दोस्तों से

तुम सब कैसी बातें करते हो.तुम आधुनिक युग के जवान हो. ये कैसी बात कर रहे हो? आत्माएं कुछ नहीं होती ये सब मात्र एक भ्रम है, अंधविश्वास है, मे इन बातों पर विश्वास नहीं करता और जो विश्वास करते हैं. मैं उससे नफरत करता हूं. इस जंगल को थोड़ा और घुमते हैं.कितना अच्छा लग रहा है. मोर का नाचना, कोयल का कूकना, ऐसा लगता है, मानो हम प्रकति की गोद मे खेल रहें है.

इस तरीके से वह जंगल के बहुत ही अंदर निकल गए शाम के सात बज चुके थे थोड़ी देर मे जंगल मे अंधेरा और सन्नाटा छा गया.

संध्या ने कहा

कि अब हमें घर चलना चाहिए. अब तो बहुत अंधेरा हो गया है रात भी हो चुकी है.

और वह लोग घर जाने के लिए निकल पड़े पर उन्हें रास्ता ही नहीं मिल रहा था. किस रास्ते से आए थे.वो रात के अँधेरे भूल गए.और जंगल में यहां-वहां भटकने लगे. रात में जंगली जानवरों की आवाजें भी तेज होने लगी. भेड़िया भी हुआ-हुआ की आवाज करने लगे उल्लू की आवाज सुनकर वे एकदम चौक जाते थे.और उनके चेहरे पर पसीना आ जाता था. सभी थर-थर कांपने लगते थे.

दिलीप – डरते हुये

अब क्या होगा? पता है. शायद हम तो रास्ता ही भूल गए और यह जंगल रात मे कितना डरावना लग रहा है.

रमेश- सभी दोस्तों से

ईश्वर पर विश्वास रखो”और रास्ता ढूंढते रहो” हमें रास्ता मिल जायेगा.ऐसे डरने और हताश होने से कोई लाभ नहीं होगा.

वे सब रास्ता ढूंढने की कोशिश में यहां-वहां भटकने लगे और एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहाँ चारों ओर बड़े-बड़े वृक्ष है.जिनमे पीपल के बरगद के वृक्ष थे. उन पर इंसानों की खोपड़ी, कंकाल लटके हुये थे. इतना खौफनाक मंजर था.कि बड़ा से बड़ा दिल वाला आदमी भी डर जाए.यहाँ तक की बेहोश भी हो जाए. इस मंजर को देखकर सभी दोस्त थरथर कांपने लगे उनके चेहरे पर डर साफ-साफ दिखाई दे रहा था.इंसानों की खोपड़ी, अस्थि पंजर यहां पर कैसे लटक रहे है ?क्या यहाँ खूंखार जानवर रहते है?सभी आपस मे बात ही कर रहे थे.की पीछे से किसी की रोने की आवाज सुनाई दी. और मुड़कर देखा तो सफेद साड़ी में औरत घूंघट डाले हुए बैठी थी.और रो रही थी.सभी उस औरत को देख आश्चर्यचकित हो गए.ये औरत अचानक यहां कैसे आ गई?अभी तो नहीं थी यह कोई चुड़ैल प्रेत -आत्मा तो नहीं तभी औरत और जोर- जोर से रोने लगी.

राज – औरत से (चुड़ैल)

हिम्मत करके पूछता है कौन हो तुम? और यहां बैठी क्या कर रही हो? क्यों रो रही हो? कहां से आई हो? हमें यहां से बाहर जाने का रास्ता बता सकती हो हम जंगल में रास्ता भटक गए हैं.

तभी उस चुड़ैल ने अपना घूंघट हटा दिया चुड़ैल का घुंघट हटते ही, उसका चेहरा देखकर सभी दंग रह गए तभी वह हँसने लगी हु हु हु हा हा हा यह सब देख सभी दोस्त भागने लगे उस चुड़ैल का खौफनाक चेहरा उन्होंने शायद कभी देखा होगा. चुड़ैल की तीन आंखें थी खून से लथपथ चेहरा और बड़े-बड़े दाँत थे.चुड़ैल हा हा हा हा हा हा हँस रही थी.और नाच रही थी. फिर कहने लगी तुम भी मरोगे, तुम भी मरोगे,यहां पर जो कोई भी आएगा, सब मारे जाएंगे.सब मारे जाएंगे इतना सुनते ही सारे दोस्त यहाँ वहाँ भागने की कोशिश करने लगे. किन्तु जिस तरफ भागते उस तरफ प्रेत भूत और चुड़ैल आ जाती.

अब सभी दोस्तों को आत्माओं और भूत प्रेतों ने घेर लिया. और सभी घेरा बनाकर नाचने लगे और डरावनी आवाज निकालने लगे थोड़ी ही देर मे दुष्ट आत्माओं और चुड़ैल का ताँता सा लग गया. उन्होंने जीवन में पहली बार ही इतनी भूत प्रेत और चुड़ैलों को देखा था. तभी सभी प्रेत आत्माएं और चुड़ैल उन सभी दोस्तों की ओर बढ़ने लगी.अपनी मृत्यु सामने देख सभी दोस्त एक स्वर मे ऊंची आवाज में चिल्लाये हे ईश्वर, हे विधाता हे इस संसार के कर्ताधर्ता, और जंगल के सभी देवी देवताओं, हमें इन दुष्ट आत्माओं से बचाओ, इनका नाश करो, हमें इन प्रेत आत्माओं से बचाओ, तभी सामने से एक दिव्य रोशनी फूटी और उसी रोशनी में से एक महात्मा प्रकट हो गए. महात्मा के हाथ में चमचमाती हुई तलवार थी. महात्मा उन प्रेत-आत्माओं पर ऐसे टूट पड़े जैसे एक वीर योद्धा अपने शत्रु सेना पर देखते-देखते प्रेत आत्मा और चुड़ैलों की धड मुंड अलग-अलग दिखाई देने लगे. और सब प्रेत आत्मा चुड़ैल गायब हो गई.यह चमत्कार देख सभी महात्मा बाबा की जय. महात्मा बाबा की जय. महात्मा बाबा की जय करने लगे.

महात्मा की कुटी मे

महात्मा – सभी छात्रों से

आओ मेरे पीछे-पीछे उनकी आबाज मे ना जाने क्या था? की सभी के कदम उनके पीछे-पीछे चल दिए लेकिन सभी यह जानने को बड़े उत्सुक थे की ये महात्मा कौन है? महात्मा उन्हें जंगल के पास ही एक कुटी में लेकर पहुंचे. जहाँ पहले से एक महात्मा उपस्थित थे जो काफी बूढ़े हो चुके थे.उनके माथे पर एक प्रकाश झलक रहा था.तब महात्मा बोले तुम सभी को भूख भी लगी होगी. जाओ पहले अपने हाथ धो लो, फिर तुम्हें खाना लगा देते हैं. सभी हाँथ धोकर आते है.तब तक महात्मा ने पेड़ के बड़े-बड़े पत्ते तोड़े और उनमे छात्रों को कंकड़ पत्थर परोस दिए.यह सब देख कर सभी दोस्तों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ.

महात्मा – सभी छात्रो से

सभी अपनी आंखें बंद कीजिए, और अन्नपूर्णा मां की प्रार्थना कीजिए.सभी ने आंखें बंद की और महात्मा बोले “हे मां अन्नपूर्णा “आप समस्त संसार का पोषण करती हैं. इसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं.हमारे पास जो कुछ भी खाने के लिए है. उससे हमारे शरीर का पोषण कीजिए तथा हमें ऊर्जा प्रदान कीजिए.तभी सब आंखें खोलते हैं और पाते है की पत्तल पर स्वादिष्ट भोजन परोसा हुआ था.कंकड़ पथ्थर गायब थे.ऐसा भोजन ना कभी किया और ना देखा सभी दोस्तों की आँखे फटी की फटी रह गयी.सभी ने खाना खाया और बैठ गए.

महात्मा – सभी छात्रों से

अब सभी यहीं आराम करो और कल प्रातः अपने घर चले जाना अब तुम सब यहाँ सुरक्षित हो.

सभी दोस्त आराम करने लगे मगर नींद किसी को नहीं आ रही.पहले से ही सभी भूत प्रेत, आत्माओं से भयभीत और अब इन साधु महात्मा के कारनामों से आश्चर्यचकित

सभी दोस्तों के मन मे कई सबाल उठ रहे थे.किन्तु पूंछने की हिम्मत किसी मे नहीं थी.खैर उनकी जान बच गयी ये काफ़ी था.सुबह महत्मा से सभी सबाल पूंछेंगे ऐसी कामना लेकर सभी सो गए.पर सुबह जैसे ही उनकी नींद खुली उन्होंने पाया वो उसी बोर्ड के पास नीचे सूखे पत्तों पर सो रहे है.जिस पर लिखा था अन्दर जाना मना है. ना वहाँ कोई कुटिया है.ना ही कोई महात्मा वो बड़े आश्चर्य मे पड़ गए की कुटिया कहाँ है? साधु महात्मा कहाँ गए? और वो कौन थे? कई सबाल अपने हृदय मे लेकर वो सभी अपने हॉस्टल लौट आये.

क्या आप जानना चाहते है वो महात्मा कौन थे तो जरूर पढ़िए हमारी अगली कहानी दिव्य आत्मा और भूतिया गाँव

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लेखक: M. K. Arya

आत्मा का बदला

बहुत समय पहले की बात है.लहार क्षेत्र के पास एक गांव था. जिसका नाम था. लहरिया, उस गांव मे बड़े ही बदमाश प्रवृति के लोग रहा करते थे. इसी गांव में ठाकुर सज्जन सिंह का बड़ा अच्छा दबदबा था. गाँव के लोग ठाकुर तो क्या ठाकुर के नौकरो से भी डरते थे. उसी गांव में जयसिंह नाम के एक गडरिया रहा करते थे. जयसिंह बहुत ही सीधा-साधा और शांत स्वभाव का लड़का था.उसके पास कुछ भेड़ें थी. जिनको चराना और जंगल से लकड़ी काटकर बेचना उसका काम था.उसी से उसकी रोजी-रोटी चलती थी.

जयसिंह का कोई नहीं था. वह अकेला था.लेकिन उसके दो दोस्त थे. वही उसका परिवार था.इनमें से एक थे नवाब सिंह, दूसरे गुलजार सिंह, नवाब सिंह मक्कार प्रवृत्ति का व्यक्ति था.और ठाकुर सज्जन सिंह कि भैंसो की देखरेख करता था.किन्तु गुलजार सिंह सभ्य और विनम्र व्यक्ति थे.

कुछ दिनों बाद जयसिंह की शादी हो गई. उनकी पत्नी आ जाने के बाद जयसिंह का जीवन फिर से हरा भरा हो गया. किन्तु एक समस्या अभी भी थी. जयसिंह खुद का खर्च तो बड़ी मुश्किल से चला पाता था और अब अपनी पत्नी का भी खर्च उठाना था. उसके पास भेड़ों और एक झोपडी के शिवाय कुछ ना था. इसलिए उसने शहर जा कर धन कमाने का निश्चय किया. और अपनी पत्नी को गांव में ही छोड़कर शहर की तरफ काम की तलाश में चल दिया.

शहर मे

शहर मे बड़ी-बड़ी इमारतें, मिलो और लोगों को देखकर जयसिंह को बड़ा आश्चर्य हुआ.कोई सीधे मुँह बात भी नहीं कर रहा था.सब अपने मतलब की बात करते थे. शहर में हर जगह घूमने के बाद जयसिंह को कहीं पर कुछ भी काम नहीं मिला.और जयसिंह बहुत दुखी हुआ.
अंततः हार मानकर जयसिंह रोड के किनारे अपने सर पर हाथ रख कर बैठ गया. तभी एक राहगीर आया.

राहगीर – जयसिंह से
ओ भाई यहां पर बैठे-बैठे क्या कर रहे हो? अगर तुम मेरा ये सामान मेरे घर तक पहुंचा दोगे.तो तुम्हें तीन रु दूंगा. जयसिंह सुबह से ही भूखा प्यासा था. फिर भी उसने उस आदमी का सामान उठाया.और के घर की तरफ चल दिया. और उनका सामान उनके घर तक पहुंचा दिया. राहगीर ने उसे तीन रु दिए और कहा

राहगीर – जयसिंह से
तुम एक बहुत ही मेहनती व्यक्ति हो. शायद इस शहर मे नए हो”किसी से मिलने आये हो”या काम की तलाश मे

जयसिंह – राहगीर से
हां मैं गांव से शहर में काम की तलाश में ही आया हूं. लेकिन कहीं कोई काम नहीं मिला.

राहगीर – जयसिंह से
तुम हट्टे-कट्टे जवान हो.अगर मेहनत का काम कर लोगे तो मैं तुम्हे अपनी मिल मैं काम दे सकता हुँ.मैं चीनी की मिल मे सुपरवाइजर हुँ.

जयसिंह – राहगीर से
आपकी बड़ी मेहरबानी होगी.अगर आप मुझे मिल में काम दे देंगे.मैं मेहनत का काम कर लूंगा.

राहगीर – जयसिंह से
तुम्हें एक हजार रु पगार प्रति महीने मिलेगी.और तुम्हे सुबह आठ बजे से शाम को पांच बजे तक काम करना होगा.

जयसिंह ने हाँ कह दी अब जयसिंह खुशी से फूला नहीं समाया.उसने धर्मशाला में अपनी रात बिताई और सुबह काम पर चला गया. उसने मिल में बड़े ही मेहनत और लगन से काम किया.और कुछ ही वर्षों में अच्छा पैसा कमा लिया.पैसा कमाने के चक्कर में जय सिंह को अपनी पत्नी का भी ख्याल नहीं आया.

एक दिन जयसिंह अकेले अपने कमरे में बैठा हुआ था. तभी उनकी निगाह एक अंगूठी पर पड़ी. जो उसकी बीवी ने उन्हें गिफ्ट स्वरूप दी थी. अपनी बीवी की अंगूठी देखकर उसकी आंखों में आंसू भर आए और रोने लगा. उसे अपनी पत्नी की याद अभी तक क्यों नहीं आई? अब उसका मन बैचैन हो गया.और उसे अपनी पत्नी की चिंता सताने लगी. उसी वक्त उसने गाँव जाने का निश्चय किया.और सामान बांधकर घर की तरफ चल दिया.

गाँव में

घर आकर जय सिंह ने देखा कि उनकी पत्नी घर पर नहीं है.और उसकी भेड़ें भी नहीं है.जयसिंहको किसी अनजानी घटना का अनुमान होने लगा कहीं उसकी पत्नी को कुछ हो तो नहीं गया.उसने पास में रहने वाले रामकिशन से पूछा

जयसिंह – रामकिशन से
भैया रामकिशन मेरी बीवी मेरी भेड़ें कहां पर है? तुमने देखा उन्हें ना जाने कहाँ चली गई है?

रामकिशन – जयसिंह से
भैया जयसिंह तुम इतने दिन कहां चले गए थे? और गांव की सुध भी नहीं ली. अरे अपनी पत्नी की तो सुध ले लेते. पता नहीं तुम्हारे जाते ही तुम्हारी पत्नी कुछ दिनों बाद कहां गायब हो गई.मैंने उसे बहुत तलाशा, बहुत ढूंढा, कहीं पर भी नहीं मिली.तुम्हारी भेड़े जरूर जंगल मे अकेली चर रही थी. जो मेरे पास ही हैं. मैं ही ख्याल रखता हूं उनका

इतनी बात सुनते ही जयसिंह को धक्का सा लगा.और वह वहीं ज़मीन पर बैठ रोने लगा रामकिशन के बहुत समझाने पर वह शांत हुआ. किन्तु अब जयसिंह का दिल बैठ गया था. उसके चेहरे पर उदासी ही छायी रहती थी. कभी खाता तो कभी-कभी भूखा ही सो जाता था. रहकर उसके आँखों के सामने कई अनहोनी घटनाये दिखाई देने लगती थी. जयसिंह ने पत्नी की तलाश मे हर सभव प्रयास किया.और दोस्तों का भी सहारा लिया.पर उसकी पत्नी कहीं नहीं मिली.हार मानकर वह अपने गांव में ही अपने घर में रहने लगा.और अपना वही पुराना काम भेड़ों को चराना और लकड़ी काटकर बेचना शुरू कर दिया.

एक दिन जयसिंह भेड़ों को चराते-चराते जंगल में अंदर को निकल गया. वहां एक बरगद के पेड़ के नीचे वह आराम कर रहा था. तभी किसी की रोने की आवाज सुनाई दी. जयसिंह ने हर तरफ देखा.लेकिन वहां पर कोई नहीं दिखाई दिया. यह बात उसने गांव मे रामकिशन को बताई.
दूसरे दिन रामकिशन जयसिंह के साथ उस स्थान पर पहुंचे जहां से उस स्त्री के रोने की आवाज आ रही थी. दोनों पूरे दिन बरगद के पेड़ के नीचे बैठे रहे. पर किसी की आबाज नहीं सुनाई दी.

रामकिशन – जयसिंह से
भाई जयसिंह तुम्हें अपनी पत्नी के जाने का दुख अभी भी है.इसलिए तुम्हें शायद भ्रम हो गया है. आज पूरा दिन हमें यहां पर बैठे हो गया.परन्तु किसी के रोने की आवाज तो क्या किसी की आहट भी नहीं सुनाई दी.

जयसिंह कुछ नहीं कह सका.कुछ दिनों बाद जयसिंह उसी पेड़ के पास पहुंचा. तो फिर से किसी औरत की रोने की आवाज सुनाई दी. जयसिंह ने पेड़ पर चढ़कर देखा कहां से यह आवाज आ रही है. बरगद के पेड़ के आसपास हर जगह देखा. तभी बरगद के खोखले में लाल कपड़े में छोटा सा घड़ा दिखाई दिया. जयसिंह ने सोचा शायद इसमे किसी ने कुछ छुपाया है. उसने घड़ा उठाया, और पेड़ से नीचे उतर ही रहा था. की घड़ा हाथ से छूट गया.

अचानक ही उस घड़े के फूटने के स्थान से धुआं ही धुआं फैलने लगा. यह सब देख जयसिंह के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.कि ये क्या हो रहा है? बस डर के मारे थर-थर कांप रहा था.

तभी धुएँ मे जयसिंह को उसकी पत्नी सफेद साड़ी में खड़ी दिखाई दी.जयसिंह को समझते देर नहीं लगी कि उनकी पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है जयसिंह की पत्नी जयसिंह से लिपटकर जोर – जोर से रोने लगी.जयसिंह भी उसे अपनी बांहों मे भरकर रोने लगा. अब जयसिंह का डर कम हो गया था.बस एक उत्सुकता उसके मन मे थी. कि उसकी पत्नी का ये हाल कैसे हुआ? दोनों लिपट कर बहुत देर तक रोते रहे.

जयसिंह की पत्नी – जयसिंह से
जब तुम शहर गए थे. तब तुम्हारा मित्र नवाबसिंह मेरे घर आने लगा था यहाँ तक कि वह मेरे पीछे-पीछे जंगल तक आ जाया करता था.और मेरे साथ कई बार जबरदस्ती करता था. एक दिन मैंने उसे गाल पर थप्पड़ मार दिया तो उसने अपने पास से एक कटार निकाला और मेरा गला काट दिया. और मेरी मृत्यु हो गई मेरे शरीर को उसने जंगल में ही इसी बृक्ष के पास दफना दिया. मेरी आत्मा ना भटके इसलिए एक तांत्रिक को लाकर मेरी आत्मा को इस घड़े में कैद करवा दिया. मुझे पता था आप एक दिन यहाँ जरूर आओगे. अब मुझे उससे बदला लेना है.

ये घटना सुनकर जयसिंह गुस्से से लाल हो जाता है.
और कहता है, बदला तो मे लूंगा उस विश्वासघाती से उसने दोस्ती का नाम ही मिटा दिया दोस्त के नाम पर कलंक है, नबाबसिंह

जयसिंह कि पत्नी -जयसिंह से
नहीं आप उसे कुछ नहीं करेंगे.मे उससे बदला लुंगी.और आज रात को वो भी सभी के सामने तब ही मेरी आत्मा को शांति मिलेगी.

जयसिंह हाँ मे सिर हिला देता है.और उसकी पत्नी गायब हो जाती है.जयसिंह भी अपने आँसू पोंछ कर घर लौट आता है. और रात होने का इंतजार करता है.

रात के नौ बज चुके थे.और इधर नबाबसिंह भैंसो को चारा भूसा डालकर तबेले (भैंसो के रहने का स्थान ) मे आराम कर रहा था. तभी भैंसो के रम्भाने कि आबाज सुनाई दी. और कुछ ही देर मे सभी भैसे खड़ी हो गयी. और जोर – जोर से रम्भाने लगी.नबाबसिंह दौड़कर तबेले से बाहर आया. और देखने लगा कि आज सभी भैसे इतना क्यों रम्भा रही है? अचानक नबाबसिंह को किसी के रोने कि आबाज सुनाई दी. नबाबसिंह ने देखा सामने ही खाट पर एक औरत बैठी है और रो रही है.

नबाबसिंह – औरत से
कौन हो तुम? और यहाँ क्या कर रही हो? और रो क्यों रही हो?
तभी जयसिंह कि पत्नी ने अपना चेहरा दिखा दिया
जयसिंह कि पत्नी को देख नबाबसिंह कि बोलती बन्द हो गयी सारा शरीर कांपने लगा.और तबेले मे जाके घुस गया जयसिंह कि पत्नी वहाँ भी पहुँच गयी.और जोर – जोर से हँसने लगी.

जयसिंह कि पत्नी
हा, हा, हा, हा पापी नबाबसिंह अब तेरे पापों का अंत होगा तेरा समय आ गया है.आज तेरी मौत निश्चित है.

नबाबसिंह ठाकुर के घर कि तरफ भागता है.और चिल्लाता है. बचाओ, बचाओ चुड़ैल-चुड़ैल
गाँव के सभी लोग घरों से बाहर निकलने लगते है.और जयसिंह कि पत्नी को देखकर दंग रह जाते है. जयसिंह कि पत्नी हवा मे उड़ रही थी. और नबाबसिंह को पकड़ने कि कोशिश कर रही थी. तभी जयसिंह भी गाँव का शोर शराबा सुनके वहाँ पहुँचता है.नबाबसिंह ठाकुर के घर के सामने पहुँच के गिर जाता है. और चिल्लाता है ठाकुर साहब मुझे बचाओ ठाकुर भी बाहर निकल आते है. पूरा गाँव इस मंजर को देखता है. और हैरान रह जाता है.

जयसिंह कि पत्नी – नबाबसिंह से
नबाबसिंह अब मरने को तैयार हो जा
और इतना भयानक रूप बनाती है.कि गाँव बालों मे भगदड़ मच जाती है.सभी यहाँ वहाँ भागने लगते है

जयसिंह कि पत्नी – गाँव बालों से
गाँव बालों, तुम लोग मुझसे मत डरो.मे तुम्हे परेशान नहीं करुँगी मेरा अपराधी तो नबाबसिंह है. जिसने मुझे मौत के घाट उतारा था.और मेरी आत्मा को कैद करवा दिया था.

नबाबसिंह – जयसिंह कि पत्नी से
मुझे छोड़ दो मुझे मत मारो हाँ मे मानता हुँ मैंने ही तुम्हारा कत्ल किया मुझसे गलती हो गयी मुझे माफ करदो.

तभी जयसिंह कि पत्नी अपने बड़े – बड़े नाखूनों से नबाबसिंह का पेट चीर देती है. और नबाबसिंह चीखता चिल्लाता हुआ दम तोड़ देता है.जयसिंह कि पत्नी अपने सामान्य रूप मे आकार जयसिंह और गाँव बालों से बिदा लेती है. और जयसिंह अपनी पत्नी कि आत्मा कि शांति के लिए सभी संस्कार पूरे करता है. और शहर चला जाता है.

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लेखक: M. K. Arya

साहसी माँ

यह बात मध्यप्रदेश के भिंड जिले की है. जिसमें एक सुल्तानपुर नाम का गांव था.गांव में अधिकतर ब्राह्मण ठाकुर तथा कुछ छोटी मोटी जातियों के लोग भी रहा करते थे.गाँव के लोग बहुत ही अच्छे स्वभाव के लोग थे. उसी गांव में दो या तीन घर श्रीवास (नाऊ जाति) के भी थे.नाऊ जाति के लोग गांव में घर घर जाकर लोगों के बाल काटा करते थे. तथा हजामत बनाया करते थे.इसके बदले मे जो कुछ भी उन्हें मिलता उसी से अपनी घर गृहस्थी चलाया करते थे. कोई उन्हें अनाज दे देता था.

तो कोई चावल दे देता था. कोई रूपए पैसे भी देता था. इस प्रकार से नाऊ जाति के लोग अपना जीवन यापन कर रहे थे. उसी में से एक नाऊ थे.रामबीर बड़े अच्छे स्वभाव का व्यक्ति था. और बहुत ही अच्छे तरीके से लोगों की हजामत बनाया करता था. उसकी हजामत की तारीफ करते लोग थकते नहीं थे.

लेकिन एक खूबी थी रामवीर मे, वह शराब का आदी था. जब पीता था. तो रोज शराब पीता था.और जब नहीं पीता था.तो महीने गुजर जाते थे.जब वह शराब के नशे में होता था.तो उसे होश ही नहीं रहता था.कि वह क्या कर रहा है छोटी-छोटी बात पर अपने पत्नी, बच्चों को बुरी तरह पीटता था.और कभी-कभी घर से भी निकाल देता था.रामवीर के दो बच्चे थे बड़ा सात साल का, जिसका नाम रामू और छोटा बच्चा तीन साल का जिसका नाम कालू था.

एक दिन रामवीर पास के गाँव मे किसी काम से गया और अपने दोस्तों के साथ शराब पीकर रात के आठ बजे के आसपास घर आया. उसने इतनी शराब पी रखी थी की ठीक से चल भी नहीं पा रहा था

रामबीर – पत्नी से

दरबाजे पर खड़ा होकर अरे कल्लू (छोटा लड़का कालू )की अम्मा कहाँ मर गयी, मुझे खाना लगा बहुत भूख लगी है.सुनाई नहीं देता, क्या तेरा पति आया है.और नशे मे होने के कारण जमीन पर गिर पड़ा.

रामवीर की पत्नी

तुम फिर आज शराब पीकर आ गए.कितनी बार कहा है कि शराब मत पियो, शराब मत पियो, तुम जो भी रुपए पैसा कमाते हो उसे शराब में ऐसे ही खर्च कर देते हो इन बच्चों का क्या होगा, ना ठीक से पहन पाते है. और ना ठीक से खा पाते है तुमने तो मेरा जीवन ही दुष्भर कर दिया नरक से बत्तर बन गयी जिंदगी तुम्हारे साथ.

रामवीर – पत्नी से

फिर तू बकबक करने लगी लगता है, कल की मार से तेरा मन नहीं भरा तुझे और मार चाहिए खाना ला वरना, बहुत पटेगी

रामवीर की पत्नी रामवीर को खाना देती है. किंतु रामवीर जैसे ही खाना खाता है. और थूक देता है, थू थू

रामवीर गुस्से मे

ऐसा खाना बनाया तूने, ना नमक है, ना मिर्च है.सारा मूड बेकार कर दिया खाना ही बनाना नहीं आता तुझे रुक अभी तेरी अक्ल ठिकाने लगाता हुँ.

और इतना कहकर रामवीर अपनी पत्नी को लात-घूसों से पीटने लगा”उसकी पत्नी रोने लगती है है.चिल्लाती है मत मारो, मुझे मत मारो, छोड़ दो, मैं दोबारा खाना बना दूंगी. बच्चे रोने लगते हैं.मत मारो, मम्मी को मत मारो.

पर रामवीर नशे की हालत मे था रामवीर पर कोई असर नहीं पड़ता है.और रामवीर पत्नी और बच्चों को घर से बाहर निकाल देता है.और दरवाजा बंद कर लेता है.गाँव मैं मकान थोड़ी दूर दूर बने होते हैं. जिससे एक दूसरे के घर क्या हो रहा पता भी नहीं चलता रामवीर की पत्नी दरवाजे पर बैठे-बैठे रोती रहती है. पर रामवीर दरवाजा नहीं खोलता है. आखिर मे हताश होकर वह अपने मायके की तरफ चल देती उसका मायका ससुराल से पांच किलोमीटर के आस पास होगा है.किंतु जैसे ही वह अपने गाँव के पोखर (पानी का छोटा सा तालाब )को पार करती है.और कुएँ के पास से गुजरती है. पीछे से एक आवाज सुनाई देती है.अभी कहां जा रही हो मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूं. रामवीर की पत्नी पीछे मुड़कर देखती है. और डर के मारे थरथर कांपने लगती है.पीछे लंबे लंबे बालों वाला लंबे लंबे सींग वाला खूंखार काला भूत खड़ा था.

रामवीर की पत्नी

मन में अरे ये तो भूत है. अब क्या क्या करूँ मेरे साथ दोनों बच्चे हैं. अगर मैं डर गई तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा

भूत रामबीर की पत्नी से

क्या सोच रही है.अपने बच्चे मुझे दे दे बच्चों को अपने हाथों में लिए लेता हूं. तुझे दर्द हो रहा होगा.हाथों में और तेरे साथ चलता हूं.

रामवीर की पत्नी

नहीं नहीं मैं अपने बच्चे खुद संभाल लूंगी, तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है. अपना काम करो

इतना कहने पर भूत कई छोटे-छोटे घिटलो (सूअर के बच्चे ) में बदल जाता है.

और बच्चों को लुभावने के लिए आबाजें निकालता है. तभी तमाम घिटले वहां पर आ जाते हैं और घूमने फिरने लगते हैं यह सब देख रामवीर की पत्नी और डर जाती है. लेकिन अपने बच्चों की रक्षा के लिए एक माता कुछ भी कर सकती है.साक्षात् दुर्गा का रूप धारण कर लेती है.और काल का सामना भी कर सकती परन्तु अपने बच्चों का बाल भी बांका नहीं होने देती.

रामवीर की पत्नी

अगर तू मेरे पास आएगा तो मैं तुझे जला दूंगी. और अपने पास से एक माचिस निकालती है. और माचिस की तीली जला देती है.

जिसको देख सारे घिटले कुएँ मे छपाक से कुंद जाते है. और भूत प्रकट हो जाता है.

भूत रामवीर की पत्नी से

तुम मुझे इस माचिस की तीली से डरा रही हो. इसे दूर करो.वरना मे तुम्हे और तुम्हारे बच्चों को नहीं छोडूंगा

रामवीर की पत्नी जल्दी-जल्दी अपने गांव की तरफ दौड़ने लगती है. और भूत उसके पीछे-पीछे चलने लगता है.लेकिन रामवीर की पत्नी के पास माचिस होने के कारण उस तक नहीं पहुंच पाता.

इस बार भूत ने छोटे प्यारे कुत्तों का रूप धारण लिया. और थोड़ी देर मे कुत्ते ही कुत्ते नजर आने लगे. और भाऊ, भाऊ, भाऊ करने लगते हैं. रामवीर की पत्नी नहीं डरती है.

और जैसे ही वह माचिस की तीली जलाती है.कुत्ते फिर से भाग जाते हैं.और भूत प्रकट हो जाता है.

भूत रामवीर की पत्नी से

मैं तेरा पीछा नहीं छोड़ने वाला, बच्चे मुझे दे दे सही सलामत रखूंगा. और पलक झपकते तुझे घर पहुंचा दूंगा

कुछ ही देर में भूत सांपों का रूप धारण कर लेता है.और सांप ही सांप नजर आते हैं. तथा रामबीर की पत्नी की तरफ दौड़ते हैं. रामबीर की पत्नी सांपो को अपनी तरफ आते देख डर जाती है.और पास मे डली लकड़ी से उन्हें भगाती है. लेकिन सांप और भयकर रूप धारण करके रामवीर की पत्नी को काटने दौड़ते. फिर से रामवीर की पत्नी माचिस की तीली जला देती है. और सांपो पर फेंक देती है. सभी सांप गायब हो जाते हैं. और भूत फिर से प्रकट हो जाता है

भूत मन मे

सोचता है. कैसे भी करके यह बच्चे मिल जाए मनुष्य का मांस कई दिनों से नहीं खाया, बच्चों का मांस कोमल और स्वादिष्ट होता है. बड़ा ही आनंद आएगा और मेरी डायन भी मुझसे बहुत प्रसन्न होगी. किन्तु औरत तो डर ही नहीं रही उसके मन में अचानक ख्याल आता है.की इसके पति से अवश्य मान जाएगी. और अपनी शक्ति से रामवीर के बारे मे जान लेता.

फिर भूत रामवीर का रूप धारण कर लेता है

भूत रामवीर की पत्नी से

कहता है कालू की अम्मा कहां जा रही हो.चलो घर चलो, मैं लेने आया हूं, मुझसे गलती हो गयी मुझे माफ कर दो पूरे गाँव मे तुम्हे ढूँढा लेकिन तुम नहीं मिली चलो घरको

अपने पति को देखकर रामवीर की पत्नी चौक जाती है. इतनी जल्दी ये यहाँ तक नहीं आ सकते,वह तुरंत समझ जाती है यह सब उस भूत का भ्रमजाल है. जो बच्चों को खाना चाहता है. वह फिर माचिस की तीली जला कर उसकी तरफ फेंक देती है. भूत छटपटा कर पीछे की तरफ गिरता है.

अब भूत एक विकराल रूप में फिर से प्रकट हो जाता है.

अब भूत बड़ा ही खौफनाक रूप धारण करता है है. उसका खौफनाक चेहरा उसके लंबे-लंबे, दाँत शरीर पर खून नाक कटी हुई, हाँथो मे तलवार इतना भयानक मंजर तभी चारों तरफ धुआँ ही धुआँ उठने लगता है.

भूत रामवीर की पत्नी की तरफ एक मंत्र पढ़कर छोड़ता है.जिससे रामवीर की पत्नी के दोनों पैर थम जाते हैं रामवीर की पत्नी अपने पैर भी नहीं उठा पाती है. लेकिन अपने बेटों की रक्षा करना अच्छी तरीके से जानती हैं

अब रामवीर की पत्नी सोचती है. अब क्या किया जाए तभी भूत उसकी तरफ आगे बढ़ने लगता है. और रामवीर की पत्नी अपनी साड़ी फाड़ती है. उसमें आग लगा देती है. और भूत पर फेंक देती है. भूत आग से जलने लगता है.और चिल्लाने लगता है.आग बुझाओ, मुझे बचाओ, भूत का बुरा हाल हुआ जा रहा था और आग से धांय धांय लपटों के साथ जल रहा था.

थोड़ी देर मे ही भूत जलकर राख का ढेर हो गया.और हवा के एक झोंके से राख उड़ गयी. तभी रामवीर की पत्नी अपने मायके की तरफ दौड़ने लगी रास्ते में उसे कुछ लोग मिल जाते हैं. जो रामवीर की पत्नी के गाँव के ही थे. वे रामवीर की पत्नी को देखकर पूछते हैं क्यों भागे जा रही हो बहन रामवीर की पत्नी सारी कहानी बताती है फिर वे लोग रामवीर की पत्नी को उसके मायके छोड़ कर आते हैं.

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लेखक: M. K. Arya

प्रेतात्मा का प्यार

घने जंगल में  पहाड़ी  झरने  के आसपास  की जगह  बहुत ही  सुंदर  और शांत थी । महायोगी  प्रचंड  नाथ को यह जगह  बहुत  पसंद  आई और उसने अपने सभी  चेलों को  आदेश  दिया कि  अभी कुछ  दिनों  तक हम यहीं  रहकर ध्यान  -तप करेंगे  और  फिर  आग जाएंगे  । उनका आदेश  मिलते ही सब साधु -संतों  ने वहीं  झरने के पास  डेरा डाल  लिया  ।

दिन  तो सबका ध्यान  -भक्ति  में  बीत गया  मगर  जैसे  ही शाम हुई  एक अजीब  घटना  घट गई । बाबा  प्रचंड नाथ  का एक शिष्य रंजन बाबा झरने के करीब  चला  गया  और  वहां  उसने देखा कि  एक विशाल शिला पर किसी  ने सुंदर  और ताज़ा  फूलों  का गुलदस्ता  सजा कर रखा है  । बाबा  ने अनजाने  में  ही उसे उठाने के लिए  हाथ बढ़ा दिया  । मगर  जैसे  उसने उस तरफ  हाथ  बढ़ाया  उसे  किसी  अदृश्य  शक्ति ने कई फीट हवा में  उड़ा  दिया  और  वह औंधे  मुंह जमीन पर जा गिरा ।

साथ ही  झरने के नीचे से एक प्रेतिनी  क्रोध  से पागल चीखती हुई उस तरफ आई । बाबा प्रचंड नाथ के सभी चेले उस तरफ दौड़े।उन्होंने तुरंत  आकर जमीन पर गिरे रंजन बाबा को संभाला । बाबा  प्रचंड नाथ  उस समय  झरने से आने वाली  जलधारा के किनारे  ऊंचे  शिलाखंड  पर  खड़े  हुए  थे  और  यह सब देख  रहे थे ।

प्रेतिनी बाबा के चेलों से

तूने इन फूलों को छूने की  हिम्मत की ! जानता नहीं कि  ये फूल  मेरे  राजकुमार ,मेरे  देवभान के लिए हैं । मैं उसके लिए  रोज  यहां  फूल  रखती हूं और सैकड़ों  सालों से रख रही हूं।उसने इस शिला को सेज समझ कर यहां  मुझसे प्यार  किया था । इसी पर मुझसे प्यार  करने के लिए  वो फिर  आएगा … देखना मेरा  देवभान आएगा !  कहते-कहते  प्रेतिनी  फूट -फूटकर  विलाप करने लगी ।

बाबा प्रचंड नाथ  प्रेतिनी से
 
मूर्ख  प्रेतात्मा , तेरी  प्रेम  कहानी का अंत हुए  पूरे  आठ सौ बरस बीत  चुके हैं  । तेरे  देवभान ने  इन आठ सौ सालों में  कितने जन्म  ले लिए  होंगे तू सोच  भी सकती है !  और हज़ार  साल भी इंतजार करेगी तो भी तेरा  प्रेमी  नहीं  लौटेगा ।

भूल जा … तू भूल  जा उसे…! फिर  बाबा की आवाज़ जरा मंद पड़ जाती है और वह प्रेतात्मा को उसकी  बीती हुई  कहानी  बताने लगते हैं  । बाबा कहते हैं कि  – देवभान तो तुझ पर मरता था । वह  तुझसे बहुत  प्यार करता था , मगरतू एक दासी की पुत्री  थी -सुषमा । सुषमा  पूर्व जन्म   में प्रेतिनी का नाम था। इसीलिए  राजा और रानी तुझे  पसंद नहीं करते थे और जब राजकुमार  तुम्हें  यहां लेकर आया तो उन्हीं  की  आज्ञा  से सैनिकों ने तुम्हें  मारकर यहां  दफना दिया  ,साथ ही तांत्रिक की मदद से तुम्हारी रूह को इसी जगह बंधन में बांध दिया ताकि  तुम  राजकुमार  के  पीछे-पीछे  राजमहल  तक न पहुंच  सको । 

राजकुमार  देवभान  अब तक कितने ही जन्म  ले चुका होगा  और  अब उसने कहां  जन्म  लिया  होगा  तुम  यह जान भी लो तो भी कुछ  नहीं  होगा  ।तुम्हें  तुम्हारा  प्यार  नहीं  मिलेगा  । इसलिए  आज मैं  तुम्हारी  आत्मा को ही हमेशा के लिए  शांत  कर देता हूं  । इसी में  तुम्हारी  और यहां  झरने पर आने वाले  लोगों की  भलाई है  ,क्योंकि  तुम  जिंदा  इनसानों के लिए  खतरा हो ।

प्रेतिनी  बाबा से

नहीं  बाबा  …नहीं… नहीं  ,योगी  बाबा ऐसा  मत करना । मैं  जब तक अपना  प्यार  नहीं पाती , जब तक अपने देवभान से नहीं  मिलती,  मेरी  आत्मा  शांत  नहीं  हो सकती  ।  ऐसी  कोशिश  करोगे तो मुंह की खाओगे ।मगर  प्रचंड  नाथ उसकी नहीं  सुनता । वह तुरंत  अपने कमंडल से  पानी  लेकर  मंत्र उच्चारण  करते  हुए  पानी को प्रेतात्मा  पर फेंकने की कोशिश  करता है  ।

पर तभी  हवा का एक ऐसा  झोंका  आता है कि कमंडल  बाबा के हाथ  से छूटकर  टनटनाता हुआ  पत्थरों से टकराते हुए  नीचे  जलधारा  में  जा गिरता है । और जैसे ही कमंडल  गिरता है  ,ठीक  वैसे  ही जमीन  से आसमान  की ओर एक भयंकर  प्रकाश  फूटता है जिसके  साथ  ही प्रेतात्मा  हा…हा… हू… हू …की हुंकार  भरती  हुई  बंधन मुक्त  हो जाती  है तथा आकाश की ओर गमन कर जाती है  ।

प्रेतिनी  बाबा से 

बाबा  भगवान  नहीं चाहता  कि मैं  अपने  प्यार से न मिलूं  । लो हो गई बंधन मुक्त  ,अब देखती  हूं  कौन  रोकता है  मुझे  मेरे  प्यार  से मिलने  से , लो मैं चली ।कहकर  प्रेतिनी  अदृश्य  हो गई । 
बाबा प्रचंड नाथ  तुरंत  अपनी  दिव्य दृष्टि  से देखता है  कि देवभान  का जन्म  इस समय किस जगह पर  हुआ है और  प्रेतात्मा  कहां  गयी होगी  ।

बाबा  अपने शिष्यों से

चलो,  तुरंत  भलापुर गांव की ओर प्रस्थान  करो । अगर  हम वहां  समय  पर नहीं  पहुंचे  तो प्रेतात्मा  उस गांव पर कहर बरपा देगी ।

भलापुर  गांव  में 
पहाड़ों से बंधन मुक्त  होते ही प्रेतात्मा  भलापुर  गांव  में  पहुंच कर  अपने प्रेमी  देवभान की तलाश में  जुट  जाती  है । इस जन्म  में  देवभान  गांव  का एक अमीर  किसान है । उसके पास  लंबे -चौड़े  खेत हैं  तथा  उसका नाम  देवरत्न है । देवरत्न  की एक खूबसूरत  पत्नी  और दो साल का लड़का  भी है ।इसके अलावा उसके परिवार  में  माता-पिता  भी मौजूद हैं ।

यहां  आकर  प्रेतिनी  अपने  रूप  को बदलकर एक बला की खूबसूरत लड़की का रूप  धारण करके  घूमने  लगती है  और  अपना  नाम  सुषमा ही रख लेती है । देवरत्न  सुषमा को देखकर  अनायास  ही   उसकी तरफ खींचा चला  जाता है । उसे सुषमा  से अपने  जन्मों  पुराने  संबंध का स्पष्ट  पता  तो नहीं  चल पाता  मगर  बहुत जल्दी ही  वह उसके प्रेम  में  डूब  जाता है  ।फिर  उनके  प्रेम की चर्चा  पूरे गांव  में  होने  लगती है तो देवरत्न की पत्नी और उसके  माता-पिता  को भी चिंता  होने  लगती है ।

 फिर एक समय ऐसा आता है जब देवरत्न के माता-पिता व उसकी  पत्नी  सुषमा के साथ  उसके  प्रेम  संबंधों  का विरोध  करने  पर उतर  आते हैं । उनके विरोध का सामना करने के लिए सुषमा  पुनः एक भयानक  प्रेतिनी के  रूप  में  आ जाती  है  और  देवरत्न की  पत्नी  व उसके मां-बाप को मारने पर तुल जाती है । देवरत्न  सुषमा को प्रेतिनी  के  रूप में  देखकर बहुत  डर जाता है  । वह उसे रोकने की कोशिश करता है  मगर  प्रेतिनी  उसके काबू में  नहीं आती  ।

प्रेतिनी  उसे  एक ओर फेंक कर उसकी पत्नी  को मारने के लिए  आगे  बढ़ती है  । लेकिन  तभी  देवरत्न  का बच्चा  रोते – बिलखते उसके  रास्ते  में  आ जाता  है और  फिर  उसे देख प्रेतिनी एकाएक  रूक जाती है, एक कदम भी आगे  नहीं बढ़ पाती । 

प्रेतिनी  बच्चे से 

मेरे  रास्ते से हट जा रे बच्चे  … हट जा ,मैं  तेरा  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकती  ,क्योंकि  तू तो मेरे  देवरत्न… देवभान की  निशानी है  । मैं  तो इन्हें  मारूंगी  जो मुझसे मेरे  प्यार को छीनना चाहते हैं  । जन्मों  तड़पी हूं  इस प्यार के लिए  ,पर अब नहीं  तड़पना  चाहती।

इन्हें  मारकर ही मुझे  मेरा प्यार  मिलेगा  रे…! कहकर  प्रेतिनी  फिर  बच्चे को  बचाते हुए  आगे  बढ़ने  की कोशिश करती है मगर  तभी  बाबा  प्रचंड  नाथ  अपने  चेलों  सहित  वहां आ पधारते हैं  ।उसे  देखते  ही प्रेतिनी  घबरा जाती है और  बाबा की खुशामद करने लगती है । परंतु  बाबा अपने  कमंडल  से जल लेकर तुरंत उस पर फेंक देते हैं और वह देखते ही- देखते जलकर भस्म  हो जाती है ।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

सरपंच हुआ जिंद का शिकार

यह कहानी उस समय की है । जब उज्जैन में महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा था। उज्जैन नगरी को बड़ी धूमधाम से और बहुत ही साज-सज्जा से सजाया गया। आने जाने वाले यात्रियों साधु और महात्माओं की देख-रेख के लिए पुलिस व्यवस्था तथा खाने-पीने की अन्य व्यवस्थाएं सुचारु रूप से चल रही थी। देश के कोने-कोने से हिमालय, विंध्याचल अन्य पर्वत श्रेणियों की गुफाओं मे तपस्या कर रहे महात्मा, नागा साधु और बहुत से बूढ़े बुजुर्ग श्रद्धालु उज्जैन नगरी की तरफ बड़े चले जा रहे थे।

उज्जैन महान सम्राट विक्रमादित्य की नगरी थी. जिसकी अनेक पौराणिक गाथाएँ है.महाकुंभ के बारे में भी क्या वर्णन करना महाकुंभ चार वर्ष अंतराल मे चार पवित्र स्थानों पर लगता है। जिसकी एक लम्बी गाथा है।

नासिक में इलाहाबाद में उज्जैन में हरिद्वार में इस बार कुंभ का आयोजन उज्जैन महाकाल की नगरी की शिप्रा नदी के तट पर हुआ। हिमालय से महात्माओं और साधुओं की कई टोलियां उज्जैन नगरी की शिप्रा नदी के तरफ प्रस्थान कर रही चुकी थी ।                           

महात्माओं की भेषभूषा बड़ी निराली थी. उनके जटा बहुत बड़े बड़े थे।  इतने लम्बे की धरती को छू रहे थे. उनके मुख मण्डल पर एक अनोखा तेज था.उनकी मुस्कान एक निर्बोध बालक की तरह थी।

और वह सभी महात्मा परम ज्ञानी थे। सभी महात्मा और साधु एक गांव से दूसरे गांव और एक शहर से दूसरे शहर से होते हुए उज्जैन नगरी चले जा रहे थे.जगह-जगह  कई गांव में उनका भव्य स्वागत किया गया उनके रुकने की व्यवस्था की गई इसी प्रकार एक गांव था सुल्तानपुर जो पहाड़ियों और नदियों के बीच बसा हुआ था उस गाँव मे कई पौराणिक मंदिर थे। जिनमे पार्वती शिव मंदिर, विष्णु मंदिर कथा अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी शामिल थे।  गांव के निवासी उत्तम स्वभाव के थे। वे उज्जैन आने वाले साधु महात्माओं का श्रद्धा भाव से आदर सत्कार कर रहे थे। 

सुल्तानपुर गाँव मे 

साधु महात्माओं की एक टोली सुल्तानपुर गाँव के सरपंच जी के मकान में आकर रुकी जो बड़े अच्छे स्वभाव के व्यक्ति थे । उनका नाम रामविलास था । सरपंच जी ने साधु महात्माओं का अच्छे से आदर सत्कार किया.उनके चरण पखारे उनको स्नान कराया शुद्ध स्वादिष्ट पौष्टिक भोजन कराया. सभी साधु जन रामविलास के इस व्यवहार से अति प्रसन्न हुए।  और पूरे दिन उस गाँव के मदिरों मे भगवान के दर्शन किये. तथा गाँव वालो को सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी रात्रि में साधुओं ने उसी गांव में विश्राम करने का निश्चय किया।

और रामविलास के यहां रुके । रात्रि भोजन करने के पश्चात साधुजन सो गए किन्तु, महागुरु बाहर पीपल के बृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर बैठ गए. और ईश्वर का ध्यान करने लगे तभी रामविलास उस स्थान पर आया. और हाथ जोड़कर उनके चरणों के नीचे बैठ गया. कुछ देर बाद साधु को किसी के पास बैठे होने का आभास हुआ।  तो आँखे खोली उन्होंने पाया कि रामबिलास चरणों के पास बैठा हुआ है । साधु ने रामविलास से कहा, 

बेटा यहां क्या कर रहे हो रात्रि बहुत हो गई है. अब तुम्हें आराम करना चाहिए अगर कोई समस्या हो तो मुझे बताओ तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूं.

रामविलास

नहीं साधु महात्मा आपके आशीर्वाद से, और भगवान की कृपा, से मुझे सब कुछ प्राप्त है मुझे कुछ नहीं चाहिए.

तभी साधु महात्मा ने एक हाथ आसमान की तरफ बढ़ाया और उसमें सोने का सिक्का प्रकट हो गया।  रामविलास यह चमत्कार देखकर आश्चर्यचकित हो गया।  रामविलास के मन में ऐसे करतब करने की और लोगों को दिखाने की लालसा उत्पन्न होने लगी और लालच भी उसके मन मे जागने लगा था.

साधु महात्मा 

पुत्र इसे ईश्वर का प्रसाद समझकर अपने धनधान्य वाले ग्रह में रखना, इसकी हमेशा पूजा करना, तेरे यहां पर धनधान्य की कभी कमी नहीं होगी.

रामविलास उस सिक्के को लेता है.और उसे अपने धनधान्य वाले ग्रह में लाल कपड़े मे बंद करके रख देता है. किंतु रामविलास को अब नींद नहीं आ रही थी और रात मे करवट बदलता रहता है. वह मन ही मन सोचता है. अगर उसके पास भी यह जादू की कला हो तो वह सोने के सिक्के, अशरफिया,  मोहरे प्राप्त कर सकता है और एक ही रात में धनवान बन सकता है.रामविलास के मन में अब लालच आने लगा था.

रात्रि का तीसरा पहर होगा, वह फिर साधु महात्मा के पास पहुंचा.और उनके पैर दबाने लगा.कुछ देर बाद साधु बाबा की आंख फिर से खुल गई.

साधु महात्मा 

बेटा जाओ, अब तुम सो जाओ मैं जानता हूं, कि तुम बहुत ही परोपकारी हो बहुत ही अच्छे स्वभाव के हो तुमने अपनी तरफ से हमारा खूब आदर सत्कार किया है. 

रामविलास

नहीं महात्मा जी ऐसी मत बात मत कीजिए यह तो मेरा सौभाग्य जो आपकी सेवा करने का मौका मुझे मिला मैं तो,आपकी सेवा मात्र से ही धन्य हो गया.

अगर आप आज्ञा दो तो एक बात पूछ सकता हूं.आप यह चमत्कार कैसे कर लेते हैं।  आपने हवा में हाथ उठाया और सोने का सिक्का बना दिया.

साधु महात्मा 

यह जिंद का चमत्कार है. मेरे पास एक क्या कई जिंद हैं। जो सिद्ध जिंद हैं. उन्हें कई दिनों की साधना के बाद सिद्ध किया जाता है।  और हम उनसे जो काम करने के लिए कहते हैं।  वही काम करते हैं किसी भी जिंद को सिद्ध  करना बहुत ही बड़ा और खतरनाक काम होता है। 

रामविलास

बाबा अगर मैं आपसे कुछ मांगू तो आप मुझे दोगे। 

साधु महात्मा 

हां बेटा मैं तुम्हें जरूर दूंगा।  क्योंकि मैं तुम्हारी सेवा भावना और परोपकार भावना से अति प्रसन्न हूं  बेटा मांग मैं तुझे वचन देता हूं । अपने वचन से मैं नहीं फिरूंगा जो तू मांगे वही दूंगा । 

रामविलास

साधु महात्मा मुझे भी जिंद सिद्ध करने की साधना बताइए, मैं भी जिंद सिद्ध करना चाहता हूं।  आपकी तरह ही हजारों चमत्कार करना चाहता हूं मेरी एक यही आरजू पूरी कर दीजिए । 

साधु महात्मा 

नहीं बेटा नहीं तुम जिंद के झमेले में मत पड़ो ये बहुत ही खौफनाक जिंद होते हैं । अगर इनको अच्छी तरीके से सिद्ध नहीं किया गया और इनकी पूजा पाठ में कुछ कमी रह गई तो ये उल्टा साधक को परेशान कर देते हैं कभी-कभी तो जान से हाथ भी धोने पड़ सकते हैं।  तुम और कुछ मांगो। 

किन्तु रामविलास की आँखों पर तो लालच का पर्दा पड़ गया था वो नहीं जानता था। की कोनसी मुसीबत को गले लगाने जा रहा है । 

रामविलास

नहीं महात्मा जी आपको अपना वचन पूरा नहीं करना है।  तो मत कीजिए लेकिन मुझे और कुछ नहीं चाहिए  मेरी जिंद सिद्ध करने की इच्छा है आप उसके बारे में मुझे बताइए तो आपकी अति कृपा होगी। 

अंततः हार मानकर साधु बाबा ने मंत्र तंत्र तथा जिंद सिद्ध करने की कला बता दी। और सुबह होते ही उनकी टोली उज्जैन की तरफ प्रस्थान कर गई। 

श्मशान घाट 

दूसरी दिन रामविलास सिंदूर अगरबत्ती एक लोटा जल कंकाल की खोपड़ी तथा कुछ हवन सामग्री लेकर श्मशान घाट की तरफ चल दिया श्मशान घाट में पहुंचने के पश्चात अपना आसन जमाया पवन पूजन किया, और जिंद सिद्ध करने वाला मंत्र का जाप करने लगा तभी अचानक हवाएं चलने लगी चारों तरफ धुआँ छा गया।  बहुत देर तक जिंद सिद्ध करने वाले मंत्र का जाप करने के पश्चात उसने साधु महात्मा जी के बताए अनुसार दाएं हाथ की पहली उंगली के बजाए बाएं हाथ के अंगूठे का रक्त हवन वेदी पर चढ़ा दिया फिर क्या था । जो जिंद जो बिल्कुल पसंद नहीं था और जिंद बड़े ही विकराल रूप मे प्रकट हो गया।  बड़े बड़े दाँत हरा शरीर मुङो की माला हाँथ मे खड़ग यह सब देख रामविलास डर के मारे थर थर कांपने लगा । लेकिन जिंद गुस्से मे लाल पीला हो रहा था कियोकि जिस ऊँगली का रक्त रामविलास ने इस जिंद को चढ़ाया था । उस ऊँगली का रक्त जिंदो के शहंशाह क़यामत जिंद को ही चढ़ाया जाता था । 

जिंद गुस्से मे 

तूने ये क्या किया दुष्ट पापी मेरे सरदार का भोजन मुझे भेट किया अब तू नहीं बचेगा । और जिंद रामविलास पर झपट्टा मरता है । रामविलास अपनी सामग्री छोड़ के धोती समेट पूरे जोर से उठते है।  किन्तु जिंद उन्हें पकड़ लेता है।  और उठा के पटकता है।  किन्तु रामविलास भी हट्टा कट्टा था । वह जिंद के हाँथो छूट कर भागता है जिंद पीछे पीछे और रामविलास आगे आगे रामविलास को कुछ नहीं सूझ रहा था। 

जहाँ जगह मिलती वहीँ भागने लगता चाहे कीचड हो या कटीली झाड़ियाँ रामविलास के पैर लहूलुहान हो गए थे।  किन्तु जिंद ने उसका पीछा नहीं छोड़ा,  और फिर धर दबोचा और लगा उठा के पटकने अब तो रामविलास के प्राण पखेरू उड़ने बाले थे पूरी ताकत लगाकर रामविलास फिर जिंद के चुंगल से छूटा, और लगा भागने जिंद भी पीछे पीछे और रामविलास जा के दुर्गा माँ के मंदिर मे घुस गया, जैसे ही रात के अँधेरे मे जिंद ने माँ दुर्गा के मदिर मे पैर रखा एक भयकर बिजली चमकी और जिंद पर जा गिरी और और जिंद उसी वक्त जलकर राख हो गया यह चमत्कार देख रामविलास के मुँह से जय माँ दुर्गा जय माँ दुर्गा निकल पड़ा । और डरा सहमा अपने घर पहुंचा,और कभी भी लालच ना करने की मन ही मन शपथ ली।  

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लेखक: M. K. Arya

एक भटकती आत्मा

 हर्षपुर  गांव में एक दूधवाला रहता था . दूधवाले का नाम  धनिया  था । धनिया  बहुत  ही मेहनती  और  ईमानदार  आदमी था । वह सुबह  बहुत  जल्दी  उठकर  गांव  भर से गाय -भैंसों  का दूध इकट्ठा  करके  ड्रम भर लेता था और फिर  उन ड्रम  को अपनी  बाइक  पर लादकर  शहर  जाता  और वहां  दूध को बेचकर  दोपहर  होते -होते अपने गांव  में  वापस  लौट आता था ।

एक दिन  धनिया  शहर में  दूध बेचकर अपने गांव की ओर लौट  रहा  था । उस दिन  बहुत  गरमी  थी  इसलिए  धनिया  कुछ  परेशान  हो गया  और  उसने सोचा  कि  क्यों  न थोड़ी  देर के लिए  कहीं किसी  पेड़  की छाया में  थोड़ा  आराम  कर लूं  और फिर  घर जाऊं  । यही  सोचकर  धनिया  रास्ते  में  एक पुराने  पीपल के पेड़  के  पास  रुक गया  ।उसने अपनी बाइक   को सड़क के किनारे  खड़ा  किया  और फिर  पेड़  के  नीचे  आराम  करने  के लिए  बैठ  गया  । सचमुच  पेड़  के नीचे  काफ़ी  शीतलता  का अनुभव  हुआ । पेड़  काफ़ी  घना था और  काफी दूर  तक फैला  हुआ  था । इसलिए  धूप  उसके नीचे  पहुंच ही नहीं  पाती थी । 

पेड़  के पीछे  जंगल  में  एक खंडहर  था । धनिया  को अचानक उधर से किसी  औरत के रोने  की आवाज  सुनाई  दी  । औरत थम -थमकर रो रही  थी  । 

धनिया ( अपने मन में)
क्यों  न खंडहर की तरफ़  जाकर देखूं  और कोई  औरत किसी  परेशानी में  हो तो उसकी मदद  कर दूं ।
हो सकता है  मेरी मदद से  किसी का भला  हो जाए ।यही  सोचकर धनिया  उठकर खंडहर की ओर चल दिया  ।

उसने खंडहर के पास  जाकर देखा कि वहां  सचमुच  एक औरत  बैठी थी और रुक -रुककर रो रही  थी  । उस औरत की पीठ  धनिया  की तरफ थी ,इसलिए  धनिया को उसका चेहरा या शक्ल-सूरत नहीं  दिखाई  दी ।  

धनिया उस औरत से 
तुम  कौन  हो  और यहां  खंडहर  में  अकेले बैठकर  क्यों  रो रही  हो ?  अगर  तुम्हें  मेरी  मदद की जरूरत  हो तो बता  दो , मैं  तुम्हारी  मदद  अवश्य  करूंगा  ।धनिया  की  बात  सुनकर  वह औरत  धीरे-धीरे  खड़ी  हुई  और जैसे  धनिया  की तरफ मुड़ी  तो धनिया को पता चला  कि  वह कोई  औरत नहीं  बल्कि  एक चुड़ैल  थी । लाल  -लाल  अंगारों  -सी जलती  आंखें  और डरावना  चेहरा  । उसे देखते ही धनिया  कांपने लगा ।

चुड़ैल  धनिया से 
क्या  मदद  करोगे तुम  मेरी  ? नफ़रत  करती हूं  मैं मर्द जात   से ,मैं  तुम्हें  भी मारूंगी और उनको भी मारूंगी । मैं  सब मर्दों  को मार  दूंगी  ।यह कहते  -कहते चुड़ैल  धनिया  की तरफ़  बढ़ी  और धनिया  ने भागने की कोशिश की  । मगर  यह क्या  धनिया  अपने पैर उठाना तो दूर  हिला तक नहीं  पाया । उसके पैर  जैसे  जमीन में  गड़ गए । अब तो उसे  लगा कि  शायद  चुड़ैल के हाथों  मरना  पक्का है  । चुड़ैल के निकट  आते ही उसने अपनी  आंखें  बंद करली ।पर जैसे  ही चुड़ैल  ने निकट आकर उस पर हमला  करना  चाहा । एकाएक  उसकी नज़र  धनिया के गले  में  पड़े  काली माता  के लाॅकेट  पर पड़ी  और लाॅकेट से अचानक  एक ऐसा  अजीब  प्रकाश  फूटा कि चुड़ैल  पीछे  हट गई और  साथ  धनिया  के जमीन  पर  जकड़े  पैर भी खुल गए । अब तो  धनिया  ने आव देखा न ताव तुरंत  अपनी  बाइक की तरफ़  दौड़ा  । बाइक के पास  आकर  झट से उसको स्टार्ट कर  उस पर बैठा  और अपने  गांव की चल पड़ा ।मगर  चुड़ैल  ने उसका पीछा  नहीं  छोड़ा  । धनिया की  पीठ  फिरते  ही वह भी बाइक पर सवार  हो गयी जिसका धनिया को एहसास तक नहीं  हो पाया ।

गांव का पुराना मंदिर 
धनिया अपनी  बाइक को  जितना  जल्दी हो सका अपने गांव की  तरफ़ ले आया  । जैसे ही  वह गांव के  पुराने  मंदिर  के पास  से गुजरा  तो चुड़ैल उसकी बाइक से कूद  कर वहां  तालाब के  किनारे  खड़े  बरगद  के पेड़ में  घुस गयी । चुड़ैल  बाइक पर कब बैठी और कब बाइक से उतरकर बरगद के  पेड़  में  घुसी धनिया को पता  भी नहीं  चला  । घर पहुंच कर धनिया ने  इस पूरी  घटना के  बारे  में अपनी पत्नी को बताया  और कई दिनों तक  डरा -डरा सा रहा ।

गांवभर में  चुड़ैल का ख़ौफ 
कुछ  ही दिनों में  सारे गांव  में  चुड़ैल की चर्चा  होने लगी । बच्चे और महिलाओं  में  ही नहीं  बल्कि  बड़ों  में  चुड़ैल का खौफ  समा गया  । जिसने  भी चुड़ैल को  देखा वही  घर से बाहर  जाने  से डरने लगा  ।  रात  के समय  कोई भी  पुराने मंदिर की तरफ नहीं  जाता था । रात  को लोग गांव की गलियों  तक में  निकलने से घबराते थे क्योंकि  उन्होंने  चुड़ैल  को गांव  में  घूमते हुए  भी देखा  था । चुड़ैल  सबको नहीं  पर किसी  -किसी  को दिख ही जाती थी ।

धनिया की पत्नी धनिया से –
मुझे  तो लगता है कि  यह चुड़ैल कोई  भटकती  आत्मा  है और  किसी  को  ढूंढती फिर  रही है  ।अगर  ऐसा  नहीं  तो खंडहर  से यहां  क्यों  आती  ?

धनिया अपनी पत्नी से-
शायद  ,तुम  सही कह रही हो ।  उसे  मर्दों  से नफ़रत  है । उस दिन  भी वह यही कह रही थी कि  उन्हें  भी मारूंगी और उनके जैसे  अन्य  मर्दों  को भी मार  डालूंगी । पर वह किस-किस को मारेगी और क्यों  मारेगी कहा  नहीं  जा सकता  ? 

धनिया की पत्नी गांव की औरतों से-
तुम  सब अपने घर के मर्दों को  देर -सबेर घर से बाहर  मत निकलने दिया करो । वो जो चुड़ैल  है न ,वह भटकती  आत्मा  है।  वह किसी  से बदला  लेना  चाहती है । हमारे  वो कह रहे थे कि  वह मर्द  जात की दुश्मन है । सबसे पहले  उस भटकती आत्मा  से वही  तो मिले  थे  । तब वह जंगल के उस खंडहर  में  रहती थी ।

जब धनिया की  पत्नी गांव की  औरतों से  यह बात  बता  रही थी तो वहां  से गांव  गोरा नाम का एक चोर  गुजर रहा था  । गोरा  उसकी बात  सुनकर  वहां  रुक गया ।

गोरा  धनिया की पत्नी से-
क्यों  री , तुम्हारे  हिसाब से चुड़ैल  किसे  ढूंढ  रही  होगी  ?  गांव में  उस चुड़ैल  का दुश्मन  कौन  होगा  ?

धनिया की पत्नी गोरा से-
मुझे  क्या  पता  किसे ढूंढ रही है  वह ? जिसने उसका बुरा  किया  होगा  उसे ही ढूंढ  रही  होगी  ?

गोरा अपने  चोर दोस्त के घर में-
गोरा और घोरा  दोनों  दोस्त  हैं  और बहुत  पुराने चोर  हैं  । रुपया -पैसा  ,गहने  -जेवर आदि  उनकी सबसे बड़ी  कमजोरी रही हैं ।इनके  लिए  न जाने  उन दोनों  ने कितने ही लोगों को  मारा है और  कभी  किसी को  भनक  तक नहीं  लगने दी । उनके दिल  में  डर और दया  नाम की कोई  चीज  नहीं है  । पर जब से गांव  में चुड़ैल के चर्चा  हैं,ये दोनों  चोर डरे हुए  हैं  । सोचते हैं कि  कहीं  चुड़ैल उनके ही किसी  पाप का फल तो नहीं  और उनसे ही बदला  तो नहीं  लेना चाहती ।

पर उनका यह डर सही निकला  । एक आधी रात को अचानक से उनके घर का दरवाज़ा  खुला  और  चुड़ैल  अंदर  जा घुसी । गोरा  और  घोरा  चुड़ैल  की भयानक  सूरत देखकर  घबरा  गए और  अपनी  जान  बचाने का उपाय  ढूंढने लगे ।

गोरा व घोरा चुड़ैल से-
तुम कौन हो और  हमें  क्यों मारना चाहती हो ?  भला  हमने तुम्हारा  क्या बिगाड़ा है ? 

चुड़ैल क्रोध में  दनदनाती हुई-
मैं  कौन  हूं  यह जानना  चाहते हो तो  सुनो मैं  वही जमुना  हूं  जिसको तुम  दोनों ने  केवल  सोने के कुछ  जेवर  लूटने के लिए  मौत के  घाट उतार दिया था और फिर  खंडहर के विरान कोने में  दफ़न कर  दिया  था ।तुम  वही  हो जिन्होंने  मुझे  एक अच्छी  -भली लड़की  से चुड़ैल  बना दिया । आज मैं  अपना  बदला  लेकर रहूंगी  । मैं  तुम्हें  मारूंगी ।

चुड़ैल की बात  सुनकर  दोनों  चोरों को  तुरंत  याद  आ  गया कि सोने के कुछ  जेवर  लूटने के लिए उन्होंने  किस  तरह से जमुना को मार  डाला था ।उसने  उनसे  बार -बार विनती की थी कि  वे उस पर दया करें और उसको जिंदा  छोड़ दें  । पर उन निर्दय  चोरों  ने उस बेचारी  पर जरा  भी दया  नहीं  दिखाई थी ।लालच में  अंधे होकर  उसे मार डाला था  ।

जब उन्होंने  इनसान होते हुए भी  जमुना पर रहम नहीं  खाया था तो भला  जमुना  एक चुड़ैल  या भटकती क्रुद्ध  आत्मा होकर  उन पर रहम कैसे  खाती । उसने दोनों  पापियों  को  बारी -बारी से तड़पा -तड़पा  कर मार डाला  । घोरा  ने घर से बाहर  भाग कर अपनी जान  बचाने की कोशिश की  मगर  चुड़ैल  ने उसे भी गली में  हवा में  घुमा -घुमाकर जमीन पर  पटका और मार डाला  ।

तब तक वहां  धनिया  और कुछ  गांव  वाले  भी आ पहुंचे थे । दोनों  चोरों की हालत देखकर  सब समझ  थे कि चुड़ैल  ने  उनको क्यों  मारा और उन्होंने क्या  किया  होगा  ।  क्रोध  में  पागल चुड़ैल  धनिया की तरफ बढ़ी  तो फिर  से उसका सामना धनिया के गले में  लटके काली  माता के लाॅकेट  से हो गया । फिर  उस लाॅकेट  से एक प्रकाश  पुंज  फूटा ।मगर  अब की बार  यह ऐसा विचित्र  प्रकाश  था कि इसने क्षणभर में  चुड़ैल को भस्म कर डाला  और उसे इस संसार  से मुक्ति  दे दी ।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

चुड़ैल का मछली प्यार

एक समय की बात है.एक रामपुर नाम का छोटा सा गाँव पृथ्वी के आँचल मे उत्तर पूर्व कि ओर बसा हुआ था.गाँव के उत्तर मे विशाल जंगल, पूर्व मे नदी, ओर पश्चिम मे सुमेरु नाम का पर्वत था. बसंत ऋतु मे मोर पीहू-पीहू और कोयल कू-कू कि आवाज करके उस गाँव के सौन्दर्य मे चार चाँद लगा देते थे.हिडोले मारते हुये हिरन खरगोश गाँव बालों को अतिप्रिय लगते थे.गाँव मे एक शिव जी का मंदिर था.जिसकी पूजा सभी गाँव बाले बड़े ही लगाव और श्रृद्धा से करते थे.उस गाँव पर भोलेनाथ कि असीम कृपा थी उसी गाँव मे रामकरण नाम के हेडमास्टर रहा करते थे.उनके परिवार मे पत्नी और दो बच्चे लड़का और लड़की थे.उनकी पत्नी बहुत ही निर्भीक और धार्मिक स्वभाव की महिला थी.

गाँव बहुत छोटा था.परन्तु उस गाँव मे जरूरत की चीजें तो मिल जाती थी.किन्तु गाँव के लोग कभी-कभी शहर सब्जी खरीदने और अन्य जरूरत की चीजें लाने जाते रहते थे.गाँव से शहर की दूरी दस कोस के आसपास रही होगी.हेडमास्टर जी भी अक्सर रविवार को शहर ही जाते थे.उनके पास एक साइकिल थी.जो कुछ चार पांच साल पुरानी होगी मानो की वही उनकी हमसफ़र थी उसी को लेकर हेडमास्टर शहर और हर जगह जाते थे.गाँव के अन्य लोग बैलगाडी या घोड़ागाड़ी का भी उपयोग एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए करते थे.

एक रविवार को हेडमास्टर जी शहर के लिए गए.उन्हें कुछ समान स्कूल का लाना था.और कुछ घर का इसलिए समान खरीदते खरीदते उन्हें वहीं पर शाम हो गयी.उनके बेटे ने शाम को मछली लाने को कहा था.तो हेडमास्टर जी मछली लेने शहर से एक कोस आगे मछली बाजार गए.और मछली लेते लेते रात के आठ बज गए.

काफ़ी अंधेरा हो गया था. अब हेडमास्टर जी ने साइकिल उठायी.और पूरी ताकत से चलाने लगे.वो शहर से दो तीन कोस ही निकल पाए होंगे तभी दुर्भाग्य से उनकी साइकिल पंचर हो गयी.अब वो पैदल ही गाँव की तरफ चल दिए घर जल्दी पहुँचने के लिए उन्होंने कच्चा जंगली रास्ता चुना जिससे गाँव कि दूरी आधी रह जाती थी. किन्तु यह रास्ता जंगली जानवरो भूत प्रेत और आत्माओं से भरा था लेकिन हेडमास्टर जैसे पड़े लिखें व्यक्ति कहाँ इन भूत प्रेत और आत्माओं पर विश्वास करने लगे.

वो तो जंगल के रास्ते गाँव की तरफ बड़े चले जा रहे तभी सामने से उन्हें एक साधु महाराज आते दिखाई दिए साधु महाराज के पास आते ही हेडमास्टर जी ने साधु महाराज के चरण स्पर्श किये साधु महाराज ने हेडमास्टर जी को आशीर्वाद दिया.

और कहा बेटा कौन हो तुम, और कहाँ जा रहे हो, क्या तुम्हे ज्ञात नहीं कि यह जंगल भूत प्रेत और दुष्ट आत्माओं से भरा पड़ा है. रात्रि मे जंगल मे चोर लुटेरे भी छुपे रहते है. तुम वापस लौट जाओ, दूसरे रास्ते से जाओ रात मे इस जंगल से कोई नहीं जाता है और जो जाता है. उसके साथ कुछ ना कुछ अनहोनी अवश्य होती है.

हेडमास्टर जी
साधु महाराज मेरा नाम रामकरण है और मे रामपुर गाँव मे रहता हुँ मेरी साइकिल ख़राब होने के कारण और जल्दी घर पहुँचने के लिए इस जंगली रास्ते से जा रहा हुँ.मेरी बीबी और बच्चों को मेरी चिंता हो रही होगी.और रही बात भूत प्रेत कि, तो मैं एक अध्यापक हुँ.इसलिए भूत प्रेत और आत्माओं मे विश्वास नहीं करता. ये सब मन का वहम मात्र है और कुछ नहीं

साधु महाराज
बेटा मेरा जो कर्म था.मैंने किया अब आगे तुम्हारी मर्जी और राम का जाप करते हुये निकल जाते है है

हेडमास्टर जी जंगल के रास्ते फिर गाँव कि तरफ बड़ गए. लेकिन अब उनके मन मे भय जागने लगा था और किसी अनचाही घटना कि आशंका होने लगी थी.अचानक उन्हें एक झाड़ी हिलती हुई दिखाई दी.और हेडमास्टर जी के पैर थम गए.और मन ही मन भगवान शिव को याद करने लगे.और सोचने लगे कोई चोर तो नहीं छुपा है. तभी झाड़ी मे से खरगोश निकल कर भागता है. तब हेडमास्टर जी को थोड़ा सुकून मिलता है.और आगे बढ़ने लग जाते है किन्तु फिर भी जंगली जानबरों कि आवाज सुन कर वो डर के मारे एक दम कांप से जाते थे.और सोचने लगते थे.

कि उन्होंने साधु कि बात क्यों नहीं मानी अगर किसी भूत प्रेत से सामना हो गया, तो क्या होगा इसी सोच मे हेडमास्टर जी दबे पॉवं चले जा रहे और भगवान शिव का नाम हर हर महादेव मन ही मन मे बोल रहे थे.जैसे ही वे बीच जंगल मे पहुंचे की उन्हें एक औरत की रोने की आवाज सुनाई दी.हेडमास्टर जी रुक गए.और अँधेरे मे यहाँ वहाँ देखने लगे की कौन रो रहा है.थोड़ा गौर से देखने पर उन्हें पीपल के पेड़ के नीचे एक औरत लाल साड़ी मे लम्बा घूँघट डाले हुये बैठी हुई दिखाई दी.

वह अपने मुख पर इतना लम्बा घुंघट डाले हुई थी जिससे उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था.हेडमास्टर जी ने सोचा शायद पास के गाँव के किसी मजदूर या किसान की बीबी होगी जो घर मे लड़के भाग आयी है.तभी उन्हें साधु कि बात याद आ गयी और उनका डर के मारे बुरा हाल हो गया.वह औरत हेडमास्टर जी को देख और जोर जोर से रोने लगी उसकी सिसकारियां पूरे जंगल मे गूंज रही थी.

हेडमास्टर जी हिम्मत करके आगे बड़े और औरत से बोले.
अरे बेटा तुम इतनी रात मे जंगल मे क्या कर रही हो, जाओ अपने घर जाओ, इस तरह से घर से नहीं भागते, और इस जंगल मे कई हिंसक पशु रहते है.जो तुम्हे कुछ भी नुकसान पहुंचा सकते है.जाओ अपने घर चलो उठो

लेकिन वह औरत और जोर जोर से सिकरियाँ लेकर रोने लगी और उसकी सी सी हुँ हुँ कि आबाज जंगल मे गूंजने लगी.हेडमास्टर जी भी भय से कांपने लगे

हेडमास्टर जी – औरत से
तुम्हे अभी घर नहीं जाना मत जाओ.जब तुम्हारा गुस्सा ठंडा हो जाये तब अपने घर चली जाना. लेकिन मे किसी स्त्री को असहाय अवस्था मे इस जंगल मे नहीं छोड़ सकता.तुम मेरे साथ मेरे घर चलो. और रोना बन्द करो.

इतना सुनते ही औरत ने रोना बन्द कर दिया.और उठकर चलने को खड़ी हो गयी किन्तु उसकी नजर तो हेडमास्टर जी के थैले पर थी.जिसमे मछली थी.हेडमास्टर जी को थोड़ा चैन मे जी आया और मन मे ही कहने लगे कि चलो एक से भले दो.

अब डरने कि कोई बात नहीं लेकिन हेडमास्टर जी को क्या पता था.कि वे खुद ही एक चुड़ैल को अपने घर चलने का न्योता दे बैठे थे.हेडमास्टर जी आगे-आगे और औरत पीछे-पीछे घूँघट डाले हुये चले जा रही थी. लेकिन उसकी नजर मछली के थैले पर थी कि कब थैला उसके हाँथ लगे.

इधर रात के दस बज चुके थे और घर के लोग बड़ी चिंता मे उनकी राह देख रहे थे.हेडमास्टर जी के घर पहुँचते ही सभी लोगो ने उनसे सबाल जबाब शुरू कर दिया.तब हेडमास्टर जी ने सारी घटना सुनाई.और उस औरत के बारे मे बताया.और कहा आज ये यहीं रहेगी खाना पकाएगी और कल सुबह अपने घर चली जाएगी.

हेडमास्टर जी औरत से
चलो,ये थैला पकड़ो और रसोई मे जाकर जल्दी से खाना पका दो, और अपनी पत्नी को भी साथ जाने को कहते है.अब भी वह चड़ैल लम्बे घूँघट मे ही थी

किन्तु हेडमास्टर कि पत्नी को ना जाने क्यों किसी अनहोनी कि आशंका होने लगी.

वे कुछ और ही सोच रही थी. की ये कोई चोर तो नहीं रात मे चोरी करके भाग ना जाये.और कहीं कोई नुकसान ना हो जाये.रह-रह कर उन्हें अपने बच्चों, और पति कि चिंता सताने लगी.और उस चुड़ैल औरत के आसपास ही घूमने फिरने लगी.फिर रसोई मे गयी और

कहने लगी.जल्दी मछली निकाल और जल्दी से बना दे रोटियाँ तो मे बना चुकी हुँ.और उसका मुँह देखने की कोशिश करने लगी. लेकिन उस औरत ने घूँघट और नीचे कर लिया. तब हेडमास्टर की पत्नी सोचा शायद नए लोगो के सामने अभी डर रही है.और अपने कमरे मे चली जाती है.

कुछ देर बाद हेडमास्टर की पत्नी फिर रसोई मे जाती है.और देखती है कि अभी वह मछली ही निकाल रही है और थोड़ा गुस्से मे बोलती है.अभी तुम मछली ही निकाल रही हो.सब्जी क्या सुबह तक बनाओगी.लेकिन वह चुड़ैल तो घूंघट डाले हुए मछलियों को ही निहारे जा रही थी. तब फिर हेडमास्टर कि पत्नी बोली कि मे अंगीठी मे आग सुलगा देती हुँ.जब तक तुम मछली काट के धोलो और जल्दी खाना तैयार करो इतना कहके अंगीठी मे आग सुलगा के अपने कमरे के तरफ चली जाती है.

किन्तु थोड़ी देर बाद वह फिर वैचैन हो जाती है और रसोई मे जाती है. तभी रसोई देखकर तो उनके होश उड़ गए रसोई मे खून ही खून बिखरा पड़ा है.और वह औरत दोनों हांथो से कच्ची मछलियाँ खाने मे व्यस्त है.उसके सिर पर घूँघट भी नहीं है.उसका भयानक चेहरा देखकर वो दंग रह गयी.इतना भयानक चेहरा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था.अब ना वो अंदर जा पा रही थी.ना ही बाहर उन्होंने सोचा अगर मे चिल्लाऊंगी, तो बाकि घर बाले हड़बड़ाकर आएंगे तो कुछ नुक्सान ना हो जाये मुझे ही सोच समझ कर काम लेना होगा.और इस चुड़ैल से अपने परिवार को बचाना होगा.

तभी हेडमास्टर की पत्नी रसोई मे दबे पाँव घुस गयीं.और एक परात मे अंगीठी से गर्म कोयला निकाला और उस चुड़ैल के ऊपर फेक दिया.अब चुड़ैल आग की जलन के मारे जोर-जोर से चिल्लाने लगी.और हेडमास्टर की पत्नी को पकड़ने की कोशिश करने लगी.

तभी यह सब शोर सुनकर घर के बाकि सभी लोग आ पहुंचे.और उस औरत का भयानक चेहरा देख दंग रह गए सभी लोगो को चारों तरफ देख वह चुड़ैल डर गयीं.और बाहर निकल कर जंगल की तरफ भाग गयीं सभी लोग अचंभित होकर खड़े रह गए.

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लेखक: M. K. Arya

चुड़ैल का साया

बहुत समय पहले की बात है.एक गांव था, रामनगर. जो पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा हुआ था. रामनगर में अधिकतर गरीब किसान और मजदूर ही रहा करते थे. क्योंकि यह गाँव शहर से बहुत दूर था. गाँव के लोग शांतिप्रिय और बहुत ही अच्छे स्वभाव के थे. मजदूर मजदूरी की तलाश में शहर को जाते थे. और गांव की औरतें गाय भैंसों का गोबर, कंडा, और लकड़ियाँ लाने के लिए जंगलों में जाया करती थी. उसी गांव में एक मजदूर रहा करता था. जिसका नाम रघु था. वह अपनी पत्नी कुसमा के साथ बहुत खुश था. उसकी पत्नी ईमानदार, और संस्कारी थी. वे दोनों अपने वैवाहिक जीवन में बहुत ही आनंद से रह रहे थे .किंतु उन्हें एक ही दुख था.और वह दुख था, संतान का उनकी शादी को 15 वर्ष बीत चुके थे लेकिन उन्हें अभी भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी. एक दिन मजदूर की पत्नी जंगल में लकड़ियां लेने गयी.

मजदूर की पत्नी (मन में):

आज तो बहुत गर्मी है.और मैं पानी की केतली भी घर पर भूल आई.अब तो बहुत प्यास सताने लगी है. चलो थोड़ा आगे जंगल में चल कर देखते हैं.शायद कुछ पानी मिल जाये

मजदूर की पत्नी जंगल मे और आगे निकल जाती है.कुछ दूरी पर उसे एक कुआं दिखाई देता है.जैसे ही वह कुआं के पास पहुंचती है.एकदम अंधेरा सा छाने लगता है.हवाएं चलने लगती है पक्षी क्रंदन करने लगते हैं. जानवर आवाजें करने लगते हैं.और तभी कुएं के पास एक दो सर वाली चुड़ैल प्रकट हो जाती है. मजदूर की पत्नी यह नजारा देख थरथर कांपने लगती है.

चुड़ैल-मजदूर की पत्नी से:

आओ आओ कुसमा.तुम्हारी और मेरी राशि एक ही है और मैं तुम्हारा दुख दर्द भी समझती हूं.तुम्हारा सबसे बड़ा दुख संतान का दुख है.जो तुम्हें दिन प्रतिदिन बहुत ही सता रहा है.लेकिन मजदूर की पत्नी कुछ समझ नहीं पा रही थी. उसकी आवाज ही चली गई थी वह कुछ भी बोल नहीं पा रही थी.लेकिन दुख तो दुख होता है और वह भी संतान का दुख ऐसी औरत पुत्र प्राप्ति के लिए कुछ भी कर सकती है.

किसान की पत्नी:

तुम कौन हो.और तुम्हें कैसे पता कि मुझे संतान का दुख है.मैं बहुत ही अभागन हूं. मुझे संतान की प्राप्ति नहीं हुई.मैंने ओझा, पंडित, महात्माओं सबको दिखा लिया है दान दिया, पूजा पाठ करायी, फिर भी मुझे संतान की प्राप्ति नहीं हुई .

चुड़ैल-मजदूर कि पत्नी से:

मै इस कुए कि चुड़ैल हुँ.और मेरा नाम भी कुसमा है.अगर मैं जैसा कहूंगी, तुम वैसा करोगे, तो तुम्हें संतान की प्राप्ति अवश्य हो जाएगी.

किसान की पत्नी:

ठीक है, तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूंगी, बस मुझे संतान की प्राप्ति हो जाए.

चुड़ैल-मजदूर कि पत्नी से:

तुम्हें परसों अमावस्या की रात को एक 5 साल तक के बच्चे की बलि इस कुएं के पास आ कर देनी है.और उसका रक्त अपने बालों से लगाना है.और कहना है, लो प्यासी आत्माओ इस बलि को स्वीकार करो, और मुझे संतान की प्राप्ति करा दो, इसके बाद लाल साड़ी, बिंदी, लाल चूड़ियाँ, यहाँ कुए पर रख देना.

किसान की पत्नी हां कह देती है.और घर की तरफ चल देती है.परसों अमावस्या की रात थी.उसने पड़ोस के ही एक बच्चे को रात में सोते हुए उठा लिया .और कुए के पास ले जाकर खंजर से उसकी बलि दे दी.फिर उसके रक्त को अपने बालों में लगाकर ऊँची आवाज में बोलती है.इस कुए कि प्यासी आत्माओ, मेरी तरफ से इस बलि को स्वीकार करो और मुझे संतान की प्राप्ति करा दो.फिर लाल साड़ी, बिंदी और चूड़ियाँ कुएं पर रखी और अपने घर की तरफ चल दी.

दूसरे दिन पता चलता है.कि पड़ोस के रामनाथ का बच्चा घर पर नहीं है.उसको हर जगह खोजा गया.पर कहीं भी उसका पता नहीं चला.कुछ देर बाद किसी चरवाहे ने खबर दी कि किसी बच्चे का शरीर खून से लथपथ जंगल मे कुएं के पास डला हुआ है.थोड़ी देर में ही गांव में हाहाकार मच गया है. बच्चे के माता-पिता रोते बिलखते हुए उस स्थान पर पहुंचे कोई कह रहा था.यह किसी जंगली जानवर का काम है.कोई कह रहा था यह किसी मनुष्य या आत्मा का काम है.रामनाथ और उसकी पत्नी का रो रोकर बुरा हाल था.

लेकिन मजदूर की पत्नी अपने घर पर पकवान बना रही थी.और प्रसन्न मुद्रा में हंस रही थी.कुछ देर बाद मजदूर घर में प्रवेश करता है.और देखता है कि उसकी पत्नी तो आज बड़ी खुश है.

मजदूर-पत्नी से:

तुम आज इतनी खुश क्यों हो, तुम्हे पता है, कि नहीं रामनाथ के बच्चे का कत्ल कर दिया गया.पूरे गाँव मे मातम है.और तुम पकवान बना रही हो.

किसान की पत्नी:

मुझे किसी से क्या लेना देना खैर ये सब छोडो, और तुम भी खुश हो जाओ, क्योंकि अब तुम्हे पुत्र की प्राप्ति होने वाली है.हमारे घर में भी किलकारियां गूजेंगी हम भी प्रसन्न होंगे.

मजदूर को यह बात रास नहीं आयी.और सोचने लगा पड़ोस का बच्चा मर गया.और ये इतनी खुश क्यों है तभी वह पत्नी के कमरे मे गया.और देखता है. एक खंजर खून में लथपथ रखा है.मजदूर को समझते देर नहीं लगी कि इस पापिन ने उस बच्चे की हत्या की है.

अब गांव में आए दिन ही ऐसी हरकतें होने लगी.किसी का बछड़ा मर जाता है तो किसी की गाय मर जाती है गांव वाले यह सब देखकर परेशान होने लगे और कुछ लोग तो गांव छोड़कर भी जाने लगे.

एक दिन मजदूर रात में बाहर सो रहा था.तभी उसे एक बछड़े की की आवाज सुनाई दी. मजदूर उठकर देखने के लिए गया.और देखा है, कि उसकी पत्नी हाथ में खंजर लिए बछड़े को जंगल कि तरफ घसीट कर ले जा रही है मजदूर भी उसके पीछे पीछे चल दिया.उसकी पत्नी जंगल मे कुएं के पास पहुँचती है.और खंजर से बछड़े पर वार करती है और कहती है. ओ प्यासी आत्माओं इस बलि को स्वीकार करो और बछड़े का खून अपने बालों मे लगाती.यह सब नजारा देख मजदूर के होश उड़ गए

मजदूर मन मे:

मेरी पत्नी अब कुसमा नहीं रही अब इस पर चुड़ैल कोई बुरी आत्मा सवार है.इससे जल्दी छुटकारा पाना होगा अन्यथा पूरे गांव का सर्वनाश हो जाएगा.

मजदूर दूसरे दिन गाँव की सभा बुलाता है.और सारी घटना के बारे में गांव के सरपंच और सभी लोगों को बता देता है.सभी लोग यह सब सुनकर बड़े ही चिंतित, और हैरान हो जाते है.

गांव का सरपंच:

यह तो बड़ी भयानक स्थिति है.अगर इस स्थिति से छुटकारा नहीं पाया गया तो पूरा गाँव श्मशान बन जाएगा.

सभी गाँव बाले हाथ जोड़कर चिल्लाते हैं हे भगवान हमारी मदद करो, हमारी मदद करो, हमारे गांव की रक्षा करो, हमारे पशु पक्षियों कि रक्षा करो.

तभी सामने से एक महात्मा आते हुए दिखाई देते हैं.सभी महात्मा के चरणों में जाकर गिर जाते हैं और कहते हैं प्रभु हमें बचा लो हमें बचा लो.

गांव का सरपंच महात्मा को सारी घटना के बारे में बताता है.और हाँथ जोड़कर निवेदन करता है.कि हमें इस मुसीबत से बचा लो.

महात्मा:

यह तो बड़ी ही भयंकर स्थिति है.और इससे छुटकारा पाना होगा वरना गाँव कि और औरतो पर इसका प्रभाव पड़ सकता है.तीन दिन बाद अमावस्या कि रात है.मै यहाँ घर के बाहर हवन करूँगा.और गाँव के सभी लोग यहीं मेरे पास बैठना ताकि वह किसी और को हानि ना पहुंचा पाए.जब वह घर से निकलेगी तो उसे पकड़ के हवन कुंड के पास लाने का काम रघु का होगा.

सभी लोग हाँ बोल देते है.और वह काली अमावस्या कि रात आ जाती है.सभी तैयारियाँ पहले से ही हो जाती है. रघु अपनी पत्नी को हवन के पास लाता है.और कुछ ही देर मे उसके ऊपर चड़ैल सवार हो.जाती है

मजदूर कि पत्नी:

हा हा हा और कराहते हुए कहती है.सब मरेंगे,किसी को नहीं छोडूंगी, सबको जला दूंगी, और चिल्लाती है.

अपने बाल बिखेरते और चिल्लाते हुए जंगल की तरफ भागने की कोशिश करती है.यह सब देख गाँव बालों के डर के मारे रोंगटे खड़े हो जाते है.और डर के मारे अपने अपने घरों की तरफ भागने लगते है. तब महात्मा चिल्लाते है. इसे पकड़ो ये जंगल मे नहीं जानी चाहिए.कियोकि काली रात मे भूत प्रेतों की शक्ति बढ़ जाती है.गाँव के कुछ लोगो ने और रधु ने उसे पकड़ लिया और हवन कुंड के पास बिठाया.

महात्मा मंत्रो का जाप जोर जोर से करने लगे.और भभूत मजदूर कि पत्नी पर फेकने लगे. मजदूर कि पत्नी थोड़ा सहम जाती है. और बेहोश हो जाती है.महात्मा मजदूर कि पत्नी को ताबीज़ बांधता है.और हवन पूजन करवाता है. और कहता है.अब तुम्हारी पत्नी बिल्कुल ठीक है इस पर अब कभी भी बुरी आत्मा का साया नहीं पड़ेगा सब गाँव बाले महत्मा का धन्यवाद करके उनको विदा करते है.

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लेखक: M. K. Arya

भूत ने किया मालामल

बहुत समय पहले की बात है. एक लखनापुर नाम का गाँव था उस गाँव में रामदयाल नाम का एक गरीब आदमी रहा करता था. वह अक्सर उबले हुए चने फेरी पर यहां वहां इस गांव उस गांव बेचने जाया करता था.चाहे धूप हो, चाहे बरसात हो, वह छोटे-छोटे खेरियों ( कुछ घरों से मिलकर बना गाँव ) से होते हुए पगडंडियो पर चलते हुए, कड़कड़ाती धूप में एक गाँव से दूसरे गाँव हमेशा जाया करता था. एक दिन रामदयाल पास के गाँव दीनदयालपुर जा रहा था.जिसकी दूरी दो कोस के आस पास होगी.

जेठ के दिन थे.गर्मी अपनी चरम सीमा पर थी. और रामदयाल अपने गाँव से खेतों की मुड़ेर होते हुए दीनदयालपुर को चल दिया मार्ग में ऊंचे-ऊंचे पेड़ और आस पास गन्ने के खेत थे.एकदम गर्म हवाएं सन्नाटे से चल रही थी.फिर भी रामदयाल का पहले भी कई भूतो से पाला पड़ चूका था. तभी रामदयाल को पास के एक खेत में आठ दस बड़े-बड़े वृक्ष दिखाई दिए, रामदयाल ने सोचा कुछ देर के लिए यहां आराम कर लिया जाये, और फिर आगे के लिए बढ़ेंगे. रामदयाल एक बड़े से पेड़ के नीचे तोलिया अपने सर के नीचे लगा कर आराम करने लगा, जैसे उसकी थोड़ी सी आंख लगी उसे हवाओं का तेज होते हुए आभास हुआ, मानो ऐसा लग रहा था जैसे पेड़ आपस में मिल रहे हो, और एक दूसरे से गले मिलना चाहते हो लेकिन, रामदयाल का अलग ही हाल था.वह मन ही मन सोचने लगा

कहीं आस-पास भूत प्रेत तो नहीं जो भरी दोपहरी में महुआ और आम के पेड़ों पर आंख मिचोली का खेल खेल रहे हो.रामदयाल यह सब बातें सोच ही रहा था, कि हवा और तेज हो गई और डालिया ऊपर नीचे होने लगी मानो, डालियों पर भूत प्रेत नाच रहे हो और टूटकर अभी नीचे गिर जायेंगी.तभी खेत मे तूफ़ान उठा और सूखे पत्ते आसमान में उड़ने लगे लेकिन रामदयाल भी डरने वालों में से नहीं था वह हिम्मत करके आँखे खोलकर सब नजारा देखने लगा.

तभी रामदयाल को एक भूत दिखाई दिया, रामदयाल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था.और बिना हिले डुले आराम से चुपचाप सब नजारा देखने लगा फिर एक और पतला काला भूत प्रकट हो गया

बड़ा भूत – काली भूत से

काली भूत आज मैं तुझे नहीं छोडूंगा.मैं तुझे सबक सिखा कर ही रहूंगा तूने मेरी नाक में दम कर रखा है.

तभी एक भयकर चुड़ैल प्रकट हुई, जिसकी तीन आँखे, लम्बे बाल, बड़े बड़े नाखून थे.

चुड़ैल – काली भूत से

इस काली मरियल भूत को आज नहीं छोड़ेंगे यह रोज मुझे छेड़ता है, और उसे पकड़ने के लिए उस पर झपट पडी.

एक डाल से दूसरी डाल पर ऐसे उचक रहे थे. मानो की पेड़ की डालियां अभी टूटकर गिरने वाली है. थोड़ी देर बाद भूतों का मेला सा लग गया.और भयंकर हाहाकार भयंकर महासंग्राम मच गया. थोड़ी देर में बड़े भूत ने उस मरियल काली भूत को पकड़ लिया और भयंकर पीटा.

काली भूत – बड़े भूत से

मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो अब मैं किसी को भी परेशान नहीं करूँगा.उस चुड़ैल को भी नहीं छेडूंगा.और बड़े भूत से रो रोकर विनती करने लगा.

अंत में बड़े भूत ने उस काली भूत को छोड़ दिया. कुछ देर बाद माहौल शांत होने लगा. और सारे भूत एक एक कर गायब होने लगे और अंत में सब गायब हो गए.

रामदयाल भी इस नजारे को देखकर बहुत डर गया था.

रामदयाल (मन मे )

अब मुझे चलना चाहिए, यहां तो बहुत देर हो गई मुझे पास के गांव में जाकर अपनी बिक्री करना है.

किंतु, जैसे ही रामदयाल ने अपनी टोकरी उठाई वह बहुत भारी हो चुकी थी.अब उठ नहीं रही थी. उसने पूरी कोशिश की लेकिन रामदयाल पसीना में नहा चुका था. वह अब डरने लगा था.वह सोचने लगा की आज तो जान से हाथ धो बैठेगा.तभी उसे किसी के पैरों की आहट सुनाई देने लगी, और सामने देखता है, कि वही बड़ा भूत उसके सामने प्रकट हो गया.

रामदयाल- बड़े भूत से

थरथर कांपने लगा.और हाथ जोड़कर बोला, मुझे छोड़ दो मैंने कुछ नहीं देखा, मैंने कुछ नहीं कहा, मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो.

बड़ा भूत – रामदयाल से

मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा. मैं तुम्हें किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाउगा.तुम मुझे खाने के लिए कुछ दो मुझे भूख लगी है.

रामदयाल अपने पास से थोड़ा चना निकाल कर देता है.भूत चने को खाता है. और उसे बड़ा ही स्वादिष्ट लगता है.

बड़ा भूत विनम्र स्वभाव मे

थोड़ा और दो ना तुम्हारे चने बड़े ही स्वादिष्ट हैं. बचपन में हम इसी तरीके के चने अपनी मां से वनवा कर खाते थे.

रामदयाल – भूत से

हिम्मत करके बोलता है.अगर में सारे चने तुम्हें दे दूंगा तो मै क्या कमा कर खाऊंगा.

बड़ा भूत – रामदयाल से

कहता है.चलो आओ मेरे साथ उसे एक पीपल के पेड़ के नीचे ले जाता है, और कहता है,तुम इसे खोदो.

रामदयाल पीपल के पेड़ के नीचे आकर खोदता है. और पाता है कि घड़े में सोने की अशर्फियां है.

बड़ा भूत – रामदयाल से

बोलता है, तुम इन अशर्फियों के बदले में कितना चना दोगे.

रामदयाल – बड़े भूत से

तुम पूरे चने ले लो पूरे चने ले लो बस मुझे अशर्फियाँ दे दो.

भूत चने खाने में व्यस्त हो जाता है.और रामदयाल उस घड़े को उठाकर दबे पॉव अपने गाँव कि तरफ निकल जाता है.

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लेखक: M. K. Arya

Disclaimer:
This story is presented to you solely for the purpose of entertainment, HelpHindiMe.in does not promote any kind of superstition in any way. All the characters of the story are imaginary, they have no connection with any living or dead person. If this happens then it should be considered as a mere coincidence.

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