हिन्दी पर अभिमान है
सजकर भारत माता के मस्तक पर
करती श्रृंगार इक बिंदी
है राष्ट्र धरोहर भारतीय संस्कृति की
मातृ भाषा हमारी हिंदी
अनमोल शब्दों की जो खान है
बनाती भारत को महान है
है गर्व मुझे मातृ भाषा पर
हिंदी पर मुझे अभिमान है
आसानी से इसको हमसब धारा प्रवाह बोल पाते हैं
मिश्री सी मिठास बनाकर वाणी में घोल पाते हैं
मधुर सरस मृदुभासी बनकर अपना व्यक्तित्व सजाते हैं
कविता कहानी गज़ल गीत और काव्य पाठ करपाते हैं हिंदी साहित्य में दिनकर निराला जगत में जाने जाते हैं
अनमोल साहित्यकार कितने हिंदी को पहचान दिलाते हैं
सुन्दर सुसज्जित सृजनामकता हिंदी का स्वरूप दिखाते हैं
रस बनकर बहती होठों पर मीठी सी मधुर इक तान है
है गर्व मुझे मातृ भाषा पर हिंदी पर मुझे अभिमान है,
अमृत वाणी हिंदी का कितनों ने व्याख्यान किये
ग्रंथो में जिसने हम सबको तुलसी कबीर संत महान दिए
अपनाएं सब हिंदी जग में जगायेंगे प्रेम का भाव
अनमोल शब्दों के मोतियों का सागर ऐसा हिंदी का प्रभाव
बनकर रहुँ मैं हिंदीभाषी है मन की यही अभिलाषा
मातृ भूमि के चंदन सी उड़ती धूल लगे मुझको हिंदी भाषा
हो अधीरता हिंदी के प्रति जैसे हो कोई मृग प्यासा
बसे सभी जनमानस की वाणी है इतनी सी आशा
गर्व करें देश वासी जिसपर मुख पर हो एक समान
जो भारत के राष्ट्र का गौरव है
और आन बान और शान है
है गर्व मुझे जिस भाषा पर
हिंदी पर अभिमान है
हिंदी से हिंदुस्तान है
कहलाता भारत महान है!
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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊