Table of Contents
कविता संग्रह
दोहा
बाबासाहेब
कोरोना
लॉकडाउन
रोटी
सरस्वती वंदना
गुरु वंदना
आओ जाने
लोक तंत्र का पर्व
राही
ज्ञान का दीप
पंछियों की दुनिया
दोहे
चलो स्कूल चले
“दोहा”
राह निहारत मोर नैना,आए न मेरो मीत।
एक दिन हजारों वर्ष लगे,कम हुआ न मेरो प्रीत।।
नैना के पलकों पर बैठा,दिल के धड़कनों में समाया।
राह पुष्पों से सजाया, फिर भी मेरा मीत न आया।।
अमन चैन सब लें गया, स्वप्न मुझे दे गया।
याद उसकी भूलती नहीं, खुशियां सारी लें गया।।
पल – पल दुश्वार लगें, यादें हमें दें गया।
उसकी यादें भूलती नहीं, दर्द ऐसा दें गया।।
सुख दुख में साथ रहना, उसने हमें सीखाया।
मुसीबतों में भी हमें, उसने चलना सिखाया।।
“बाबासाहेब”
सन 14 अप्रैल 1891 का था वह दिन,
पिता राम जी एवं माता भीमाबाई के कोख से,
जन्मे महानायक भीमराव उस दिन।
बड़ौदा नरेश सयाजीराव गायकवाड से फेलोशिप पाया,
शिक्षा के क्षेत्रों में परचम लहराया।
1912 में मुंबई विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की,
संस्कृत पढ़ने पर मनाही के बावजूद भी फारसी में इतिहास रची।
सन 1915 में स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की,
इसके उपलक्ष्य में प्राचीन भारत का वाणिज्य नामक शोध किया।
सन 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से की पीएचडी,
उसका शोध विषय था ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकेंद्रीकरण।
उसने साइंस में एमएससी और डीएससी भी हासिल की,
विधि संस्थान में बार एट ला की उपाधि भी प्राप्त की।
उन्होंने मूक और अशिक्षित निर्धन को जागरूक के लिए,
मूकनायक और बहिष्कृत भारत सप्ताहिक पत्रिका का संपादन किया।
उन्होंने कुल 26 उपाधियां प्राप्त की,
कोलंबिया विश्वविद्यालय में एलएलडी तो उस्मानिया ने डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया।
सामाजिक एवं धार्मिक के क्षेत्रों में था उनका अहम योगदान,
आर्थिक वित्तीय और प्रशासनिक क्षेत्रों में भी कार्य किए थे महान।
2 वर्ष 11 माह 17 दिन के कठिन परिश्रम से तैयार किए,
तत्कालीन राष्ट्रपति को 26 नवंबर 1949 को सौपे थे संविधान।
सामाजिक परिवर्तक थे वह महान।।
“कोरोना”
कोरोना महामारी है,
यह आपदा भारी है।
घरों में दुबके रहो,
सबको बताइए।
मुंह पर मास्क है,
हाथ सैनिटाइज है।
बार-बार हाथ धोवो,
उपाय सुझाइए।
वैक्सीन की टिका आई,
इससे न डरें भाई।
कोरोना से लड़ने की,
एकता बनाइए।
चीन से यह आया है,
पूरे देश में छाया है।
इससे निपटना है,
डर को भगाइए।
“लॉकडाउन”
कोरोना कोरोना कोरोना,
पुरा परिवार घर मे रहो ना।
करोना महामारी का रुप लिया,
घर से बाहर निकलो ना।
मानव -मानव से दूर रहो ना,
हैण्ड़ वास से हाथ धोवो ना।
बिना धोए हाथ से नाक, मुंह,आंख छूवो ना,
कोरोना कोरोना कोरोना।
छिकते समय रुमाल का प्रयोग करो ना,
मुंह पर भी मास्क का उपयोग करो ना।
से एक मीटर की दूरी बनाकर रहो ना,
कोरोना कोरोना कोरोना।
ठंढे पदार्थों पदार्थों से दूर रहो ना,
गर्म पदार्थो का सेवन करो ना।
गर्म पानी से गलारे भी करोना,
कोरोना कोरोना कोरोना।
शुद्ध शाकाहारी भोजन करोना,
मांसाहारी भोजन से दूर रहो ना।
फलों एवं सब्जियों को गर्म पानी से धोवो ना,
कोरोना कोरोना कोरोना।
परिवार, समाज को जागृत करो ना,
सरकार के निर्देशों का पालन करो ना।
बे वजह घर से बाहर निकलो ना,
कोरोना कोरोना कोरोना।
यदि थोड़ा भी शंका हो तो ,
104 नंबर पर डायल करो ना।
नजदीकी डॉक्टर से परामर्श लो ना,
कोरोना कोरोना कोरोना।
“रोटी”
दो जून की रोटी की खातिर,
खून पसीना बहा कर भी।
उनकी इच्छाएं पूरी नहीं होती,
फिर भी अथक परिश्रम करती।।
तपतपाती धूप में भी,
अपने बदन को जलाया करती।
सुखे चेहरे फटी एड़ियां,
हार कर भी हार नहीं मानती।।
अथक परिश्रम के बदौलत,
अपनी किस्मत बदलना होगा।
हाथ की रेखाएं भी बदलेगी,
अपना भाग्य भी उदय होगा।।
भूखे रहना मेरी किस्मत में,
है मुझे अफसोस नहीं।
मुझे है अपनी मुट्ठी में ताक़त,
अपना भाग्य खुद लिखने की।।
गरीबों का उपहास कर,
गरीब बनने का भागी न बने।
क्या पता समय कब करवट लेगी,
गरीबों का मदद जरुर करे।।
“सरस्वती वंदना”
मां शारदे कहां तू,
वीणा बजा रहे हो।
किस मंजू ज्ञान से तुम,
जग को लुभा रही हो।।
हे श्वेत वस्त्र धारणी,
हंस पे सवार होकर।
सत्य असत्य से तुम,
पहचान करा रही हो।।
हे मां बागेश्वरी,
हंस पर सवार होकर।
दूध पानी को अलग कर दें,
मुझ में सत्यता को भर दे।।
हे मां भारती,
करुणा के सागर है तू।
सारा विकार दूर कर,
मुझ में भी ज्ञान भर दे।।
बीच मझधार में पड़ी नैया,
तुम बन जा पतवार।
हम ना समझी बोध बालक,
आकर पार लगा दे।।
“गुरु वंदना”
हम करते हैं तेरा गुणगान प्रभु,
मेरे सिर पर रखना करुणा का हाथ प्रभु।
सर्वदा रखना दीन दुखियों पर दया प्रभु,
उनका जीवन में आए हर्ष उल्लास प्रभु।।
जन-जन में भरदे समता का ज्ञान प्रभु,
जीवन हो निर्मल एवं नेकी का प्रतीक प्रभु।
क्रोध, मद, मोह, लोभ का करना अंत प्रभु,
मेरा जीवन आए दूसरों के काम प्रभु।।
जीवन परोपकारी एवं बने आधार प्रभु,
हम बने सदा नेक इंसान प्रभु।
मुझ में भर दे विद्या का ज्ञान प्रभु,
पाकर विद्या करूं जन का कल्याण प्रभु।
हम बने अग्र सोची एवं दूरदर्शी प्रभु,
जीवन बने सच्चाई का प्रतीक प्रभु।
मुझ में हो सत्यता एवं असत्यता की पहचान प्रभु,
करता हूं मैं तेरा गुणगान प्रभु।।
“आओ जाने”
आओ बच्चे तुम्हे सिखाएं,
गणित की प्रकृति को बतलाए।
मिलाने की क्रिया जब आए,
जोड़ की अवधारणा कहलाएं।
जहां निकालने की हो प्रवृति,
वह है घटाव की प्रकृति।
जोड़ की प्रक्रिया जहां हो बार बार,
गुणा की अवधारणा को समझो यार।
जहां घटाव की प्रकृति बार बार आए,
वही क्रिया भाग कहलाएं।
घर पर ही आधा, तिहाई, चौथाई को जाने,
इसी को भिन्न की अवधारणा माने।
एक दो तीन……… संख्याएं को जाने,
इसी को प्रकृति संख्या माने।
इसमें यदि शून्य को शामिल कर लिया जाय,
वह संख्या पूर्ण संख्या बन जाय।
जो संख्याएं दो से पूरी पूरी कट जाए,
वह सम संख्याएं कहलाएं।
जो संख्याएं दो से पूरी पूरी नहीं कटे,
ऐसी संख्याएं विषम संख्या कहलाएं।
“लोक तंत्र का पर्व”
लोक तंत्र का पर्व प्रतेक पांच साल पर आए,
चलो हम सब खुशियां मनाएं।
अपने बहुमूल्य वोटो को जरूर डाले,
लोकतंत्र को मजबूत बनाएं।।
लोक सभा, विधान सभा चाहे हो पंचायत चुनाव,
अपनी किस्मत जरूर आजमाएं।
सुयोग्य, कर्मठ, उम्मीदवार चुने,
अपने अधिकार को कभी ना भूले।।
चुनावों में होगी सत प्रतिशत भागीदारी,
लोक तंत्र मजबूती में दे हिस्सेदारी।
इस पर्व में आयेगे बहुत से उम्मीदवार,
हमे रहना है होसियार।।
कोई मीठी वाणी एवम् देगा प्रलोभन,
सच्चा साथी भेजने का करना प्रयोजन।
लोक तंत्र में अपना मत देने का है अधिकार,
इसको मत करना तुम बेकार।।
हर भारतीय को शामिल होने का जाने प्रकार,
जिसकी उम्र अट्ठारह हो वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने का है अधिकार।
जिसकी उम्र अट्ठारह हो जाए,
बी एल ओ से संपर्क कर नाम जुड़वाए।।
आओ हम सब मिलकर लोक तंत्र को मजबूत बनाएं,
अपने वोटों का प्रयोग कर स्वच्छ निर्मल लोक तंत्र बनाएं।
एक वोट से होती है हार और जीत।
अपने मतो का प्रयोग जरूर करे प्लीज।।
“राही”
जिंदगी के राहों में,
रोड़े बहुत आएंगे।
संभल संभल कर चलना होगा,
कभी खाई कभी गहराई में।।
हम राही एक मगर,
पथ अनंत होगा।
सही एवं गलत की,
पहचान हमें ही करना होगा।।
जिंदगी की दो पथो पर,
पहचान जिसकी पकड़ होगी।
राह उनका सरल होगा,
जीवन उसका निर्मल होगा।।
राही भू पर आकर,
अपने पथो को भूल जाता।
सत्यता असत्यता की पहचान न करके,
अंतिम लक्ष्य तक पहुंच न पाता।।
मद मोह क्रोध लोभ में फसकर,
अपना जीवन सुखमय बनाता।
वास्तविक सुख इसमें नहीं है,
इसको वह समझ न पाता।।
पूरा जीवन तू मैं करता,
अहंकार भरी वाणी नित्य बोलकर।
दूसरे को नीचा दिखाने में राही,
कर्तव्य पथ से भटक जाता ।।
दीन दुखियों की सेवा करना,
परोपकार करना भूल जाता।
जैसी करनी वैसी भरनी,
यह युक्ति इनको बाद में आता।।
राही अपनी अंतिम पथ को भूल जाता,
जीवन मरण सत्य है यह उनको नहीं भाता।
जो इस युक्ति को अपनाएं,
उनका राह सरल हो जाए।।
सारे कलह द्वेष को भूल कर,
सरल एवं सहज राह अपनाएं।
राही का अंतिम पथ मृत्यु है,
इसको कभी भूल न पाए।।
“ज्ञान का दीप”
आओ मिलकर हमसब ,
ज्ञान का दीपक जलाएं।
फैलाएं खुशियां चारो ओर,
चलो बच्चों को हम सब सिखाएं।।
नन्हे मुन्ने बच्चे होते मन के सच्चे,
आओ हम भी उनको,
प्यार का पाठ पढ़ाएं।
वही बच्चे सीखकर,
कामयाबी का परचम लहराए।।
कभी कलाम कभी पाटिल बनकर,
जग में मान बढ़ाए।
गुरु की महत्ता समझे,
बच्चों को खूब पढ़ाएं।।
अपने आंतरिक ज्ञान को,
मानसिक पटल पर लाएं।
शिक्षक हमेशा सोचता है
बच्चों को अपने से बेहतर बनाए।।
नई नई एक्टिविटी, प्रयोगों से,
ध्यान केंद्रित कराएं।
आओ हम सब मिलकर,
बच्चों को खूब पढ़ाएं।।
“पंछियों की दुनिया”
कोयल रानी बड़ी सयानी,
फुदक फुदक कर करती मनमानी।
कूं कूं कू कर मीठी राग सुनाती,
सबके मन को है यह भाती।
कौवा मामा बहुत चतुर,
एक आंख के है मशहूर।
कॉव कॉव जब ये करते,
अतिथि आवे जरूर।
मिट्ठू दिन भर गाना गाता,
मानव की बोली भी बोलता।
सभी फलों को कुतर कुतर कर,
मीठे होने का प्रमाण दिलाता।
गौरैया रानी फुदक फुदक कर,
मुंडेरो पर भी आया करती।
ची ची ची कर मधुर वाणी बोलती,
सभी के मन को भाया करती।
हंस होता सफेद,
जल में हरदम तैरा करता।
दूध और पानी को अलग करके,
सच्चाई का देता संदेश।
“दोहे”
जब चीता तीन कदम पिछे की ओर जावे,बयालिस हाथ छलांग लगावे।
जब तक चीता खड़ा है बचने का करें प्रयास,जब तीन कदम पिछे हटे ना करें बचने की आश।।
जब सर्प फन फैलाए खड़ा हो जावे,उसका आंख फन से ढक जावे।
जब फन भूमी पर पटके, तुरन्त वह काटे धावे।।
जब तक फन फैलाए खड़ा हो,बचने का करें प्रयास।
जब फन भूमी पर पटके,ना करें बचने की आश।।
दुश्मनी में दोस्त जब हंसकर बात करें, तब समझे वह अंदर ही अंदर भितरघात करें।
ऐसी परिस्थिति में ना करें विश्वास,बचने का करें प्रयास।।
जब कोयल बे मौसम कूंके, तब बर्षा बे-मौसम होखे।
ईंधन जुटाने का करें उपाय,तब जाकर दो जून की भोजन मिल पाय।।
जब कुत्ता रात को रोए,तब अनहोनी ज़रुर होवे।
जब कुत्ता ऐसा करें,हम सब अनहोनी से डरें।।
काली बदरी जीव डेरवावे,भुअर बदरी लेव लगावे।
काली बदरी उमड़ के आवे, तब नाही बरखा करावे।
भुअर बदरी आसमान मे छावे, ख़ूब बरखा करावे।।
“चलो स्कूल चले”
कोरोना महामारी ने विपदा लाई,
पुरे विश्व में तहलका मचाई।।
इसके आगमन ने हमें रूलाया,
सीखने-सीखाने से संचित कराया।।
भारत ने वैक्सीन बनाई,
कोरोना से निजात दिलाई।
फिर से नई उजाला आई,
अपना विद्यालय खुल गया भाई।।
चलो हम स्कूल चले,
सीखना प्रारंभ करें।
गुरुजनों से आशीर्वाद पाकर,
नव जीवन का संचार करें।।
हमें था बस इसका इंतजार,
कब खुले विद्या के मंदिर का द्वार।।
हम बच्चों में है उल्लास,
फिर से करें सीखने का प्रयास।।
खेल-खेल में सीखना अच्छी भली,
विद्यालय बंदी में बहुत खली।
कोरोना ने दोस्तों में दूरी बढ़ाई,
आओ हम सब मिलकर इसका करे विदाई।।
Author:
अशोक कुमार
न्यू प्राथमिक विद्यालय भटवलिया
नुआंव कैमूर