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HINDI KAVITA: मंजिल को पाना है

Last updated on: September 22nd, 2020

मंजिल को पाना है

पथ पर पथिक चलते हुए
साथ सूरज और चन्द्रमा को


गुनगुनाते हुए गीत मनमीत के
सहते हुए धूप और छाव को


मंजिल अभी भी बाकी है
रास्ते अभी भी चाकी है


अभी ठोकरे ही साथी है
गिरना भी बाकी है और


गिरकर संभलना भी है
मीलों चलकर दुरिया


नापकर मंजिल को
बताना भी है हमको


मंजिल को पाने की चाह
में हम भी थकते नहीं


रुकना सिखा ही नहीं
सोनी भी ठाना है
मंजिल को पाना है।

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About Author:

मेरा नाम निर्भय सोनी है और मैं उत्तर प्रदेश के रहने वाला हूँ। मुझे लिखने में अच्छी रूचि है। मुझे विश्वास है कि आप लोगों को मेरा ये लेख जरुर पसन्द आएगा। आप लोग अपना आशिर्वाद और प्यार इसी तरह बनाए रखिये। 🙏🏻😊

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