छोटी-छोटी बातें
घर के बाद , एक और घर जाता हूँ
पता नहीं मैं दिर भर कितने रिश्ते निभाता हूँ,,
प्यासा भटक रहा हुँ नदी के किनारे
पेड़ मिलता है तो थोड़ा ठहर जाता हूं
मैं खुद की खोज में कितना दूर निकल जाता हूँ
कभी कभी पूछता हूं खुद से मैं किधर जाता हूँ
तूफ़ान नहीं हूं पर गलियां शांत हो जाती हैं
निभाने वालो के लिए दुरिया कम
पड जाती हैं
औकात से ज्यादा आसमां पर चढ़ भी गया गर
तो चुपचाप से कुछ सीढ़ियां नीचे उतर जाता हूँ
बस इस तरह मै अपनो का दिल
जीत जाता हूँ
पानी भी है खूबसूरत भी हूं और जगह भी है
तुम पागल न हो जाओ सो ज़रा छोटा बन जाता हूँ
हवा हूँ सारे दरवाजे ठकठकाऊंगा
तुम इंतिज़ार करो , मैं एक दिन आप के
आर्शीवाद से जित जाऊगा
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About Author:
चन्द्र प्रकाश रेगर (चन्दु भाई), नैनपुरिया
पो., नमाना नाथद्वारा, राजसमदं
Nice Kavita.