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10 Famous Temples of Varanasi

Last updated on: June 7th, 2021

वाराणसी के 10 प्रसिद्ध मंदिर | 10 Famous Temples of Varanasi in Hindi

बनारस के प्रसिद्ध मंदिर

दोस्तों बनारस का नाम सुनते ही एक अलग ही प्रसन्नता चेहरे पर छा जाती है एक अलग प्रकार की खुशी हृदय में पनपने लगती है। शहर बनारस के नाम में ही सारे संस्कृतियों का रस छलकता है। ऐसे ही नहीं इसे बनारस कहा जाता है। वाराणसी संसार के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है इसे भारत का सबसे प्राचीन व पुराना शहर भी कहा जाता है। बनारस उत्तर प्रदेश राज्य का सुप्रसिद्ध जिला है और बनारस को कई नामों से जाना जाता है कोई इसे काशी कहता है, कोई बनारस तो कोई वाराणसी यह अपने सारे नामों से देश-विदेश में प्रसिद्ध है।

काशी को महादेव की नगरी के नाम से भी जाना जाता है यह हिंदू धर्म के पवित्र धर्म स्थलों में से एक है जहां मां गंगा प्रवाहित होती है यही नहीं काशी को बौद्ध धर्म और जैन धर्म भी पवित्र स्थल मानते हैं। बनारस के संस्कृति की अपनी एक अलग छवि है यहां के काशी विश्वनाथ मंदिर के धार्मिक महत्व एवं गंगा नदी से एक पवित्र रिश्ता है जो एक दूसरे को जोड़े रखती है। काशी को मंदिरों का शहर के नाम से भी संबोधित किया जाता है। बनारस की सकरी-सकरी गलियां अपने आप में कहानी कहती है जो काशी की सुंदरता में चार चांद लगाती है, बनारस को दीपों का शहर, ज्ञान की नगरी, धार्मिक राजधानी, शिव की नगरी इत्यादि विशेष नामों से बुलाया जाता है यहां तक कि भगवान गौतम बुद्ध ने भी अपना प्रथम प्रवचन वाराणसी में स्थित सारनाथ में दिया था।

भारत से कई प्रसिद्ध कवि, लेखक, संगीतकार वाराणसी से ही थे जिन्होंने पूरे भारत में अपना नाम व अपने जन्म स्थान वाराणसी का नाम रोशन किया है जिनमें कबीर दास, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, गिरिजा देवी, गोस्वामी तुलसीदास, शिवानंद स्वामी, वल्लभाचार्य, स्वामी रामानंद एवं प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हैं।

हिंदू धर्म का पूजनीय धर्म ग्रंथ रामचरितमानस को गोस्वामी तुलसीदास ने काशी के ही पवित्र स्थल पर लिखा है। धार्मिक स्थल एवं अपनी पवित्रता के साथ ही साथ बनारस अध्ययन यानी पठन-पाठन के क्षेत्र में भी प्रसिद्ध है यहां पर चार विश्वविद्यालय स्थित है बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हायर टिबेटीयन स्टडीज विश्वविद्यालय है जो भारत के हर राज्य व क्षेत्र में सुविख्यात है।

वैसे तो बनारस में हर तरह की भाषा बोली जाती है लेकिन यहां के निवासी मुख्य रूप से कोशिका भोजपुरी बोलते हैं यह हिंदी की एक बोली है। यहां के खानपान भी बनारस को नयाब बनाने में भूमिका निभाते हैं यहां के बनारसी पान, बनारसी साड़ियां, बनारस के घाट, गंगा आरती, मंदिर यह सब मिलकर बनारस की प्रसिद्ध एवं उसकी प्राचीनता को बढ़ाते हैं।

तो चलिए दोस्तो आज हम आपको बताते है कुछ ऐसे ही बनारस के प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जिसके दर्शन करने के लिए दूर-दूर से दर्शनार्थी बनारस आते हैं।

1. काशी विश्वनाथ मंदिर

हिंदू धर्म के पवित्र धर्म स्थलों में से एक है श्री काशी विश्वनाथ मंदिर जहां भगवान शिव की पूजा अर्चना होती है। यहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजित है यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है यहां तक कि लोगों का यह भी मानना है कि भगवान शंकर काशी में साक्षात विराजमान है इसलिए यह काशी नगरी इतनी पवित्र मानी जाती है।

काशी विश्वनाथ मंदिर | Shri Kashi Vishwanath Temple, Varanasi

Image Credit: Wikipedia

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर प्राचीन समय से ही वाराणसी में स्थित है इस मंदिर को हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान प्राप्त है काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करने की यह मान्यता है कि अगर एक बार गंगा की पवित्र जल से स्नान कर बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर लेने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मंदिर की स्थापना 1780 में हुई है इसका निर्माण महारानी अहिल्याबाई होलकर जी ने कराया था, इस मंदिर के दर्शन के लिए लोग दूर-दराज से आते हैं बाबा भोले के दरबार में हाजिरी लगाने। यहां के लोगों की यह मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी है बाबा विश्वनाथ के दर्शन मात्र कर लेने से भक्तों की मुरादे पूरी होती है वैसे तो इस मंदिर में हर दिन ही अधिक संख्या में भीड़ रहती है लेकिन सावन माह में इस मंदिर की महत्ता और बढ़ जाती है।

सावन माह के सोमवार को इस मंदिर में जल चढ़ाने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। इस मान्यता को मानते हुए सावन माह में दूर-दूर से कावड़िया व श्रद्धालु जल लेकर आते हैं बाबा भोले को चढ़ाने के लिए, जिससे श्रद्धालु बाबा को प्रसन्न कर अपनी मुरादे पूरी होने का भाव रखते हैं। पूरे महीने यहां सिर्फ भोले की ही जय जयकार गूंजती है।

इसके साथ ही शिवरात्रि पर बाबा विश्वनाथ की बारात यात्रा निकाली जाती है जिसमें श्रद्धालु बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और बाबा भोले की बारात के साथ उनके बाराती बनकर चलते हैं इस दिन तो विश्वनाथ प्रांगण में रंगों की होली, भभूत बरात की होली खेली जाती है और धूमधाम से बाबा भोले के साथ माता पार्वती को ब्याहने यानी शादी करने जाते हैं। ऐसे ही काशी के कण-कण में चमत्कारिक कहानियां हैं जिनके बारे में जितना जानो समझो उतना ही कम है।

2. श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर

संकट मोचन मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित है यह मंदिर हिंदू धर्म के पवित्र धर्म स्थलों में से एक है। यहां पर राम भक्त हनुमान जी की पूजा होती है हनुमान जी के इस मंदिर को संकट मोचन के नाम से जाना जाता है क्योंकि हनुमान जी को संकट मोचन यानी दुख और परेशानियों को हरने वाला भी कहा जाता है।

लोगों की मान्यता है कि यहां के दर्शन मात्र कर लेने से भगवान हनुमान अपने श्रद्धालुओं का कष्ट दूर कर देते हैं, इस मंदिर का पुराना इतिहास है कहा जाता है इस मंदिर में भगवान हनुमान ने गोस्वामी तुलसीदास को दर्शन दिए थे और दर्शन देने के बाद बजरंगबली वही मिट्टी के मूरत के रूप में स्थापित हो गए जो आज संकट मोचन हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।

हनुमान जयंती यहां बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाती है कई दिनों तक बड़े-बड़े कलाकार, संगीतकार, वादककार, नृत्यकार इत्यादि आकर हनुमान जयंती के दिन खुशियों की छटा बिखेरते हैं, यहां पर प्रसाद के रूप में शुद्ध घी के लड्डू से भगवान हनुमान जी को भोग लगाया जाता है इन्हें तुलसी के माला बहुत पसंद है इसलिए यह गेंदे व तुलसी के माला से सुशोभित रहते हैं और बजरंगबली का यह स्वरूप श्रद्धालुओं के मन को मोह लेता है। बजरंगबली के साथ मंदिर में भगवान राम, माता जानकी और लक्ष्मण भी विराजमान है। वाराणसी में आए पर्यटक एक बार इस मंदिर के दर्शन के लिए अवश्य ही आते हैं।

3. दुर्गाकुंड मंदिर

वाराणसी में स्थित प्राचीन मंदिरों में से एक है दुर्गा मंदिर, इस मंदिर की अपनी एक अलग सुंदरता है इस मंदिर का निर्माण लाल पत्थरों से हुआ है जिसकी कलाकारी बहुत ही आकर्षित करती है। इस मंदिर में मां दुर्गा विराजमान है इसके साथ ही इस मंदिर में बाबा भैरवनाथ, माता लक्ष्मी व माता सरस्वती विराजित हैं। यहां हर समय भारी संख्या में भीड़ होती है लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है। लोगों की मान्यता है कि माता के दर्शन करने से मां सभी मुरादें पूरी करती हैं, दुर्गा कुंड मंदिर का निर्माण 1760 में महारानी भवानी ने कराया था, ऐसा कहा जाता है कि मां दुर्गा ने शुंभ निशुंभ का वध करने के बाद थक कर इस दुर्गा मंदिर में विश्राम किया था।

4. श्री अन्नपूर्णा मंदिर

वाराणसी में स्थित माता अन्नपूर्णा का मंदिर बाबा विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है, यह मंदिर हिंदू धर्म के प्राचीन मंदिरों में से एक है जहां माता अन्नपूर्णा विराजमान हैं। मां अन्नपूर्णा को तीनों लोकों की माता कहा जाता है लोगों की मान्यता है कि माता ने स्वयं महादेव को अपने हाथों से बना भोजन खिलाया था इस मंदिर को बहुत ही खूबसूरती के साथ बनाया गया है।

दीवार पर सुंदर चित्र बनाए गए हैं जिसमें माता का अन्नपूर्णा स्वरूप दिखता है इसके साथ ही इस मंदिर में माता अन्नपूर्णा के साथ-साथ महादेव, मां काली, पार्वती और नरसिंह भगवान को भी मंदिर में स्थापित किया गया है। यहां अन्नकूट के दिन माता अन्नपूर्णा के स्वर्ण प्रतिमा के दर्शन होते हैं 1 दिन के लिए ही मां का स्वर्णिम रूप दिखाया जाता है। माता अन्नपूर्णा के दर्शन मात्र करने से भक्तों का जीवन सुखमय होता जाता है तथा उनकी सारी इच्छाएं पूरी होती है।

5. तुलसी मानस मंदिर

तुलसी मानस मंदिर वाराणसी | Tulsi Manas Mandir, Varanasi

Image Credit: Wikipedia

आधुनिक मंदिरों में से एक सबसे सुंदर मंदिर है मानस मंदिर, इस मंदिर का निर्माण सेठ रतनलाल सुरेखा जी ने कराया। यह सुंदर मंदिर पूरी तरह से संगमरमर से निर्मित है। इस मंदिर के दीवारों पर पूरा रामचरितमानस लिखा है जो बहुत ही भव्य लगता है, यह मानस मंदिर दुर्गाकुंड मंदिर के नजदीक ही है। कैंट से इसकी दूरी कुल 5 किलोमीटर है। इस मंदिर के अंदर राम, माता सीता, लक्ष्मण जी एवं उनके साथ ही हनुमान जी स्थापित हैं। यहां स्वचालित तुलसीदास जी भी विराजित है, उनके साथ ही राधा-कृष्ण भी अपने लीलाएं दिखाते हैं। इस मंदिर में अन्नकूट के समय छप्पन भोग की झांकी लगती है जिसको देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मंदिर का वातावरण बहुत ही शांत एवं मनमोहक है, यहां की हरियाली और सुंदर बाग-बगीचे बहुत ही मन को भाते हैं, यहां पर आते ही मन को बहुत शांति मिलती है।

6. काल भैरव मंदिर

यह मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है इसका उल्लेख काशी खंड में भी किया गया है। यह मंदिर वाराणसी के विश्वेश्वर गंज क्षेत्र में पड़ता है, इस मंदिर की ऐसी मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ ने काल भैरव जी को बनारस यानी काशी का क्षेत्रपाल यानी रक्षक नियुक्त किया था इन्हें काशी वासियों को दंड देने का अधिकार प्राप्त है।

इस मंदिर में रविवार और मंगलवार को भक्तों की भारी भीड़ होती है, यहां पर बाबा भैरव को प्रसाद के रूप में शराब का भोग लगाया जाता है यहां इनके शराब पान का विशेष महत्व है। काशी वासियों का मानना है कि यहां बाबा काल भैरव साक्षात रूप में विराजमान हैं जो सभी की रक्षा करते हैं तथा सभी पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं इनके दर्शन कर लेने से भक्त भय मुक्त हो जाते हैं तथा उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

7. साक्षी गणेश मंदिर

काशी की नगरी में बाबा भोलेनाथ के साथ उनके पुत्र भी वाराणसी में विराजित हैं। वाराणसी में एक साक्षी गणेश मंदिर भी है जहां भगवान गजानन यानी गणपति की पूजा होती है। यहां के वासियों का कहना है जब पंचक्रोशी यात्रा को किया जाता है और यात्रा पूरा करने के बाद तीर्थयात्री साक्षी गणेश मंदिर दर्शन करने अवश्य जाते हैं ऐसा करने से ही उनकी यात्रा सफल होती है और भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

8. केदारेश्वर महादेव

बनारस में महादेव के कई रूपों की पूजा होती है यहां पर महादेव कई रूपों में विराजमान है उनमें से एक है केदार घाट स्थित केदारेश्वर महादेव। यह मंदिर बहुत ही प्राचीन समय से यहां स्थित है, इस मंदिर में दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती है।

9. विशालाक्षी मंदिर

यह मंदिर वाराणसी में स्थित है यह मंदिर हिंदू धर्म के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह माता सती के 51 शक्तिपीठों में से 1 शक्तिपीठ हैं। यहां माता दुर्गा की पूजा होती है, यह विशालाक्षी मंदिर माता की शक्ति का प्रतीक है। इस मंदिर में नवरात्र के दिनों में भक्तों की भारी भीड़ होती है उस समय वहां दिन और रात माता की पूजा-अर्चना होती है, इस मंदिर को भक्त मणि करणी नाम से भी संबोधित करते हैं। मान्यता है कि यहां पर माता सती के दाहिने कान के कुंडल गिरे थे इसलिए इसे शक्तिपीठ भी कहा जाता है।

10. लोलार्क कुंड

लोलार्क कुंड, उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में स्थित है, यह तुलसी घाट के समीप स्थित कुंड है जहां लाखों की भीड़ में लोग स्नान करने आते हैं। यहां हर वर्ष भादो महीने में लक्खा मेला लगता है जिसमें इस कुंड में डुबकी लगाने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। लोगों की मान्यता के अनुसार यहां स्नान मात्र कर लेने से सारे दुख, दरिद्रता दूर हो जाती हैं और जिन दंपतियों को संतान नहीं हो रहे होते हैं यहां डुबकी लगाने से उनकी संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है। इस मान्यता के आधार पर यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अलग-अलग शहरों से आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं। इस कुंड की सजावट इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाई थी यहां तक कि लोलार्क कुंड का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है।

देश के 12 ज्योतिर्लिंग

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Author:

मेरा नाम मनीषा सिंह है। मै ऑल इंडिया रेडियो में रेडियो प्रस्तोता हूं , मैने पत्रकारिता एवं जनसंचार से M.Phil किया है।

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