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History of Ramsetu in Hindi | रामसेतु का इतिहास
नमस्कार पाठकों, आज हम आप सभी के लिए एक ऐसा विषय लेकर आए हैं जिसको लेकर लोगों में अलग अलग आस्थाएं और प्रथाएँ रही हैं। राम सेतु जिसे हम “Adam’s Bridge” के नाम से भी जानते है। आपने इसके बारे में सुना जरूर होगा अगर आप इसके “इतिहास” के बारे में भी विस्तार से जानना चाहते हैं तो आप सही जगह आए हैं।
इतिहास (History of Adam’s Bridge)
रामसेतु जिसका निर्माण त्रेता युग में भारत और श्रीलंका के बीच किया गया था। यह 100 योजन लम्बा 10 योजन चौड़ा था इस पुल की लंबाई लगभग 1200kmबताई जाती थी। रामेश्वरम मंदिर के रिकॉर्ड से पता चलता है कि 1480 ईसवी तक रामसेतु पुल समुद्र तल से ऊपर था रामायण के समय रामसेतु भारत और श्रीलंका के बीच एक कड़ी के रूप में काम करता था।
वैज्ञनिको का मानना है कि अगर सूर्य सिद्धांत के अनुसार एक योजन को आठ मील की दूरी माना जाए तो पुल की लंबाई 1200 किमी हुई, इस प्रकार आज की गणना करें तो राम सेतु की लंबाई लगभग 1000km थी, जो कि अब 48 किलोमीटर ही रह गई. रामसेतु पुल से भगवान राम और उनकी सेना, रावण से माता सीता को बचाने के लिए समुद्र पार गई थी. श्रीराम की सेना ने इस पुल का निर्माण केवल पांच दिनों में ही किया था रामसेतु जो कि रामेश्वर से शुरू होकर “श्रीलंका के मन्नार” को जोड़ता है राम सेतु पुल के प्रमाण रामेश्वरम मंदिर से प्राप्त दस्तावेजों से मिलता है।
सरंचना
राम सेतु पुल का इलाका बहुत उथला है, समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है। कुछ शोधकर्ताओं एवं दस्तावेजों के अनुसार 30 मील लंबा पुल मन्नार की खाड़ी को पाक जलडमरूमध्य से अलग करता है। 15वीं शताब्दी तक यह पुल चलने योग्य था, किसी समय यह सेतु भारत-श्रीलंका को आपस में जोड़ता था।
धनुषकोटी
ये वह जगह है जहाँ से रामसेतु का प्रारंभ हुआ था जो कि श्रीलंका के मन्नार तक जाती है इसका आकार धनुष के समान है। यह भारत और श्रीलंका के बीच स्थलीय सीमा थी इसी स्थान से रामसेतु पुल का निर्माण हुआ।
राम सेतु निर्माण में योगदान
राम सेतु निर्माण को लेकर ऐसा भी माना जाता है कि जब पुल का निर्माण किया जा रहा था तो समुद्र की लहरें बहुत तेज थी। तो भगवान श्रीराम ने समुद्र देवता की पूजा आरंभ की, जिससे समुद्र देवता प्रकट हुए और उन्होंने भगवान श्रीराम को आशीर्वाद देते हुए कहा कि आप पुल का निर्माण आरंभ किजिए मैं सभी पत्थरों का वजन संभाल लूँगा।
रामसेतु पुल के निर्माण को लेकर ऐसा भी माना जाता है कि विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील को एक ऐसा वरदान प्राप्त था जिससे कि उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए पत्थर पानी में नहीं डूबते थे। जिसकी वजह से यह पत्थर समुद्र के ऊपर ही तैरते थे इस कारण से इस पुल का निर्माण हो पाया।
लोगों की धार्मिक आस्था के अनुसार इस पुल का निर्माण ईश्वरीय चमत्कार माना जाता है कि कोई भी पत्थर समुद्र में डूबता नहीं था क्योंकि उस पर श्रीराम का नाम अंकित था, माना जाता है कि भगवान श्री राम और नल-नील सहित समस्त वानर सेना के साथ मिलकर भगवान श्रीराम राम ने इस पुल का निर्माण किया।
रामसेतु पुल निर्माण को लेकर एक रोचक तथ्य यह भी है एक छोटे से जीव गिलहरी ने भी बुराई के खिलाफ धर्म की जीत के लिए इसके निर्माण कार्य में अपना योगदान दिया। गिलहरी ने अपनी आत्म-सतुंष्टि के लिए अपने शरीर के माध्यम से पुल निर्माण में थोडी-थोडी रेत लाकर पुल पर डाली।
लेकिन इसके विपरीत अगर साइंस की मानें तो ज्वालामुखी से निकलने वाले कुछ विशेष प्रकार के पत्थर थे जो कि बहुत हल्के होने की वजह से पानी में तैरते हैं जिसकी वजह से इस पुल का निर्माण सम्भव हो पाया. वैज्ञनिको का मानना है कि नल और नील को यह पहले से आभास था कि यह पत्थर डूबेंगे नहीं, इनका मानना है कि रामसेतु पुल के निर्माण के लिए जिस पत्थर का प्रयोग किया गया था उसे (प्यूमिक माइंस) स्टोन कहा जाता है यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होता है। जब लावा की गर्मी वातावरण की कम गर्मी ओर ठंडे पानी से मिलती है तो कुछ अलग कणों में बदल जाती है।
खंखरे पत्थर
ऐसा भी कहा जाता है कि राम सेतु पुल निर्माण में जिन पत्थरों का प्रयोग किया गया था उनमें कई सारे छेद होते थे इन छेद की वजह से इन पत्थरों को एक-दूसरे पत्थर के साथ खड़ा करना आसान हो जाता था। इन पत्थरों का वजन अन्य पत्थरों के मुकाबले कम होता था। जब इन पत्थरों में हवा भर जाती थी तो ये पानी के ऊपर तैरने लगते थे। लेकिन जब इनमें पानी भर जाता था तो यह समुद्र के नीचे डूब जाते थे।
महत्वपूर्ण वैज्ञनिक शोध कार्य
नासा(National Aeronautics and Space Administration) जो कि विश्व कि सबसे विख्यात वैज्ञनिक संस्था है, जिसने सैटलाइट कि मदद से रामसेतु पुल की खोज की।
भारत के दक्षिण में धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भूभाग के उपग्रह से खींचे गए चित्र को अमेरिकी अनुसंधान नासा ने 1993 में जारी किया।
ऐसा भी कहा जाता है कि राम सेतु पुल का चित्र नासा ने 1966 में जेमिनी 11 आंतरिक से प्राप्त किया. अमेरिकी टीवी शो Ancient Land Bridge में अमेरिकी पुरातत्त्वविदों ने वैज्ञानिक आधार पर कहा है कि यह बात सच भी हो सकती है कि यह पुल 7000 साल पुराना हो।
माना जाता है कि जब श्रीलंका के मुसलमानों ने इसे आदम पुल कहा तो ईसाई और पश्चिमी लोगों ने इसे एडम्स ब्रिज का नाम दिया और रामायण में इसे रामसेतु की संज्ञा दी गई है।
रामसेतु पुल क्यों तोड़ा
पौराणिक ग्रथों के अनुसार माना जाता है कि जब भगवान श्रीराम, रावण के भाई विभीषण का हाल जानने लंका जाते है तब विभीषण कहते है अगर इस पुल से कोई बाहरी मानव हम पर हमला करेगा तो क्या होगा तभी इस समस्या के समाधान के लिए भगवान श्रीराम ने अपने धनुष बाण से इसके दो टुकडे कर दिये
लेकिन अगर साइंस कि माने तो कहा जाता है कि यह पुल 1480 ईसवी में चक्रवात के आने से यह सेतु टूट गया था।
लेकिन आज भी इस ब्रिज के प्रमाण देखने को मिलते है।
हमें उम्मीद है आपको इस लेख से रामसेतु पुल (Adam’s Bridge) के इतिहास से सम्बधिंत बहुत सी रोचक बाते जानकर अच्छा लगा होगा हमने आप सभी पाठकों के लिए Adam’s Bridge से सम्बधिंत इतिहास को बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत किया है।
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Author:
भावना, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में ग्रैजुएशन कर रही हूँ, मुझे लिखना पसंद है।