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STORY: मान सम्मान

मान सम्मान

मेरी नियुक्ति वैसे तो गणित शिक्षक के रूप में हुई पर बचपन से मेरा झुकाव साहित्य की ओर बना रहा ।हालांकि मैनें स्वेच्छा से ही गणित विषय से परास्नातक तक की शिक्षा ली थी। मेरे विद्यालय के हिंदी अध्यापक की रूचि केवल क्लास लेने तक ही थी। ऐसे में मेरे मन में कुछ अलग करने का कीड़ा कुलबुलाने लगा। प्रधानाचार्य से मिलकर मैनें अपना विचार रखा। जिसे उन्होंने थोड़ी आनाकानी के बाद स्वीकार कर लिया।

शुरु में बच्चे हिचकिचा रहे थे,परंतु धीरे धीरे मेरे लेखन कला की क्लास में
पचास बच्चे हो गये। चार शिक्षकों ने भी लेखन के प्रति रूचि दिखाई। जिससे मेरा हौसला और बढ़ गया।
धीरे बच्चों की झिझक खत्म होने लगी। मैनें हर माह कहानी कविता लेखन प्रतियोगिता का भी आयोजन शुरु कर दिया। तीन माह तक बच्चों की सृजनात्मक क्षमता को देखकर वार्षिकोत्सव में तीन-तीन सर्वश्रेष्ठ रचना कार बच्चों को सम्मानित करने की प्रधानाचार्य महोदय ने घोषणा कर दी।


उसी वर्ष मैनें विद्यालय की पत्रिका निकालने का भी प्रस्ताव रख दिया। मेरी इस योजना में मेरे कुछ सहयोगी शिक्षक ने भी सहयोग का वादा किया।
वार्षिक परीक्षा के बाद कहानी कविता परीक्षा भी कराई गयी।कुछ बच्चों का सृजन देख मैं खुद हैरान थी। उन्हीं में से दो बच्चों को मैने छात्र सम्पादक की भूमिका दी।


पहली बार प्रकाशित विद्यालय प्रबन्धन गदगद हो उठा तो मेरा हौंसला बढ़ गया।
इस बीच राज्य सरकार ने बच्चों की लेखन प्रतियोगिता की घोषणा का पत्र सभी स्कूलों को भेजा गया। अपने विद्यालय के बच्चों का जिम्मा मेरे ऊपर था। जिलास्तरीय प्रतियोगिता में मेरे विद्यालय के पैंतीस बच्चों ने भाग लिया। जिसमें से बाइस बच्चे मंडल स्तर के लिए चुने गये। मंडल स्तरीय प्रतियोगिता में मेरे विद्यालय से बारह बच्चे राज्य के लिए चुने गये। जो किसी भी विद्यालय से सबसे अधिक थे।


राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में मेरे विद्यालय के होनहार बच्चों नें झण्डे गाड़ दिये और पहले दो स्थानों सहित छःबच्चों ने पहले दस में जगह बनाई। आश्चर्यजनक तो यह हुआ कि मेरे सभी बच्चों ने पहले बीस बच्चों में जगह बनाया।
मुख्यमंत्री द्वारा मेरे विद्यालय को अतिविशिष्ट सम्मान प्रदान किया गया और मुझे विशेष मैडल के साथ राज्य पुरस्कार देने की मंच से ही घोषणा कर दी।
जिलाधिकारी ने जनपद रत्न मुझे प्रदान करने का आश्वासन विधायक को दिलाया। सांसद ने विद्यालय में एक उच्चस्तरीय लाइब्रेरी खुलवाने का भरोसा दिया।


आज मैं बहुत खुश हू्ँ कि शौकिया लेखन ने मुझे कितना मान सम्मान दिला दिया। हमारे विद्यालय में जबसे यह खबर आयी तबसे उत्सव ससा माहौल है।

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About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002

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