Site icon Help Hindi Me

HINDI KAVITA: ये दिन

Last updated on: November 23rd, 2020

ये दिन

ये कैसी बेबसी
लाचारी है,
कोरोना भी अजीब बीमारी है।

लोगों को दूर कर दिया,
खौफ का साम्राज्य फैला दिया,
रोजी रोटी पर प्रहार कर दिया,
किसी तरह मेहनत मजदूरी कर
वैसे भी जी रहे थे,
परिवार को ढो रहे थे।

अब तो उस पर भी आरे चल गये
जीने के रास्ते अब
और मुश्किल हो गये।

कोई तो बता दो मुझे
इस हाल में हम सब
जिंदा रहेंगे भला कितने दिन?
कैसे कटेंगे ये पहाड़ जैसे दिन?

लकीर

चलो माना कि
हाथ की लकीरें
बहुत कुछ कहती हैं।

मगर सिर्फ़ इन्हीं के भरोसे
मत रहिए,
कुछ अलग कीजिये
अपने लिए खुद भी
एक लकीर खींचिये,

फिर उस लकीर को ही
बौना साबित करने की
ठान लीजिए
फिर उसके बाद
उसे भी और उसके बाद उसे भी
बौना साबित करते हुए
आगे बढ़ते रहिए।

सच मानिए
ज्यों ज्यों आप पिछली लकीरों से
बड़ी लकीर खींचते जायेंगे,
हाथों की लकीरों के भेद
अपने आप जान जायेंगे,

खुद ही मुस्करायेंगे और फिर
आगे उससे भी बड़ी लकीर बनायेंगे।

यह भी पढ़ें:
हिंदी कविता: बेटियां
हिंदी कविता: बेटी की पुकार

अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.

यह कविता आपको कैसी लगी ? नीचे 👇 रेटिंग देकर हमें बताइये।

Note: There is a rating embedded within this post, please visit this post to rate it.

कृपया फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और whatsApp पर शेयर करना न भूले 🙏 शेयर बटन नीचे दिए गए हैं । इस कविता से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख कर हमे बता सकते हैं।

Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002

Exit mobile version