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रमज़ान पर निबंध

Last updated on: May 7th, 2021

रमज़ान पर निबंध | Essay on Ramadan in Hindi

रमज़ान पर निबंध | Essay on Ramadan in Hindi


भूमिका

रमजान शब्द अरबी भाषा के ‘रमिदा’ या ‘अर-रमद’ से निकला है जिसका अर्थ होता है ‘सूर्य की तीव्र उष्मा’, यानि कि सूरज की धधकती धूप जिस तरह जमीन की सतह को जलाती है इसी तरह रमजान भी लोगों के पापों को जलाता है।

भारत विविधताओं से भरा देश है। यहां कई धर्म, जाति, लिंग, संप्रदाय तथा समूह के लोग निवास करते हैं। इन सभी लोगों कि अपनी-अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं। जिसके आधार पर वे अलग-अलग त्योहारों के जरिए अपनी खुशियों को बांटते हैं। भारत में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग दीपावली, होली, दशहरा जैसे त्योहारों को मनाते हैं वही ईसाई धर्म के अनुयायी क्रिसमस, गुड फ्राइडे, ईस्टर आदि मनाते हैं।

इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग शब-ए-बारात, शब-ए-मेराज, मिलाद-उन-नबी तथा ईद-उल-फितर आदि मनाते हैं। मुस्लिमों में ईद एक महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है क्योंकि रमज़ान में क़ुरआन अवतरित हुई और इसी की खुशी में ईद मनाया जाता है। बता दे, क़ुरआन इस्लाम धर्म की पाक किताब मानी जाती है। मुसलमानों की यह मान्यता है कि यह किताब अल्लाह द्वारा भेजी गई अंतिम और सर्वोच्च किताब है।



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क्या है रमज़ान का महीना?

रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर जिसे हिजरी कैलेंडर के नाम से जाना जाता है, के नवे महीने में मनाया जाता है। रमजान के पाक महीने में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग रोज़ा या व्रत रखते हैं। रोज़ा को क़ुरआन में ‘सोम’ कहा गया है जिसका बहुवचन ‘सियाम’ है। सोम का अर्थ होता है अल्लाह द्वारा तय किए गए नियमों के भीतर रहना या उन नियमों के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना। जो व्यक्ति सोम या रोज़ा रखते हैं उन्हें ‘साइम’ कहा जाता है। साइम का अर्थ होता है, वह व्यक्ति जो खुद को गलत रास्ते में जाने से रोकता है तथा खुद पर काबू रखता है।



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रमज़ान में रोज़ा रखने का तरीका

रमज़ान के रोजे का विशेष महत्व होता है क्योंकि इसके पीछे यह धारणा है कि खाना इंसान की बुनियादी जरूरत होती है लेकिन जब इस खाने को न खाकर इंसान भूखा रहता है और अपनी इस भूख पर काबू पाना सीख लेता है। तो वह भूख के साथ ही अपने इंद्रियों पर भी नियंत्रण करना सीख लेता है। यही वजह है कि रमजान में रोजा रखने का एक पूरा नियम होता है जो इस प्रकार है:-

रमज़ान में रोज़ा रखने के लिए सबसे जरूरी चीज है उसका नियत या इरादा करना। यदि बिना नियत के रोजा रखा जाता है तो यह रोजा नहीं कहलाता बल्कि फाका यानि सिर्फ भूखा रहना कहलाता है।



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रोज़े की छूट

रमजान के महीने में रोजा रखना बेहद जरूरी होता है लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं। किसी- किसी स्थिति में रोजा रखने पर छूट भी दी जाती है। हालांकि इसे लेकर अलग-अलग देशों में अलग-अलग नियम है:-



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ईद का त्यौहार

रमजान के महीने भर के रोजे के बाद ईद मनाया जाता है। ईद कुरआन के अवतरित होने के सालगिरह के रूप में मनाया जाता है। इसका शुक्रिया अदा करने के लिए एक विशेष नमाज की अदायगी की जाती है। नमाज के बाद सभी लोग एक दूसरे के गले मिलकर ईद की बधाई देते हैं साथ ही दूसरों के घर जाकर सेवइयां, दूध, मेवे व खीर आदि का वितरण करते हैं।



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निष्कर्ष

इस्लाम में मुसलमान का अर्थ होता है मुसल-ए-ईमान। जिसका मतलब होता है वह इंसान जिसका ईमान पक्का हो। वही इंसान सही मायनों में मुसलमान कहलाता है जो कुछ नियमों को पूरा करें जिनमें अल्लाह पर यकीन रखना, नमाज, रोजा, जकात करना शामिल है। ऐसे में स्पष्ट होता है कि इस्लाम में रोजा रखना आखिर कितना जरूरी है। इसके साथ ही रमजान का महीना इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस महीने में जो इबादत की जाती है उसका फल 70 गुना से अधिक हासिल होता है।



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तो ऊपर दिए गए लेख में आपने पढ़ा रमज़ान पर निबंध | Essay on Ramadan in Hindi, उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।

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Author:

भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।

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