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दहेज प्रथा पर निबंध

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दहेज प्रथा पर निबंध | Essay on Dowry system

Dowry meaning in Hindi = दहेज

भारत एक ऐसा देश है जहां स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है। आज के समय में नारी किसी भी क्षेत्र में पुरुष से पीछे नहीं है। शिक्षा, खेलकूद, राजनीति, विज्ञान आदि सब जगह, आज की नारी पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। लेकिन इसके साथ ही आज 21वीं सदी में भी कुछ ऐसी को प्रथाएं चलती आ रही है जो अभिशाप बन चुकी है।

इन प्रथाओं में सबसे जटिल और क्रूर प्रथा है दहेज की। आज भी ऐसे लोग हैं जिनकी निम्न मानसिकता और रूढ़िवादी सोच के कारण दहेज प्रथा बनी हुई है। कन्या भ्रूण हत्या का एक कारण दहेज प्रथा भी है। दहेज प्रथा के कारण बेटी के जन्म पर ही माता-पिता चिंतित हो उठते हैं। बेटी की शिक्षा से ज्यादा उसको दिए जाने वाले दहेज की चिंता में रहते हैं। दहेज प्रथा एक ऐसी सामाजिक समस्या है जिसे जड़ से निकाल कर फेंका जाना बहुत ही आवश्यक है।

दहेज प्रथा का अर्थ

दहेज प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही एक ऐसी प्रथा है जिसमें विवाह के समय कन्या के घर वालों से पैसे या सामान की डिमांड की जाती है। दहेज दुल्हन के पिता द्वारा दूल्हे को दिया जाता है। यह रकम कोई छोटी मोटी नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों तक में होती है।

घर, गाड़ी, गहने, फर्नीचर पैसा आदि दहेज के नाम पर दूल्हे और उसके परिवार वालों को दिया जाता है। अक्सर शादी से पहले ही दूल्हे के पक्ष वाले दहेज का प्रस्ताव रखते हैं या फिर विवाह के बाद लड़की को जबरदस्ती अपने घरवालों से पैसा मांगने के लिए बोलते हैं, यदि वह ऐसा न करें तो उसे प्रताड़ित करते हैं।

प्राचीन काल से ही दहेज प्रथा चली आ रही है। रामायण और महाभारत के समय से ही कन्या के विवाह के बाद वर को धन और संपत्ति दी जाती थी। परंतु फर्क यह है कि उस समय लोग लोगों में दहेज का मोह नहीं हुआ करता था। वह केवल प्रेम और खुशी में आकर स्वयं अपनी बेटी को धन-संपत्ति दिया करते थे।

पर जैसे-जैसे समय बीतता गया दहेज प्रथा एक बहुत बड़ी समस्या बनती गई। जिस प्रकार प्राचीन समय में सती जैसी कुप्रथा थी, उसी प्रकार आज के समय में दहेज से बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है।

दहेज प्रथा के कारण

दहेज प्रथा का एक कारण अशिक्षा है। गांव व पिछड़े जगहों पर लोग उतने शिक्षित नहीं होते हैं और उनकी मानसिकता और ख्याल पुराने समय की ही है। वह दहेज लेना अपना अधिकार समझते हैं।

अशिक्षा तो हो गया एक कारण परंतु बहुत से शिक्षित लोग भी दहेज जैसी कुप्रथा को अपनाते हैं। बहुत से लोग हमारे समाज को पुरुष प्रधान समाज समझते हैं। इस प्रकार की दकियानूसी सोच उन्हें दहेज लेने के लिए थोड़ा भी संकोच नहीं होने देती।

इसके साथ ही यदि लड़की में कोई कमी हो शारीरिक या मानसिक रूप से, या फिर वह दिखने में कम सुंदर हो तो ऐसी चीजें लड़की वालों से दहेज मांगने के का आधार बन जाती है।

झूठी शान ओ शौकत भी दहेज का कारण बन गई है लोग समाज में अपनी शान बढ़ाने के लिए और ऊंची इज्जत बनाने के लिए विवाह में अपनी बेटियों को अधिक से अधिक दहेज देते हैं जिसके लिए भले उन्हें उधार लेकर ही दहेज देना पड़े।

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम

एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 में भारत में कुल 8391 मौतें दहेज के कारण हुई थी।

दहेज प्रथा के दुष्परिणाम बहुत ही भयावह हैं। आज मां बाप बेटी के जन्म से ही उसकी दहेज जुटाने की चिंता करने लगते हैं।

गरीब लोग मां के जेवर आदि, अपनी जमीन या खेत बेचकर बेटी का विवाह संपन्न करते हैं। दहेज प्रथा के कारण वह कर्ज़ में भी डूब जाते हैं।

दहेज प्रथा का एक और दुष्प्रभाव है लड़की और लड़के में अंतर। दहेज प्रथा के कारण समाज में पुरुष को ज्यादा महत्व मिलता है।

यह समस्या यहीं पर नहीं रुकती अक्सर विवाह के बाद भी लड़की को अपने घर से पैसे या दहेज कम मिलने के लिए प्रताड़ित किया जाता है और अपने मायके वालों से और रकम मांगे ऐसा बोला जाता है, यदि वह ऐसा न करे तो उसके साथ घरेलू हिंसा की जाती है यहां तक कि उसे मौत के घाट तक उतार दिया जाता है।

दहेज प्रथा को रोकने के उपाय

दहेज प्रथा को रोकने का सबसे जरूरी उपाय जो है वह है शिक्षा जब लोग शिक्षित होंगे तो उनकी मानसिकता पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा उनकी सोच बदलेगी और दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा की चपेट में नहीं आएंगे।

दहेज प्रथा के खिलाफ कड़े कानून बनना चाहिए और दहेज मांगने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।

दहेज प्रथा को रोकने के लिए लड़की को भी आगे आना होगा किसी भी लड़की को ऐसे व्यक्ति या ऐसे घर में शादी करने से मना कर देना चाहिए जहां दहेज की मांग हो।

दहेज लेना और दहेज देना दोनों ही अपराध है। दहेज प्रथा को रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलाने होगी इसके लिए जगह-जगह जागरूकता अभियान करना चाहिए और लोगों को इस कुप्रथा से को खत्म करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry prohibition act, 1961)

दहेज निषेध अधिनियम दहेज प्रथा को नियंत्रित करने और दहेज लेने और देने वालों को सज़ा देने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम के अनुसार दहेज लेने या देने या दहेज और इसका सहयोग करने वालों को 5 वर्ष की सजा और ₹15000 जुर्माने का प्रावधान है।

धारा 2 दहेज का अर्थ है कोई संपत्ति या बहुमूल्य प्रतिभूति देना या देने के लिए प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से विवाह के एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को या फिर विवाह के किसी अन्य पक्ष के अभिभावक या दूसरे व्यक्ति द्वारा विवाह की किसी पक्ष को विवाह के समय पहले या बाद में देने या देने के लिए राजी होना।

धारा 3 दहेज लेने वालों या देने वालों को कम से कम 5 वर्ष की जेल की सजा और ₹15000 का जुर्माना देना होगा।

इसमें विवाह के समय मिलने वाले उपहार को शामिल नहीं किया जाएगा।

धारा 4- दहेज की मांग :

यदि किसी पक्ष के माता-पिता या रिश्तेदार दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें 6 महीने से लेकर 2 वर्ष तक की जेल की सजा और उसके साथ ₹10000 का जुर्माना हो सकता है।

धारा 4ए- किसी भी व्यक्ति के द्वारा विवाह के लिए दिए गए प्रचार में धन या संपत्ति का प्रस्ताव भी दहेज में आएगा जिसके लिए कम से कम 6 महीने से लेकर 5 वर्ष तक की सजा और ₹15000 का जुर्माना हो सकता है।

धारा 6- यदि मिलने वाला कोई दहेज विवाहिता के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा धारण किया जाए तो दहेज प्राप्त करने के 3 महीने के भीतर या फ़िर औरत के नाबालिक होने की स्थिति में उसके बालिग होने के 1 वर्ष के भीतर उसे अंतरित कर दिया जाएगा। यदि महिला की मृत्यु हो जाए और उसकी संतान ना हो तो उसके अभिभावक को दहेज अंतरण कर दिया जाएगा और यदि संतान है तो संतान को अंतरण कर दिया जाएगा।

धारा 8ए- यदि घटना के 1 वर्ष के अंदर शिकायत की जाए तो न्यायालय, पुलिस रिपोर्ट या क्षुब्ध द्वारा शिकायत किए जाने पर अपराध का संज्ञान ले सकेगा।

धारा 8बी- दहेज निषेध पदाधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा होगी जो बनाए गए नियमों का अनुपालन कराने या दहेज की मांग के लिए उकसाने या लेने से रोकने या अपराध कारित करने से संबंधित साक्ष्य जुटाने का काम करेगा।

उपसंहार

अगर देखा जाए तो दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति है जिसमे लड़की की शिक्षा को प्राथमिकता न देकर उसके द्वारा दहेज़ में मिले सामान को प्राथमिकता दी जाती है। अगर लोग इन पैसे रुपयों की जगह लड़की की पढ़ाई लिखाई और अच्छे संस्कार की मांग दहेज़ में करें तो लोग बेटियों के लिए दहेज़ नहीं उनकी अच्छी शिक्षा की उत्तम व्यवस्था करेंगे इससे न केवल दहेज़ जैसी कुरीति से मुक्ति मिलेगी बल्कि एक शिक्षित नारी का उदय भी होगा जो देश और समाज के लिए शुभ होगा।

Author:

आयशा जाफ़री, प्रयागराज

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