दर्द ए दिल
ये दर्द ए दिल मोहब्बत का बताया भी नहीं जाता
मगर जो दिल पे गुज़री है भुलाया भी नहीं जाता
निकलते हैं कलम से दर्द जो मेरे ग़ज़ल बनकर
वो ऐसे हाल में तो गुनगुनाया भी नहीं जाता
वो छन छन सी छनक पायल की घुंघरू आज भी उनके
मेरे कानो में बजते हैं हटाया भी नहीं जाता
अगर हो न यकीं तो पूछ लें वो क़ैदियों से भी
की जितना वो सताए हैं सताया भी नहीं जाता
लुटा देता मै अपनी जान जिनके एक नज़ाकत पर
वो समझे तक नहीं की क्या गवाया भी नहीं जाता
बड़ा है नाफ़ह्म “काजू” जो उल्फत को लिए फिरता
बता दो हर किसी से दिल लगाया भी नहीं जाता।
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काजू निषाद गोरखपुर राजधानी