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Poetry on Daughter in Hindi

Poetry on Daughter in Hindi
BEST HINDI KAVITA | BEST HINDI POEM | Poetry on Daughter in Hindi

बेटी की ताकत

बिटिया मैंनें जन्मा है तुझे
तेरा जीवन भी संवारुँगी,
पढ़ा लिखाकर काबिल बनाऊँगी
तुझे तेरी पहचान दिलाऊँगी,
तूझे अपने पैरों पर
खड़ा कर दिखाऊँगी।

दुनियां से लड़ने लायक भी
मैं ही तूझे बनाऊँगी,
बेटी है तो क्या हुआ?
मैं भी तो पहले बेटी
अब माँ भी तो हूँ
माँ बनकर दिखाऊँगी,
माँ कहलाने का हक
तुझसे ही तो पाया है,
तेरी पहचान दुनियां को
मैं ही कराऊँगी।

बेटी है तू बेटी ही रहना
गर्व से जीने का जज्बा
मैं तुझमें जगाऊँगी,
बेटी तू मेरे जिगर का टुकड़ा है
ये मैं सबको बताऊँगी
सारे जहां को बेटी की
ताकत का अहसास भी
मैं तुझसे ही कराऊँगी।

मानव मूल्य

बहुत अफसोस होता है
मानव मूल्यों का क्षरण
लगातार हो रहा ।
मानव अपना मूल्य
स्वयं खोता जा रहा है,

आधुनिकता की भेंट
मानव मूल्य भी
चढ़ता जा रहा है,
मर रही है मानवता
रिश्ते भी हैं खो रहे
संवेदनाएं कुँभकर्णी
नींद के आगोश में हैं।

मानव जैसे मानव रहा ही नहीं
बस मशीन बन रहा है,
कौन अपना कौन पराया
ये प्रश्न पूछा जा रहा है।
मानव ही मानव का दुश्मन
बनकर देखो फिर रहा है,
मानव अब मानव कहाँ
जानवर बनता जा रहा है।

मिट्टियों का मोल भी
जितना बढ़ता जा रहा है,
मानवों का मूल्य अब
उतना ही गिरता जा रहा है।

सोचते बहुत हो

शायद तुम्हें अहसास नहीं है
कि तुम सोचते बहुत हो,
इसीलिए तुम्हें पता ही नहीं है कि
इतना सोचने के बाद
किसी मंजिल पर पहुँचते ही कहाँ हो?

चलो माना कि तुम
किसी और मिट्टी के बने हो।
पर भला ये तो सोचो
इतना सोचकर भी तुम
आखिर पाते क्या हो?

चलो माना कि
ये तुम्हारा स्वभाव है,
पर ऐसा स्वभाव भी
भला किस काम का,
जो तुम्हें भरमा रहा हो,
तुम्हारे किसी काम
तनिक भी न आ रहा हो।

अपने सोच का दायरा घटाओ,
बस इतना ही सोचो
जो तुम्हारा दायरा ही न बढ़ाये
बल्कि तुम्हारे काम भी आये,
अब इतना भी न सोचो
कि सोचने का ठप्पा
तुम्हारे माथे पर चिपक जाये।

संरक्षण करो

जल,जंगल, जमीन
ये सिर्फ़ प्रकृति का
उपहार भर नहीं है,
हमारा जीवन भी है
हमारे जीवन की डोर
इन्हीं पर टिकी है,
धरती न रहेगी तो
आखिर कैसे रहोगे?

जब जल ही नहीं होगा
तो प्यास कैसे बुझाओगे
पेड़ पौधे ही जब नहीं होंगे
तो भला साँस कैसे ले पाओगे?
अब ये हम सबको
सोचने की जरूरत है,

हर एक की हम सबको जरूरत है,
जब इनमें से किसी एक के बिना
दूजा निपट अधूरा है,
फिर विचार कीजिए
हमारा अस्तित्व भला
कैसे भला पूरा है?

उदंडता और मनमानी बंद करो
जीना और अपना अस्तित्व
बचाना चाहते हो तो
सब मिलकर जल, जंगल,
जमीन का संरक्षण करो,
ईश्वरीय व्यवस्था में बाधक
बनने के तनिक न उपक्रम करो।

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Author:

Sudhir Shrivastava

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.

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