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Biography of Ghananand in Hindi | घनानंद का जीवन परिचय
दुनिया में ऐसे कई कवि है जिन्होंने अपनी बेहतरीन रचनाओं के बल पर सफलता अर्जित की है। उन ही प्रसिद्ध कवियों में से एक कवि घनानंद जी हैं। इस पोस्ट में हम बात करेंगे घनानंद कौन हैं, इनके जन्म, जीवन परिचय, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं आदि के बारे में।
घनानंद के जीवन से संबंधित जानकारी
नाम | घनानंद |
जन्म | संवत् 1746 (अधिकतर विद्वानों के मतानुसार) |
जन्म स्थान | दिल्ली (अधिकतर विद्वानों के मतानुसार) |
पेशा | कवि, मीर मुंशी |
शौक | साहित्य और संगीत |
प्रमुख रचनाएँ | 1. इनके द्वारा रचित मुख्य काव्यधारा रीतिमुक्त है 2. अन्य प्रमुख रचनाएँ:- a. कृपाकंदनिबंध b. प्रियाप्रसाद c. वियोगबेलि d. वृंदावनमुद्रा e. सुजानहित f. व्रजस्वरूप |
मृत्यु | संवत् 1817 |
घनानंद कौन हैं?
रीतिकाल की तीन मुख्य काव्यधाराओं– रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त में से घनानंद रीतिमुक्त स्वचछंद काव्यधारा के प्रसिद्ध और जाने माने कवि हैं। घनानंद को आनंदघन के नाम से भी जाना जाता है। लोगों का मानना है कि घनानंद का मूल नाम आनंदघन था लेकिन छंदात्मक लय–विधान की वजह से यह कवि आनंदघन की जगह घनानंद नाम से आम लोगों के बीच जाने गए।
घनानंद का जन्म और जीवन परिचय
कवि घनानंद के जन्म से संबंधित जानकारी को लेकर सभी विद्वानों के अलग-अलग मत है। अधिकतर विद्वानों का मानना है कि घनानंद जी का जन्म दिल्ली में हुआ था या उसके आसपास ही हुआ होगा। कुछ ऐसे भी विद्वान हैं जिनका मानना है कि इनका जन्म वृंदावन या बुलंदशहर में हुआ होगा।
विद्वानों का कहना है कि घनानंद सम्राट मुहम्मद बादशाह के मीर मुंशी थे। कवि घनानंद कायस्थ जाति से संबंध रखते थे। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार कवि घनानंद का जन्म संवत् 1746 में दिल्ली में हुआ था। घनानंद के जन्म को लेकर अभी तक मतभेद जारी है। घनानंद के जन्म को लेकर विद्वानों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किए हैं। शिवसिंह सेंगर का कहना है कि घनानंद का जन्म समय संवत् 1617 है। शिवसिंह सेंगर ने घनानंद के अन्य नाम आनंदघन के अनुसार उनके जन्म के समय को बताया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल और कई अन्य विद्वानों के अनुसार घनानंद का जन्म संवत् 1746 में या इसके आस पास हुआ था।
इसके अलावा कतिपय विद्वान का मानना है कि इनका जन्म संवत् 1715, संवत् 1630 तथा संवत् 1683 में ही हुआ होगा लेकिन अधिकतर विद्वानों के अनुसार घनानंद का जन्म समय संवत् 1746 ही माना जाता है इसलिए अन्य दो मत संदिग्ध साबित हुए हैं। घनानंद के जन्म के साथ-साथ नाम को लेकर भी विद्वानों में मतभेद है। घनानंद को विद्वानों ने कई नामों से पहचान दी है लेकिन आज तक यह साबित नहीं हुआ कि इनके कई नाम इन्हीं के हैं या अलग अलग व्यक्ति के। इन्हें कई नाम दिए गए जो निम्नलिखित है:– ‚घन आनन्द’, ‘आनन्द के घन अथवा आनन्दघन या आनन्द घन’ और ‘आनन्द निधान या आनन्द’।
बचपन से ही इन्हें संगीत और साहित्य का शौक था और आगे चलकर इस शौक ने सफलता का रूप लिया। कवि घनानंद की शिक्षा फारसी भाषा से शुरू हुई थी और ऐसा माना जाता है कि घनानंद की रूचि शुरू से ही पढ़ाई में थी। जनश्रुति का मानना है कि घनानंद अबुल फजल के शिष्य थे। घनानंद शुरू से ही बुद्धि से बहुत तेज थे और हर कार्य क्षेत्र में इनकी गति असाधारण थी इसलिए इन्होंने फारसी भाषा का ज्ञान बहुत अच्छे से और जल्दी अर्जित कर लिया था। फारसी का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात इन्हें सम्राट मुहम्मद शाह के मीर मुंशी के पद पर नियुक्त कर लिया गया था। कवि घनानंद ने अपनी तेज बुद्धि और लगन के कारण सम्राट के ‘खास कलम’ यानी प्राइवेट सेक्रेटरी के रूप में नियुक्त हुए।
ऐसा माना जाता है कि घनानंद ‘सुजान’ नाम की नर्तकी को पसंद करते थे। घनानंद को संगीत में रुचि थी और यह बात दरबारियों ने बादशाह को बता दी। इस बात के पता चलने के पश्चात बादशाह ने घनानंद को गाना गाने का आदेश दिया लेकिन घनानंद ने इस आदेश की अवहेलना की और कहा कि मुझे गाना गाना नहीं आता। बादशाह जानते थे कि घनानंद सुजान को पसंद करते हैं इसलिए उन्होंने दरबार में सुजान को बुलाया। सुजान को देखकर घनानंद सच में गाने लगे और उनके गाने से पूरा दरबार मंत्रमुग्ध हो गया। बादशाह को घनानंद की अवहेलना की बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी इसलिए उन्होंने घनानंद को मुंशी पद से बर्खास्त और दिल्ली से निष्काषित कर दिया। जब बादशाह ने इन्हें दिल्ली से निष्कासित किया तब सुजान ने भी इनका साथ नहीं दिया। दिल्ली को छोड़कर वह वृंदावन जाकर रहने लगे और वहाँ रहकर उन्होंने निंबार्क संप्रदायाचार्य श्रीवृंदावनदेव से दीक्षा प्राप्त की।
दीक्षा के दौरान घनानंद जी भगवान श्री कृष्ण के भक्त बन गए और सांसारिक प्रेम की मोह माया से मुक्त हो गए। वृंदावन में उन्होंने दीक्षा ग्रहण करते समय राधा कृष्ण से संबंधित कई गीत और कवित्त-सवैया की रचना की। विद्वानों का कहना है कि घनानंद सुजान नाम की नर्तकी से बहुत प्रेम करते थे। इसी प्रेम के चक्कर में उन्हें मुंशी के पद से हटा दिया गया था। घनानंद के निष्कासन के दौरान सुजान ने उनका जरा भी साथ नहीं दिया। सुजान की बेवफ़ाई के कारण उन्होंने अपना पूरा जीवन दुख और अभाव में बिताया। घनानंद सुजान को कभी भुला नहीं पाए और अपनी अधिकतर रचनाओं में उन्होंने सुजान के नाम का प्रयोग प्रतिकात्मक रूप में किया। उनकी रचनाओं से स्पष्ट होता है कि वह जीवन भर प्रेम की पीड़ा के वियोग में रहे।
घनानंद द्वारा रचित रचनाएँ
घनानंद जी ने कई ग्रंथों की रचना की और कई रचनाएँ ऐसी भी है जिनके कारण घनानंद प्रसिद्ध हुए। घनानंद रीतिमुक्त स्वच्छंद काव्यधारा के प्रसिद्ध और जाने माने कवि है। इस काव्यधारा में इनका प्रमुख स्थान है। घनानंद द्वारा रचित रचनाएँ निम्नलिखित है:–
कृपाकंदनिबंध | प्रियाप्रसाद |
वियोगबेलि | वृंदावनमुद्रा |
सुजानहित | व्रजस्वरूप |
इश्कलता यमुनायश | गोकुलचरित्र |
प्रीतिपावस | प्रेमपहेली |
प्रेमपत्रिका | रसनायश |
प्रेमसरोवर | गोकुलविनोद |
व्रजविलास | मुरलिकामोद |
रसवसंत | मनोरथमंजरी |
अनुभवचंद्रिका | व्रजव्यवहार |
रंगबधाई | गिरिगाथा |
प्रेमपद्धति | व्रजवर्णन |
वृषभानुपुर सुषमा | छंदाष्टक |
गोकुलगीत | त्रिभंगी छंद |
नाममाधुरी गिरिपूजन | कबित्तसंग्रह |
विचारसार | स्फुट पदावली |
दानघटा | परमहंसवंशावली |
कृष्णकौमुदी | भावनाप्रकाश |
घामचमत्कार |
भारतेंदु हरिशचंद्र द्वारा ‘सुजान शतक’ में घनानंद जी की कविताओं का संकलन किया गया। सुजान शतक के अलावा सुजानहित और सुजान नागर का भी संकलन हुआ। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने घनानंद की कविताओं का संकलन किया और तीन पुस्तकों की रचना की। पहली पुस्तक घनानंद कवित्त के नाम से रचना की इसके अंतर्गत 502 कवित्त संग्रहित किए गए। विश्वनाथ प्रसाद द्वारा रचित दूसरी पुस्तक में उन्होंने कवित्त सवैया के अलावा घनानंद की वियोग बेलि, प्रीति पावस, यमुना यश और प्रेम पत्रिका तथा 500 पद संग्रहित किए गए। दूसरी पुस्तक का संकलन सन् 1945 में किया गया। तीसरी पुस्तक का संकलन सन् 1952 में हुआ। इसमें घनानंद की 36 कृतियों का संकलन किया गया और घनानंद ग्रंथावली का प्रकाशन किया।
घनानंद की साहित्यिक विशेषताएँ
घनानंद की साहित्यिक विशेषताएँ निन्नलिखित है:–
- स्वच्छंद प्रेम का वर्णन
घनानंद अपनी रचनाओं में स्वच्छंद प्रेम का वर्णन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि घनानंद प्रेम के पीर कवि थे। घनानंद की मुख्य साहित्यिक विशेषता यह है कि वह उनकी रचनाओं में किए गए प्रेम का वर्णन लक्षण से नही बल्कि हृदय से संबंधित है। जब वह अपनी रचनाओं में प्रेम का वर्णन स्पष्ट रूप से करते हैं। इनकी रचनाओं में किसी प्रकार का कोई दुराव, बनावट और छिपावट नही दिखती हैं।
- विरह वेदना का चित्रण
घनानंद की साहित्यिक विशेषता यह भी है कि वह अपनी रचनाओं में विरह वेदना का चित्रण करते हैं। उन्होंने अपना अधिकतर जीवन सुजान की बेवफ़ाई के कारण दुख व पीड़ा को झेलते हुए बिताया। घनानंद ने अपनी अधिकतर रचनाओं में प्रतीकात्मक रूप से सुजान का वर्णन किया है उनकी रचनाओं में विरह वेदना का वर्णन स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।
- सौंदर्य वर्णन और प्राकृतिक चित्रण
घनानंद ने अपनी रचनाओं में सौंदर्य वर्णन भी किया है। घनानंद ने अपनी विरह वेदना का वर्णन करने के लिए प्रकृति की मदद ली है। इन्होंने अपनी रचनाओं में प्रकृति का चित्रण व्यापक रूप से किया है।
- भाषा शैली
घनानंद ने अपनी रचनाओं में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। इनके द्वारा रचित रचनाओ में हर प्रकार के शब्द जैसे देशज, विदेशज और तत्सम आदि का सुंदर रूप में प्रयोग हुआ है। घनानंद के काव्य की भाषा मधुरता और लालित्य की वजह से आकर्षक हो गई है। घनानंद के अधिकतर काव्य संबोधन शैली में है। इन्होंने अपनी रचनाओं में दोनों तरह के अलंकार- शब्दालंकार और अर्थालंकार का प्रयोग किया है। घनानंद ने अपनी रचनाओं में कई अलंकारों का प्रयोग किया है जैसे रूपक, उपमा, अनुप्रास और प्रतीप आदि।
घनानंद की मृत्यु
घनानंद की मृत्यु को लेकर भी विद्वानों में अलग-अलग मत है। विद्वानों ने घनानंद की मृत्यु को लेकर दो मत प्रस्तुत किए हैं। पहले मत के विद्वानों का यह मानना है कि घनानंद की मृत्यु मथुरा में नादिरशाह के आक्रमण के दौरान हुई। लेकिन विद्वानों के इस मत का खंडन इस बात से होता है कि नादिरशाह का आक्रमण दिल्ली में हुआ था न कि मथुरा में। इस मत का खंडन इस बात से भी हो जाता है कि इस आक्रमण का समय और घनानंद के जीवन काल का समय अलग-अलग है इसलिए यह मत गलत साबित होता है। दूसरे मत के विद्वानों का यह मानना है कि मथुरा में जब अब्दुल शाह दुर्रानी ने खून खराबा किया उसी आक्रमण में घनानंद की मृत्यु हुई। माना जाता है कि घनानंद की मृत्यु संवत् 1817 में हुई थी।
तो ऊपर दिए गए लेख में आपने पढ़ा घनानंद का जीवन परिचय (Ghananand Biography In Hindi), उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।
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Author:
भावना, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में ग्रैजुएशन कर रही हूँ, मुझे लिखना पसंद है।