लावारिस
गरीबी से लाचार विष्णु अब पिता की दुर्दशा देखी नहीं जा रही थी।जहां खाने के लाले पड़े हों,वहां वह अपने पिता का इलाज कराये भी तो कैसे?
दिन रात भगवान से यही प्रार्थना करता हे प्रभु! बस अब बहुत हो चुका ,अब तू हम बाप बेटे को उठा ही ले।
लेकिन ऐसा होता कहाँ है?
आखिर उसनें अपने आप को मजबूत किया और और पिताजी को अस्पताल में चुपचाप छोड़कर अस्पताल से बाहर सड़क पर आया और एक तेज रफ्तार से आ रहे कैंटर के सामने कूद पड़ा जब तक किसी के कुछ समझ में आता तह तक विष्णु के पर खच्चे उड़ गये।
ऊधर उसके पिता भी चल बसे। दोनों का पोस्टमार्टम कर लाश को लावारिस घोषित कर दिया गया ।
प्रशासन ने दोनों का अंतिम संस्कार करवा दिया।
Read Also:
नारी मन की पीड़ा
समाज में नारी का अस्तित्व
अर्धांगिनी
अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.
उम्मीद है आपको यह लेख पसंद आया होगा। कृपया नीचे 👇 रेटिंग देकर हमें बताइये।
Note: There is a rating embedded within this post, please visit this post to rate it.कृपया फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और whatsApp पर शेयर करना न भूले 🙏 शेयर बटन नीचे दिए गए हैं । इस लेख से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख कर हमे बता सकते हैं।
Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002