वीभत्स दृश्य
रात गहरी होती जा रही थी। रेलगाड़ी अयपने पूरे वेग से दौड़ रही थी। दिसम्बर की उस भीषण ठंड में यात्री अपनी अपनी जगहों पर दुबके सोने का प्रयास कर रहे थे। सारे खिड़की दरवाजे बंद थे।डिब्बे में सन्नाटा सा था। तभी अचानक तेज झटका लगा।रेलगाड़ी पटरी से उतर चुकी थी। लोग बेतरतीब एक दूसरे के ऊपर गिरने लगे।किसी के कुछ भी समझ नहीं आ रहा था।
लोग किसी तरह संभलकर खड़े होने का प्रयास कर रहे थे। इस घटनाक्रम में कई यात्री हिल भी नहीं पा रहे थे।शायद उन्होंने दम तोड़ दिया था। हर ओर चीख। पुकार का करूण क्रंदन मचा था कुछ लोग खिडकियों दरवाजों को खोलने की कोशिश कर रहे थे।
अंततः सफल भी हुए। पहले कुछ पुरूष बाहर निकले।घुप अंधेरे में हाथ को हाथ भी सुझाई नहीं दे रहा था।फिर महिलाओं, बच्चों, घायलों को निकाला जाने लगा।
कुछ लोग पता करके लौटे तब पता चला कि आगे छः डिब्बे इंजन सहित गड्डमड्ड हालत में अधिकांश लोग बुरी तरह घायल हैं। काफी लोग हताहत हैं। मोबाइल की रोशनी में महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों को सुरक्षित किया जाने लगा।
घायलों को भी एक जगह सुरक्षित स्थान पर रखा जा रहा था। वैकल्पिक इलाज अपने ढंग से कर लोगों की पीड़ा हरने का प्रयास कर रहे थे मुझे भी हलकी चोट थी। मगर अपनी चोट को भूलकर मैं भी मदद में हाथ बंटा रहा था।
रेल विभाग का सहायता दल दो घंटे बाद पहुंचा। दल के सदस्यों ने भी तेजी से अपना अभियान शुरु किया।आसपास के गांवों के हजारों लोग भी इकट्ठा हो मदद कर रहे थे।
अंततः भोर हो गई, उजाला बढ़ने लगा। तभी किसी छोटी बच्ची के रोने से लोगों का धयान गया।
सब अनुमान लगाने लगे,परंतु कुछ पता नहीं चल रहा था। तभी किसी ग्रामीण ने कहा कि शायद पलटे हुए डिब्बे के नीचे से आवाज आ रही है।जल्दी से राहत कर्मचारियों ने बड़ी मसक्कत से डिब्बे को हटाया और फिर जो दिखा उसे देख तो होश फाख्ता हो गये।
एक तीन लाशों के बीच दबी थी। सब बहुत आशचर्य चकित थे कि आखिर एक छोटी बच्ची बची कैसे? पर कहते हैं न जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय।
उस वीभत्स दृश्य को देखने के बाद मन बेचैन हो उठा,परंतु बच्ची के सकुशल होने से एक पल के लिए ही सही संतोष जरूर हुआ।
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✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002