नारी एक ज्वाला
ममता की मूर्ति नारी
सृष्टि क्रम को गतिमान रखती नारी
ममता,दया करुणा की प्रतिमूर्ति
त्याग की देवी नारी,
स्व को भूल प्रेम रस बरसाती
दो कुंदों का मान बढ़ाती
हर पल अपने सपनों की आहुति देकर भी
नहीं पछताती, रिश्तों को बाँधकर
रखने का हर जतन करती
बहन शक्ति की मिसाल नारी।
मगर जब उसे और उसकी गरिमा को
चोट पहुंचाने की कोशिश होती है तब
ज्वाला बन जाती है नारी
मुँहतोड़ जवाब देने के लिए
कमर कसकर मजबूती से
अपनी मजबूती से अपनी ताकत का
अहसास कराती है नारी
वह समय अब नहीं रहा
जब नारी सिर्फ कोमल
और कमजोर मानी जाती थी,
आज की नारी एक ज्वाला बन चुकी है,
हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही है।
माँ
काँपती थरथराती कलम मेरी
माँ पर मैं क्या लिख सकता हूँ?
जिसने मुझे लिखा
उस माँ को मैं भला कौन सा शब्द दे सकता हूँ।
हजारों लाखों लोग माँ पर लिखने का
हर रोज बीड़ा उठाते हैं,
पर बीच में ही तैरते रह जाते हैं।
काफी कुछ लिखा गया है
और लिखा जाता रहेगा अनंत काल तक
पर माँ पर संपूर्ण लेखन नहीं हो पायेगा।
क्योंकि माँ संपूर्ण है
माँ के सामने धरती आकाश ही नहीं
ईश्वर भी नतमस्तक है, मौन है,
फिर भला संपूर्ण को कौन पूर्ण कर पायेगा,
बस इतना भर होता है, होता रहेगा
माँ लिखने वाला हर कोई
माँ के ममत्व का अहसास कर पायेगा।
माँ पर कुछ लिख सकूँ,न लिख सकूँ
पर मैँ इतना तो कर ही जाऊंगा
माँ, माँ और माँ तो जरूर लिख पाऊँगा
माँ पर लिखने का सपना
माँ लिखकर तो पूरा कर ही जाऊंगा।
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Author:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.