Motivational Story | धुंधली नजरें और आईएएस बनने का वो सपना
यह सुबह भी कुछ अलग नहीं थी। सूरज आज भी वैसे ही उगा था। पक्षी चहचहा रहे थे। लोग अपनी दिनचर्या में लग गए थे, लेकिन अखिल के लिए यह सुबह कुछ खास थी। एक ऐसी सुबह, जिसका उसे हमेशा से इंतजार था। आज इनकम टैक्स कमिश्नर के तौर पर उसे ड्यूटी ज्वाइन करनी थी।
रात भर ठीक से नींद नहीं आई थी। इंतजार था तो बस उस पल का जब वह अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ले। सुबह होते ही आंखों में एक बार फिर से पुरानी यादें तैर गईं। संघर्ष के वे दिन याद आ गए।
आईएएस बनने का सपना बचपन से ही संजोया था। बचपन से ही पढ़ाई में अखिल बहुत तेज था। न केवल शिक्षक उसे पसंद करते थे, बल्कि आस-पड़ोस में भी लोग उसकी कद्र करते थे। स्कूल की पढ़ाई आगे बढ़ती गई। कक्षा में अखिल टॉप करता रहा। आखिरकार, दसवीं का रिजल्ट भी आ गया और इसमें भी अखिल को 92 फ़ीसदी नंबर मिले थे। यह सिलसिला आगे भी चलता रहा।
इंटर भी अच्छे नंबरों से उसने पास कर लिया और फिर ग्रेजुएशन में भी एडमिशन ले लिया। ग्रेजुएशन जब अखिल का पूरा हो गया तो अब वक्त आ गया था यूपीएससी की परीक्षा देने का। इसके लिए जी-जान से अखिल तैयारी में जुट गया। रात में देर तक जग कर अखिल पढ़ाई करता था।
फिर एक दिन सुबह उसकी नींद खुली तो उसे अपनी आंखों में खुजली महसूस हुई। उसने इसे नजरअंदाज किया। आंखों में पानी डाला और अपनी पढ़ाई उसने जारी रखी। खुजली उस वक्त ठीक हो गई थी, लेकिन शाम होते-होते यह और बढ़ गई।
फिर अखिल ने देखा कि बाईं आंख के अंदर एक घाव हो गया है। अखिल मेडिकल की दुकान पर गया। वहां से उसने एक मरहम खरीदा। उसे उसने मलना शुरू कर दिया। मरहम लगाने के बाद भी घाव ठीक नहीं हुआ। स्थिति ऐसी हो गई कि अब आंखों में दर्द होने लगा। अखिल की पढ़ाई इससे बाधित हो रही थी।
अखिल के पिता ने डॉक्टर से उसे दिखाया। डॉक्टर ने दवाई शुरू की, लेकिन यह घाव और बढ़ता चला गया। डॉक्टर ने आखिरकार हाथ खड़े कर दिए और अखिल को चेन्नई ले जाने की सलाह डॉक्टर ने उसके पिता को दी। पिता की आर्थिक स्थिति इतनी भी अच्छी नहीं थी कि महंगे अस्पताल में उसका इलाज करवा सकें। फिर भी पिता ने किसी तरीके से पैसे जुटाए। अखिल को लेकर चेन्नई पहुंचे।
चेन्नई में अखिल की आंख का ऑपरेशन किया गया। घाव ठीक हो गया, लेकिन आंख की पुतली पर एक दाग पड़ गया। ऐसे में सामने से उसे हर चीज धुंधली दिखने लगी। साइड से ही कोई चीज साफ दिख पाती थी। अखिल बेहद निराश हो गया। किसी तरीके से खुद को संभाला। सोचा कि चलो एक आंख तो ठीक है। उसी से पढ़ाई करके तैयारी हो जाएगी। आईएएस बनने का सपना पूरा हो जाएगा।
अखिल को नहीं मालूम था कि नियति उसका और इम्तिहान लेने वाली है। मुश्किल से एक महीना ही बीता था कि अखिल की दाईं आंख में भी वैसी ही समस्या हो गई। एक बार फिर से ऑपरेशन कराने की नौबत आई। इस बार भी वही हुआ। ऑपरेशन तो हो गया, लेकिन आंख की पुतली पर दाग रह गया। अब दोनों आंखों से अखिल को सामने की चीजें धुंधली दिखती थीं।
पढ़ाई करना अखिल के लिए अब मुश्किल हो गया। निराशा के गर्त में अखिल डूबता जा रहा था। पिता की भी आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि बहुत ज्यादा पढ़ाई और इलाज पर खर्च कर सकें। अखिल की कोचिंग बंद हो गई थी। फिर अखिल को स्वामी विवेकानंद की एक बात याद आई। उन्होंने कहा था कि उठो जागो और अपने लक्ष्य को प्राप्त किए बिना रुको नहीं।
अखिल ने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए आईएएस तो बनना ही है। घर चलाने के लिए अखिल अपने पिता का साथ देने के लिए मजबूर था। उनकी दुकान में भी वह बैठता था। फिर भी उसने पढ़ाई के लिए रास्ता बनाना शुरू कर दिया। उसने ऑडियो बुक्स और ऑडियो नोट्स ढूंढने शुरू कर दिए। कई दोस्तों की मदद से धीरे-धीरे अखिल के पास ऑडियो पाठ्य सामग्री जमा होने लगी।
अखिल को दोस्तों से मदद मिली, क्योंकि वह भी उनकी बड़ी मदद करता था। समाज सेवा के काम में भी अखिल हमेशा आगे रहता था। न केवल जरूरत पड़ने पर वह मरीजों को खून अपने संपर्क से उपलब्ध करवाता था, बल्कि लोगों से पैसे जमा करके गरीबों को जरूरत की चीजें भी मुहैया कराने के काम में वह आगे रहता था।
दुकान में जब अखिल बैठता था तो कान में ईयरफोन लगाकर वह अपने फोन में मौजूद ऑडियो सामग्री को सुनता रहता था। उठते-बैठते, सोते-जागते अखिल ने इन्हें सुनना जारी रखा। धीरे-धीरे अखिल की तैयारी पुख्ता होती चली गई। पहली बार उसने यूपीएससी की परीक्षा दी। स्क्राइब की मदद से अखिल ने यह परीक्षा दी। परिणाम आया तो इसमें उसका नाम नहीं था। अखिल को निराशा जरूर हुई, लेकिन अगले साल उसने फिर से परीक्षा दी।
अखिल का पीटी क्लियर हो गया। अब मेंस की बारी थी। अखिल ने कमर कस ली थी। मेंस की परीक्षा का जब रिजल्ट आया तो इस बार अखिल का भी नाम इस सूची में था। इंटरव्यू के लिए अखिल का चयन हो गया था। अभी भी मंजिल बहुत दूर थी। अखिल ने जी-जान से इंटरव्यू की तैयारी शुरू कर दी। इंटरव्यू में वह शामिल भी हुआ। आखिरकार रिजल्ट आ गया। अफसोस कि इस बार भी अखिल का चयन नहीं हुआ।
लोगों ने अफसोस जताना शुरू कर दिया। उससे लोग सहानुभूति जताने लगे। अखिल को यह सब अच्छा नहीं लग रहा था। अखिल ने ठान लिया था कि निराश होने से कुछ हासिल नहीं होने वाला तैयारी जारी रखनी है।
अब हर बार अखिल एग्जाम देता था। हर बार इंटरव्यू भी देता था, लेकिन हर बार उसका चयन नहीं होता था। अखिल के लिए यह अंतिम मौका था। अखिल ने एग्जाम दिया। फिर से इंटरव्यू देने का उसे मौका मिला। लौटकर आया तो अखिल के दिमाग में बस एक ही बात थी। वह यही सोच रहा था कि मैंने अपना 100 प्रतीशत दिया है। चयन नहीं भी हुआ तो जिंदगी नहीं रुकने वाली। कुछ अच्छा ही करूंगा।
फिर आया रिजल्ट का दिन। इससे पहले कि अखिल रिजल्ट देख पाता, उसके मोबाइल पर एक फोन आया। उधर से आवाज आई, अखिल तुम्हारा 42 वां रैंक है। अखिल को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। उसके मुंह से निकला, क्या सच में? उधर से आवाज आई, यकीन न हो तो वेबसाइट पर देख लो।
इसके बाद तो उसके पास बधाई देने वालों का तांता लग गया। मीडिया वाले भी इंटरव्यू के लिए पहुंचने लगे। अंतिम प्रयास में अखिल को कामयाबी मिल गई थी। आईएएस बनने का सपना अब अखिल का पूरा हो रहा था। हार न मानने की जो अखिल ने ठानी थी, आखिर उसी ने उसकी सफलता के दरवाजे खोल दिए थे।
फिर अचानक मां की आवाज आई, अखिल ज्वाइन करने नहीं जाना है क्या? यह सुनकर अखिल पुरानी यादों के झरोखे से बाहर निकल आया। मां को जवाब दिया, बस मां तैयार होने ही जा रहा हूं। अखिल तैयार होकर निकलने लगा। मां ने उसे टीका लगाया। अखिल ने मां-पिताजी के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। फिर निकल पड़ा अखिल आज अपनी मंजिल से गले मिलने के लिए।
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लेखक: शैलेश कुमार