WOH GAREEB KA BACCHA | वो गरीब का बच्चा है
शीर्षक : वो गरीब का बच्चा है
खुशियों के चंद सिक्के ढूंड लाता है
वो भूखे पेट भी मुस्कुरता है
वो गरीब का बच्चा है
खुशियों पर हक नहीं जताता है |
वो सिग्नल पर गाड़ियों के शीशे पोंछ कर
दो रोटियाँ जुटाता है
वो सरकार चुनने की बातें नहीं करता
कल सुबह कैसे गुजारा होगा
इस उलझन मे सो जाता है
वो गरीब का बच्चा है
खुशियों पर हक नहीं जताता है |
पटरी पर दौड़ती रेल गाड़ी पर
पानी की बोतलें बेंच कर
वो अपना घर चलाता है
अपनी माँ का वो ऐसे ही हाँथ बटाता है |
वो गरीब का बच्चा है
खुशियों पर हक नहीं जताता है |
आजाद राष्ट्र, सबको समान अधिकार
धर्म निरपेक्षता की मिसाल
ये सब उसको समझ नहीं आता है
वो तो सड़क के किनारे किसी फुटपाथ पर सो जाता है
वो गरीब का बच्चा है
खुशियों पर हक नहीं जताता है |
नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार
उस तक पहुँच नहीं पाता है
विकास की बातें सुनता तो है
चौराहों पर चाय की चुस्की लेकर
अखबार पढ़ते हुए लोगों से
पर समझ नहीं पाता है
वो गरीब का बच्चा है
खुशियों पर हक नहीं जताता है |
स्कूलों के दरवाजों के बाहर खड़ा
आस से निहारता तो है
पर भीतर नहीं जाता है
अपने अधिकारों से अनजान
वो हर शाम बस उलझन मे सो जाता है
वो गरीब का बच्चा है
खुशियों पर हक नहीं जताता है…..।
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मेरा नाम प्रतिभा बाजपेयी है. मैं कई वर्षों से कविता और कहानियाँ लिख रही हूँ, कविता पाठ मेरा Passion है । मैं बी•एड की छात्रा हूँ और सहित्य मे मेरी गहरी रुचि है।
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