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डर दूर हो गया

Dar Door Ho Gaya
संस्मरण: डर दूर हो गया Dar Door Ho Gaya

संस्मरण: डर दूर हो गया | Dar Door Ho Gaya

कुछ माह पूर्व काफी सोच विचार करने के बाद मैंने सरल, सहज, प्रेरक व्यक्तित्व, वरिष्ठ कवि/गीतकार डा. देवेन्द्र तोमर जी से उनके पटल पर डरते डरते अपने लाइव काव्यपाठ के लिए लिखा।

दो तीन में ही जब उन्होंने स्वीकृति दी, तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। क्योंकि उनके पटल पर जिन्हें भी मैं लाइव देखता सुनता रहा, वे सभी श्रेष्ठ जन रहे, उससे मेरे मन में डर भी था, कि क्या मुझे भी उनके पटल पर अवसर मिल सकेगा।

खैर! जैसे तैसे नियत तिथि पर अपने डर को मन में छिपाये मैंने अपना काव्यपाठ किया। मेरे लिए हर्ष की बात यह रही कि कई श्रेष्ठ जनों ने मेरे काव्य पाठ का नं केवल श्रवण किया, बल्कि हौसला अफजाई भी की।जो मेरे लिए किसी बड़े सम्मान से भी बड़ा था।

रात डाक्टर साहब ने मुझे मैसेज कर मेरे काव्य पाठ की तारीफ करते हुए बधाइयां शुभकामनाएं दी, उनका यह कहना कि सबने आपके काव्य पाठ की बहुत तारीफ की।यह जानकर मैं गदगद हो गया। साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि जब भी मैं काव्य पाठ करना चाहूं, अवगत कराऊँ। मुझे अवसर जरुर देंगे। ये तो सोने में सुहागा जैसा था।

सच कहूं तो इससे पूर्व मैं डा. तोमर के आभामंडल से इतना डरता था कि की बार इच्छा होते हुए भी मैसेज तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। लेकिन वे इतना सरल और प्रेरक व्यक्तित्व होंगे, ये तो मैं सपने में भी नहीं सोचता था, यूँ कह सकते हैं कि मेरी सोच के एकदम विपरीत। ये डर भी मुझे उनके एक साक्षात्कार को सुनते हुए हुआ। उस समय तो ऐसा लग रहा था इतना बड़ा व्यक्तित्व हम जैसे छोटे रचनाकारों के मैसेज भी शायद नहीं देखता होगा। जवाब क्या देगा? या उनके पास इतना समय ही नहीं होता होगा।

सचमुच उनके सरल, सहज और प्रेरक व्यक्तित्व ने मेरी नज़रों में उनका स्थान बहुत ऊँचा कर दिया है। उनके चरणों में मेरा कोटिश: प्रणाम, नमन।

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Author:

Sudhir Shrivastava

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.

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