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ओशो की जीवनी

Last updated on: February 20th, 2021

ओशो रजनीश की जीवनी | Osho Rajneesh Biography | Jivan Parichay | Jivani in Hindi

ओशो की जीवनी | Osho Biography in Hindi

धर्म, संस्कृति, अध्यात्म व दर्शन शास्त्र सब चीज़ें शुरू से ही भारत की विशेषताएं रही है। भारत जैसे देश में अब तक कई आध्यात्मिक गुरु आए जिन्होंने अपने प्रवचन के जरिए एक बड़ी संख्या में लोगों को अपने साथ जोड़ा। इन्हीं में से एक थे ओशो।

वह एक ऐसे अध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने ध्यान के लिए कई विधियां बताई। ओशो बीसवीं सदी के वक्ता, योगी और अध्यात्म गुरु के रूप में जाने जाते हैं। ओशो को अन्य आध्यात्मिक गुरुओं से कई चीजें अलग बनाती हैं। उन्हीं में से एक है उनका सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाना।

यही वजह है कि ओशो की प्रसिद्धि भारत की सीमा तक ही नहीं बंधी हुई, बल्कि देश विदेश में भी उनके कई चाहने वाले हैं। हालांकि उनके लाखों अनुयायियों के अलावा उनके काफी विरोधी और आलोचक भी रहे हैं। ओशो कौन थे?

ओशो ने कैसे प्रवचन दिए तथा वे इतने प्रसिद्ध क्यों हुए इस बारे में जानने के लिए ओशो की जीवन लीला को जानना जरूरी है। आइए जानते हैं ओशो की जीवनी के बारे में –

नामओशो
मूल नामरजनीश
जन्मजात नामचंद्र मोहन जैन
जन्म तिथि11 दिसंबर 1931
जन्म स्थानरायसेन, मध्य प्रदेश
कार्यक्षेत्रआध्यात्मिक गुरु
पिता का नामबाबूलाल जैन
माता का नामसरस्वती जैन
मृत्यु की तिथि19 जनवरी 1990
मृत्यु का स्थानपुणे, महाराष्ट्र
राष्ट्रीयताभारतीय
प्रसिद्धि का कारणआध्यात्मिक व धार्मिक प्रवचन
ओशो रजनीश की जीवनी | Osho Rajneesh Biography | Jivan Parichay | Jivani in Hindi

ओशो का प्रारंभिक जीवन (Osho’s early life)

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में ओशो रजनीश का जन्म हुआ। वह 11 दिसंबर 1931 को रायसेन शहर के छोटे गांव कुचवाड़ा में जन्मे। ओशो अपने ग्यारह भाई बहनों में से सबसे बड़े थे।

उनके पिता का नाम बाबूलाल था जो कि एक कपड़ा व्यापारी थे। वहीं उनकी माता का नाम सरस्वती जैन था। उनका नाम ओशो क्यों पड़ा इसके पीछे कई मत है। हालांकि स्वयं ओशो का कहना है कि विलियम जेम्स की एक कविता ‘ओशनिक एक्सपीरियंस’ से ओशोनिक शब्द लिया गया।

इस शब्द का अर्थ होता है ‘सागर में एक हो जाने का अनुभव करने वाला’ इस नाम की तरह ही ओशो का व्यक्तित्व भी था। ओशो का बचपन उनके नाना नानी के पास बीता। ओशो एक ऐसे अध्यात्म गुरु थे जिन्होंने पौराणिक समय से चली आ रही रुढ़िवादी मान्यताओं को सिरे से ख़ारिज कर दिया तथा उन सबको एक नए अर्थ मे पिरोने की कोशिश की।

यदि ओशो के प्रारंभिक जीवन यानी कि उनके बचपन की बात करें तो वह बचपन से ही एक जिज्ञासु प्रवृत्ति के बालक रहे हैं। वे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व पर लगातार प्रश्न पूछते ही रहते थे। लेकिन उनकी यही विशेषता उनके लिए मुसीबत बनी।

दरअसल, जब ओशो कॉलेज में अध्ययन कर रहे थे तब उनकी एक शिक्षक से किसी विषय पर बहस हो गई। जिसके बाद डी एन जैन कॉलेज में उन्होंने 1955 में फिलासफी से बी ए किया। वहीं उन्होंने एम ए, सागर यूनिवर्सिटी से 1957 में किया।

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एक आम ओशो ऐसे बने अध्यात्मिक गुरु (How Osho became Spiritual Guru)

उन्होंने 1958 में जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर के रूप में काम करना शुरू किया तथा 1960 में वह पूर्ण रूप से प्रोफेसर बन गए। ओशो विभिन्न मुद्दों पर बयान देते थे जैसे कि समाजवाद, पूंजीवाद की अवधारणा को लेकर।

उनका कहना था कि भारत में सिर्फ पूंजीवाद, विज्ञान प्रौद्योगिकी द्वारा सभी क्षेत्र में नियंत्रण रखना चाहिए। इसके अलावा ओशो ने भारत की रूढ़िवादी धर्म, अनुष्ठान आदि की भी खुलकर आलोचना की। बचपन से वह निर्भीक थे तथा वह जीवन के अंत तक ऐसे ही रहे।

इसी तरह आगे बढ़ते हुए ओशो ने अपने प्रोफ़ेसर की नौकरी छोड़ दी और वह आध्यात्मिक शिक्षा की तरफ पूरी तरह से समर्पित हो गए। ओशो ने सेक्स से संबंधित कई भाषण दिए। जिसे ‘फ्रॉम सेक्स टू सुपरकॉन्शसनेस’ के नाम से प्रकाशित किया गया। हालांकि सेक्स पर ओशो द्वारा बयान दिए जाने के बाद से ही मीडिया ने उनकी आलोचना करनी शुरू कर दी।

मीडिया द्वारा उन्हें सेक्स गुरु कहा जाने लगा। 1974 में ओशो महाराष्ट्र के पुणे में चले गए जिसके बाद उनके अनुयायियों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी। ओशो ने पुणे में 7 साल का समय व्यतीत किया। लोकप्रिय होने के बाद से वे रोजाना 90 मिनट का भाषण देने लगे।

लेकिन वहाँ की स्थानीय सरकार और ओशो के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई। जिसके बाद 1980 में वह अमेरिका के ओरेगन में चले गए जहां उन्होंने 65,000 एकड़ की बंजर जमीन खरीदी और उसके रूप रंग को बदलने में मेहनत झोंक दी। ओशो के अनुयायियों ने इस जगह को रजनीशपुरम नाम दिया। अमेरिका में भी धीरे-धीरे ओशो की लोकप्रियता बढ़ गई।

लेकिन अमेरिकी सरकार ने यह आरोप लगाया कि ओशो के अनुयायियों में कई अपराध से संबंधित लोग शामिल है। ओशो को भी इसी आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इन सब से परेशान ओशो ने 14 नवंबर 1986 को अमेरिका छोड़ दिया और वापस अपने देश लौट आए। वापस लौटकर वे वही अपने पुराने कामों में लग गए।

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ओशो की मृत्यु (Osho’s Death)

19 जनवरी 1990 में ओशो ने अंतिम सांस ली। ओशो की मृत्यु की घोषणा 19 जनवरी के ही शाम के सभा में की गई। लेकिन ओशो की अंतिम विदाई भी बेहद अलग थी। दरअसल, ओशो चाहते थे कि जब वह मृत्यु को प्राप्त करें तब वह दिन एक महोत्सव के रूप में मनाया जाए।

इसी को ध्यान रखते हुए उनके अनुयायियों ने ऑडिटोरियम हॉल में ओशो के शव को पूरे 10 मिनट के लिए रखा। इस अंतिम विदाई में उत्सव संगीत, नाच, गान आदि हुए। जिसके बाद उन्हें दाह संस्कार के लिए ले जाया गया। पुणे के उनके आश्रम को ओशो ध्यान रिज़ॉर्ट के नाम से जाना जाता है।

ओशो की मृत्यु के संबंध में यह कहा जाता है कि ओशो को पहले ही पता चल चुका था कि उनकी मृत्यु होने वाली है, जिसके बाद उन्होंने प्रवचनो की संख्या में वृद्धि कर दी थी। वहीं दूसरी ओर इस संबंध में एक और बात सामने आती है। दरअसल यह कहा जाता हैं कि जब 1985 में ओशो को गिरफ्तार किया गया था तब अमेरिकी जेल में उन्हें थेलियम नाम का एक धीमा जहर दिया गया था।

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Author:

भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।

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