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लघुकथा: खूनी जंगल

खूनी जंगल

बस स्टेशन से बस अभी अपने समय से छूट चुकी थी। बस में पर्याप्त भीड़ थी। क्योंकि बस को घने जंगलों के बीच से गुजरना पड़ता था,इसलिए आखिरी बसें नियत समय पर ही प्रस्थान करती थीं ।

चलते चलते बस अभी जंगल में कुछ किमी. ही अंदर पहुँची ही थी कि अचानक बस के इंजन में खराबी आ गई। क्योंकि यह आखिरी बस थी और अंधेरा होने से पूर्व ही जंगलसे निकल जाना होता था।

इसलिए जंगल से होकर गुजरने वाले लोग जल्दी ही निकल जाते थे ।क्योंकि ऐसी अफवाह थी कि जंगल में भूतों का डेरा है और रात में गुजरने वाला कोई भी इंसान आज तक जीवित नहीं बचता है।

हालांकि इस बात से कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिले थे फिर भी जंगल में यहां वहां आए दिन हड्डियों के कुछ टुकड़े जरूर दिखाई पड़ जाते थे।

बस के ड्राइवर कंडक्टर ने काफी प्रयास किया। फिर भी बस की खराबी दूर ना हो सकी।ऐसे में अब बस के यात्रियों को मजबूरी में पूरी रात जंगल में ही गुजारनी थी ।

लोगों में भय व्याप्त हो चुका था लेकिन मजबूरी थी,क्योंकि अब इस समय कहीं से भी कोई मदद नहीं मिल सकती थी। सबके अपने-अपने तर्क थे। फिर भी कोई आगे बढ़ने को तैयार ना था ।

बस के यात्रियों में एक अजीब सा खौफ पैदा हो रहा था। सुनसान जंगल,जहां रात का बढ़ता अंधेरा लोगों को और डरा रहा था ,बस के कंडक्टर ने लोगों से कहा कि सभी लोग बस के अंदर ही रहें। कुछ लोग नीचे बस के आसपास टहल रहे थे और कभी कभी अजीब सी आवाजें सुनकर डर रहे थे ।

कंडक्टर ने लोगों को शक्ति से समझा दिया था कोई भी रात के अंधेरे में इधर उधर ना जाए अन्यथा किसी भी दुर्घटना का शिकार हो गए तो हम सब की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी।

रात बढ़ती जा रही थी डर के मारे सारे यात्री बस में आकर बैठ गए।अजीब अजीब सी आवाजें लोगों के मन में दहशत भर रही थीं।

दहशत से किसी की आंखों में नींद का नामोनिशान भी ना था तभी बस में बैठे एक एक बुजुर्ग ने मशवरा दिया कि आस पास की झाड़ियों को इकट्ठा करके उसमें आग लगाई जाए ,आग के भय से कोई भी जंगली जानवर या भूत प्रेत आस पास नहीं आएगा और किसी तरीके से रात बीत जाएगी।

लोगों को मशवरा पसंद आया ,12-15 लोग एक साथ बहुत ही सावधानी से अगल बगल से झाड़ झंकाड़ इकट्ठा कर सड़क के किनारे लाकर रख दिए और उसमें आग लगा दी ।

थोड़ी देर के लिए तेज रोशनी हुई जिससे लोगों ने अगल बगल से कुछ मजबूत टहनियां जल्दी जल्दी उठा कर कर उठा लाकर आग में डाल दिया फिर बस में आकर चुपचाप बैठ गए।

रात के तीसरे पहर में लोगों को महसूस हुआ कि बस जैसे हिल रही या यूं कहें कि बस को कोई हिला रहा था।लोगों ने शीशे से देखने का प्रयास किया परंतु कोई दिखाई न दिया।

लेकिन बस में दहशत फैल गई क्योंकि एक महिला बस में से गायब हो गई।लोगों को बड़ा ताज्जुब हो रहा था कि बस के सभी खिड़की दरवाजे पूरी तरह से बंद थी और वह महिला दिवस के अंदर थी फिर अचानक इस तरह वह कहां गायब हो गई।

अब लोगों के अंदर और भय व्याप्त हो गया और भय व्याप्त हो गया धीरे धीरे थोड़ी-थोड़ी देर पर जब भी बस हिलती तभी कोई ना कोई यात्री गायब हो जाता ।

होते करते किसी तरह सुबह हुई ,लेकिन तब तक बस में से 6 आदमी गायब हो चुके थे लोगों के मुंह से डर के मारे आवाज नहीं निकल रही थी किसी तरह सुबह हुई तब लोगों को थोड़ा चैन मिला ।

लेकिन उन छ:आदमियों के इस तरह रहस्यमय ढंग से गायब होने के बारे में लोग आश्वस्त नहीं हो पा रहे थे। इस तरह एक खूनी जंगल में बैठे-बिठाए 6 लोगों को अपने चंगुल में दबोच कर गायब कर दिया ।

किसी तरीके से दहशत के बीच सारे यात्री झुंड के रूप में पैदल चलते हुए जंगल से बाहर निकले।
अब लोगों को विश्वास हो रहा था कि इस जंगल के बारे में जो अफवाह है वह कहीं ना कहीं सच है।

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सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
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