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Chandragupta Maurya

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चंद्रगुप्त मौर्य की जीवनी | Biography of Chandragupta Maurya

चंद्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन (Chandragupta Maurya in Hindi)
चंद्रगुप्त मौर्य भारत के एक ऐसे महानतम सम्राट थे जिन्होंने अपने शौर्य एवं प्रसिद्धि से इतिहास में अपने नाम को स्वर्णाक्षरों में अंकित कर रखा है। उन्होंने एक विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। प्राचीन भारत के इतिहास में समस्त महत्वपूर्ण राजाओं की सूची में चंद्रगुप्त मौर्य का स्थान सर्वोपरि है। चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ई पूर्व, राज 321- 297 ई पूर्व हुआ था।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार इस बात की जानकारी मिलती है कि चंद्रगुप्त के पिता मौर्यनगर के प्रमुख थे और चंद्रगुप्त के जन्म से पहले ही उनके पिता की एक सीमांत युद्ध में मृत्यु हो गई थी। चंद्रगुप्त के मामा ने चंद्रगुप्त की माता को पाटलिपुत्र में पहुंचा दिया और यहीं चंद्रगुप्त का जन्म हुआ। असहाय चंद्रगुप्त की माता ने उन्हें त्याग दिया। चंद्रगुप्त मौर्य की बौद्धिक प्रखरता और और उनके नेतृत्व का वर्णन हर क्षेत्र में देखने को मिलता है।

चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन में चाणक्य की भूमिका
चंद्रगुप्त एवं चाणक्य की मुलाकात के किस्से कुछ इस तरह प्रसिद्ध है कि जब एक दिन चंद्रगुप्त मौर्य अपने दोस्तों के साथ “राज़कीलम” नामक खेल खेल रहे थे और एक न्याय न्यायधीश की तरह सही न्याय कर रहे थे, तब चाणक्य ने उन्हें देखा और उनके बुद्धिमता से काफी प्रभावित हुए। चंद्रगुप्त बचपन से ही बालकों के मंडली का राजा बन कर सभी समस्याओं का फैसला किया करते थे जो उनकी बुद्धिमता का उल्लेख करती है। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को उनके दत्तक पिता से 1,000 कार्षापण देकर खरीद लिया और उन्हें शिक्षित करने का फैसला लिया।

चंद्रगुप्त मौर्य की शिक्षा
चाणक्य ने चंद्रगुप्त की बुद्धि एवं कुशल व्यक्तित्व को भाप लिया तथा उन्हें शिक्षित करने के उद्देश्य से तक्षशिला लेकर गए। तक्षशिला विश्वविद्यालय अध्ययन करने का एक ऐसा स्थान संस्थापक था जहां विश्व भर से अध्यापक एवं शिष्यों का आवागमन शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से होता था। यह विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में से एक था। चाणक्य तक्षशिला के एक आचार्य थे एवं चाणक्य की देखरेख में चंद्रगुप्त मौर्य कला, शिल्प और सैन्य विज्ञान में पारंगत हुए।

चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य
चंद्रगुप्त मौर्य वह प्रथम ऐसे सम्राट थे जिन्होंने एक अखंड भारत का निर्माण किया। 324 ईसवी पूर्व तक उन्होंने अपने साम्राज्य में राज किया तथा उनके शासन के पश्चात मौर्य साम्राज्य का नियंत्रण विंदुसार ने अपने हाथों में ले लिया। चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के बढ़ते हुए अत्याचारों को नष्ट करने के उद्देश्य से चाणक्य का सहारा लिया एवं कुछ समय पश्चात नंद वंश का पूर्ण रूप से सर्वनाश कर दिया।

केवल 20 वर्ष की उम्र में चंद्रगुप्त मौर्य अपने गुरु एवं मुख्य सलाहकार चाणक्य के साथ मिलकर मेसेडोनिया के क्षेत्र पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त कर लिया। उन्होंने अपने साम्राज्य को उत्तर में कश्मीर, दक्षिण में दक्कन का पठार, पूर्व में असम तथा पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान से बंगाल तक विस्तारित किया ।

चंद्रगुप्त धनानंद युद्ध: चंद्रगुप्त मौर्य एवं धनानंद के बीच 322 से 298 ईसवी पूर्व तक युद्ध चला। चंद्रगुप्त मौर्य के साथ धनानंद से हुए युद्ध ने देश का इतिहास पूर्ण रूप से बदल कर रख दिया। मगध एक ऐसा महाजनपद था जो 18 जनपदों में एक महत्वपूर्ण महाजनपद के नाम से जाना जाता था। मगध के राजा का नाम धनानंद था। घर आनंद एवं चंद्रगुप्त मौर्य के युद्ध में चंद्रगुप्त ने धनानंद के शासन को जड़ सहित उखाड़ फेंका। इसी के पश्चात उन्होंने मौर्य वंश की स्थापना की।

चंद्रगुप्त मौर्य का वैवाहिक जीवन (Chandragupta Maurya wives)
चंद्रगुप्त मौर्य के तीन विवाह हुए थे । पहली पत्नी का नाम दुर्धरा, दूसरी पत्नी यूनानी की राजकुमारी थी जिनका नाम कार्नेलिया हेलेना था। कार्नेलिया हेलेना को हेलन के नाम से भी जाना जाता था, कार्नेलिया हेलेना(हेलन) सेल्यूकस की पुत्री थीं।

सेल्यूकस सिकंदर का सेनापति था जिसने भारत पर आक्रमण किया। चंद्रगुप्त मौर्य ने उसकी विशाल सेना का सामना सिंधु नदी के उस पार किया। सेल्यूकस, चंद्रगुप्त मौर्य के हाथो परास्त हुआ और चंद्रगुप्त मौर्य के साथ उसे एक ऐसी संधि करनी पड़ी जो अपमानजनक थी।

सेल्यूकस द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य को खैबर दर्रे से हिंद कुश तक फैले हुए बलूचिस्तान एवं अफगानिस्तान तक का क्षेत्र देना पड़ा। इसी के पश्चात हेलन का विवाह चंद्रगुप्त से कर दिया गया। हेलन को भारत से काफी लगाव था एवं विवाह के पश्चात हेलन ने संस्कृत का भी अध्ययन किया। चंद्रगुप्त को 500 हाथियों का उपहार स्वरूप भेंट किया गया।

Chandragupta Maurya son: चंद्रगुप्त मौर्य एवं हेलेना से जस्टिन नामक एक पुत्र का जन्म हुआ। चंद्रगुप्त एवं दुर्धरा से जन्मे पुत्र का नाम बिंदुसार था। चंद्रगुप्त मौर्य की तीसरी पत्नी का भी उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है। उनकी तीसरी पत्नी चंद्र नंदिनी थी।

चंद्रगुप्त मौर्य के युद्ध में विजय एवं उपलब्धियां (Chandragupta Maurya History in Hindi)
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने पराक्रम एवं बुद्धिमता से यूनानियों से मुक्ति के युद्ध, नंदू के खिलाफ राजनीतिक क्रांति, सेल्यूकस के साथ युद्ध आदि में विजय प्राप्त की जो उनके उपलब्धियों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने निम्नलिखित युद्ध में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई-

सेल्यूकस चंद्रगुप्त युद्ध: सिकंदर की मृत्यु के पश्चात उसके भारतीय और ईरानी प्रदेशों का उत्तराधिकारी सेल्यूकस को बना दिया गया। उसने बेबीलोन और बैक्ट्रिया को जीतकर काफी शक्ति हासिल कर ली थी। 305 ईशा पूर्व उसने भारत पर चढ़ाई की और सिंधु नदी के पास आ पहुंचा।

सिकंदर ने चंद्रगुप्त को युद्ध के लिए ललकारा दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ और इस युद्ध में सेलियूकस की करारी हार हुई।

इसके अतिरिक्त चंद्रगुप्त मौर्य ने पश्चिमी भारत की विजय, नंदों का उन्मूलन, मौर्य वंश की स्थापना आदि से संबंधित कई उपलब्धियों को प्राप्त किया जो भारतीय इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु
विजय एवं उपलब्धियों को प्राप्त करने के पश्चात चंद्रगुप्त मौर्य अपने विवाह के बाद कर्नाटक की ओर चले गए। विजय प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने जैन धर्म पद्धति को अपने जीवन का आधार बनाया।

चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने अंतिम समय में अपने पुत्र बिंदुसार को अपना संपूर्ण राजपाट सौंप दिया। इसके बाद उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा आचार्य भद्रबाहु से ग्रहण की। चंद्रगुप्त की मृत्यु 297 ई पूर्व केवल 42 वर्ष की उम्र में श्रवणबेलगोला, कर्नाटक में हुई।

चंद्रगुप्त मौर्य एक ऐसे राजा थे जिन्होंने अपने पराक्रम, साहस एवं धैर्य की भावना ने उन्हें आज भी इतिहास के पन्नों में अमर रखा है।

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