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हिंदी कहानी: निश्छलता

Hindi Kahani Nishchhalata
Hindi Kahani Nishchhalata हिंदी कहानी निश्छलता

हिंदी कहानी निश्छलता | Hindi Kahani Nishchhalata

ट्रिंग…. ट्रिंग….. ट्रिंग …!

जवाब नदारद था।

जब तीसरी बार भी फोन नं उठा तो रवि ने झुंझलाहट में वापसी का फैसला कर लिया।
तभी फोन की घंटी बजती , रवि देखा , मगर बजने दिया।
थोड़ी देर में पुनः घंटी बजती।अब तक उसकी झुंझलाहट कम हो चुकी थी। उसे अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने फ़ोन रिसीव किया।
आप फोन क्यों नहीं रिसीव कर रहे थे। उधर से सीमा का शिकायत भरा स्वर गूंजा।

वो इसलिए कि तुम भी तो ऐसा ही कर रही थी। रबि ने जवाब दिया।
मान लिया कि मैं फोन नहीं रिसीव कर पाई। मगर जैसे ही देखा तुरंत मिलाया। उधर से
चल कोई बात नहीं, थोड़ा गुस्से में था। क्या करूं छुट्की। वो अपनी आदत थोड़ी खराब है न। अब बता मुझे तेरे दर्शन कैसे होंगे?
क्यों क्या मैं कोई भगवान हूं,जो दर्शन करना है। लौट जाइए। मुझे आपसे नहीं मिलना है। सीमा भी नखरे दिखाने लगी।
अरे इतना गुस्सा।चल माफ़ कर दें। नहीं तो मैं रो पड़ूंगा। वैसे भी यहां तक आकर तो मैं यूं ही वापस लौटने से रहा। रवि बोला
…………।

उसे सिसकियों की गूंज सुनाई दी।
अब वो गंभीर हो गया। अरे पगली तू तो रोने लगी- रवि ने हंसते हुए कहा
रुलाओगे तो क्या रोऊं नहीं? ईश्वर ने शायद मुझे रोने के लिए ही पैदा किया-सीमा के स्वर में पीड़ा थी
तूझे मां की सौगंध है जो अब तू रोई- रवि परेशान हो उठा।
किस मां की,जो बचपन में अकेला छोड़ गई या उस मां की जो बेटी कहते नहीं थकती, मगर कभी बेटी से मिलने भी नहीं आना चाहती-सीमा के स्वर में थकावट थी।

 सारी रामायण फोन पर ही करेगी।या घर भी दिखाएगी। तेरे लिए सरप्राइज़ हैऔर तू भेजा खाये जा रही है-रवि ने चिढ़ाते हुए कहा
 सीमा को अपनी गल्ती का अहसास हुआ। उसने पता बता दिया।
 थोड़ी देर में रवि अपनी मां वनिता के साथ उसके घर के सामने था।
 सीमा ने दरवाजा खोला तो चौंक गयी। अरे मां- आप भी और वनिता से लिपट कर रो पड़ी। वनिता ने उसे जी भर कर रोने दिया। फिर अपने से अलग करते हुए उसके आँसू पोंछे और बोली-अब रोना मत।समय का खेल है बेटी। तेरे अंकल के जाने के बाद हम मां बेटे ही एक दूसरे का सहारा हैं। तेरे मम्मी पापा की मौत ने हमें विचलित कर दिया।हम खुद को रोक न सके। बेटे ने जाने कैसे कैसे तुम्हारा फोन नं. ढूंढ निकाला।

रवि बीच में ही बोल पड़ा- मां बेटी का मिलन समारोह संपन्न हुआ हो, तो जरा इस बेचारे का भी ख्याल हो जाय।
मां मुस्कराई और सीमा उस रवि से लिपट गई। लड़का उसके सिर पर हाथ फेर कर उसे आश्वस्त कर रहा था।
तीनों अंदर आ गए।

रवि सीमा को समझाते हुए बोला- बस अब रोना नहीं। अब तू अकेली नहीं है। तेरे साथ मां और तेरा भाई भी है।
तूझे शायद पता भी नहीं होगा। अंकल के स्थानांतरण के बाद से ही ये कलाई आज तक सूनी है। जानती है राखी का दिन रोते रोते बीत जाता था- रवि के स्वर में पीड़ा थी

सीमा भावुक हो फिर रो पड़ी। अब नहीं रहेगी भाई। कभी भी नहीं। मगर अब मुझे भी अपने साथ ले चलो। तुम्हारी बहन अब अकेले नहीं रह सकेगी। एक अकेली लड़की के लिए इस बेरहम समाज में कोई जगह नहीं है, भाई।

रो मत बहन। पहले भी तो तू हमारे साथ ही रही थी। अंकल आंटी को भी कोई एतराज़ न था। मां भी तो तुझे बेटी ही कहती थी।
हम भी यही सोचकर चले थे, कि हम तुझे साथ ले चलेंगे। अंकल, आंटी और मेरे पापा अब इस दुनिया में भले नहीं हैं, मगर तेरा ये भाई जिंदा है। उसके रहते अब तुझे परेशान नहीं होना होगा। समय का एक झोंका आया और हम सबकी खुशियों को ग्रहण लगा गया। मगर अब फिर से खुशियों का दौर लौट रहा है।

वनिता की आंखों में आंसू थे।वे अपनी बेटे को जानती हैं। उन्हें पता है कि उनका बेटा जिद्दी है, मगर गलत नहीं है। गलत सह भी नहीं सकता। पहले भी इस बच्ची के लिए उसके मम्मी पापा तक से लड़ जाता था। इस बच्ची को उसने अपनी बहन की तरह प्यार दुलार दिया है। उसकी आंखों में आसूं की एक बूंद उसे बेचैन कर देती थी। ऐसे में अब बच्ची को अकेला छोड़ने की बात बेमानी है।

रवि सीमा की चोटी खींचते हुए माहौल को हल्का करते हुए बोला- अब कुछ खिलाए पिलाएगी या तेरी रामायण ही चलती रहेगी।
सीमा ने भी चिढ़ाते हुए कहा- अरे ऐसा कैसे हो सकता है भाई। बस अभी इंटरवल होने वाला है, तो सत्तू पिलाऊंगी।
देख मां! समझा इसे, नहीं तो पिट जायेगी, फिर मत कहना ,कि अब ये बड़ी हो गई है।

हां ये बात तो तूने भली कही बेटा। अब तो ये सचमुच बड़ी हो गई है।
अरे नहीं मां। अपने भाई के लिए तो मैं हमेशा उसकी छुटकी ही रहूंगी, जो बचपन में थी। अपने हिस्से का भी खाकर रोती थी और फिर इसके भी हिस्से का मैं ही खाती थी।

रवि ने सीमा को अपनी बाहों में भर लिया और उसकी निश्छलता पर रो पड़ा, उसे सीमा आज भी वही नन्हीं सी गुड़िया लग रही थी। जिसे वो अपने कंधे पर बिठाए घूमा करता था।

वनिता को फिर से दूर जा चुकी बेटी वापस मिल गई।

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Author:

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.

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