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HINDI KAVITA: जीतने के लिए

जीतने के लिए

मैं निराश हताश
जरूर हूँ
पर पराजित नहीं हूँ।
कुछ समय के लिए
मेरा धैर्य टूट गया था,


जैसे विश्वास का स्तम्भ
कहीं छूट गया था।
पर मैं लौट आयी हू्ँ
अपना आत्मविश्वास भी
वापस ले आयी हू्ँ,


मैं लडूँगी
पूरे मन कर्म समर्पण से
और जीतूंगी ये जंग,
क्योंकि मैं
टूटने बिखरने के लिए
बनी ही नहीं,


मैं तो बनी हूँ
सिर्फ़ और सिर्फ़
लड़कर जीतने के लिए
अपनी मंजिल पाने के लिए।

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About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002

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