ख्याल
ख्याल सबका ही रखता
सिवाय अपने,
दिन रात खपता
बस देखता परिवार की
खुशहाली के सपने।
क्या क्या जतन करता
फिर भी पूरा न होता,
उसे तो बस ख्याल रहता
बुजुर्ग माँ बाप ,बीबी,बच्चों और
उनकी हर जरूरतों का
इसी दुविधा में उसके
अपने ख्वाब ख्यालों में ही गुम हैं,
क्योंकि परिवार में कमाने वाला
कोई और जो नहीं है।
ख्यालों में खोया रहता
बस दिन रात खटता है,
इसके सिवा और कोई मार्ग
बचता ही कहाँ है?
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✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002