शापित कौन
16 वर्षीय रघुवीर कमरे से निकल ही रहा था कि बरामदे से माँ बाबा की किसी बात पर हो रही बहस सुनकर उसके कदम ठिठक गये। आज पहली बार उसनें दोनों को इस तरह बहस करते सुन रहा था। उसके माँ बाबा एक मिसाल बनकर रहे हैं। किसी ने भी उन्हें कभी आपस में उलझते या बहस करते शायद ही देखा हो।पहले तो उसका मन हुआ कि जाकर देखे परंतु ऐसा करके वो उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने अपने कदम रोक लिए। परंतु दोनों के बीच हो गम्भीर सी बहस को लोभ न छोड़ सका।
उसकी माँ चाहती थी अब हमें रघुवीर को सच्चाई बता देनी चाहिए, जबकि उसके बाबा इस पक्ष में हरगिज नहीं थे। रघुवीर उन्हें गन्ने के खेत में लगभग बेहोशी की हालत में मिला था,गंदे से कपड़ों में लिपटा नवजात सा वो बच्चा चींटियों की कारगुजारियों से शायद इस हाल में पहुंचा होगा। सुबह जब पति पत्नी खेत पर जा रहे थे तब अचानक वो उन्हें दिखा था, दोनों ने बिना अधिक सोच विचार के ईश्वर का प्रसाद समझ सीधे डॉक्टर के पास ले गये,डॉक्टर ने उनकी बड़ी प्रशंसा की और कहा -थोड़ा और विलंब बच्चे की जान ले सकता था,शायद कोई लोकलाज के डर से इसे छोड़ गया होगा।
तब से वो नवजात आज का रघुवीर उनकी आँखों का तारा बनकर उनके सूने जीवन में रस घोल रहा था।रघुवीर की आये दिन बीमार रहती माँ दुनिया छोड़ने से पहले उसे सच से रूबरू कराना चाहती थी ।
वह रघुवीर के बाबा से कह रही थी देखो जी..कभी न कभी कैसे भी वह सच जानेगा ही, कोई न कोई मुँह खोल ही देगा, शायद लोग हमारी इज्ज़त करते हैं, इसलिए सबने मौन रखा है, हमारे न रहने पर जब उसे पता चलेगा तो वो हम दोनों पर गुस्सा करेगा ,खीझेगा और ये भी हो सकता है कोई गलत कदम उठा ले,उस समय उसे संभालने, समझाने वाला भी कोई न होगा।
रघुवीर के बाबा को बात समझ में आ गई, वे उसे जीवनभर शापित और अनाथ होने का दंश नहीं दे सकते।
उन्होंने ने रघुवीर की माँ से-तुम ठीक कहती हो,अभी हम लोग उसे सँभाल भी लेंगे और समझा भी लेंगे।वही तो हमारे जीवन का आधार है और आधार को हमेशा से मजबूत ही रखा जाता है। उनकी बातें सुनकर रघुवीर रो सा पड़ा और सोचने लगा इसके लिए दोषी कौन है,शापित होने का भाव किसे महसूस होना चाहिए? मुझे,माँ बाबा या फिर उसे जिसने जन्म देकर मरने के लिए छोड़ दिया था।
उसके पास अपने सवालों का कोई उत्तर न था।वो इसमें उलझना भी नहीं चाहता था।वो बस इतना जानता था कि वो माँ बाबा की आँखों का तारा था, है और हमेशा रहेगा।
उसने अपने आँसू पोंछे सिर झटककर कि जैसे कुछ हुआ ही न हो। वो हमेशा की तरह हँसते हुए कमरे से निकल गया।
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✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002