पिता
साम-दाम-दंड-भेद के जो हकदार,
सदैव पिताजी को सादर नमस्कार।
भितर से कोमल बाहर से फटकार,
मेरे पिताजी के चरणों में सत्कार।
पिता जोश है,पिता मेरे हथियार,
सिर पर हाथ,तो जीत लूं संसार।
पिता के लिए सबकुछ दिया निसार,
माँ नहीं है तो क्या,पिता है उपहार।
दूरसंगती से बचाता पैना औजार है,
पिता नाम जीवन का दूजा प्यार है।
अंगुली से सहारा जवानी में यार है,
थोड़ा कटु पर खुशियों का भंडार है।
हम छोटे मंत्री-नेता,पिता केंद्र सरकार है,
जैसा बचपन में था वैसा अब भी बरकरार है।
पिताजी से चमकता सम्पूर्ण परिवार है,
हम जो है,जहाँ है, पिता के संस्कार है।
Author:
मेरा नाम “विकाश बैनीवाल” है,
मै राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के गाँव का निवासी हूँ 🙏🙏
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पिता
अपनी खुशियों को त्यागता
खुद के भाव खोता
जबरन मुस्कराता दर्द पीता,
बच्चों के साथ बच्चा बनकर
बच्चों की खातिर
हाथी घोड़ा बनकर,
आंसू पीकर भी हंसता
रोना चाहकर भी
मुस्कुराता,
पिता बनना नहीं
होना कठिन है,
जब तक बच्चा
नहीं बनता पिता।
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✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002