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Hindi Kavita Shraaddh ka Bhojan

Hindi Kavita Shraaddh ka Bhojan
Hindi Kavita Shraaddh ka Bhojan | हिंदी कविता श्राद्ध का भोजन | Hindi Poetry | Hindi Poem

Hindi Kavita Shraaddh ka Bhojan | हिंदी कविता श्राद्ध का भोजन

कौआ बनकर मैं तुम्हारे
घर की मुँडेर पर नहीं आऊँगा,
अपने और पुरखों का सिर
मैं झुकाने अब नहीं आऊँगा।

मेरी ही कमाई से तुम
ऐश करते आ रहे हो,
श्राद्ध के नाम पर
सिर्फ़ नाटक कर रहे हो
सिर्फ़ दुनिया को दिखा रहे हो।

जीते जी तुमनें मुझे बेकार समझा
मरने से पहले ही तुमनें मार डाला,
मेरी दर्द पीड़ा को भी
नजरअंदाज तुम करते रहे,
प्यास से जब कभी हलकान होता
एक घूँट पानी भी मुँह में नहीं डाला।

आज जब मैं नहीं हूँ तब
तुम क्यों ढोंग कर रहे हो?
खुद की नजरों में शायद गिर रहे हो
या समाज को लायक पुत्र होने का
आवरण ओढ़कर दिखा रहे हो।

पर ये सब अब बेकार है मेरे लाल
तुम्हारे मगरमच्छी आँसुओ का
क्यों करूँ मै ख्याल?
तुम्हारी माँ के आँसू
मुझे बेचैन कर रहे हैं
तुम जैसे स्वार्थी बेटे के भरोसे
छोड़कर आने के लिए
मेरी आत्मा को कचोट रहे हैं,
हर पल आत्मा का सूकून छीन रहे हैं।

तुम्हारी माँ हर पल मुझे झंझोड़ती है
अपने पास बुलाने की
जिद कर रही है।
अब तुम्हीं बताओ मैं क्यों आऊं?
तुम्हारे श्राद्ध का फेंका भोजन
आखिर क्यों खाऊँ?

माँ से भी छुटकारा पाने की
तुम्हारी चाहत मैं भूल जाऊँ?
इससे अच्छा है अपनी पत्नी को भी
अपने पास ही बुलवा लूँ
सदा के लिए ही तुम्हारी उलझन
क्यों न खत्म करवाऊँ?

व्यंग्य: नशा मुक्ति अभियान पर कविता

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Author:

Sudhir Shrivastava

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.

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