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गुरु दत्त की जीवनी | Biography of Guru Dutt in Hindi
गुरु दत्त बॉलीवुड के महान फिल्म निर्माताओं में से एक रहे हैं। गुरु दत्त एक अभिनेता, फिल्म निर्माता और निर्देशक थे। गुरु दत्त की खुद की जिंदगी भी एक फिल्म से कम नहीं रही है, तो आइए जानते हैं इनके जीवन के पहलुओं के बारे में कुछ बातें-
वास्तविक नाम | वसंतकुमार शिव शंकर पादुकोण |
जन्म तिथि | 9 जुलाई, 1925 |
जन्म स्थान | बेंगलुरु, मैसूर राज्य |
मृत्यु तिथि | 10 अक्टूबर, 1964 |
मृत्यु स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राशि | कर्क |
पिता का नाम | शिव शंकर राव पादुकोण |
माता का नाम | वसंती पादुकोण |
भाई | आत्माराम |
विवाह | गीता घोष राय चौधरी |
संतान | अरुण दत्त, तरुण दत्त, नीना दत्त |
गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को बेंगलुरु में हुआ था। इनका वास्तविक नाम वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोण था। उनके पिता का नाम शिव शंकर राव पादुकोण था और माता का नाम वसंती पादुकोण था।
उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनके पिताजी एक विद्यालय के हेडमास्टर थे और बाद में बैंक में कार्यरत हुए, उनकी माता एक अध्यापिका थी। इसके साथ ही वसंती बंगाली उपन्यासों का कन्नड़ में अनुवाद करती थी और लघु कथाएं लिखती थी।
गुरु दत्त का बचपन कोलकाता के भवानीपुर में ही बीता जहां की संस्कृति से वह बहुत ही प्रभावित हुए। बंगाली संस्कृति से प्रभावित होकर उन्होंने अपना नाम बसंत कुमार शिव शंकर पादुकोण से परिवर्तित कर गुरु दत्त रख लिया।
जब गुरु दत्त छोटे थे तो उनकी दादी मां रोज शाम को दिया जलाकर संध्या आरती किया करती थी और उस आरती की रोशनी में गुरु दत्त अपनी उंगलियों से दीवार पर मुद्राएं बनाया करते थे और समय के साथ उनका कला की तरफ आकर्षण बढ़ने लगा।
1941 में जब गुरु 16 वर्ष के थे तो वह ₹75 वार्षिक छात्रवृत्ति पर अल्मोड़ा गए और वहां नृत्य, संगीत और नाटक की शिक्षा प्राप्त करने लगे। परंतु 1944 में दूसरा विश्व युद्ध होने के कारण वह वापस लौट आए और यहां आकर रविशंकर के अग्रज उदय शंकर से कला व संगीत के गुर सीखने लगे।
गुरु दत्त का फिल्मी सफर
फिल्मी दुनिया में कदम रखने से पहले गुरु दत्त कुछ समय कलकत्ता में लिवर ब्रदर फैक्ट्री में टेलिफोन ऑपरेटर की नौकरी करते थे परंतु वे जल्दी ही इस्तीफ़ा देकर वापस अपने परिवार के पास आ गए।
उसके बाद गुरु दत्त के चाचा ने उन्हें पुणे के प्रभात फिल्म कंपनी में 3 साल के कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने भेज दिया। पुणे में वह फिल्म निर्माता वी शांताराम के राजकमल कला मंदिर नाम के स्टूडियो में रहा करते थे और यहीं रहते हुए उनकी मित्रता प्रसिद्ध अभिनेता रहमान और देवानंद से हुई थी।
वर्ष 1944 में उन्हें चांद नामक फिल्म में श्री कृष्ण का एक छोटा सा रोल निभाने को मिला था। 1945 में इन्होंने एक फिल्म में अभिनय करने के साथ साथ विश्राम बेडेकर के सहायक निर्देशक का काम भी किया। और 1946 में इन्होंने पी एल संतोषी की फिल्म हम एक है में नृत्य निर्देशन का काम किया था।
जब 1947 में उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया तब वह प्रभात फिल्म कंपनी के सीईओ बाबूराव के साथ एक सहायक के रूप में दोबारा काम करने लगे। और इस नौकरी के बाद वे लगभग 10 महीने तक अपने घर मुंबई में अपने परिवार के साथ रहे और इस दौरान उन्होंने अंग्रेजी लिखना सीखा और इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया नाम की एक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका के लिए लघु कथा लिखने लगे।
इसी दौरान उन्होंने संघर्ष की पटकथा लिखी। जिसका नाम बाद में बदल कर प्यासा कर दिया।
कोरियोग्राफर और निर्देशक
गुरुदत्त ने प्रभात फिल्म कंपनी में एक कोरियोग्राफर और सह निर्देशक के साथ-साथ एक अभिनेता के रूप में भी काम करना शुरू किया। 1947 में गुरु दत्त मुंबई आए और वहां उन्होंने अमिय चक्रवर्ती और ज्ञान मुखर्जी नाम के दो निर्देशकों के साथ काम करना शुरू किया।
अमिय चक्रवर्ती की फिल्म गर्ल्स स्कूल और ज्ञान मुखर्जी की फिल्म संग्राम में उन्होंने काम किया। इसके साथ ही देव आनंद ने इन्हें अपने फिल्म कंपनी नवकेतन में एक निर्देशक के रूप में काम करने का मौका दिया था और इसी प्रकार गुरुदत्त के निर्देशन में बनी पहली फिल्म बाजी 1951 में पर्दे पर आई।
इसके साथ ही गुरुदत्त ने बहुत सी फिल्मों में बतौर अभिनेता भी काम किया
गुरु दत्त की फिल्मों के नाम बतौर अभिनेता
1964 सुहागन, 1963 भरोसा, 1962 साहिब बीवी और गुलाम, 1960 चौदहवीं का चांद, 1960 काला बाजार, 1959 कागज के फूल,1957 प्यासा, 1955 मिस्टर एंड मिसेस 55, 1946 हम एक हैं।
गुरु दत्त की फिल्मों के नाम बतौर निर्देशक
1959 कागज के फूल, 1957 प्यासा, 1955 मिस्टर एंड मिसेस 55, 1953 बाज़, 1952 जाल,1951 बाजी।
गुरु दत्त का विवाह
गुरु दत्त ने 26 मई 1953 को प्रसिद्ध संगीतकार गीता रॉय चौधरी से शादी थी। इन दोनों की पहली मुलाकात बाजी फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थी और कुछ ही समय में ये दोनों एक दूसरे के प्रेम में पड़ गए।
गीता और गुरु दत्त की तीन संताने हुईं जिनका नाम अरुण, तरुण और नीना दत्त है। शुरू के कुछ वर्षों तक तो इन दोनों का वैवाहिक जीवन बहुत ही खुशहाल रहा लेकिन 1950 के आसपास जब गुरु दत्त के अभिनेत्री वहीदा रहमान के साथ संबंध होने की बातें फैलने लगी तो इन दोनों के वैवाहिक जीवन पर इसका बुरा असर दिखाई देने लगा।
और इसके कुछ समय बाद गीता अपने बच्चों को लेकर अपने माता-पिता के घर चली गई। यह दोनों 11 वर्षों तक एक दूसरे के साथ रहे। गुरु दत्त ने बहुत कोशिश की गीता को अपनी जिंदगी में वापस लाने की परंतु गीता को गुरु दत्त के साथ कार्य करने वाली हर अभिनेत्री पर संदेह होने लगा था। और इस प्रकार इन दोनों के वैवाहिक जीवन में दरार पड़ गई।
गुरु दत्त की मृत्यु (10 अक्टूबर, 1964)
अपने परिवार से दूर होने के कारण धीरे-धीरे गुरु दत्त को नशे की लत लगने लगी। उस समय वहीदा रहमान से उनके रिश्ते कुछ खास नहीं रहे थे। शराब पीने के कारण गुरु दत्त की तबीयत खराब रहने लगी थी।
जिसके कारण एक बार वह 3 दिन तक कोमा में भी रहे थे। एक रात गुरु दत्त की तबीयत बिगड़ने लगी और उन्होंने गीता को फोन करके बच्चों से मिलने के लिए आग्रह किया परंतु गीता ने मना कर दिया। और उसी रात गुरुदत्त बिना खाना खाए नशे की हालत में अपने घर में अकेले थे और दूसरी सुबह नशा और नींद की गोली लेने के कारण उनको उनके कमरे में मृत पाया गया।
गुरुदत्त की मृत्यु की खबर खबर पाकर वहीदा रहमान अपनी शूटिंग छोड़कर तुरंत वापस आ गई और गीता भी बच्चों के साथ उनके अंतिम दर्शन करने के लिए आई।
गुरु दत्त को मिले पुरस्कार
गुरुदत्त की फिल्म प्यासा को टाइम मैगजीन के द्वारा विश्व की 100 सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में स्थान दिया गया।
वर्ष 2002 में साइट और साउंड क्रिटिक्स आफ डायरेक्टर्स के पोल में गुरु दत्त की फिल्में कागज के फूल और प्यासा को सर्वकालिक 160 महानतम फिल्मों की श्रेणी में रखा गया।
Author:
आयशा जाफ़री, प्रयागराज