माखन चोर
सर पर शोभे मोर मुकुट,
कानों में शोभे कुण्डल,
पीले वस्त्र में चमक रही,
इनकी प्रतिमा उज्ज्वल।
हाथों में मुरली,
होंठों पर मुस्कान,
अनुपम लीला,
अपूर्व महान।
ना डिगा पाए शरद इन्हें,
ना पिघला पाए ग्रीष्म,
श्यामल वर्ण के कारण ही,
नाम पड़ा है कृष्ण।
देवकी ने इनको जनम दिया,
और पाला यशोदा मैया ने,
सबके मन को हर कर,
आकर्षित किया कन्हैया ने।
इनकी महिमा को, इनकी लीला को,
धरती आकाश ने माना है,
पीताम्बर कहो, कृष्ण कहो,
लल्ला चित्तचोर ये कान्हा है।
Author:
प्रो.आराधना प्रियदर्शनी
स्वरचित व मौलिक
हजारीबाग, झारखंड
🙏”त्राहिमाम”🙏
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ,
अब मानवता त्राहिमाम करे।
वसुधा रो रही विकल व्याकुल,
कौन जगपालक प्रमाण धरे।।
जग व्याकुल है, नर है व्याकुल,
यमुना व्याकुल, वृंदावन व्याकुल,
व्याकुल धरती, व्याकुल अम्बर,
व्याकुल चेतना, व्याकुल दिगम्बर,
कंस का अंश बढ़ रहा धरती पर,
कौन वध करे, संहार करे,
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ,
अब मानवता त्राहिमाम करे।
वसुधा रो रही विकल व्याकुल,
कौन जगपालक प्रमाण धरे।।
राधा मौन है मौन है गोकुल,
अब प्रभात भी दिखता गोधुल,
नन्द मौन है, है मौन यशोदा,
प्राणवायु को तरसे वसुधा,
पूतना का विष फैला सृष्टि में,
कौन गरल का स्तन पान करे,
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ,
अब मानवता त्राहिमाम करे।
वसुधा रो रही विकल व्याकुल,
कौन जगपालक प्रमाण धरे।।
दुःख है क्षोभ है और तृष्णा है,
नहीं दिखता तो बस कृष्णा है,
प्रचण्ड पाप है दुर्बल मानव,
अट्टहास करता यहां दानव,
हर गोपी यहां रुदन ठानती,
हर एक बाला चीत्कार करे,
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ,
अब मानवता त्राहिमाम करे।
वसुधा रो रही विकल व्याकुल,
कौन जगपालक प्रमाण धरे।।
रणभूमि बन गया यहां जीवन,
खड़ा अकेला अर्जुन अंकिचन,
परिस्थितियां कौरव बन गयी हैं,
विजय यहां क्या करे संबोधन,
थामें कौन अस्मत की डोरी,
कौन भवसागर से पार करे,
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ,
अब मानवता त्राहिमाम करे।
वसुधा रो रही विकल व्याकुल,
कौन जगपालक प्रमाण धरे।।
Author:
ममता मनीष सिन्हा
तोपा, रामगढ़ (झारखंड)
धरा पर आ जाओ
हे कृष्ण, नटखट कन्हैया
अब बहुत हो चुका
माखन चुराना, गैय्या चराना,
बाल सुलभ चंचलता दिखाना
गोपियों संग अठखेलियाँ करना।
अब एक बार फिर से
अपना रुप दिखाओ,
फिर से अपने स्वरूप में
धरती पर आ जाओ।
लुका छिपी का खेल अब बंद करो
अब आओ! धरती के मानव रुपी
रावणों, राक्षसों का विनाश करो।
अब इनके अत्याचारों से
चहुंओर त्राहिमाम मचा है,
मुक्ति के लिए प्रभु जी
अब केवल तुम्हारा ही सहारा है।
इस जन्मोत्सव पर प्रभु
बस इतनी कृपा कर दो
अनीति, अन्याय, अनाचार,
अत्याचार, भ्रष्टाचार पर फिर
एक बार सुदर्शन चक्र का
भीषणतम प्रहार कर दो,
अपने भक्तों का बेड़ा पार कर दो।
जैसे गीताज्ञान दिया था
पार्थ को कुरुक्षेत्र मे,
आज समूची धरा ही जब
बन गई कुरुक्षेत्र है तब
प्रभु अब तो तुम्हें आना ही होगा,
धरा को मानवी राक्षसों,रावणों से
मुक्ति का मार्ग दिखाना ही होगा।
हे मुरलीधर, हे कृष्णमुरारी चक्रधारी
अब देर न करो, इतनी सी कृपा करो
पीड़ितों, दुखियों को न नजरअंदाज करो
एक बार फिर से धरा पर आ जाओ
जन जन का उद्धार करो,
हर जन मन में नया उत्साह भरो
सबका बेड़ा पार करो,
हे विष्णु अवतारी धरा पर आ जाओ।
अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.
कृपया कविता को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और whats App पर शेयर करना न भूले, शेयर बटन नीचे दिए गए हैं। इस कविता से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख कर हमे बता सकते हैं।
Author:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.