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Biography of Acharya Ramchandra Shukla In Hindi | आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय
इस पोस्ट में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म, परिवार, शिक्षा, साहित्यिक जीवन, भाषा शैली और मृत्यु आदि से संबंधित जानकारी देंगे।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल कौन हैं?
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार के रूप में जाने जाते है। निबंधकार होने के अलावा वह पेशे से हिंदी आलोचक, कोशकार, कथाकार, प्रसिद्ध कवि, साहित्य इतिहासकार और अनुवादक थे। इनका हिंदी साहित्य के क्षेत्र में बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान है।
इनकी सबसे महत्वपूर्ण कृति हिंदी साहित्य का इतिहास है, जिसका प्रयोग आज भी काल निर्धारण और पाठ्यक्रम निर्माण के लिए किया जाता है। हिंदी साहित्य का इतिहास के लिए इन्हें 500 रूपये का पारितोषिक सम्मान हिंदुस्तान अकादमी द्वारा मिला। इन्होंने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया और इस संघर्ष के जरिए उन्होंने सफलता हासिल की।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल से संबंधित जानकारी
नाम | आचार्य रामचंद्र शुक्ल |
जन्म | सन् 1884 ईस्वी |
जन्म स्थान | अगोना नामक गाँव, बस्ती, उत्तरप्रदेश |
पिता का नाम | पं. चंद्रबली शुक्ल |
माता का नाम | विभाषी देवी |
पेशा | निबंधकार, हिंदी आलोचक, कोशकार, कथाकार, कवि, साहित्य इतिहासकार और अनुवादक। |
प्रमुख रचनाएँ | निबंध संग्रह– ‘चिंतामणि’[भाग 1 और भाग 2] और ‘विचारविथी’ संपादन– ‘तुलसी ग्रंथावली’, ‘जायसी ग्रंथावली’, ‘हिंदी शब्दसागर’, ‘काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका’, ‘भ्रमरगीत सार’ आलोचना– ‘सूरदास’, ‘रसमीमांसा’, ‘त्रिवेणी’ अनुदित कृतियाँ– ‘विश्व प्रपंच’, ‘मेगस्थनीज का भारतवर्षीय वर्णन’, ‘कल्पना का आनंद’ और ‘आदर्श जीवन’ ऐतिहासिक ग्रंथ– ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ |
मृत्यु | सन् 1941 ई. |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म व परिवार
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ई. में उत्तरप्रदेश के बस्ती जिले के अगोना ग्राम में हुआ था। शुक्ल जी के पिता का नाम चंद्रबली शुक्ल और माता का नाम विभाषी था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिता चंद्रबली शुक्ल मिर्जापुर में कानूनगो के पद पर नियुक्त थे अतः इनका बचपन मिर्जापुर में बीता।
जब शुक्ल जी केवल 9 वर्ष के थे तब इनकी माता का देहांत हो गया था जिसके कारण इन्हें अपना जीवन मातृ सुख के अभाव में बिताना पड़ा। शुक्ल जी को बचपन से ही अध्ययन के प्रति लग्नशीलता थी लेकिन इन्हें बचपन से ही मातृदुख को है झेलना पड़ा इसलिए इन्हें अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की शिक्षा और साहित्यिक जीवन
शुक्ल जी के पिता की नियुक्ति मिर्ज़ापुर में हुई इसलिए इनका पूरा परिवार मिर्ज़ापुर में आकर रहने लगा और इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता के पास ही रहकर मिर्ज़ापुर जिले के राठ तहसील में पूरी की। इसके पश्चात उन्होंने लंदन मिशन स्कूल से दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की। वह शुरू से ही गणित में कमजोर छात्र थे। इलाहाबाद में उन्होंने आगे की शिक्षा के लिए एडमिशन लिया लेकिन परीक्षा से पहले ही किसी कारणवश विद्यालय छोड़ना पड़ा।
शुक्ल जी उच्च शिक्षा अर्जित करना चाहते थे परन्तु आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिता की इच्छा थी कि वे कचहरी जाकर दफ़्तर का काम सीखें। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की शुरू से ही रुचि साहित्य में थी लेकिन उनकी पिताजी ने उन्हें वकालत की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद भेजा लेकिन वकालत की पढ़ाई में उनकी रुचि न होने की वजह से वह परीक्षा उत्तीर्ण नही कर पाए। सन 1904 से 1908 के बीच वे मिर्ज़ापुर के लंदन मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक के रूप में आसीन रहे। इस दौरान इन्होंने लेख, पत्र–पत्रिकाएँ, कहानी, निबंध और नाटक आदि की रचनाएँ की और शुक्ल जी ने साहित्यकार के रूप में सफलता की सीढ़ी चढ़ने की शुरुआत की।
1903 से 1908 के बीच इन्होंने ‘आनंद कादम्बिनी’ के सहायक संपादन में सहयोग दिया। शुक्ल जी धीरे–धीरे एक सफल साहित्यकार की रूप में उभर रहे थे। इसलिए उन्हें 1908 में ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ द्वारा सहायक संपादन का काम दिया गया। इस काम को उन्होंने बहुत ही अच्छे से और सफलतापूर्वक किया। शुक्ल जी नागरी प्रचारिणी पत्रिका के संपादक के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। इसके बाद वह साहित्यकार के रूप में अनेक रचनाएँ करते गए और सफलता हासिल की।
श्याम सुंदर दास के अनुसार ‘हिंदी शब्दसागर’ की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का पूरा श्रेय पं. रामचन्द्र शुक्ल को जाता है। वह केवल एक सफल साहित्यकार ही नहीं बल्कि एक सफल अध्यापक भी थे। शुक्ल जी को 1919 काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक पद पर नियुक्ति मिली। उन्होंने बाबू श्याम सुंदर दास की मृत्यु के उपरान्त काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 1937 से जीवन के अंतिम वक़्त तक विभाध्यक्ष के पद पर काम किया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित रचनाएँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित रचनाएँ निम्नलिखित है:–
निबंध संग्रह | ‘चिंतामणि’[भाग 1 और भाग 2] और ‘विचारविथी’ |
संपादन | ‘तुलसी ग्रंथावली’, ‘जायसी ग्रंथावली’, ‘हिंदी शब्दसागर’, ‘काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका’, ‘भ्रमरगीत सार’ |
आलोचना | ‘सूरदास’, ‘रसमीमांसा’, ‘त्रिवेणी’ अनुदित कृतियाँ– ‘विश्व प्रपंच’, ‘मेगस्थनीज का भारतवर्षीय वर्णन’, ‘कल्पना का आनंद’ और ‘आदर्श जीवन’ |
ऐतिहासिक ग्रंथ | ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ |
बीसवीं सदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और सफल निबंधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कई कृतियों की रचना की है। इन्होंने एक सफल संपादक के रूप में भी कार्य किया है। इन्होंने केवल एक प्रकार की नहीं बल्कि तीन प्रकार के कृतियाँ की रचना की है। वह कृतियाँ इस प्रकार है:–
- मौलिक कृतियाँ
- अनुदित कृतियाँ
- संपादित कृतियाँ
1. मौलिक कृतियाँ– इनकी मौलिक कृतियों में आलोचनात्मक, निबंधात्मक ग्रंथ और ऐतिहासिक ग्रंथ शामिल है।
- आलोचनात्मक ग्रंथ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने कई आलोचनात्मक कृतियों की रचना भी की जिनमे:– सूर, तुलसी, जायसी, काव्य में अभिव्यंजनावाद, काव्य में रहस्यवाद, रसमीमांसा आदि।
- निबंधात्मक ग्रंथ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा रचित चिंतामणि नामक निबंध ग्रंथ को दो भागों में बाँटा गया है। चिंतामणि के अलावा इन्होंने अन्य निबंध ग्रंथों की भी रचना की है। जिनमें अध्ययन, मित्रता आदि निबंध शामिल है जो सामान्य विषयों पर रचित निबंध है। शुक्ल जी द्वारा रचित मित्रता निबंध उच्चकोटि का निबंध ग्रंथ है जो जीवनोपयोगी विषय पर आधारित बातों पर लिखा गया है। इस निबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की लेखन कौशलता का दर्शन होता है। इनके द्वारा रचित क्रोध निबंध में इन्होंने क्रोध से संबंधित पहलुओं का विवेचनात्मक चित्रण किया है। इन्होंने इस निबंध में क्रोध का सामाजिक जीवन में क्या प्रभाव है और क्रोध की मानसिकता आदि पहलुओं की चर्चा की है।
- ऐतिहासिक ग्रंथ
आलोचनात्मक और निबंधात्मक ग्रंथ के अलावा इन्होंने ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की है। इनका सबसे अनूठा ऐतिहासिक ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ है।
2. अनुदित कृतियाँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा कई अनुदित कृतियों की भी रचना की गई है। इन्होंने शशांक का बांग्ला भाषा से हिंदी में अनुवाद किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्य कई कृतियों का अंग्रेजी भाषा से हिंदी में अनुवाद किया है इनके नाम अग्र लिखित हैं–विश्व प्रपंच, मेगस्थनीज का भारतवर्षीय वर्णन, कल्पना का आनंद और आदर्श जीवन इत्यादि।
आनंद कुमार शुक्ल ने ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल का अनुवाद कर्म’ नामक रचना का सृजन किया, इस रचना में उन्होंने आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुवाद कार्यों की विवेचना और विश्लेषण किया है।
3. संपादित कृतियाँ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा संपादित कृतियों में सूर, तुलसी, जायसी ग्रंथावली, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हिंदी शब्दसागर, भ्रमरगीत सार शामिल है।
भाषा–शैली
- भाषा
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अक्सर अपनी रचनाओं में खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इनके द्वारा प्रयोग भाषा में दो रूप देखने को मिलते हैं:– क्लिष्ट व जटिल भाषा का प्रयोग और सरल और व्यवहारिक भाषा। अपनी रचनाओं में शुक्ल जी का दोनों ही रूपों की भाषाओं पर पूर्ण अधिकार रहा है। उनके द्वारा किसी भी ऐसे शब्द का प्रयोग कभी भी नहीं किया गया जो निरर्थक हो, प्रत्येक शब्द का अपना महत्व था।
क्लिष्ट व जटिल भाषा का प्रयोग
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा रचित, गंभीर विषय व आलोचनात्मक निबंधो में क्लिष्ट भाषा का चलन देखने को मिलता है, शुक्ल जी ने इन रचनाओं के लिए संस्कृत के तत्सम शब्दावली का भरपूर प्रयोग किया है। गंभीर विषयों की रचना करते समय संयम और शक्ति की ज़रूरत होती है जो शुक्ल जी की रचनाओं में पूर्ण रूप से विद्यमान है। इन्होंने आलोचनात्मक निबंध और गंभीर विषयों में क्लिष्ट और जटिल भाषा का प्रयोग किया है लेकिन भाषा क्लिष्ट और जटिल होने के बावजूद पढ़ने में एकदम सरल है।
सरल और व्यवहारिक भाषा
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी द्वारा रचित मनोवैज्ञानिक निबंधों में सहज शब्दों का इस्तेमाल और व्यवहारिक भाषा का प्रयोग देखने को मिलता है। उनकी रचनाओं में हिंदी के प्रचलित शब्दों के साथ-साथ अंग्रेजी और उर्दू भाषा के अतिप्रचलित शब्दों का भी भरपूर प्रयोग किया गया है। शुक्ल जी ने अपनी रचनाओं में ग्रामीण आँचल के शब्दों को खूबसूरती से पिरोया है जैसे– तड़क-भड़क, अटकल-पच्चू इत्यादी। शुक्ल जी ने अपनी रचनाओं में कहावतों और मुहावरों का भी प्रयोग किया है।
- शैली
शुक्ल जी ने जिस शैली का प्रयोग किया है उस पर इनके व्यक्तित्व की पूरी–पूरी छाप देखने को मिलती है। उनकी रचनाओं को पढ़कर कोई भी ज्ञात कर सकता है कि यह रचना आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित है। इनकी शैली प्रौढ़ और मौलिक है। शुक्ल जी की शैली मुख्यत: तीन रूपों में है–
- आलोचनात्मक शैली
- गवेषणात्मक शैली
- भावात्मक शैली
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा रचित आलोचनात्मक निबंधों में आलोचनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है, जिसकी भाषा संजीदा और गंभीर है। इनमे संस्कृत के तत्सम शब्दों का बेहतर प्रयोग हुआ है। इन्होंने आलोचनात्मक निबंध की रचनाओं में भावों को इस तरह अभिव्यक्त किया है जिससे इन रचनाओं को पढ़कर समझना आसान हो गया है।
इनके द्वारा रचित नवीन खोजपूर्ण निबंधों की रचना गवेषणात्मक शैली में की गई है। इसमें इन्होंने क्लिष्ट भाषा और बड़े बड़े वाक्यों का प्रयोग किया है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने भावात्मक शैली का प्रयोग मनोवैज्ञानिक निबंधों के लिए किया है। इन निबंधों की भाषा व्यवहारिक है, आवश्यकता अनुरूप छोटे व बड़े दोनों प्रकार के वाक्यों का प्रयोग उनके द्वारा किया गया है।
मृत्यु
हिंदी जगत के प्रसिद्ध निबंधकार व स्वाभिमानी साहित्यकार सन् 1941 ई. में स्वर्ग सिधार गए।
तो ऊपर दिए गए लेख में आपने पढ़ा आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय (Acharya Ramchandra Shukla Biography In Hindi), उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।
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Author:
भावना, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में ग्रैजुएशन कर रही हूँ, मुझे लिखना पसंद है।