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लघुकथा: कर्ज

कर्ज

आज रामू काका की बेटी संध्या का आईआईटी में प्रवेश का परिणाम आया।सब बहुत खुश थे कि एक गरीब की बेटी तमाम आर्थिक झंझावातों के बीच सफलता की सीढियां चल रही थी,खुद रामू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था ।

उनके लिए तो ये सब सपना जैसा था।क्योंकि बेटी को उँचाई पर देखने का सपना देखने वाले रामू काका अथक प्रयासों के बाद भी उसे वो सुविधा नहीं दे पा रहे थे जिसकी उसे दरकार थी।

अचानक सारी खुशियों को ग्रहण लग गया, रामू काका पक्षाघात का शिकार हो गये।घर में इतने पैसे नहीं थे कि ढंग से इलाज हो सके।

तभी अचानक क्षेत्रीय विधायक रामू काका के दरवाजे पर आ गये।सन्नाटे का माहौल देख वे अचंभित से हुए तभी संध्या बाहर आई और विधायक जी को देखकर रोने लगी।

विधायक जी ने उसे ढांढस बँधाया,पूरी जानकारी ली और तुरंत ही अपनी गाड़ी से रामू काका को एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराया।

पत्रकारों की भीड़ ने विधायक जी की इस उदारता का राज जानना चाहा तब उन्होंने बताया कि रामू काका ने उन्हें बचपन में अपनी गोद में खिलाया है।रामू काका के इलाज और संध्या बिटिया की पढ़ाई की सारी जिम्मेदारी मैं लेता हूँ।

रामू काका का जो स्नेहिल कर्ज मुझ पर है,उसे उतार पाना असंभव है।लेकिन अब से बल्कि अभी से रामू काका की सारी जिम्मेदारी मेरी है।अब रामू काका की मैं एक न सूनूँगा,अब मैं उनको परिवार सहित अपने साथ ही रखूंगा। कहते कहते विधायक जी की आँखें नम हो गईं।

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About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002

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