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फौजी
फौजी आन,बान,शान है
देश का गौरव,स्वाभिमान है
अपने देश के फौजियों पर
हम सबको बड़ा ही नाज है।
फौजी है तो देश सुरक्षित
दुश्मन तो पूरी तरह ही
पाता है खुद को असुरक्षित,
देश में आई हर विपदा से
आंधी, तूफान, बाढ़,महामारी
अन्यान्य प्राकृतिक आपदा में
भीषण दुर्घटना,
देशविरोधी ताकतों से
देश के भीतर बाहर
षडयंत्रकारियों से
हमें और राष्ट्र को बचाता
हमारा ही फौजी।
हर स्थिति, परिस्थिति में
डटा रहता, जुटा रहता
एक शपथ की खातिर
जान हथेली पर रखता,
देश की खातिर खुद को ही नहीं
परिवार को भी भूल जाता
हमारे देश का जाँबाज़ फौजी।
बिना डरे,झुके या विचलन के
हर हाल में भूख,प्यास और
मोह ,ममता, भय अथवा लालच के
निष्ठुर निर्मोही बनकर
सिर्फ़ कर्तव्य पथ पर डटा रहता
हमारे देश का जाँबाज फौजी।
देश ही नहीं, हम भी हैं
तभी तो पूर्ण सुरक्षित हैं,
हमारा फौजी जब मुस्तैद है
सुख सुविधा छोड़ जब डटा है।
जब हम चैन से घरों में सोते हैं
तब हमारी नींद में खलल न पड़े
सुख,सुविधा,नींद तजे दिन रात
अपने कर्तव्य पथ पर चौकन्ना
हमारे देश का जाँबाज फौजी।
जिंदगी क्या है?
मान लीजिए
जिंदगी ,गीत, मीत, संगीत है,
सलीका समझ में आ जाये तो
सबसे बड़ी प्रीत है।
बस ! जिंदगी को
जीने का अपना अपना
हरेक का तरीका है,
कोई हंसकर जी रहा है
कोई रोकर जी रहा है,
बस ! मानसिकता का फर्क है
कोई बहुत सुख सुविधा के बाद भी
जिंदगी को बस ढो रहा है,
कोई अभावों में भी
जीवन के लुत्फ उठा रहा है।
कोई किस्मत को दोष
दे देकर सुलग रहा है,
तो कोई ईश्वर का धन्यवाद कर
मस्ती में जी रहा है।
बस सिर्फ़ नजरिए का फर्क भर है
किसी को बोझ लग रहा है,
तो कोई सुकून से नाच गाकर
जिंदगी के गीत गा रहा है।
जिंदगी क्या है?
मायने नहीं रखता,
जिंदगी के प्रति
हमारा नजरिया क्या है?
फ़र्क इससे पड़ता है।
कर्मफल
यह विडंबना ही तो है
कि सब कुछ जानते हुए भी
हम अपने कर्मों पर
ध्यान कहाँ देते हैं,
विचार भी तनिक नहीं करते हैं।
बस ! फल की चाहत
सदा रखते हैं,
हमेशा अच्छे की ही चाह रखते हैं।
सच तो यह है कि
हमारे कर्मों का पल पल का
हिसाब रखा जाता है,
जो हमारी समझ में नहीं आता है।
जैसी हमारी कर्मगति है
उसी के अनुरूप कर्मफल
कुछ इस जन्म में मिलता जाता है
तो कुछ अगले जन्म में भी
हमारे साथ जाता है।
हमें अहसास तो होता है
पर अपने कर्मों पर हमारा
ध्यान ही कब जाता है?
संकेत भी मिलता है
पर इंसान कितना समझता है
या समझना ही नहीं चाहता है
बस उसी का कर्मफल
समयानुसार हमें मिलता जाता है।
जिंदगी चलती रहे
समय के साथ ही
जिंदगी भी चलती रहे,
यही बेहतर है,
क्योंकि ठहरे हुए जल में भी
सडांध उठने लगती है
वर्ष से बंद पड़ी इमारतों में भी
अवांछनीय घासपूस
पेड़ पौधे उग ही आते हैं,
आवारा पशु पक्षियों,कीड़े, मकोड़ों
जहरीले जीव जंतुओं के
पनाहगाह बन जाते हैं।
इमारत की खूबसूरती हो
या फिर भव्यता,
बीते दिनों का इतिहास बन जाते हैं।
तस्वीर
मन की आँखों से देखकर
बड़े प्यार से मैंने उसकी
खूबसूरत सी तस्वीर बनाई,
तस्वीर ऐसी कि मुझे ही नहीं
हर किसी को बहुत भायी।
आश्चर्य मुझे भी हुआ बहुत
ऐसी तस्वीर भला मुझसे
कैसे स्वमेव बन ही पायी,
खैर ! मुझे तो वो ताजमहल से
कहीं कमतर नजर नहीं आई।
पर हाय रे मेरी किस्मत
तूने ये कैसी कलाबाजी खाई,
तस्वीर ने अपने रंग दिखाये
खूबसूरत रंग दम तोड़ने लगे।
खूबसूरत सी तस्वीर भी अब
शनैः शनैः बदरंग होने लगी,
उसके अहसास की खुश्बू भी अब
मेरे मन से थी खोने लगी।
और तो और उसका चेहरा भी
उसकी तरह ही स्याह दिखने लगा,
शायद उसकी असलियत का
पर्दा अब धीरे धीरे उठने लगा।
दोष उसका या तस्वीर का नहीं
दोष मेरी सोच कल्पनाओं का था,
मैं ही बिना सोचे समझे बस
ऊपर ऊपर ही था उड़ने लगा।
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Author:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.