मैं दिव्यांग हूँ…
हाँ ये सच है
कि मैं दिव्यांग हूँ,
शरीर से थोड़ा लाचार हूँ।
पर आप भी देखो
मैं कैसे भी करता हूँ
पर अपने सारे काम खुद करता हूँ,
अपना और अपने परिवार का
पेट इज्ज़त से भरता हूँ।
मेहनत करता हूँ
कष्ट सहता हूँ
पर भीख नहीं माँगता
किसी के रहमोकरम पर
तो नहीं जीता।
आप कुछ भी समझते रहें मुझको
पर मैं कभी भी
खुद को
आपसे कम नहीं समझता।
कुछ कर गुजरने का
जज्बा है मुझमें
पत्थर से टकराने का
जिगर रखता हूँ।
यह अटल सत्य है कि
मैं दिव्यांग हूँ,
पर ये भी सत्य है कि
मैं मन में दिव्यांगता के भाव
तो नहीं रखता हूँ।
ईश्वर ने मुझे ऐसा ही बनाया है
तो गिला कैसा?
कम से कम अपने मन में
मुँह में राम बगल में छुरी जैसे
भाव तो नहीं रखता।
बेसहारा
आज की यह विडंबना ही है
कि जो बेसहारा हैं
वो कम दुखी हैं,
वे ज्यादा दुःखी हैं
जिनके सहारे तो हैं मगर
वे बेसहारों से भी गये गुजरे
महसूस करते ही नहीं
महसूस कराये जाते हैं।
सब कुछ होते हुए भी
तरसाये जाते हैं,
उपेक्षा की ठोकरों से घायल
तिल तिलकर
मौत की ओर बढ़े जाते हैं।
भूख
भूख लाचारी है
सच कहें तो बीमारी है।
क्या कहेंगे भूख के बारे में?
कुछ भी तो नहीं
सिर्फ़ अहसास करेंगे
खुद बखुद समझ जायेंगे,
भूख क्या है
अच्छी तरह जान जायेंगे।
बस अपनी राम कहानी
किसी को सुना नहीं पायेंगे,
भूख का इतिहास भूगोल
सब कुछ सीख जायेंगे।
किसी भूखे के मन में
झाँककर देखिए
चेहरे की विवशता पढ़िए
निस्तेज आँखों की
वेदना, बेचारगी को पढ़िए,
भूख का इतिहास जान लीजिए।
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Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002