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सत्याधारित कहानी: रिश्ते का सूत्र

Satyaadhaarit Kahani Rishte ka Sutr
Satyaadhaarit Kahani Rishte ka Sutr | सत्याधारित कहानी रिश्ते का सूत्र

सत्याधारित कहानी: रिश्ते का सूत्र

पिछले दिनों मेरा सबसे प्यारा दोस्त कनक मुझसे मिलने आया। उसके चेहरे की उदासी देख मैं समझ गया कि कनक कुछ परेशान सा है। मैंने पूछा भी, तो टाल गया। मगर मैं भी कहां छोड़ने वाला। वैसे भी वो मुझसे हर छोटी बड़ी बात साझा किया करता है।

रात में मैंने उससे फिर अपना सवाल दोहराया तो वह मायूस सा होकर बोला- यार मुझे लगता है कि मैं पागल हो जाऊँगा। जितना सोचता हूँ उतना उलझता जाता हूँ यार।

आखिर हुआ क्या है? पूरी बात तो बता।
सबसे पहले तो मैं तुझे ये बता दूं कि मेरी समस्या यह है कि मुझे समझ में नहीं आता कि इस रिश्ते का सूत्र क्या है? इस जन्म का तो है नहीं, तो क्या पूर्वजन्म का कोई रिश्ता, इस जन्म में पुनर्जीवित हो गया है?

तू ही बता मेरे यार! ये कैसा भ्रमजाल है, जिससे मैं जितना दूर जाना चाहता हूँ, उतना ही उलझता जा रहा हूँ।
मेरा सबसे प्यारा होनहार मित्र कनक मुझसे अपनी परेशानी का हल मांग रहा था, जिससे मैं खुद किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया हूँ।
फिर उसने पूरी की पूरी रामकथा सुनाई।

कनक के अनुसार एक मानवीय सहायता उसे इतनी भारी पड़ जायेगी, तो वो उसे मर ही जाने देता। जाने वो कौन सा मनहूस पल था,जब मैंने दुर्घटना ग्रस्त उस बच्ची की, हाँ मेरे लिए वो बच्ची ही तो है, जान बचाने का फैसला किया था। ऐसा नहीं था कि मैं अकेला ही वहाँ था,अच्छी खासी भीड़ थी। मगर मुझे तो उसकी जान बचाने का भूत सवार था।सो उसे अस्पताल पहुंचाया। न कोई जान, न पहचान, नाम तक नहीं जानता था। फिर भी उसे बचाने और पुलिस के लफड़े से खुद बचने के लिए न केवल उसे अपनी बहन बताया, बल्कि उसके लिए खून तक दिया, अपने दोस्तों तक से उसकी खातिर खून की सिफारिश की और तब जाकर एक सप्ताह में उसके बचने की खुशी का अहसास हुआ।
इस एक हफ्ते में उसके बारे में कुछ नहीं जान पाया। बस एक बला सी वो मेरे सिर पर जरुर सवार हो गई।

उस दिन भी मैं उसके बेड से सिर टिकाए बैठा था,जब मुझे अपने सिर पर कुछ महसूस हुआ। मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली।
उसने बहुत धीमी आवाज में कहा -मैं यहाँ कैसे? आप कौन हैं और रो क्यों रहे हैं?

फिलहाल तो तुम मुझे अपना भाई ही समझो, अस्पताल रिकार्ड में भी यही लिखाया है मैंने। बस बोलो मत , सिर्फ सुनो, अधिक बोलना खतरनाक हो सकता है।

फिर मैंने उसे सब कुछ बता दिया।

उसने अपना नाम अंजली बताया।उसके आंखों से बहते आँसू जैसे कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे थे।
इस एक सप्ताह में पिताजी ने पैसे की कोई कमी तो नहीं होने दी, मगर आशंकाओं के डर से वे एक बार भी अस्पताल के भीतर तक नहीं आते थे। हां मां को अस्पताल के बाहर तक छोड़ने और लेने जरुर आते रहे। माँ का अधिकतर समय अस्पताल में ही बीतता। जिससे मुझे थोड़ी निश्चिंतता रहती।

आज दसवें दिन अंजली ने मेरा हाथ पकड़ा और विह्वल सी होने लगी, मैंने उसे ढांढस बंधाया। फिर उसने अपने घर का पता बताया। जो हमारे शहर से एक हजार किमी. दूर का था। मुझे अपने पापा का नंबर बताया। मैंने मिलाया तो उधर से परेशान सा स्वर सुनाई पड़ा- कहां हो बेटा, कितने दिन से तुम्हारा फोन नहीं मिल रहा है।तुम्हारी मां बीमार पड़ गई।

मैंने फोन उसे पकड़ा दिया। परेशान मत हो, पापा । मैं ठीक हूं। बस आप माँ को लेकर आ जाओ।

मगर बात क्या है बेटा? तुम्हारी आवाज़ को क्या हुआ?

मैंने फोन उससे अपने हाथ में लेकर कहा- कुछ नहीं अंकल। आप परेशान मत हों। निश्चिंत रहें। लेकिन आ जायें, मगर आराम से। आपकी बेटी को कुछ नहीं हुआ, बस थोड़ा बीमार है।

मगर आप कौन हो बेटा?

आपने बेटा बोल दिया न, तो आपका बेटा हूँ।मेरा नाम कनक है। मैंने कहा न ,आप परेशान न हों। अब तो ये हमारी बहन भी है।

उधर से रोने की आवाज आई। मैंने उन्हें समझाया, ढांढस बंधाया और ये भी कह दिया कि विश्वास करने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं है। इसलिए थोड़ा धैर्य रखिए, सब ठीक है।

अंजली ने मेरे हाथ से फोन लिया और बोली- पापा परेशान मत हो, मैं ठीक हूँ, बाकी आप आओगे तो सब बता दूंगी। कनक भाई साहब और इनकी माँ मेरे साथ हैं, थोड़ी तबियत बिगड़ी थी, तो कल यही लोग मुझे अस्पताल में भर्ती करा दिए और तबसे मेरे साथ ही हैं।
ये माँ जी तो जैसे अपनी बेटी जैसा मेरा ध्यान रख रही हैं।
और हां, जब आइए तो इसी नंबर पर काल कीजिएगा। मेरा फ़ोन घर पर है, शायद डिस्चार्ज भी।

और फिर उसे अगले दो दिनों बाद अस्पताल से घर ले आया, क्योंकि अभी भी उसे अकेला छोड़ना उचित नहीं था। पापा ने विरोध किया भी किया कि एक अंजान जवान लड़की को इस तरह घर में रखना ठीक नहीं है।

तब माँ ने प्रतिवाद किया सब कुछ ठीक है। मगर इस हालत में अकेला छोड़ना भी उचित नहीं है। जिसकी जान बचाने के लिए बेटे ने दिन रात एक कर दिया, उसकी कोशिश को यूं ही जाया होने नहीं दूँगी मैं। इसके माँ बाप आ जायें, फिर देखते हैं।

माँ की बात सुनकर पापा ने हथियार डाल दिए। दो दिन बाद उसके पिता ने मुझे फोन किया। मैंने पहले उस लड़की की बात कराई, ताकि वे निश्चिंत हो सकें।

फिर मैं उन्हें लेकर घर आ गया। लड़की पहले माँ से, फिर पापा लिपटकर रोती रही। मेरी माँ ने पूरी बात बताई। तब जाकर उन दोनों को तसल्ली का अनुभव हुआ।

अंजली के माता पिता मेरी मम्मी के साथ दूसरे कमरे में चले गए। उनके स्नान, नाश्ता,खाने की व्यवस्था में मां पापा लग गये।

अंजली ने मुझे इशारे से रोक लिया। मैं उसके इशारे पर उसे उठाकर सावधानी से बैठा दिया। उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने सामने बैठा लिया।

क्या बात है अंजली तुम अब भी कुछ परेशान सी हो।अब तो मम्मी पापा भी आ गये हैं। मैंने पूछा

अंजली ने मेरा हाथ अपने सिर पर रखकर वादा लिया कि वो उसे गलत न समझे।
मैंने बिना कुछ जाने ही वाला कर लिया।

भाई साहब! मम्मी पापा के लिए ही तो मैं यहां चली आई थी। ईश्वर ने भी सहायता की । जो मुझे यहां नौकरी भी आसानी से मिल गई। मगर इस दुर्घटना के बाद तो मुझे फिर से अंधेरा ही दिखने लगा है। क्योंकि पापा जबरन मुझे अपने साथ ले जाना चाहेंगे।

मगर तुम ऐसा क्यों सोचती हो। वो तुम्हारे माँ बाप हैं। तुम्हारा भला ही चाहेंगे। आप ठीक कह रहे हो। मगर मैं भी उनकी ही खुशी चाहती हूं। वो रो पड़ी

यार देख ! ऐसा कर तू पहले जी भरकर रो ले। ताकि तेरे मन को तसल्ली मिल जाए और तेरी भूख भी बढ़ जाय।

आपको मजाक सूझ रहा है, मुझे भूख नहीं है। मुझे कुछ खाना भी नहीं है।

तो चुपचाप सो जाओ। तुम्हारी दवाएं भी मैं खा लूंगा।तुझे आराम मिल जायेगा।

आप भी क्या बोलते हो? समझ में नहीं आता।

क्योंकि मैं पागल जो हूं। बेवकूफ था जो तेरी जान बचाने के लिए परेशान था।

ऐसा तो मैंने कुछ कहा नहीं।

हाँ तू तो बड़ी समझदार है। मुझे कुत्ते ने काट लिया है।

जाइए! मुझे आपसे कुछ कहना ही नहीं है? जो मेरी किस्मत लिखा होगा, सह लूंगी। आपकी तो बहन है नहीं, मजबूरी में मुझे बहन बना लिया, आप क्या समझो, बहन क्या होती है।कहते हुए अंजली स्वयं ही लेट गई।दर्द की लकीरें उसके चेहरे पर साफ झलक रही थीं।

मैंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा तो वो मेरी हथेली में मुँह छुपाकर रो पड़ी।

रोते नहीं हैं बेटा। मैंनें उसे समझाया।

मैं भी रोना नहीं चाहती भाई साहब। किसी तरह खुद को संभाल कर जी रही हूं।

शायद यह मेरा सौभाग्य है या दुर्भाग्य, मगर आपने मुझे बचाकर शायद अपना दुर्भाग्य बुला लिया है।

ये तू कैसी बातें कर रही है? पागल हो गई है क्या?

सही कह रही हूं। मगर अभी आप जाओ। नहा लो , मम्मी मेरे कपड़े बदलना देंगी। आज मुझे आपके हाथों खाना है।

मैं उसके सिर पर सिर रखकर सिसक पड़ा। जरुर बहना।

मैं नहाने के बाद एक थाली में खाना ले आया और अंजली को खिलाने के साथ खुद भी खाया। मेरी मां दरवाजे पर खड़ी सब कुछ देख रही थी।

वो पास आती और मुझसे बोली- अरे बेशर्म कम से कम अपना नहीं तो बच्ची का ही ख्याल करता।

अँजली ने मां से पूछा-क्या हुआ माँ?

तू भी कम नहीं है? शर्म तो है ही नहीं तुम दोनों को। खाना खाते समय रोने का कौन सा नियम है?

हम दोनों मौन हो गए।

मां ने दोनों को बाँहों में भर लिया और सिसक पड़ी।

खाते समय रोते नहीं है मेरे बच्चों। अन्नपूर्णा देवी नाराज़ हो जाती हैं।

आप भी माँ, क्या बोलती हो? मेरी अन्नपूर्णा तो इस समय आप ही हो। अंजली बोलते हुए मुस्कराई

पगली है तू। तूने मुझे माँ कह दिया। बस इतना ही काफी है पगली।

माँ ने अंजली को पानी पिलाया, उसका मुंह साफ किया और फिर सावधानी से लिटा दिया।

अँजली ने माँ का हाथ पकड़कर कहा- माँ मुझे आप से कुछ कहना है, मगर अभी नहीं।

शाम को सब लोग मेरे पास बैठना तब। वैसे तो जो मैं कहना चाहती हूं, वो उचित नहीं है, लेकिन अब आप भी मेरी मां हो, तो छुपाकर रखना भी ठीक नहीं है।

जो तेरे मन में हो, खुलकर कहना बेटी। संकोच की जरूरत नहीं है। जो भी हमसे बन पड़ेगा, जरुर करेंगे।

रात खाने के बाद सभी अंजली के पास थे। मैंने परिहास किया कि मैं सोने जाता हूं। इतना सुन अंजली ताव खा गयी।

फिर तो सब जायें, सोयें। मुझसे मतलब ही क्या है किसी को।

मां ने मुझे चुप रहने का इशारा किया। मैं चुपचाप बैठ गया। अंजली ने मुझे अपने पास बुलाकर बैठाया और मुझसे बोली कहना तो सही मायनों में आपसे ही है। क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आपने जिसे बिना जान पहचान के बहन बना लिया, बेटी बोलने लगे, उसके लिए आपके मन में संदेह पैदा हो।

अरे अब बको भी दादी माँ।

संक्षेप में बता देती हूं भाई, मेरे मम्मी पापा को तो पता ही है।

अंजली के पापा बीच में ही बोल पड़े- मगर ये क्या उचित होगा बेटा। कनक को तुम भाई बोलती हो, उससे गड़े मुर्दे उखाड़ने का क्या मतलब है?

मतलब है पापा! जिसने बिना जाने पहचाने मेरी जान बचाने के लिए क्या कुछ नहीं किया, उससे मैं कुछ भी छिपा कर रखना नहीं चाहती। भाई बना है तो उसका भी ये अधिकार है कि उसे भी ये पता तो हो उसने जिसकी जान बचाने के लिए बहन जैसा पवित्र रिश्ता मजबूरी में ही सही, मगर जोड़ ही नहीं लिया, उसका मान भी रखा, उसकी मुंहबोली बहन ही सही, उसके साथ क्या कुछ हुआ। हो सकता है कि हादसा हुआ भी इसीलिए हो, कि शायद कुछ अच्छा हो सके।

अंजली ठीक ही तो कह रही है। सही मायने में अँजली पर हमसे ज्यादा अधिकार इन लोगों का है। लेकिन बेटी ये बात तो तू कनक को कभी भी पता सकती थी।

जरुर बता सकती थी, माँ लेकिन शर्म आती है। बहन बेटी हूं न। इसीलिए सबके सामने कहना चाहती हूँ। मुझे पता है मेरा ये नया नवेला भाई बहुत भावुक है, शायद पागल भी। उसे संभालने की जरूरत पड़ सकती है। तो आप लोग रहोगे तो ठीक है।

अब मुझसे रहा न गया तो बोल ही पड़ा- जो बोलना है बोल। चिंता मत कर। मैं भावुक, पागल हो सकता हूं, मगर कमजोर नहीं।

मुझे पता है मेरे भाई। तभी तो हिम्मत कर पा रही हूँ दरअसल दो साल पहले मेरे साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था।

मैं ही नहीं मम्मी पापा भी सन्नाटे में आ गये कि एक मासूम सी बच्ची के साथ इतना बड़ा हादसा।

मैंने हिम्मत करके उसे अपने में समेट लिया और उसके सिर पर अपना हाथ फेरने लगा। उसके आँसू मेरे शर्ट को भिगो रहे थे। रोते रोते ही उसने कहा – हाँ भाई! उसके बाद मैं यहां चली आई , नौकरी मिल गई।तब से यहीं हूं। फिर दुर्घटना और उसके बाद सब कुछ आप जानते हैं।

अब तू क्या चाहती है?

कुछ नहीं भाई! बस मैं उस शहर में दुबारा कदम नहीं रखना चाहती। अपने ज़ख्म हरे नहीं करना चाहती।

मगर बेटा! जीवन इतना आसान भी नहीं है। फिर वे तुम्हारे मम्मी पापा हैं। हादसे से डरकर जीना तो नहीं छोड़ सकते।

जी ही तो रही हूं। मगर आप सोचो कि मेरी जिंदगी में बचा क्या है?

मैंने माँ को संबोधित करते हुए कहा- माँ तू ही इसे समझा। अभी इसकी उम्र ही क्या है? शादी हो जायेगी , तो सब कुछ भूल जायेगी।

कनक ठीक ही तो कह रहा बेटी। माँ ने अंजली को आश्वस्त करते हुए कहा

अंजली ने अपने आँसू पोंछे- सब मर्द एक जैसे होते हैं माँ। भाई भी तो मर्द ही है न। कौन करेगा मुझसे शादी?

अंजली के माता पिता किंकर्तव्यविमूढ़ से हो गये।

मैंने अंजली को समझाने की कोशिश की ।देख बेटा दुनिया में हर कोई एक जैसा नहीं है। बहुत सारे लड़के मिल जाएंगे।जो तुझे पलकों पर बिठा कर रखेंगे। हर समय एक सा नहीं होता। जीवन में हादसे होते ही रहते हैं। फिर भी हमारा तुझ पर न तो हक है और न ही दबाव। जैसा तू चाहेंगी, वैसा ही होगा,सबकी ओर से मेरा वादा है।

ये जिंदगी आपकी दी हुई है भाई। जैसा आप चाहें, जो आपको बेहतर लगे। क्योंकि मुझे लगता है कि आज मेरी खुशी किसमें है , आपसे बेहतर कोई नहीं सोच सकता। मेरे मम्मी पापा भी नहीं। अंजली सिसक उठी

पहली बार मेरे पापा अंजली के पास आये और अंजली के सिर पर हाथ रखकर उसे भरोसा दिलाया कि अब से तू हमारी बेटी हुई। तू अब यहीं हमारे साथ रहेगी , हम एक पिता का फ़र्ज़ जरुर निभाएंगे। अब तो खुश हो जाओ बेटा। अब तो तू दो दो मां बाप की बेटी है। अब तू बीती बातों को भूलकर नये सिरे से जिंदगी शुरू कर।
हम तेरी शादी ऐसे लड़के से करेंगे,जो तेरी पिछली जिंदगी को भूलकर तुझे जमाने भर की खुशियां देगा।

अंजली पापा का हाथ थामें रोती रही।

अंजली के माता पिता ने सहमति दे दी और यह भी कि कन्या दान का दायित्व भी कनक के माता पिता ही निभाएंगे। इसी में हमारी भी खुशी है।

और फिर धीरे धीरे अंजली स्वस्थ होकर हमारे ही घर से ड्यूटी जाने लगी। उसका सामान हमनें उसके कमरे से अपने घर मंगवा लिया। माँ के साथ बेटी सी घुलमिल गई है। मेरा भी छोटी बहन जैसा ही ध्यान रखती है। मगर कभी कभी उसका गुस्सा देख डर भी लगता है, क्योंकि वो बोलती भी बहुत कम है।

सबके सामने खुश तो दिखती है, मगर बहुत बार अकेले में रोती भी दिख ही जाती। तब जल्दी से अपने आँसू पोँछ खुश दिखाने की नाकाम कोशिश भी करती।एकदम छोटी बच्ची ही मासूमियत के साथ लिपटकर सिसक उठती है।

ऐसे तो सब कुछ ठीक चल रहा है। मगर वो हमेशा मेरी आंखों के सामने रहती है। सोने जाता हूं तो उसके भविष्य की चिंता रुलाती है। कभी तो लगता है कि वो मेरे सिरहाने बैठ मेरे सिर पर अपना हाथ रख हिम्मत देती है, सब ठीक हो जायेगा, का भरोसा दिलाती है। जैसे वो ही मेरी माँ हो। आँख खुलती है, तो जैसे आँखों के सामने तितली की तरह उड़ती सी लगती है।

कनक के आँखों से बहते आँसू उसके विह्वल मन की पीड़ा बखान कर रहे हों।

यार! तो अब तू क्या चाहता है? मैंने कनक से पूछा

क्या बताऊं यार? अंजली की खुशी के अलावा कुछ भी नहीं चाहता। मम्मी भी अब उसके भविष्य को लेकर चिंतित रहने लगी हैं। स्वाभाविक भी है, माँ जो हैं।पापा और हमनें उसे आश्वस्त तो कर दिया, मगर उसे पूरा करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। जैसे उसका पूर्वजन्म का कोई कर्ज है, जिसे इस जन्म में उतारने की हमारे ऊपर बड़ी चुनौती है। उसके साथ हमारे रिश्ते का सूत्र कब और कितने जन्मों से जुड़ा है और इस जन्म में फिर से कैसे और क्यों जीवंत हो गया है या उसका कोई क़र्ज़ हम पर शेष है, जिससे उद्धार मिलेगा भी या नहीं? उससे किया वादा हम पूरा भी कर पायेंगे या नहीं। यही सब प्रश्न सूकून की एक सांस तक नहीं लेने देते।

अब तो उसकी रगों में भी मेरा खून दौड़ रहा है।अब तो यह भी नहीं कह सकता कि उससे हमारा खून का रिश्ता नहीं है। शायद इसीलिए जब कभी मुझे परेशान देखती है, तो बिल्कुल माँ की तरह दुलार करती है, हौसला बढ़ाती है, ऊपर से जब कभी वो कहती है कि भाई इतना क्यों परेशान होते हो। मेरे भाग्य में जो होगा, वहीं न मिलेगा, तब कलेजा फटने लगता है। हमें समझाते समझाते वो बिल्कुल दादी अम्मा सी बन जाती है। कहते कहते कनक व्याकुल सा हो रहा था।

तू तो लेखक है यार। तू ही कोई रास्ता तलाश न। मैं जानता हूं कि ये सब इतना आसान भी नहीं है, मगर फिर भी…..।

देख भाई! तेरी समस्या का हल मेरे पास है, अगर तू चाहे तो मैं अंजली का हाथ थामने को तैयार हूँ। मैंने  सीधे साफ शब्दों में अपनी बात रख दी।

मगर तू जानता है न कि तू क्या कह रहा है? अंजली…..।

हाँ, सब जानता भी हूँ और समझता भी।मैंने सोच समझकर ही बोला है। अंजली से मैं भी मिला हूँ। तू तो जानता है कि मेरा इस दुनिया में चंद दोस्तों के अलावा कोई नहीं है। मैं अँजली को जमाने की हर खुशी दूँगा, ये वादा है। जो बीत गया वो हादसा था। वर्तमान में जीना मेरी आदत है। यह अलग बात है कि तुम्हें, अंकल,आंटी या अँजली को नहीं पसंद हो तो कोई बात नहीं।

नहीं यार! ऐसा मत सोच। अँजली हमारे हर फैसले का सम्मान करने को तत्पर है। बस मुझे ही डर लगता है।बहुत से लड़के देखे, मगर मैं खुद संतुष्ट नहीं हो पाया। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि उसके मन में सपने में भी यह बात आते कि वो मेरी सगी बहन नहीं है, तो मैंने ऐसा हो जाने दिया।

मैं भी तो यही चाहता हूं मित्र कि हमारे रिश्ते अविश्वास और बदनामी के अंधेरे में गुम न हों, अँजली का जो भी निर्णय होगा, हम सबको स्वीकार ही होगा, लेकिन अँजली के भविष्य की खातिर हमें उसके जीवन में जीवनसाथी का नवरंग भी भरना ही होगा। जिससे वह अतीत से बाहर आ सके। जरुरी भी नहीं कि उसका जीवन साथी मैं ही बनूँ, मगर उसके चेहरे पर खुशियां लाना है, तो हम सबको कैसे भी ये करना ही होगा।

कनक मुझसे लिपट कर रो पड़ा।शायद उसे उसके और अँजली के रिश्ते का सूत्र मिल गया था।

मानसिकता पर लघु कथा

लेख: दोषी हम भी

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Author:

Sudhir Shrivastava

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.

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