श्रीमद् भगवत् गीता की महिमा
गीता का पाठ सदा नित ध्यान लगा लेगा,
मरण जन्म के भव सागर से भेद मिटा देगा,
जल में होता शरीर स्वच्छ, मन मैला रहता,
गीता ज्ञान रूपी जल में मन संतृप्त है करता
जो महाभारत का अमृत सार है श्री मुख का,
गीता ज्ञान पा लेने से नाश होता है सब दुःख का,
मोह माया सब त्याग कर भक्ति से निःस्वार्थ,
पूर्ण गीता ज्ञान तू अर्जित कर मेरे प्रिय पार्थ
इसका आसय है गंभीर, इसका अंत नहीं होता,
दिन – प्रतिदिन भाव नए आते कोई कुछ नहीं खोता,
क्रोध, भ्रम की जननी है भ्रम से बुद्धि बेसुध होता,
तर्क नष्ट हो जाता है मन उपान्त अगर न होता
डरो नहीं तुम कल्पना से यथार्थ पर तुम अमल करो,
कार्य में आनन्दित हो, शांति मार्ग को तुम चुनो,
इच्छाओं की लालसा को मै, मेरा न होने दो,
भावना से मुक्त हो, मन पर संयम रहने दो,
वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हैं,
कोई संशय अब नहीं मेरे धाम को चलते हैं।
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