लगता नहीं मेरा मन
जिस समाज में बलात्कारियों के हवस रूपी ज्वालामुखी में
जलाकर छलनी किया जाता हो बेटियों का कोमल तन
ऐसी निष्ठुर हत्यारी दुनिया में लगता ही नहीं है मेरा मन,
वो थी इक बाबुल की गुड़िया
मैया के आँगन की चिड़िया
दिनभर थी बगिया में चहकती
बनकर के कली घर आँगन में महकती
मारदिया जिसे वहशी बनकर हत्यारा
क्या बिगाड़ा था उस बिचारी ने तुम्हारा
बचने को नोचते भेड़ियों से जिसने
चीख मदद कितनों को पुकारा
रौंदा जिस्म काट दी ज़ुबाँ भी
छणिक भर सुख की ख़ातिर को
कितनी देर को मन बहला था तुम्हारा
कर निर्मम हत्या दिल भी दहला न तुम्हारा
तोड़ दिया साँसों को उसकी छीन लिया जीवन
ऐसी निष्ठुर हत्यारी दुनिया में लगता ही नहीं मेरा मन,
कितने ही नाजों से उसकी माँ ने उसको पाला
जीवन भर बाबुल ने जिसको था धरोहर सा सँभाला
होकर बड़ी करेगी नाम को रौशन मेरी बिटिया रानी
आज लाश हाथों में लिये पिता बहता आँखों से पानी
जीना था जीवन जिसे अभी मर गई वो भरी जवानी
दर्द बयां कर सके न किसी को ह्रदयविदारक कहानी
बन वहशी कितनों ने नोचा जिस्म था जिसका सारा
नहीं भरा इतने पर भी मन अंत में मौत के घाट उतार
वीभत्स इस घटना पर आज जग रो रहा है संसार सारा
किया पाप ऐसा तूने के होगा कभी प्रायश्चित नहीं तुम्हारा
करुण पुकार संवेदना भरी चीखें हर ओर हो रहा है रुदन
निष्ठुर हत्यारी इस दुनिया में मेरा लगता ही नहीं है मन!
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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊