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HINDI KAVITA: युग का आदमी

युग का आदमी

आज के युग का आदमी भी
कितना बदल गया है,
इंसान इंसान में
कितना भेद हो गया।


इस युग का इंसान
संबंध भी कहां निभाता है?


धन देखकर
हर रिश्ता निभाता है।


हर रिश्ते में पैसों का
भार आड़े आ जाता है।


क्या कहेंगें आज के
इस आदमी को,
जो माँ बाप को भी
वृद्धाश्रम छोड़ आता है,
कमजोर भाई का
हक तक मार जाता है।


बाहरी दुनियां बड़ी ही
खूबसूरत लगती है,
अपनों से रिश्ता नाता भी
छोड़ जाता है।


आज के युग का आदमी
बस!पैसे के पीछे भागता है,
पैसे की खातिर
वो अपना ईमान धर्म
बेंचने से भी नहीं घबराता है।

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About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002

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