पिता :पहले और बाद
अब महसूस होता
जब आप हमें छोड़ गये।
जब तक आप थे तब
दो बच्चों का बाप होकर भी
बच्चा बना रहता था,
तब पूरी आजादी से जीता था।
न चिंता, न फिक्र थी
हर समस्या आप तक पहुंचकर
खत्म हो जाती थी।
फिर भी आपने कभी कुछ नहीं कहा
बस!इशारों में समझाते रहे
माँ की आड़ में हम
उसे हवा में उड़ाते रहे।
छोटी छोटी जिम्मेदारियों से
मुँह चुराते रहे,
मगर आप चुपचाप
अपना फर्ज निभाते रहे,
मेरे बच्चों में
अपना अक्स निहारते रहे।
जीवन के आखिरी क्षण तक
एक पिता ही नहीं
वटवृक्ष की तरह हमें
अपने में समेटे बचाते रहे।
पर आपका अचानक
यूँ छोड़ जाना
कुठाराघात कर गया,
पिता क्या होता है?
अनगिनत थपेड़ों के बाद
अब महसूस हो रहा कि
पिता का होना क्या होता है?
और पिता को खोने के बाद
पिता बन जिम्मेदारियों को ओढ़ना
मुश्किल क्यों होता है?
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प्यार की खुशबू
आइए बाँटते हैं
प्यार की खूशबू,
ऊँच नीच,छोटे बड़े
जाति,धर्म, सम्प्रदाय को भूल
सबसे हिलमिल कर रहें
सुख दुःख में सहभागी बने
निंदा नफरत भूलकर
सुंदर, सरल,निर्मल संसार बनायें
जीवन में प्यार की खुशबू फैलाएं।
कोई नहीं है दुश्मन मेरा
सब अपने हैं भाव ये मेरा,
सब के मन में प्यार जगायें
एक नया संसार बनाएं,
सबके दिल में जग बनाएं
नहीं पराया कोई यहां पर
हम ऐसा सदभाव बनाएं,
आओ जीवन में हम सब
जन जन में विश्वास जगायें
प्यार की खूशबू फैलाएं
एक नया संसार बनाए
सबके जीवन को महकाएं।
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छिनता बचपन
यह कैसी विडंबना है कि
देश तरक्की की राह पर
आगे बढ़ रहा है,
फिर भी देश आज भी
बाल मजदूरी का दंश सह रहा है।
आज भी बच्चों का
बड़ा हिस्सा बाल मजदूरी की
भेंट चढ़ रहा है,
जाने अनजाने
छिनता बचपन
भूख की विवशता
पारिवारिक मजबूरियों की
लाचारी बेबसी के चलते
उनका बचपन छिन रहा है।
यह कैसी लाचारी है
कि आनेवाले कल भविष्य
आज बाल मजदूरी कर
पिस रहा है।
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Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002