दिखावटी समाज
मन को छुपा के रख
इस झूठे दिखावटी समाज से
जो मिलने का हक ना दे
जो खिलने का हक ना दे
जो बांध कर रखे
काली रात में काले कमरे मे जंग लगी बेडी के समान
जो अपने मान के लिए करवाए
भूतकाल वर्तमान और भविष्य का बलिदान
जो इस दीवार के बाहर गया
उसे निकाला गया समाज से
पर क्यों फंसे हुए है
हम इसके जाल मे
जो दिखा रहा है
यह अपना महान होने का रूप
और इंसानो मे ला रहा है
विभाजन का एक नया स्वरूप
Read Also:
HINDI KAVITA: दहेज प्रथा
HINDI KAVITA: पिता
HINDI KAVITA: पल
HINDI KAVITA: मुक्त ही करो
HINDI KAVITA: कमाल
अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.
यह कविता आपको कैसी लगी ? नीचे 👇 रेटिंग देकर हमें बताइये।
Note: There is a rating embedded within this post, please visit this post to rate it.कृपया फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और whatsApp पर शेयर करना न भूले 🙏 शेयर बटन नीचे दिए गए हैं । इस कविता से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख कर हमे बता सकते हैं।
About Author:
नाम हेमंत सोलंकी है, निवासी दिल्ली का हूंँ। लेखक बनने का है सपना और शुद्ध कर सको समाज को यह अरमान है अपना। 🙏🏻😊