मंजिल को पाना है
पथ पर पथिक चलते हुए
साथ सूरज और चन्द्रमा को
गुनगुनाते हुए गीत मनमीत के
सहते हुए धूप और छाव को
मंजिल अभी भी बाकी है
रास्ते अभी भी चाकी है
अभी ठोकरे ही साथी है
गिरना भी बाकी है और
गिरकर संभलना भी है
मीलों चलकर दुरिया
नापकर मंजिल को
बताना भी है हमको
मंजिल को पाने की चाह
में हम भी थकते नहीं
रुकना सिखा ही नहीं
सोनी भी ठाना है
मंजिल को पाना है।
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मेरा नाम निर्भय सोनी है और मैं उत्तर प्रदेश के रहने वाला हूँ। मुझे लिखने में अच्छी रूचि है। मुझे विश्वास है कि आप लोगों को मेरा ये लेख जरुर पसन्द आएगा। आप लोग अपना आशिर्वाद और प्यार इसी तरह बनाए रखिये। 🙏🏻😊