आमंत्रण
जिसकी उतकंठा लिये
हम सब थे श्रीमान।
आखिर अवसर आ गया,
आपको भी है ज्ञान।
आमंत्रण है आपका,
सुनहु विप्र सुजान।
जन जन में फैलाइये,
आमंत्रण महान।
जिम्मेदारी है आपकी,
ये भी लीजै जान।
जिम्मेदारी है बड़ी,
सबका देव बताय।
घर में रहकर ही करें,
प्रभु का स्वाध्याय।
उत्कंठा मन में रखें,
नहीं अयोध्या आय।
अंतर्मन से ही करें,
गुणगान प्रभु का नाम।
हर्षित जन होवैं सभी,
जपते रहें जय श्रीराम।
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002