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रमज़ान पर निबंध | Essay on Ramadan in Hindi
भूमिका
रमजान शब्द अरबी भाषा के ‘रमिदा’ या ‘अर-रमद’ से निकला है जिसका अर्थ होता है ‘सूर्य की तीव्र उष्मा’, यानि कि सूरज की धधकती धूप जिस तरह जमीन की सतह को जलाती है इसी तरह रमजान भी लोगों के पापों को जलाता है।
भारत विविधताओं से भरा देश है। यहां कई धर्म, जाति, लिंग, संप्रदाय तथा समूह के लोग निवास करते हैं। इन सभी लोगों कि अपनी-अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं। जिसके आधार पर वे अलग-अलग त्योहारों के जरिए अपनी खुशियों को बांटते हैं। भारत में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग दीपावली, होली, दशहरा जैसे त्योहारों को मनाते हैं वही ईसाई धर्म के अनुयायी क्रिसमस, गुड फ्राइडे, ईस्टर आदि मनाते हैं।
इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग शब-ए-बारात, शब-ए-मेराज, मिलाद-उन-नबी तथा ईद-उल-फितर आदि मनाते हैं। मुस्लिमों में ईद एक महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है क्योंकि रमज़ान में क़ुरआन अवतरित हुई और इसी की खुशी में ईद मनाया जाता है। बता दे, क़ुरआन इस्लाम धर्म की पाक किताब मानी जाती है। मुसलमानों की यह मान्यता है कि यह किताब अल्लाह द्वारा भेजी गई अंतिम और सर्वोच्च किताब है।
क्या है रमज़ान का महीना?
रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर जिसे हिजरी कैलेंडर के नाम से जाना जाता है, के नवे महीने में मनाया जाता है। रमजान के पाक महीने में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग रोज़ा या व्रत रखते हैं। रोज़ा को क़ुरआन में ‘सोम’ कहा गया है जिसका बहुवचन ‘सियाम’ है। सोम का अर्थ होता है अल्लाह द्वारा तय किए गए नियमों के भीतर रहना या उन नियमों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना। जो व्यक्ति सोम या रोज़ा रखते हैं उन्हें ‘साइम’ कहा जाता है। साइम का अर्थ होता है, वह व्यक्ति जो खुद को गलत रास्ते में जाने से रोकता है तथा खुद पर काबू रखता है।
रमज़ान में रोज़ा रखने का तरीका
रमज़ान के रोजे का विशेष महत्व होता है क्योंकि इसके पीछे यह धारणा है कि खाना इंसान की बुनियादी जरूरत होती है लेकिन जब इस खाने को न खाकर इंसान भूखा रहता है और अपनी इस भूख पर काबू पाना सीख लेता है। तो वह भूख के साथ ही अपने इंद्रियों पर भी नियंत्रण करना सीख लेता है। यही वजह है कि रमजान में रोजा रखने का एक पूरा नियम होता है जो इस प्रकार है:-
- सहरी- रोजे की शुरुआत होती है सहर से। इस दौरान कुछ खानपान करके रोज़ा रखा जाता है जिसे ‘सहरी’ कहते हैं। सहरी सूरज की पहली किरण निकलने से पहले खाई जाती है।
- इफ़्तार- शाम को जब सूरज की अंतिम किरण निकलती है तब रोजा खोला जाता है। इसे ‘इफ़्तार’ के नाम से जाना जाता है। इस्लाम में रोजा खोलने के लिए यह जरूरी नहीं कि कुछ खास चीज ही खाने में हो। इसके लिए बस मेहनत की कमाई से हासिल किसी भी चीज से रोज़ा खोला जा सकता है। ताजा खजूर या खुश्क खजूर से इफ्तार खोलना अच्छा समझा जाता है।
- तरावीह- रमजान के पाक महीने में तरावीह की नमाज अदा की जाती है जो कि रात के 9:00 बजे के आसपास होती है। यह नमाज 20 रकअत की होती है। मस्जिदों में ईशा की नमाज के बाद कुरान को पढ़ना व सुनना तरावीह कहलाता है।
रमज़ान में रोज़ा रखने के लिए सबसे जरूरी चीज है उसका नियत या इरादा करना। यदि बिना नियत के रोजा रखा जाता है तो यह रोजा नहीं कहलाता बल्कि फाका यानि सिर्फ भूखा रहना कहलाता है।
रोज़ा रखने के नियम
- किसी ठोस कारण की वजह से रोज़ा न रखने पर– यदि कोई व्यक्ति किसी कारण जैसे बीमारी या सफर आदि की वजह से रोजा नहीं रख पाता तो वह बाद में रोजा रख सकता है। लेकिन रोजा रखने वाले व्यक्ति को यदि कोई ऐसी बीमारी है जैसे कि मधुमेह है जिस वजह से वह बाद में भी रोजा नहीं रख सकता तो इसके बदले उसे एक रोजे के बदले किसी एक गरीब को भरपेट खाना खिलाना जरूरी है।
- जान बूझकर रोज़ा तोड़ने पर- वहीं दूसरी ओर यदि कोई जानबूझकर बिना किसी ठोस कारण के रोजा तोड़ता है तो उसे रोजे के बदले कफा और कफ़्फ़ारा अदा करना पड़ता है। दरअसल, एक रोज़ा तोड़ने के बदले जब रोजा रखा जाता है तो उसे ‘कफ’ कहा जाता है। वही इसके बदले जो जुर्माना अदा करना पड़ता है तो उससे कफ़्फ़ारा के नाम से जाना जाता है।
प्राचीन समय में जब कफ़्फ़ारा अदा करना होता था तब एक गुलाम व्यक्ति को आजाद कराना जरूरी होता था। लेकिन मौजूदा समय में गुलामी का दौर नहीं है इसीलिए इसका दूसरा विकल्प है कि व्यक्ति को रोजे के बदले लगातार दो महीने का रोजा रखना जरूरी होता है। यदि व्यक्ति ऐसा करने में असमर्थ हो तो उसे इसके बदले गरीबों को खाना खिलाना पड़ता है।
- क़ुरआन पढ़ना- रमजान के पाक महीने में क़ुरआन अवतरित हुआ था क़ुरआन का मुस्लिम व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि यही प्रत्येक मुस्लिम को जीवन जीने के तरीके बताता है। इसीलिए रमजान के महीने में क़ुरआन को एक बार पढ़ना या कम से कम एक बार दोहराना जरूरी होता है। कुरआन पूरी पढ़ लेने के बाद खुशी में मिठाई बांटी जाती है।
- दान देना- रमजान के महीने में प्रत्येक मुस्लिम को एक विशेष प्रकार का दान देना होता है। इस दान को सदका-ऐ-फितर कहा जाता है। सदका-ऐ-फितर देना हर व्यक्ति का फर्ज होता है चाहे वह व्यक्ति कमाई करता हो या न कमाता हो। सदका-ऐ-फितर ईद की नमाज से पहले अदा की जाती है।
- बुरी आदतों से दूर रहना- रमजान के पाक महीने में बुरा बोलने, सुनने तथा देखने की मनाई होती है। इस दौरान किसी भी तरह का नशा न करना, दूसरों से मारपीट नहीं करना चाहिए। रमजान में किसी दूसरी महिला या स्वयं अपनी पत्नी को वासना की दृष्टि से देखना भी गलत समझा जाता है।
- अस्त्ग़फ़र करना- यानी कि अपनी गलतियों की माफी मांगना। रमजान में लोग अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हैं तथा दोबारा वह गलती न करने की तौबा करते हैं।
- जन्नत की दुआ मांगना- रमजान के महीने में लोग जन्नत-ए-फिरदोस यानी कि स्वर्ग की दुआ मांगते हैं।
रोज़े की छूट
रमजान के महीने में रोजा रखना बेहद जरूरी होता है लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं। किसी- किसी स्थिति में रोजा रखने पर छूट भी दी जाती है। हालांकि इसे लेकर अलग-अलग देशों में अलग-अलग नियम है:-
- उन औरतों को रोजा रखने से छूट है जिनके बच्चे नवजात हो तथा वे मां का दूध पीते हो।
- महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रोजे रखने की छूट है इसके अधिकतम सीमा 10 दिन है।
- 7 साल के कम उम्र के बच्चे को छूट।
- बहुत ही ज्यादा वृद्ध हो चुके हैं व्यक्तियों को भी रोज़े में छूट है।
ईद का त्यौहार
रमजान के महीने भर के रोजे के बाद ईद मनाया जाता है। ईद कुरआन के अवतरित होने के सालगिरह के रूप में मनाया जाता है। इसका शुक्रिया अदा करने के लिए एक विशेष नमाज की अदायगी की जाती है। नमाज के बाद सभी लोग एक दूसरे के गले मिलकर ईद की बधाई देते हैं साथ ही दूसरों के घर जाकर सेवइयां, दूध, मेवे व खीर आदि का वितरण करते हैं।
निष्कर्ष
इस्लाम में मुसलमान का अर्थ होता है मुसल-ए-ईमान। जिसका मतलब होता है वह इंसान जिसका ईमान पक्का हो। वही इंसान सही मायनों में मुसलमान कहलाता है जो कुछ नियमों को पूरा करें जिनमें अल्लाह पर यकीन रखना, नमाज, रोजा, जकात करना शामिल है। ऐसे में स्पष्ट होता है कि इस्लाम में रोजा रखना आखिर कितना जरूरी है। इसके साथ ही रमजान का महीना इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस महीने में जो इबादत की जाती है उसका फल 70 गुना से अधिक हासिल होता है।
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Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।