दिल कहता है
आज मेरा दिल कहता है
मैं भी कलमकार बन जाऊँ
माँ शारदे की साधना करूँ
और नाम कमाऊँ।
पर कैसे लिखूँ?
मुझे तो कुछ आता नहीं है,
कहानी,कविता,गीत,गजल से
पत्र पत्रिकाओं से मेरा
कोई नाता नहीं है।
पर दिल ने कहा है
तो मैंने भी ठाना है,
मेरे पास बचने का
न कोई बहाना है।
मैनें भी कलम थाम लिया है,
बस!माँ शारदे को प्रणाम किया है
आज से ही मैनें
कलमकार बनने की
अब ठान लिया है,
दिल ने कहा जो मुझसे
मैंने मान लिया है।
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✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002