ये दिन
ये कैसी बेबसी
लाचारी है,
कोरोना भी अजीब बीमारी है।
लोगों को दूर कर दिया,
खौफ का साम्राज्य फैला दिया,
रोजी रोटी पर प्रहार कर दिया,
किसी तरह मेहनत मजदूरी कर
वैसे भी जी रहे थे,
परिवार को ढो रहे थे।
अब तो उस पर भी आरे चल गये
जीने के रास्ते अब
और मुश्किल हो गये।
कोई तो बता दो मुझे
इस हाल में हम सब
जिंदा रहेंगे भला कितने दिन?
कैसे कटेंगे ये पहाड़ जैसे दिन?
लकीर
चलो माना कि
हाथ की लकीरें
बहुत कुछ कहती हैं।
मगर सिर्फ़ इन्हीं के भरोसे
मत रहिए,
कुछ अलग कीजिये
अपने लिए खुद भी
एक लकीर खींचिये,
फिर उस लकीर को ही
बौना साबित करने की
ठान लीजिए
फिर उसके बाद
उसे भी और उसके बाद उसे भी
बौना साबित करते हुए
आगे बढ़ते रहिए।
सच मानिए
ज्यों ज्यों आप पिछली लकीरों से
बड़ी लकीर खींचते जायेंगे,
हाथों की लकीरों के भेद
अपने आप जान जायेंगे,
खुद ही मुस्करायेंगे और फिर
आगे उससे भी बड़ी लकीर बनायेंगे।
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Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002