पिता
कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता
कभी धरती तो कभी आसमान है पिता
जन्म दिया है गर माँ ने
जानेगा जिससे जग वो पहचान है पिता
कभी कंधे पे बिठाकर मेला दिखाता है पिता
कभी बनके घोडा पीठ पर घुमाता है पिता
माँ अगर पैरों पे खड़ा होना सिखाती है
तो पैरों से चलना सिखाता है पिता
कभी रोटी तो कभी पानी है पिता
कभी बुढ़ापा तो कभी जवानी है पिता
माँ अगर मासूम लोरी है तो
कभी न भूल पाऊं वो कहानी है पिता
कभी हंसी तो कभी अनुसाशन है पिता
कभी मौन तो कभी भाषण है पिता
माँ अगर रसोई है तो चलता है जिससे घर वो राशन है पिता
कभी ख्वाब को पूरी करने की जिम्मेदारी है पिता
कभी आसुओं में छिपी लाचारी है पिता
माँ अगर बेच सकती है जरुरत पे गहने
तो जो खुद को बेच दे वो व्यापारी है पिता
कभी हंसी और ख़ुशी का मेला है पिता
कभी कितना तन्हा अकेला है पिता
माँ तो कह देती है दिल की हर बात
सब खुश समेट कर जो फैला है वो आसमान है पिता।
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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊