राम सुग्रीव बाली
भटक रहे थे जंगल में जब
राम सीता की खोज में,
तभी मिले थे हनुमानजी
राम लक्ष्मण को जंगल में।
चौकन्ने रह कर हनुमत ने
अपना जब भ्रम मिटाया,
तभी राम के सम्मुख अपना
असली रूप दिखाया।
फिर सुग्रीव से हनुमान ने
राम लक्ष्मण को मिलवाया,
हनुमान ने राम का सारा
भेद लिया था जान।
मुदित हुए ये तो मेरे
मर्यादा प्रभु श्री राम,
तब हनुमत ने सुग्रीव संग
मित्रता राम का करवाया।
फिर सुग्रीव ने प्रभु राम से
अपना सारा कष्ट बताया,
श्रीराम ने तब सुग्रीव को
ढांढस बहुत बंधाया।
सुग्रीव ने रामजी को भी
ये विश्वास दिलाया,
माँ सीता की खोज में का
बीड़ा स्वयं उठाया।
श्रीराम ने सुग्रीव का फिर
कष्ट दूर कर डाला,
मार के बाली को फिर उसकी
पत्नी को मुक्त करवाया।
दुष्ट बाली भी अंत समय में
दर्शन राम का पाया,
राम के हाथों मरकर
मोक्ष धाम वो पाया।
बाली का विधि विधान से
क्रियाकर्म करवाया,
तब फिर राम ने सुग्रीव का
राजतिलक करवाया।
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002