बाल कविता: चिड़िया
मैं छोटी प्यारी सी चिड़िया
पंख खोल उड़ जाऊंगी।
एक बार मौका दो मुझको
आसमान भी छू आऊंगी।
पेड़ की शीतल छाया में
चुग-चुग दाना खाऊंगी।
अगर प्यास जो लगी मुझे
नदी किनारे बैठ जाऊंगी।
बाकी सारे पक्षियों के साथ
मैं भी उड़ना चाहूंगी।
मैं छोटी प्यारी सी चिड़िया
पंख खोल उड़ जाऊंगी।
Author:
रश्मि सिंह, दिल्ली
बाल कविता: चिड़िया रानी
चिड़िया रानी चिड़िया रानी
लगती हो तुम बड़ी सयानी ।
कुट कुट कर दाने खाओ ना
रोज रोज मेरे घर आओ ना ।।
जब जब तुम मेरे घर आतीं
तब तब मेरा मन हर जातीं ।
कुट कुट का राग सुनाओ ना
रोज रोज मेरे घर आओ ना ।।
कुटक कुटक कर धान चवातीं
मुझको बस फाटत दे जातीं ।
इतना मुझको तड़पाओ ना
रोज रोज मेरे घर आओ ना ।।
पंख पसारे जब तुम हो जाती
तब याद सदा तुम्हारी आती ।
यूँ छोड़कर घर को जाओ ना
रोज रोज मेरे घर आओ ना ।।
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डॉ.राजेन्द्र सिंह”विचित्र’, असिस्टेंट प्रो.,तीर्थांकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश