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बदल गये हैं लोग वो….
गलतियां कोई भी करे,
उन्हे लगता है हम करते हैं….
जबकि हम सुधर गए,
गुस्ताखियां पहले से कम करते हैं….
कुछ तो बदल गये हैं लोग वो,
जिनकी फ़िक्र हम करते हैं….
नाकामियों पर मेरी ख़ुश होते हैं,
और बुलंदियों पर गम करते हैं….
बात करते करते रो न दें,
हम इसलिए,
अपनों को फोन कम करते हैं….!
मेरे बग़ैर ही…
खुद ही चले आते हैं दर्द यहां,
उन्हे हम बुलाया नहीं करते….
ख़ुश रह लेते हैं ज़बरदस्ती भी कभी,
तड़प तड़प कर हम वक्त जा़या नहीं करते….
मेरे बग़ैर ही महफ़िल जमा लेते हैं वो,
अब किसी मौके पर हमको बुलाया नहीं करते….
मुझे दिल से निकाल देने का उनका बहाना तो देखो,
घर से भी निकाल देना चाहते हैं हमको,
बेवजह ही बढ़ा दिया करते हैं किराया,
मेरे लिए वो कम किराया नहीं करते….!
बवाल नहीं करते….
अब उनके किसी फैसले पर,
हम सवाल नहीं करते,
चुपचाप रहकर ही कमाल करते हैं,
शोर करके बवाल नहीं करते….!
दर्द कहां छुपाते….
इस दुनिया में अगर,
मुस्कराहट न होती,
तो हम दर्द कहां छुपाते….
दर्द न होती,
तो हम मरहम कहां लगाते….
मरहम न होती,
तो हम शायरी कहां से लाते….
शायरी न होती,
तो हाल-ए-दिल कैसे बताते….!
कौन पूछे
अब हमें कौन पूछे,
कि तुम कैसे हो….
लोग तभी पूछते हैं,
जब अपने पास पैसे हो….
चलो खुद से ही तसल्ली देते हैं,
यार अश्वनी!
तुम जैसे थे न,तुम वैसे हो….!
अब समझ आया
वो रूठ जाए तो मैं मना लेता हूं,
मैं रूठ जाऊं तो भी मैं ही मना लेता हूं,
ओह! अब समझ आया,
मुझे उससे प्यार है,और खुद से भी,
उसे न मुझसे प्यार है और न खुद से ही….!
एक एक कतरा
कत्ल करके वो मेरा,
सुराग़ छोड़े जा रहे थें,,,
पकड़े न जाए कहीं वो, इसलिए
हम अपने ही खून का
एक एक कतरा बटोरे जा रहे थें…!
आग में पानी
बचपन में बोया था इक बबूल,
और अब हम आम खोज रहे हैं,,
पागल हैं हम,जो
आग में पानी सरेआम खोज रहे हैं….!
कुछ नजर अंदाज से
कौन बच पाया है भला, ज़िन्दगी के राज से,
ज़िन्दगी खूबसूरत बनती है,कुछ अंदाज से,
कुछ नजर अंदाज से….!
शक्तिमान थोड़े हूं
बार-बार पूछते हो, खुश हो न,
अरे यार खुश हूं, परेशान थोड़े हूं….
आधी रात को मदद मांगते हो,
इंसान हूं मैं, शैतान थोड़े हूं….
तुम हो गाजीपुर, हम हैं कानपुर,
उड़ के आ जाऊं! शक्तिमान थोड़े हूं….!
🤣🤣🤣
कशमकश में
वो मेरे आफिस देर से आती है,
और वक्त से पहले ही चली जाती है,
कशमकश में हूं कि
सस्पेंड करूं या प्रोमोट करूं उसको,
मेरा दिल जो आ गया है उसपे….!
प्रकृति
प्रकृति हमें गोंद में बिठाती है,
और हम हैं कि सर पे चढ़ जाते हैं,
फिर प्रकृति आपदा देकर समझाती है,
और हम अनदेखा कर आगे बढ़ जाते हैं….!
मौसम की बेवफाई
बाहर का शोर अन्दर जा रहा है,
अन्दर की ख़ामोशी बाहर आ रही है,
मौसम ने बेवफाई कर ली चुपके से
शरद ऋतु में बारिश हो रही है….!
चलो ठीक है
सुना है आजकल मुझे वो,
बदनाम करने लगे हैं….
तभी कहूं कैसे,
जग में इतना नाम करने लगे हैं….
बेरोजगार बैठे थे सदियों से,
चलो ठीक है,
कुछ तो काम करने लगे हैं….!
सुकून रहता है….
कितनी अजीब स्थिति है वो,
कुछ इस तरह खुद से ही
अपनी कत्ल करना,
कि ज़िन्दा भी रहे सबके लिए,
और मर भी जाए अन्दर से…
बहुत सुकून रहता है ताउम्र….!
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Author:
अश्वनी कुमार गुप्ता