जाता हूँ मुझे अब यादों में बुलाना(कारगिल युद्ध के शहीदों को समर्पित)
जाता हूँ मुझे अब यादों में बुलाना
मेरी याद कभी तुम सीने में लाना,
क्या है मेरी मंजिल क्या ठिकाना
जाता हूँ मुझे अब यादों में बुलाना।
खेला यहीं बचपन छायी जवानी
मेरे पीछे गमों की रह गई कहानी,
मेरा यह बलिदान नहीं है बेगाना
जाता हूँ मुझे अब यादों में बुलाना।
तुमसे हँसी मिली ना देना फसाना
मेरा बलिदान ना बने अफसाना,
इतना ही ना मुझे तुम समझ लेना
जाता हूँ मुझे अब यादों में बुलाना।
सौपता हूँ तुम्हें हमजिगर हमवतन
मेरे बाद तुम इनको भी अपनाना,
बस यहीं है मेरा आखिर में कहना
जाता हूँ मुझे अब यादों में बुलाना।
अब ले रहा हूँ मैं भी वतन से विदा
मैं हूँ तुमसे जुदा तुम मुझसे जुदा,
पूरी करना मेरी आखिरी तमन्ना
जाता हूँ मुझे अब यादों में बुलाना।
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डॉ.राजेन्द्र सिंह”विचित्र’, असिस्टेंट प्रो.,तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश